मुद्दा: बिजली का निजीकरण– स्मार्ट मीटर
भारत में बिजली एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन चुका है। जिस तरह रोटी, कपड़ा, मकान की जरूरत है, उसी तरह से बिजली की जरूरत हो गई है। बिजली नहीं रहने से घर में रोशनी नहीं होती, मोबाइल से लेकर टीवी, पंखा, कूलर, फ्रीज कुछ नहीं चल सकता। इसको बढ़ावा देने का काम भारत सरकार ने किया है। भारत सरकार पीडीएस (सरकारी राशन दुकान) पर मिलने वाली केरोसिन ऑयल (मिट्टी तेल) को बहुत पहले बंद कर चुकी है, जिससे भारत के शहरों से लेकर सुदूर ग्रामीण इलाकों में भी रोशनी के लिए लोगों को बिजली पर निर्भर होना पड़ा।
खाना बनाने के लिए लकड़ी के बाद जो स्रोत था वह केरोसिन ऑयल था, जिससे लोग स्टोव पर खाना बना लिया करते थे। सरकार ने 2019 में राशन की दुकानों पर केरोसिन की बिक्री पूरी तरह से बंद कर दी और किरोसिन पर मिलने वाली सब्सिडी को खत्म कर दिया। केरोसिन ऑयल छीन कर शहर से गांव तक लोगों को बिजली पर निर्भर बना दिया गया।
फणीश्वरनाथ रेणु ने अपनी कहानी ‘पंचलाइट’ में भी केरोसिन का जिक्र किया है। जब रूदल साहब पंचलाइट जलाने के लिए बाजार जाकर दुकान से तीन बोतल केरोसिन खरीदते हैं। अब तो बाजार में खोजने से भी किरोसीन आयल नहीं मिलता है।
बिजली को बढ़ावा देने के लिए 25 सितम्बर, 2017 को प्रधानमंत्री ने दीनदयाल ऊर्जा भवन में प्रधानमंत्री सहज बिजली, हर घर योजना-सौभाग्य का शुभारंभ किया। इसका उद्देश्य हर घर तक बिजली पहुंचाना है। इस योजना के तहत 31 दिसम्बर, 2018 तक राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को घरेलू विद्युतीकरण कार्य पूरा करना था, जिससे 2019 तक हर घर में बिजली पहुंचाई जा सके। इस योजना की विशेषता बताते हुए सरकार ने कहा है कि यह केरोसिन का विकल्प है। इसके साथ ही बताया गया कि सभी इच्छुक घरों तक बिजली की पहुंच, स्वास्थ्य सेवाओं, संचार करना है और सार्वजनिक सुरक्षा में सुधार करना है और नौकरी के अवसरों में वृद्धि, दैनिक कार्यों में जीवन की बेहतर गुणवत्ता, विशेषकर महिलाओं के लिए हासिल करना है।
सरकार के तेजी से बिजली के उत्पादन का रिकॉर्ड कायम करने के फेर में 1 नवम्बर, 2017 को एनटीपीसी के ऊंचाहार प्लांट में बॉयलर विस्फोट में तीस से अधिक कर्मचारी एवं इंजीनियर मारे गये और करीब 200 के आस-पास लोग घायल हो गये। सरकार ने 8 अगस्त, 2022 को विद्युत (संशोधन) विधेयक, 2022 को लोकसभा में पेश कर पास भी करवा लिया। इससे बिजली का निजीकरण आसान हो गया। इससे पहले सरकार ने 1 दिसम्बर, 2021 को संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) को पत्र लिख कर आश्वसान दिया था कि ‘‘बिजली बिल में किसान पर असर डालने वाले प्रावधानों पर पहले सभी स्टेकहोल्डर्स/संयुक्त किसान मोर्चा से चर्चा होगी। संयुक्त किसान मोर्चा से चर्चा होने के बाद ही बिल संसद में पेश किया जायेगा।’’ सरकार बिजली के निजीकरण के जल्दबाजी में किसानों से किये गये लिखित वादों से भी मुकर गई और बिना चर्चा के संसद में बिल पेश कर दिया।
इसके विरोध में बिजली विभाग के कर्मचारियों ने कई राज्यों में प्रदर्शन किया, जिसमें उत्तर प्रदेश के कर्मचारियों का मार्च 2023 में 73 घंटे का आन्दोलन मुख्य था।
सरकार ने बिजली कम्पनियों को लाभ पहुंचाने के लिए ‘प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना-‘सौभाग्य’ के सभी तरह के इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए भारी धन मुहैया कराया। बिजली कम्पनियों के आसानी के लिए स्मार्ट मीटर देश भर में लगाये जाने लगे, जिसका काम सरकार ने प्राइवेट कम्पनियों को ही दिया है। स्मार्ट मीटर से लोगों पर बिजली बिल का बोझ बढ़ेगा, क्योंकि स्मार्ट मीटर स्पार्क होने वाली जगह को भी यूनिट में जोड़ देगा, यहां तक बोर्ड में लगने वाला इंडीकेटर को भी जोड़ेगा। भविष्य में इसको मोबाइल फोन की तरह भी बनाया जा सकता है। पहले रिचार्ज करो, फिर इसका उपयोग करो। इससे रोजगार बढ़ने की बजाय रोजगार और कम होगा जिससे पहले से बढ़ती बेरोजगारी में और इजाफा होगा।
