ओमिक्रॉन: प्राथमिक अध्ययन के मुताबिक दोबारा हो सकता है कोरोना संक्रमण
अब ओमिक्रॉन वेरिएंट को आए हुए दस से ज्यादा दिन हो चुके हैं। दुनिया इसके खतरे को समझने की कोशिश कर रही है। एक मुख्य चिंता यह समझने की रही है की क्या नया वेरिएंट दोबारा कोरोना का संक्रमण फैला सकता है या नहीं। मतलब यह उन लोगों को हो सकता है या नहीं जिन्हें यह पहले ही हो चुका है।
दोबारा संक्रमण होना प्राथमिक संकेत होगा कि नए वेरिएंट में पहले के संक्रमण से पैदा हुई प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता से बचने की ताकत मौजूद है।
दक्षिण अफ्रीका में हुए हालिया सर्वे में कुछ ऐसे संकेत मिले हैं जिनसे लगता है कि यह हमारी प्राकृतिक निरोधक क्षमता को पार कर सकता है। हालांकि यह जल्दी का विश्लेषण है और अब इसकी ठीक से पुष्टि होना बाकी है। यह भी बताते चलें कि प्राथमिक विश्लेषण वैक्सीन से मिली सुरक्षा के इस वेरिएंट द्वारा पार करने पर कुछ नहीं कहता। बता दे विश्व स्वास्थ्य संगठन अब भी अपने अपडेट में लिख रहा है कि वेरिएंट द्वारा प्रतिरोधक क्षमता को पार करने संबंधी प्रयोग अभी जारी है। संगठन ने अब तक ठोस ढंग से कुछ नहीं कहा है।
नया वेरिएंट 30 से ज्यादा देशों में फेल चुका है। दक्षिण अफ्रीका में वैज्ञानिक वायरस के स्रोत (पहले मामले) कप्ता लगाने की कोशिश में 36000 मामलों का परीक्षण कर चुके हैं जिन्हें दोबारा संक्रमण हुआ था। वे फिर से संक्रमण होने की दर में आए बदलाव को भी देख रहे हैं। ध्यान रहे डेल्टा और बीटा वेरिएंट के चलते आई कोरोना लहरों में दोबारा संक्रमण का खतरा नहीं था।
दिलचस्प है कि यह तब पाया गया जब कुछ प्रयोगशालाएं कह रही थीं कि बीटा और डेल्टा वेरिएंट में प्रतिरोधक क्षमता को पार करने की शक्ति है।
लेकिन अब पहले संक्रमित हो चुके लोगों में फिर से कोरोना संक्रमण होने की दर बढ़ने लगी है। हालांकि इसे हर मामले का परीक्षण नहीं किया गया है, पर नए वेरिएंट के आने का वक्त संकेत देता है कि इस उछाल के पीछे नया वेरिएंट हो सकता है।
दक्षिण अफ्रीका में वैज्ञानिकों द्वारा किए गए परीक्षण प्रिप्रिंट्र सर्वर medRxiv में 2 दिसंबर को प्रकाशित हुए थे।अनुमान बताते हैं कि नया वेरिएंट पुराने वेरिएंट की तुलना में दोगुनी ताकत से, पहले संक्रमित रह चुके लोगों में संक्रमण फैला सकता है।
अध्ययन के मुख्य लेखक और स्टेलेंबोस्क यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर, जूलियट पुलियाम ने टिप्पणी करते हुए कहा, "इन खोजों से पता चलता है कि ओमिक्रोन द्वारा संक्रमण फैलाने की उन्नत अवस्था इस तथ्य से ज्यादा बेहतर होती है कि यह पहले संक्रमित रह चुके लोगों में दोबारा फैल सकता है।" लेकिन यह सिर्फ प्राथमिक है और वेरिएंट की एक बड़ी पहेली में छोटा सा हिस्सा है।
लेकिन अब भी सवाल बरकरार है कि कितनी प्रतिरोधक क्षमता घटने के बाद इसके दोबारा संक्रमण के फैलने की संभावना बनती है और अब कोई नया वेरिएंट कितनी हद तक प्रभावित कर सकता है। ऊपर से यह सिर्फ तेजी से किया गया विश्लेषण है, वह भी उस देश में जहां एचआईवी के मामले बहुत ज्यादा हैं। इससे भी समग्र रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो सकती है। तो यह जानकारी क्या पूरी दुनिया पर लागू हो सकती है या नहीं, यह देखा जाना बाकी है।
एंटीबॉडी इस वेरिएंट पर कितने प्रभावी ढंग से हमला कर सकते हैं इसे परखने के लिए अभी प्रयोग जारी है और कुछ हफ्तों में इसके नतीजे आ सकते हैं।
अहम बात यह है कि दक्षिण अफ्रीका में टीकाकरण की दर भी कम है। अब तक सिर्फ 24 फीसदी लोगों का ही पूर्ण टीकाकरण हो पाया है। शोधार्थियों ने कहा है कि उनकी खोज के नतीजे दक्षिण अफ्रीका की तरह के देशों के लिए लागू हो सकते हैं। लेकिन जूलियट ने साफ कहा है कि वे इस वेरिएंट की वैक्सीन को धता बताने की क्षमता पर कुछ नहीं कह सकते।
ईस्ट एंगलिया यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर पॉल हंटर ने टिप्पणी में कहा, "इस पेपर का नतीजा यह है कि इसके संकेत मिलते हैं कि ओमिक्रोन एक हद तक प्राकृतिक और संभावित तौर पर वैक्सीन द्वारा पैदा की हुई प्रतिरोधक क्षमता से पार पा सकता है। लेकिन अभी यह हद क्या है, वह तय नहीं हो पाया है। हालांकि यह संदेहास्पद है कि ओमिक्रोन पूरी तरह प्रतिरोधक क्षमताओं को पार कर पाएगा।
ज्यादातर वैज्ञानिकों मानना है कि हो सकता है कि वैक्सीन भले ही व्यक्ति में इसका संक्रमण होने से ना रोक पाएं, पर वे इस संक्रमण से गंभीर बीमारी और मौत के खतरे को रोक पाएंगी।
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