टोक्यो 2020: अगले साल इसी वक़्त शुरू होगा खेल
क्या आप बहुत सारे ब्रह्मांडों के अस्तित्व में यकीन रखते हैं? कुछ व्याख्याएं बताती हैं कि समानांतर ब्रह्मांडों में अलग-अलग इतिहास बन रहा है। इनमें हमारा किरदार अहम या कम या बिलकुल ना के बराबर, कुछ भी हो सकता है। अगर समानांतर ब्रह्मांड में सच्चाई है, तो मैं सोचता हूं कि किस ब्रह्मांड में 2020 का टोक्यो ओलंपिक खेला जा रहा होगा। जहां मैं ओलंपिक के कई खेलों के बीच मची उथल-पुथल में टोक्यो में मौजूद रहूंगा और अपने वक़्त के हिसाब से चीजें कर रहा होऊंगा। 24 जुलाई, 2020 को टोक्यो ओलंपिक के पहले दिन ही इसमें शामिल देश, नृजातीयताएं (एथनिसिटीज़), खिलाड़ी, चमक और सबसे शानदार होने की चाहत रखने वाला अध्यात्म इसे एक उबलती हुई हांडी बना देती है। हर कोई इसमें आ रहे उबाल को महसूस कर सकता है। यह धीमी होती भी महसूस की जा सकती है। यहां खिलाड़ियों की जीत की खुशबू है, इंसानी उद्यम का मनोरम दृश्य है।
भारतीय ओलंपिक संघ (IOA) के एक मेल ने मुझे समानांतर दुनिया से बाहर खींच निकाला। मैं यह बताना चाहता हूं कि मेरा समानांतर ब्रह्मांड में कोई यकीन नहीं है। ऐसा इसलिए है ताकि मैं इस दुनिया की चीजों को बेहतर ढंग से बता सकूं। तो हमारी वास्तविकता में IOA, न्यूज़क्लिक से मेल में पूछ रहा है कि अगर परिस्थितियों ने साथ दिया, तो एक नई समय-सारिणी के हिसाब से अगले साल होने वाले ओलंपिक खेलों में क्या न्यूज़क्लिक, मीडिया के तौर पर कार्यक्रम का हिस्सा बनेगा।
जब मैं ईमेल का जवाब दे रहा था, तो कोई भी इस औपचारिकता पर मुस्कुरा जाए। खासकर तब, जब हम जानते हैं कि खेल से हम कभी दूर नहीं रह पाएंगे। पर अब हम एक नए सामान्य में ढल चुके हैं, जहां खेल, जिंदगी, शादियां, क्लासरूम और ऑफिस मीटिंग अब स्क्रीन पर आ गई हैं। यह नया सामान्य खेल पत्रकारिता को भी वीडियो चैट ऐप्स और सोशल मीडिया पर ले आया है।
आने वाले 15 दिन टोक्यो से आगे खेलों की प्रवीणता और इससे जुड़ी दूसरी चीजों पर जश्न होगा। टोक्यो ओलंपिक को इंतज़ार करना होगा, भविष्य में जब भी यह होगा, तब तक हम 365 दिन नए सामान्य में जीने की आदत डाल चुके होंगे। टोक्यो ओलंपिक कोरोना वायरस पर इंसानियत की प्रतीकात्मक जीत का भी प्रदर्शन होगा।
यह जरूर है कि ओलंपिक के होने पर किंतु-परंतु भी खूब होगा, यहां तक कि इसके रद्द होने की भी बात हो सकती है, लेकिन यह सब हॉयपोथीसिस हैं, जो समानांतर ब्रह्मांडों वाली अवधारणा से बहुत अलग नहीं हैं। मौजूदा परिस्थितियों के हिसाब से खेल को आयोजित करवाना नामुमकिन है। इस बात पर टोक्यो ओलंपिक से संबंधित सभी लोग सहमत हैं। टोक्यो ऑर्गेनाइज़िंग कमेटी के प्रेसिडेंट योशिरो मोरी ने जापानी ब्रॉडकॉस्टर NHK को दिए एक इंटरव्यू में 22 जुलाई को कहा,“ओलंपिक होने का सवाल इस बात पर निर्भर करता है कि क्या मानवता, वायरस को हरा पाएगी या नहीं।” यह बात उन्होंने उस कार्यक्रम के एक दिन पहले कही कही, जब टोक्यो में ओलंपिक के होने में एक साल बचने के मौक पर होने वाला जश्न दूसरी बार मनाया गया है। यहां अहम वैक्सीन या दवाईयों के विकास का मुद्दा अहम हो जाता है।