हम जानते हैं कि भारत की बड़ी आबादी कृषि ,कार्य पर निर्भर होती है, जहां फसल होने के समय ही उनके पास पैसा आता है। ऐसे में उन घरों में बिजली नहीं मिल पायेगी। इसका और भी प्रभाव के आगे विश्लेषण की जरूरत है। अभी इतना बताना ही काफी होगा कि उत्तर प्रदेश पॉवर कॉरपोरेशन प्रबंधन ने आईटी विशेषज्ञों की कमेटी बनकार स्मार्ट बिजली मीटर की जांच कराई, तो सभी वितरण निगमों की ओर से लगाए गए मीटरों में खामियां पाई गईं। मीटर गलत रिकॉर्ड करने के साथ ही आरटीसी दो घंटे में ड्रिप कर रही है, जिसका असर बिलिंग पर पड़ेगा। कॉरपोरेशन के वाणिज्य निदेशक निधि कुमार नारंग ने मीटर लगाने वाली कम्पनी जीएमआर, इंटली स्मार्ट और पोलरिस को नोटिस जारी किया है।
हम मोबाइल के उदाहरण से इसको समझ सकते हैं कि किस तरह से मोबाइल के रिचार्ज की दर को कम्पनियां बढ़ाती जा रही हैं, आपका नेटवर्क रहे या नहीं रहे उनका दिन कम होता जाता है। पहले सरकार ने हर काम के लिए आपको मोबाइल पर निर्भर किया। बैंक का काम हो, बच्चों को फार्म भरना हो, स्कूल में दाखिला हो या कोई भी काम, आपके मोबाइल पर ओटीपी आता है, जिसके कारण आपको हर महीना करीब 300 रुपये का चार्ज कराना होता है। इसी तरह घरों तक बिजली पहुंचा कर लोगों से बिजली के सामान जैसे पंखा, कूलर, टीवी इत्यादि के सामान खरीद कर पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाया गया। विद्युत (संशोधन) विधेयक 2022 को लाकर बिजली का निजीकरण कर लोगों पर बिजली के बोझ लादे जाने की तैयारी है। इस बात को जनता समझ गई है और देश में कई जगह स्मार्ट मीटर का विरोध हो रहा है। पश्चिमी यूपी में लोगों ने मेरठ जिला कार्यालय में जाकर विरोध जताया तो बिहार में राष्ट्रीय जनता दल स्मार्ट मीटर को मुद्दा बनाया हुआ है। सबसे बड़ा आन्दोलन उड़ीसा के बरगढ़ जिले के पदमपुर में 8 नवम्बर को स्मार्ट मीटर के खिलाफ ‘संयुक्त कृषक संगठन’ द्वारा ‘कृषक गर्जन समावेश’ का आयोजन किया गया।
‘कृषक गर्जन समावेश’ में जानकारी दी गई कि उड़ीसा में 15,000 से अधिक स्मार्ट मीटर किसानों ने उखाड़ कर ग्रिड कार्यालय और टीपीडब्ल्यूओडीएल के कार्यालय के सामने फेंक दिया है। लोगों ने बताया कि उपभोक्ताओं और विशेष रूप से किसानों की सहमति के बिना स्मार्ट मीटर लगाने से किसानों में भारी आक्रोश है। स्मार्ट मीटर के विरोध करने वाले किसान नेताओं पर सरकार झूठे केस लगा रही है। किसान नेता रमेश महापात्रा को आदतन अपराधी बता रही है, जिसका उड़ीसा हाईकोर्ट बार एसोसिएशन और बरगढ़ जिला बार एसोसिएशन ने विरोध किया है और किसानों की स्मार्ट लड़ाई के साथ खड़ा है।
इस आन्दोलन का असर यह रहा कि बरगढ़ जिला कलेक्टर को घोषणा करनी पडी कि बकाया राशि के कारण किसी की बिजली नहीं काटी जायेगी। इस लड़ाई को मजबूती देने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा से पी. कृष्णा प्रसाद और किसान-मजदूर परिषद से अफलातून और राजेन्द्र चौधरी, दिल्ली के सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार सुनील कुमार ने भाग लिया। बिजली का मुद्दा इतना महत्वपूर्ण है कि सभी चुनावी पार्टियां, खासकर राष्ट्रीय स्तर की भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और आप हर चुनाव में 300 यूनिट बिजली फ्री देने का वादा कर रही हैं। एक तरफ बिजली फ्री देने का वादा तो दूसरी तरफ सरकार बनने के बाद बिजली के निजीकरण और स्मार्ट मीटर लगाकर जनता की जेब काटने की योजना बनाई जा रही है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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