Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

जब जम्मू-कश्मीर में आर्द्रभूमि भूमि बन गई बंजर

जम्मू-कश्मीर की आर्द्रभूमि (वेटलैंड) में नगरपालिका द्वारा कूड़ा-कचरा जमा करने के विरोध में दायर की गई एक याचिका पर सुनवाई करते हुए एनजीटी ने एमके बालाकृष्णन एवं अन्य बनाम भारतीय संघ के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन न किए जाने का हवाला दिया।
forest
सौजन्य: दि लीफ्लेट

 जम्मू-कश्मीर की आर्द्रभूमि में नगरपालिका द्वारा कूड़ा-कचरा जमा करने के विरोध में दायर की गई एक याचिका पर सुनवाई करते हुए राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने एमके बालाकृष्णन एवं अन्य बनाम भारतीय संघ  के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन न  किए जाने का हवाला दिया। इसमें राष्ट्रीय आर्द्रभूमि कमेटी को सभी महत्त्वपूर्ण आर्द्रभूमियों के संदर्भ में पर्यावरण नियम-कायदों की दशा के बारे में एक डेटा संग्रह करने का निर्देश दिया था। हालांकि पूरे देश में दो लाख से अधिक आर्द्रभूमियों को संरक्षित करने के बारे में कानून तो बनाए गए हैं, लेकिन दंड-मुक्ति के चलते इनका उन्हीं लोगों द्वारा तिरस्कार किया जा रहा है, जिनसे इन्हें संरक्षित करने की अपेक्षा की जाती है। इसी विषय पर प्रस्तुत है श्रीनगर से राजा मुज़फ्फ़र भट्ट का लेख-

 हाल ही में  राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण(एनजीटी) की प्रधान पीठ ने जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव एके मेहता को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का निर्देश दिया है, क्योंकि कश्मीर की आर्द्रभूमि अपनी खामोश मौत मर रही है। 

जम्मू कश्मीर में अधिकतर आर्द्रभूमिजिनमें कुछ रामसर अभिहित स्थल हैंउनका या तो भूमाफिया द्वारा अतिक्रमण किया जा रहा है या उनका उपयोग नगर पालिका के ठोस कचरे (एमएसडब्ल्यू) के निष्पादन-स्थल के रूप में किया जा रहा है। विडंबना यह है कि नगर पालिका संस्थाएं इन आर्द्रभूमियों के विखंडन में कथित रूप से संलिप्त हैं क्योंकि उनसे संग्रह किए गए एमएसडब्ल्यू संरक्षित आर्द्रभूमियों और झीलों के ईर्द-गिर्द जमा कर दिए जाते हैं। 

रामसर स्थलें 

रामसर स्थल एक आर्द्रभूमि स्थल है, जिसे अंतरराष्ट्रीय महत्व  के रामसर कन्वेंशन के अंतर्गत डिजाइन किया गया है। कन्वेंशन ऑफ वेटलैंड्स  को रामसर कन्वेंशन के रूप में भी जाना जाता है।  यह यूनेस्को द्वारा 1971 में स्थापित एक अंतरसरकारी पर्यावरण संधि है। इसे 1975 में विधिवत लागू किया गया था।  रामसर ईरान में एक शहर है, जहां पहली बार 1971 में इस कन्वेंशन पर दस्तखत किया गया था।

कश्मीर में तीन महत्वपूर्ण आर्द्रभूमियों के संरक्षण को लेकर मेरे द्वारा मार्च 2019 में एक याचिका दायर की गई थी, जिनमें दो रामसर स्थलें (वुल्लर और होकरसर) भी शामिल हैं। 

विगत में भी  एनजीटी द्वारा कुछ अंतरिम आदेश दिए गए थे।  लेकिन 22 जुलाई 2021 के उसके आदेश को गंभीरता से लिया जा रहा है क्योंकि इसमें जम्मू-कश्मीर के सर्वोच्च नौकरशाह को  इन आर्द्रभूमियों के संरक्षण को लेकर कालबद्ध एक कार्य योजना बनाने, उसकी निगरानी करने और उसे अगली सुनवाई में एनजीटी के समक्ष पेश करने का निर्देश दिया गया है। 