यह वह जीत है, जिसे दुनिया एक होकर पाना चाहती है। यह जीत उस दौड़ में हासिल करनी है, जहां हमारे प्रतिद्वंद्वी को हम नहीं पहचानते। यह दौड़ कब खत्म होगी, इसका भी कोई अंदाजा नहीं है। इन स्थितियों में हम 23 जुलाई, 2021 की बात करते हैं, तो हमें सिर्फ आशा ही दिखाई पड़ती है।
कई मायनों में ओलंपिक खेल हमेशा उम्मीद से जुड़े रहे हैं। अगर आर्थिक पक्ष को अलग कर दें, तो यही एक वज़ह है कि आज दुनिया ओलंपिक के आयोजित होने की आस लगाकर बैठी है। जबकि यह महज़ एक ऐसा कार्यक्रम है, जिसमें सिर्फ शारीरिक ताकत दिखाई जाती है, जहां सारे ताकतवर इंसान पहुंचते हैं। एक ऐसा कार्यक्रम जो ऐसी वास्तविकता पेश करता है, जो कई लोगों के सपनों से भी दूर है। इन लोगों में कई एथलीट्स भी शामिल हैं, जो ओलंपियन बन जाते हैं और खुद की निजी दौड़ जीत जाते है और पूरी प्रक्रिया में कुलीन हो जाते हैं।
ओलंपियन अब कुलीनता के प्रतिनिधि हैं। 19वीं सदी के आखिरी दशक में जब आधुनिक ओलंपिक आंदोलन शुरू हुआ था, तो यह कुलीन तो कतई नहीं था। इसके मूल में समावेशी और एकजुटता की भावना थी। ओलंपिक आंदोलन ने बहुत पहले दुनिया को बता दिया था कि वैश्विक एकता क्या होती है।
मौजूदा दुनिया विमर्श का मुद्दा हो सकती है। 20 वीं सदी में जो वैश्विक संगठन अस्तित्व में आए, उन्होंने तय किया कि आपसी विवाद इतने ज़्यादा न बढ़ जाएँ कि वे रोजाना की जिंदगी को प्रभावित करने लगें। हांलाकि आज जब हम 21 वीं सदी के दूसरे दशक को पार कर चुके हैं, तो चारों तरफ सिर्फ विवाद और टकराव ही दिखाई पड़ते हैं।
फिर हम हर चार साल में एक बार ओलंपिक भी देखते हैं।
ओलंपिक आंदोलन शुरू होने के बाद कुछ ही वक़्त में अपनी एकजुटता के उद्देश्य को पा चुका था, लेकिन इसमें इसकी खुद की कोई भूमिका नहीं थी। इसकी शुरुआत एक कल्पना के साथ हुई थी। लेकिन ओलंपिक की अपनी पैदाईश अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक संघ और इसका ढांचा बड़े खेलों और उससे जुड़े व्यापार को प्रोत्साहन देता है। इस संगठन ने तय किया है कि ओलंपिक की स्थापना के वक्त जिस तरह की कल्पनाएं की गई थीं, वह केवल शब्दों में ही बनी रहे। आज ओलंपिक, शीत ओलंपिक और पैराओलंपिक, असफल हो रहे भूराजनीति और वैश्विक कूटनीति के ढांचे का विकल्प हैं।
इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि ओलंपिक खेल, जिस निरंतरता का प्रदर्शन करते हैं, उसे केवल तभी ख़तरा पैदा हुआ, जब पूरी दुनिया टकराव में उलझी हुई थी। दो विश्व युद्धों के वक़्त दो बार ओलंपिक रद्द हुए हैं। पहले विश्व युद्ध में 1916 का ओलंपिक रद्द हुआ था। यह महज़ संयोग ही है कि उस वक़्त भी टोक्यो ही मेज़बान शहर था। वहीं 1944 में दूसरे विश्व युद्ध के चलते ओलंपिक नहीं हुए।
