पूर्वांचल में जातिगत जनगणना के मुद्दे पर लामबंद हो रहा विपक्ष,घबरा रही बीजेपीः सुभाषिनी अली
उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में जातिगत जनगणना के मुद्दे पर विपक्ष एकजुट होने लगा है। सियासी हलकों में इसे एक बड़े राजनीतिक रणनीति में बदलाव के रूप में भी देखा जा रहा है। वाराणसी पहुंचीं सीपीएम की पूर्व सांसद एवं पोलित ब्यूरो सदस्य सुभाषिनी अली ने एक जनसभा में कहा, "बीजेपी सरकार जातिगत जनगणना से घबरा रही है। वह नहीं चाहती कि समाज में पिछड़ी जातियों की तादाद और उनकी बदतर स्थिति के बारे में किसी को पता चले।" सीपीएम की पहल पर आराजी लाइन प्रखंड क्षेत्र के ओदार बीरभानपुर स्थित दूधनाथ के बगीचे में इंडिया गठबंधन से जुड़े राजनीतिक दलों ने जातिगत जनगणना के मुद्दे पर साझा सभा आयोजित की थी।
सभा को संबोधित करती सुभाषिनी अली
जातिगत जनगणना की मांग को जायज ठहराते हुए सुभाषिनी अली ने केंद्र सरकार पर कई गंभीर आरोप जड़े और पूछा कि इसकी प्रक्रिया कब शुरू होगी। अली ने कहा, "जाति संबंधित सूचना लेने से सरकार को क्या दिक्कत आ जाएगी, यह बात किसी को समझ में नहीं आ रहा है। जातिगत जनगणना के लिए हम सभी को मिलकर सरकार पर दबाव बनाना होगा। जातिगत जनगणना के आधार पर ही लोगों को आरक्षण मिलते हैं। इसलिए यह जानना जरूरी है कि किस जाति के कितने लोग हैं? जनता को अपनी जीविका और रोजगार के अधिकारों को हासिल करने के लिए एकजुट होकर आंदोलन करना होगा। मोदी सरकार जातिगत जनगणना से इनकार कर दलितों, पिछड़ों और वंचित तबके के लोगों को उनका अधिकार नहीं देना चाहती है।"
"बीजेपी जनता के रोजगार के अवसर छीनती जा रही है। वह रोजगार और आरक्षण के अवसरों को खत्म करके जनता को मंदिर-मस्जिद, हिंदू-मुस्लिम विवाद में उलझा देना चाहती है। यह सरकार योजनाबद्ध ढंग से धार्मिक मुद्दों को हवा दे रही है। जनगणना के मुद्दे पर वंचित समाज को आगे आना होगा। इसके लिए बड़ा आंदोलन भी छेड़ना होगा।"
जातिगत मुद्दों पर लंबे समय तक काम कर चुके समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मंत्री सुरेंद्र सिंह पटेल ने कहा, "इंडिया गठबंधन जातीय जनगणना के मुद्दे पर एकजुट है। यह एक बहुत जरूरी मुद्दा है। भारत में धार्मिक आधार पर लोगों की गिनती होती है। यह व्यवस्था ब्रिटिस हुकूमत ने भारतीय समाज को बांटने के लिए बनाई थी। जातिगत आधार पर आज तक गिनती नहीं हुई है। बहुजन आबादी की गिनती होगी तो उसे हिस्सा भी मिलेगा। इंडिया गठबंधन के नेताओं ने जातिगत जनगणना का मुद्दा पहली बार गंभीरता से उठाया है। यह मुद्दा और मज़बूत होगा।
जातिगत जनगणना के मुद्दे पर आयोजित सभा में उमड़ी भीड़
पटेल ने यह भी कहा, "कितनी अजीब बात है कि बीजेपी जातिगत न्याय की बात तो करती है और जातीय आधार पर मंत्री भी बनाती है, लेकिन जातीय आधार पर जनगणना की बात आती है तो भाग खड़ा होती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ख़ुद अपने को पिछड़ा बताते हैं। बिहार में उन्होंने अपने आप को अति पिछड़ा बताया था। अगर बीजेपी जातीय राजनीति कर सकती है तो उसे इस आधार पर जनगणना कराने से परहेज क्यों है? साल 2011 की जनगणना में अप्रशिक्षित लोगों के जरिये कराई गई थी, जिसके चलते उसका कोई नतीजा नहीं निकला।"
जातीय जनगणना से होने वाले लाभ को रेखांकित करते हुए मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव डॉ हीरालाल ने कहा, "उत्तर प्रदेश में जातिगत जनगणना कराया जाना बेहद जरूरी है। यह गांव, शहर, देश की जनता का अधिकार भी है। डबल इंजन की सरकार कंपनियों और पूंजीपतियों के मुनाफे के लिए सारे दरवाजे खोल दिए हैं। साथ ही किसानों, मजदूरों और नौजवानों की रोजी-रोटी के सारे दरवाजे बंद कर दिए हैं। मेहनतकश लोगों अब को एकजुट होकर जनविरोधी व सांप्रदायिक भाजपा सरकार को हटाना होगा। जनता अब इंडिया के साथ है। जिस तरह से जनता ने घोसी में बीजेपी को करारी पटखनी दी है उसी तरह अगले लोकसभा चुनाव में भी इंडिया अब एनडीए को मात देगी।"
पूर्वांचल में जातिगत जनगणना के मुद्दे पर आयोजित पहली सभा में भारी भीड़ जुटी। सभा में अरविंद सिंह पूर्व एमएलसी, सीपीआई की रमा ऊदर, सीटू के देवाशीष, राजद के जिलाध्यक्ष सुरेंद्र यादव, सुहेलदेव स्वाभिमान पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बृजेश राजभर, अपना दल कमेरावादी के जिला अध्यक्ष दिलीप पटेल, कन्हैयालाल राजभर सपा, कांग्रेस के अकरम अंसारी, शशि यादव,समेत बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे। सभा की अध्यक्षता कन्हैया राजभर और संचालन नंदलाल पटेल ने किया।