आदेश में कहा गया है:एक महीने के भीतर प्रत्येक आर्द्रभूमियों के बारे में एक कार्ययोजना बनाएं और उसे बजटीय आवंटन एवं चिह्नित उत्तरदायी व्यक्तियों के जरिए पर समयबद्ध तरीके से क्रियान्वित करें। इस योजना में, अन्य उपचारात्मक कामों के अलावा, खरपतवार संक्रमण, सीवेज स्राव, ठोस कचरा निष्पादन, अतिक्रमण इत्यादि से निबटने की योजना शामिल की जा सकती हैं। विषय के महत्व को देखते हुए और सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की लगातार हो रही अवहेलना, जिसके बारे में पहले भी कहा गया है, से बचने के लिए जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव इस कार्य योजना की निगरानी कर सकते हैं। वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए मामले की अगली सुनवाई 31 अक्टूबर 2021 होगी, जिसमें जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव को उपस्थित रहना है।

एनजीटी के आदेश का राष्ट्रीय प्रभाव 

जब मैंने यह याचिका दायर की, तब मैं इसके राष्ट्रीय महत्व के बारे में नहीं जानता था। यह भी नहीं जानता था कि एनजीटी इस मामले को इतना गंभीरता से ले लेगा। मुझे तो केवल कश्मीर के  वुल्लर, होकरसर और क्रिंचू चांदरा आर्द्रभूमि से मतलब था, लेकिन एनजीटी ने एमके बालकृष्णन एवं अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले में सर्वोच्च न्यायालय की दिए गए आदेश का पालन न किए जाने का हवाला दिया। 

 एनजीटी ने 28 अगस्त  2020 को राष्ट्रीय आर्द्रभूमि कमेटी को निर्देशित किया कि वह देश की सभी महत्त्वपूर्ण आर्द्रभूमियों के मद्देनजर पर्यावरण से जुड़े नियम-कायदों की स्थिति के बारे में एक डेटा तैयार करे। 

आदेश में कहा गया है कि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य आर्द्रभूमि प्राधिकरण अपने क्षेत्रों की आर्द्रभूमियों के प्रबंधन का जिम्मा तीन महीने के भीतर केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय के सचिव को सौंप सकते हैं।

उस निर्देश के आधार पर संयुक्त कमेटी के सचिव और सीपीसीबी के चेयरमैन अगली सुनवाई से पहले इस प्राधिकरण को एक समेकित रिपोर्ट ऑनलाइन सौंप सकते हैं,” एनजीटी के अध्यक्ष जस्टिस एके गोयल की अध्यक्षता वाली प्रधान पीठ ने कहा। 

आदेश में कहा गया है कि सामान्य आर्द्रभूमियों, एवं विशेष रूप से रामसर स्थलों, का संरक्षण पर्यावरण संरक्षण का  ही एक महत्वपूर्ण पहलू है। 

आदेश में आगे कहा गया है:सतत विकास को असरकारक बनाने और सावधानी के सिद्धांतों, जिसे संविधान में जीवन के अधिकार के एक हिस्से के रूप में रखा गया है और उन्हें इस प्राधिकरण द्वारा राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण अधिनियम 2010 के अंतर्गत लागू किया गया है, उनके लिए एक प्रभावी कार्य योजना बनाने और उसको अनिवार्य रूप से लागू किया जाना है।

आर्द्रभूमि नियम 2017

पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने आर्द्रभूमि नियम 2010 को अधिसूचित करने के बाद, 2017 में एक नया नियम बनाया, जिसे आर्द्रभूमि (संरक्षण एवं प्रबंधन) नियम कहा गया। यह  आर्द्रभूमि प्रबंधन के काम को विकेंद्रित करता है। वह राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अपने अधिकार के भूभाग के दायरे में आने वाली आर्द्रभूमियों की न केवल पहचान करने या उन्हें अधिसूचित करने का अधिकार देता है, बल्कि इन जल निकायों के ईर्द-गिर्द प्रतिबंधित की गतिविधियों पर भी निगरानी करने का अधिकार देता है। 

इन नियमों के जरिए सरकार पूरे देश में दो लाख से अधिक आर्द्रभूमियों को संरक्षित करने की मांग करती है। वे पारिस्थितिक रूप से नाजुक क्षेत्रों की पहचान और प्रबंधन करेंगे, जो बाढ़ नियंत्रण, भूजल पुनर्भरण, पौधों की विविध किस्मों को संरक्षित करने, प्रवासी पक्षियों का समर्थन करने और समुद्र तट की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

एनजीटी ने 27 अगस्त 2020 को दिए गए अपने आदेश में कहा कि आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017, आर्द्रभूमियों के संरक्षण का विस्तृत प्रावधान करता है और इसी के मद्देनजर राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर आर्द्र भूमि प्राधिकरण स्थापित किए गए थे। पीठ ने कहा, “हालांकि, यह तथ्य है कि आर्द्रभूमि अपने संरक्षण की गंभीर चुनौतियों से रूबरू है, जैसा कि मौजूदा मामले और इसी तरह अन्य मामलों में देखने को मिलता है, जिनसे यह प्राधिकरण समय-समय पर निबटता रहा है।” 