इस तरह टोक्यो ओलंपिक की तारीख़ के आगे बढ़ने या संभावित तौर पर इसके रद्द होने से पड़ने वाले प्रभाव इसके आर्थिक पक्ष और खिलाड़ियों के नुकसान से परे जाते हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि अगर खेल नहीं हुए तो इसकी बहुत बड़ी आर्थिक कीमत होगी। इसके व्यापक प्रभाव न केवल जापान की अर्थव्यवस्था या इसे प्रायोजित करने वाली कंपनियों पर पड़ेंगे, बल्कि दुनिया में खेलों के भविष्य पर ही गहरी काली छाया पड़ जाएगी। ओलंपिक का राजस्व ढांचा कुछ इस तरह का है कि इससे अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक संघ को बड़े हिस्से में साझेदारी मिलती है। बदले में संघ दुनियाभर में खेल गतिविधियों समेत कई कार्यक्रमों को वित्त मुहैया कराने में इसका इस्तेमाल करता है।
पैसा अहम है। ख़ासकर गरीब़ देशों के उन एथलीट्स के लिए जिनके पास कम सहूलियतें हैं। रद्द होने वाले खेलों से वैश्विक और एक बेहतर आर्थिक व्यवस्था पर प्रभाव पड़ेगा। भले ही इसकी अपनी कुछ खामियां भी हों।
लेकिन इस बड़ी तबाही से परे, रद्द होने वाला ओलंपिक इस चीज का प्रतिनिधित्व भी करेगा कि दुनिया अब इतिहास के बुरे दौर में से एक में फंसी है। इस बार यह दो देशों के बीच की आपसी जंग नहीं, बल्कि एक अदृश्य दुश्मन के खिलाफ़ लड़ाई है। यह दुश्मन एक वायरस है। ठीक इसी दौरान दुनिया में दक्षिणपंथ और फासिस्ट राजनीति का उभार हो रहा है, जब 20वीं सदी में ओलंपिक रद्द हुए थे, स्थितियां कुछ वैसी ही हैं। दुनिया के बड़े देशों में कुछ बहुत अयोग्य नेता शासन में हैं, जो वैश्विक आपदा से लड़ने में एकजुटता दिखाने के बजाए स्थिति को और जटिल बना रहे हैं। इस सब के बीच में असमानता, नस्लीय और वर्ग भेद अब अपना भद्दा सिर उठा रहे हैं। इनसे वैश्विक आंदोलन भी शुरू हो रहे हैं।
दुनिया अब फंसी हुई है। जब हम इंसानों को निकट भविष्य में रास्ता खोजकर एक बड़ी पहेली को हल करना है, तब ओलंपिक खेल अपने आप में इस पहेली के छोटे से हिस्से को हल करने वाले साबित हो सकते हैं। यह खेल दुनिया के लिए एक ऐसी नज़ीर भी बनेंगे, जिनसे भविष्य की अहम सीख हासिल होंगी।
यह सिलसिला उस सादगी के साथ शुरू होता है, जो चमक-दमक और पैसे का तड़का लगने के पहले खेलों में पाई जाती थी। भले ही ओलंपिक खेल कितने भी विशालकाय हों, लेकिन इनका एक छोटा हिस्सा आज भी उस सादगी और विचार का प्रतिनिधित्व करते हैं। शायद यह महामारी आंदोलन को अपनी स्थापना के कुछ मूल्यों की तरफ दोबारा मोड़ने में मददगार साबित हो सके।
जब हम खेलते हैं, तब हम एक होते हैं। जब हम खेलते हैं, तब हमारा अस्तित्व निरंतर बना रहता है। जब हम खेलते हैं, तब हम विकास करते हैं और एक स्वस्थ्य नस्ल और समाज बनाते हैं। हम आशा करते हैं कि जब अगले साल टोक्यो में ओलंपिक की अग्नि जलाई जाएगी, तब इसका प्रकाश पूरी दुनिया में टीवी, कंप्यूटर या मोबाइल के ज़रिए फैले। जैसा मोरी ने कहा, यह हमारी जीत का प्रतिनिधि होगा। यह महज़ दौड़ लगाने या वायरस समेत तमाम विरोधियों को चित करने से ज़्यादा का प्रतिनिधित्व करेगा। यह इतिहास में ऐसे सुधार के तौर पर देखा जाएगा, जिसने हमारे इस समानांतर ब्रह्मांड को बचा लिया।
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