साल 1980 के दशक में कांशीराम ने सबसे पहले जाति जनसंख्या आधारित आरक्षण की मांग उठाई थी। यूपीए सरकार ने साल 2010-11 में देश की आर्थिक-सामाजिक और जातिगत गणना कराई थी, लेकिन उसका ब्योरा जारी नहीं किया गया था। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कर्नाटक के कोलार की एक रैली में पिछड़ा वर्ग, दलितों और आदिवासियों के विकास के लिए तीन बिंदुओं पर आधारित एजेंडा घोषित किया और 'जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी' का नारा दिया। साथ ही साल 2011 जातिगत जनगणना के डाटा को सार्वजनिक करने और आरक्षण में 50 फ़ीसदी की सीमा को समाप्त करने की मांग उठाई।
इंडिया गठबंधन ने आगामी लोकसभा चुनाव में जातिगत जनगणना को मुख्य मुद्दा बनाने का निर्णय लिया है। इसके मद्देनजर इंडिया में शामिल दलों ने जनता के बीच सभा और बैठकें शुरू कर दी है। कांग्रेस ने उदयपुर में आयोजित चिंतन शिविर में भी जातिगत जनगणना का समर्थन किया था। सिर्फ़ कांग्रेस ही नहीं मंडल विचारधारा से प्रभावित देश के अन्य राजनीतिक दल भी जातिगत जनगणना की मांग को पिछले एक साल से ज़ोर-शोर से उठा रहे हैं।
जातिगत जनगणना के मुद्दे पर महिलाएं भी मिला रही सुर
जातिगत जनगणना के मुद्दे पर महिलाएं भी मिला रही सुरयूपी के पूर्वांचल में जातिवाद की ज़ड़ें काफी गहरी हैं। इसकी वड़ी वजह यह है की इस इलाके में ऊंची जातियों के लोगों के पास जमीनें ज्यादा है। इनके खेतों में दलित और पिछड़ी जातियों के लोग काम करते हैं। पूर्वांचल में हाल के कुछ सालों तक बंधुआ मजदूरी प्रथा कायम थी। जातिवाद के मकड़जाल में फंसे लोग अब जागरूक होने लगे हैं। यही वजह है कि जातिगत जनगणना के मुद्दे पर दलित और पिछड़े तेजी से लामबंद हो रहे हैं। यह मुद्दा इंडिया एलायंस के लिए संजीवनी का काम कर रहा है। साल 2024 के आम चुनावों से पहले जातिगत जनगणना के मुद्दे पर सभी प्रमुख विपक्षी दल एक मंच पर आ गए हैं। माना जा रहा है कि यह एक ऐसा मुद्दा है जो विपक्ष को एकजुटज कर सकता है।
अधिकारिक तौर पर बीजेपी जातिगत जनगणना के मुद्दे पर खामोश है। इस पार्टी के प्रवक्ता भी कुछ नहीं बोल पा रहे हैं। साल 1977 में जनता पार्टी की सरकार ने मंडल आयोग गठित किया था, जिसे साल 1990 के दशक में वीपी सिंह की सरकार ने लागू किया। उस समय बीजेपी भी इस जनगणना के खिलाफ थी तो कांग्रेस भी। बाद में सुप्रीम कोर्ट में इंदिरा साहनी केस में आरक्षण की सीमा पचास फ़ीसदी तक सीमित कर दी थी।
वाराणसी सीनियर जर्नलिस्ट राजीव मौर्य जातिगत जनगणना की वकालत करते हैं। वह कहते हैं, "सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को रोकने के लिए भी जातिगत जनगणना ज़रूरी है। जातिगत जनगणना से ये भी पता चलेगा कि सरकारी नौकरियों में किन वर्गों के लोग हैं। इसके अलावा देश में डॉक्टर, इंजीनियर जैसे पेशों में भी लोगों की जातिगत भागीदारी का पता चलेगा। देश में सामाजिक न्याय को मज़बूत करने के लिए जातिगत जनगणना ज़रूरी है।साल 1977 में जनता पार्टी की सरकार ने मंडल आयोग गठित किया था, जिसे साल 1990 के दशक में वीपी सिंह की सरकार ने लागू किया। उस समय बीजेपी भी इस जनगणना के खिलाफ थी तो कांग्रेस भी। बाद में सुप्रीम कोर्ट में इंदिरा साहनी केस में आरक्षण की सीमा पचास फ़ीसदी तक सीमित कर दी थी।
आरक्षण में ओबीसी समुदाय की हिस्सेदारा का सवाल उठाते हुए पत्रकार राजीव कहते हैं, "देश की कुल आबादी में 52 फीसदी ओबीसी हैं, लेकिन आबादी के अनुरूप उन्हें आरक्षण नहीं दिया जा रहा है। कांग्रेस शासनकाल में जातिगत जनगणना के आंकड़े इसलिए जारी नहीं हुए क्योंकि पार्टी के भीतर इसका भारी विरोध हुआ था। दो राजनीतिक दल सामाजिक न्याय की दुहाई देते हैं उन्हें जातिगत जनगणना का समर्थन जरूर करना चाहिए। भारतीय संविधान कहता है कि सभी यह पता होना चाहिए कि देश में सामाजिक स्थिति क्या है और उनकी जातियों की आबादी कितनी है? जातिगत जनगणना होने से सभी वर्गों को अपनी आबादी के हिसाब से आरक्षण भी मिलेगा।"
(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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