कहा गया है कि पर्यावरण मंत्रालय के सचिव राष्ट्रीय आर्द्रभूमि कमेटी के प्रमुख होंगे और उनके साथ 18 अन्य सदस्य होंगे, जो उनके एकीकृत प्रबंधन, नियमों के क्रियान्वय की निगरानी और अन्य संबद्ध क्रियाकलापों में उनका सहयोग करेंगे। एनजीटी ने कहा कि उच्च स्तरीय अधिकरणों के वजूद में होने के बावजूद, देश की कुछ महत्वपूर्ण आर्द्रभूमियों के प्रबंधन में विफलता की व्यापक शिकायतें मिलती हैंजैसा कि मौजूदा प्रकरण में और इसी तरह, जयपुर में सांभर झील के मामले में देखने को मिलता है। 

और मुख्य सचिव 

एनजीटी ने 22 जुलाई के अपने आदेश में कहा कि राज्य सरकारों ने  इसके पहले केंद्र सरकार द्वारा दिए गए आदेशों और निर्देशों  का अनुपालन भी नहीं किया है। 

इसलिए निर्देश दिया कि इस आदेश का अनुपालन 4 हफ्ते के भीतर किया जाए।  इसमें फेल होने पर इस प्राधिकरण को राज्य सरकारों के मुख्य सचिवों को बुलाने के लिए बाध्य होना पड़ेगा। इसके अलावा, जल संकाय के संरक्षण की महती आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए प्राधिकरण उन पर भारी जुर्माना भी लगाएगा। 

एनजीटी की मुख्य पीठ ने आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम 2010 के नियम 4 के सिद्धांतों को भारत संघ द्वारा मैप किए गए 2,01,503 आर्द्रभूमि पर लागू करने का भी निर्देश दिया। पीठ ने कहाभारत सरकार इन सभी  आर्द्रभूमियों को राज्य सरकारों के सहयोग से चिह्नित करेगी और सूचीबद्ध करेगी। वह हमारे इस आदेश के बारे में राज्य सरकारों को सूचित भी करेगी, जो इन चिह्नित  2,01,503 आर्द्रभूमियों, जो आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम 2010 के नियम 4 के सिद्धांतों का विषय है, उनके बारे में प्रभावी कदम उठाने के लिए भी बाध्य होंगी।” 

जुर्माना लगाया गया 

जम्मू-कश्मीर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी), जिसका नाम जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद अब प्रदूषण नियंत्रण कमेटी (पीसीसी) कर दिया गया है, उसने बांदीपोरा नगर पालिका परिषद पर 64 लाख रुपये का जुर्माना (पर्यावरण क्षतिपूर्ति के लिए) लगाया। बोर्ड ने पाया कि नगरपालिका जलवान में वुल्लर आर्द्रभूमि क्षेत्र के समीप अशोधित सभी एमएसडब्ल्यू को डंप कर एमएसडब्ल्यू नियम,2016 का उल्लंघन किया है। 

मैंने इस मामले को एक आवेदन के जरिए एनजीटी के संज्ञान में लाया।  दुर्भाग्य सेबांदीपोरा की नगर पालिका परिषद ने प्राधिकरण के समक्ष कई बार यह कहते हुए झूठ बोला कि वह जलवान के समीप आर्द्रभूमि क्षेत्र में एमएसडब्ल्यू डंप नहीं कर रहा है। मैंने एनजीटी को इसकी कई तस्वीरें सबूत तौर पर दिखा कर उसके झूठ को बेनकाब किया और कई स्थानीय लोगों ने भी ऐसा किया। स्थानीय नगरपालिका पार्षद और जलवान की मस्जिद कमेटी ने भी एनजीटी को एक पत्र लिखकर इस क्षेत्र से नगरपालिका द्वारा गिराए जा रहे कचरे को हटवाने में दखल देने की अपील की थी। 

जम्मू कश्मीर  प्रदूषण नियंत्रण   बोर्ड  ने 9 फरवरी 2021 को दिए अपने आदेश संख्या : 45 पीसीबी 2021 में बांदीपोरा की नगरपालिका परिषद के कार्यकारी अधिकारी को पर्यावरण क्षतिपूर्ति कोष (ईसीएफ) में 64,12,000 रुपये 45 दिनों के भीतर जमा करने का निर्देश दिया। लेकिन इस आदेश के 5 महीने बीतने के बावजूद संबंधित कार्यपालिका अधिकारी ने जुर्माना राशि जमा नहीं किया था।  ऐसा माना जाता है कि वे इस आदेश के खिलाफ अदालत चले गए और वहां से उन्हें राहत मिल गई।  प्रदूषण नियंत्रण कमेटी के अधिकारियों ने मुझे बताया कि वे इस मामले को कानूनी तौर पर लड़ रहे हैं और जल्दी ही मुआवजा बांदीपोरा नगरपालिका की तरफ से जारी कर दिया जाएगा। 

अधिक अवैध गतिविधियां

एक अन्य मामले में  24 नवंबर 2020 को सोपोर नगर पालिका परिषद के विरुद्ध 1.30  करोड़ रुपए का पर्यावरण क्षतिपूर्ति जुर्माना लगाया गया।  यह नगरपालिका परिषद भी अपने एमएसडब्ल्यू को निगली क्षेत्र में डंप करती थी, यह जगह भी वुल्लर झील के किनारे पर स्थित है। इसके खिलाफ स्थानीय लोगों ने केंद्रीय औकफ कमेटी के जरिए जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थीजिसके आदेश पर यह अवैध गतिविधि रुक गई। 

दुर्भाग्य सेसोपोर की नगरपालिका परिषद अब दूसरे क्षेत्र में एमएसडब्ल्यू को डंप करना शुरू कर दिया है, जो पुराने स्थल से महज एक किलोमीटर की दूरी पर है। यह नया स्थल वन भूमि के रूप में चिह्नित है, जो बारामुला की निगली रेंज के वन क्षेत्र में आता है। 

यह क्षेत्र भी आर्द्रभूमि जलसंग्रहण (कैचमेंट) है।  स्थानीय पंचायत की भूमि भी बिना पंचायत कमेटी की मर्जी के नगर पालिका द्वारा अतिक्रमित की जाती रही है। 

 बारामुला जिला प्रशासन  नगर पालिका परिषद के इस अवैध  क्रियाकलापों का समर्थन कर रहा है  और इस स्थल को खाली करने के बारे में स्थानीय ग्राम सभा द्वारा एक प्रस्ताव पारित करने के बावजूद इस कचरे के स्थल को बंद नहीं किया जा रहा है। मरे हुए जानवर और बायो मेडिकल कचरा भी यहां जमा किया जाता है।  यह पिछले 6 महीने से भी अधिक समय से हो रहा है। 

एसबीएम ग्रामीण कोष का उपयोग

27 अगस्त 2020 के अपने आदेश में एनजीटी के मुख्य बीच में कश्मीर के डिविजनल कमिश्नर को निर्देशित किया था कि वह मेरे द्वारा दिए गए सुझावों पर विचार करेंजो मैंने  ग्रामीण क्षेत्रों में  स्वच्छ भारत अभियान (ग्रामीण) के अंतर्गत ठोस द्रव्य कचरा प्रबंधन के लिए उपलब्ध धन का उपयोग करें।

चूंकि होकरसर, वुल्लर एवं क्रिंचू चंद्रधारा आर्द्रभूमियां ग्रामीण इलाकों में अवस्थित हैं, एसबीएम (ग्रामीण) मिशन का निदेशालय इन इलाकों में कचरा प्रबंधन के काम को आसानी से  ग्रामीण कचरा प्रबंधन कार्यक्रम के अंतर्गत अपने हाथ में ले सकता है। भारत सरकार के स्वच्छता मंत्रालय द्वारा प्रत्येक गांव में पेयजल और साफ-सफाई के लिए 15 से 20 लाख रुपये देने का प्रावधान किया गया है। हालांकि इन तीनों आर्द्रभूमियों के आसपास के क्षेत्र में अवस्थित गांवों में इन मदों में एक भी धेला खर्च नहीं किया गया है। तभी मैंने एनजीटी का रुख किया था।

यहां तक की एनजीटी के आदेश के एक  साल बाद भी जम्मू-कश्मीर सरकार ने  इन आर्द्रभूमियों के आसपास ठोस और द्रव्य कचरे के प्रबंधन में एसएमबी (ग्रामीण) फंड  के इस्तेमाल की दिशा में एक भी कदम नहीं बढ़ाया है। 

(राजा मुज़फ्फ़र भट्ट श्रीनगर में रहने वाले कार्यकर्ता, स्तंभकार और स्वतंत्र शोधार्थी हैं।  वह एक्यूमेन इंडिया फेलो हैं। लेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं।)

अंग्रेजी में मूल रूप से प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

https://www.newsclick.in/when-wetlands-become-wastelands-jammu-kashmir

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest