2022: भारत में ग़लत सूचनाओं से किस तरह नैरेटिव बनाने की कोशिश की गई
ऑल्ट न्यूज़ ने 2022 की शुरूआत में लिखे आर्टिकल्स में से एक फ़ैक्ट-चेक 3 जनवरी को रात 8 बजकर 11 मिनट पर पब्लिश किया था. ये फ़ैक्ट-चेक पंजाब के एक नेता पर मीडिया की ग़लत रिपोर्टिंग के बारे में थी. लगभग एक साल और 462 फ़ैक्ट चेक के बाद जब ऑल्ट न्यूज़ ने साल भर की अपनी स्टोरीज़ का लेखा जोखा निकाला तो ऐसा लगा कि पहला आर्टिकल, ‘मॉर्निंग शोज़ द डे’ कहावत की गवाही देता है जिसे काफी ज़्यादा बार इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन ये कभी-कभी-सच्चा भी साबित होता है.
साल की पहली फ़ैक्ट-चेक स्टोरी में बताया गया है कि कैसे देश के प्रमुख मेनस्ट्रीम मीडिया घरानों ने उस वक़्त फरार चल रहे शिरोमणि अकाली दल के नेता बिक्रम सिंह मजीठिया की स्वर्ण मंदिर के दौरे की पुरानी तस्वीरों को सोशल मीडिया से उठाया और बिना किसी वेरिफ़िकेशन के ‘हाल की तस्वीर’ के रूप में पब्लिश किया. बिक्रम सिंह मजीठिया पर नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस ऐक्ट के तहत मामला दर्ज होने के कुछ दिन बाद ये ख़बर सुर्खियों में बनी थी.
रेट्रोस्पेक्ट में ये पहला ज़रुरी संकेत था कि साल की पहली स्टोरी ने हमें 2022 में आने वाली चीजों के बारे में बताया. साल की सभी सुर्खियां बटोरने वाली घटनाओं ने सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में ग़लत सूचनाओं के लिए दरवाजे खोल दिए जिनमें राज्य चुनावों से लेकर रूस-यूक्रेन संघर्ष, हिजाब विवाद से लेकर नूपुर शर्मा विवाद तक शामिल हैं. और हर बार जब मेनस्ट्रीम मीडिया के न्यूज़रूम प्रमुख घटनाओं को कवर करने में व्यस्त हो जाते थे तो ऑल्ट न्यूज़ की टीम उनके ग़लत दावों और ग़लत सूचनाओं को उजागर करने में लग जाती थी.
पहले आर्टिकल में जिस ट्रेंड की ओर इशारा किया गया था कि किस तरह मेनस्ट्रीम मीडिया ग़लत सूचनाओं के इस विस्फोट की चपेट में आ रही है. और कभी-कभी इसमें उनकी मिलीभगत भी होती है. इस फ़ैक्ट पर ध्यान दें कि पहली ही स्टोरी में, द टाइम्स ऑफ़ इंडिया, इकोनॉमिक टाइम्स, द इंडियन एक्सप्रेस, ज़ी न्यूज़ और आज तक जैसे आउटलेट्स ने उस वक्त ग़लत सूचना के सोर्स के रूप में काम किया जब उन्होंने बिना जांच के पुरानी तस्वीर हाल की बताकर पब्लिश कर दी थी. 2022 के दौरान, ऑल्ट न्यूज़ ने देखा कि कैसे स्थापित या फिर ‘विश्वसनीय’ न्यूज़ आउटलेट उन मानकों पर खरा नहीं उतर पाए जिसकी उनसे अपेक्षा की जाती है. बल्कि ग़लत सूचनाओं का स्रोत बनते गए.
ऑल्ट न्यूज़ का हर फ़ैक्ट-चेक आर्टिकल मेटाडेटा का एक सोर्स है. ये ग़लत सूचना के सोर्स (न्यूज़ आउटलेट, राजनीतिक दल, प्रमुख व्यक्तित्व आदि), गलत सूचना के प्रकार (धार्मिक, राजनीतिक, सांप्रदायिक, इतिहास, रक्षा, अर्थशास्त्र, आदि), और अन्य ज़रुरी डेटा पॉइंट्स को डॉक्यूमेंटेड करता है जिनसे ग़लत सूचना के प्रमुख रुझानों को समझने में मदद मिलती है. 2022 के राउंडअप के लिए, ऑल्ट न्यूज़ टीम ने ग़लत सूचना से संबंधित प्रमुख विषयों और रुझानों को सामने लाने के लिए 475 फ़ैक्ट चेक्स और साल भर में पब्लिश रिपोर्ट्स से अलग-अलग डेटा पॉइंट्स को कैप्चर किया. दो सप्ताह तक उस डेटा की छानबीन करने के बाद, हमने उन्हें अलग-अलग ग्रुप्स में बांटा और पूरे साल के दौरान ग़लत सूचना की श्रेणी, विषय, सोर्स और टारगेट की दो-पार्ट वाली ईयर-एंड सीरीज़ मैपिंग को पब्लिश करने का निर्णय लिया.
इस स्टोरी में ग़लत सूचना के विषय और ऐसे कंटेंट की पड़ताल की गई है जिसे हमने 2022 में देखा और ये दिखाने की कोशिश की गई है कि साल की सभी सुर्खियां बटोरने वाली घटनाओं ने ग़लत सूचना की चिंगारी को कैसे ट्रिगर किया.
प्रमुख सुर्खियां बटोरने वाली घटनाओं ने ग़लत सूचनाओं को बढ़ाया
जब कोई हेडलाइन बनने वाली घटना होती है तो क्या ग़लत सूचनाओं में उछाल पीछे रह सकता है? नहीं. हालांकि, किसी महान शख्स ने कभी ऐसा कुछ नहीं लिखा है. लेकिन 2022 के लिए यही सच है. 2022 की प्रमुख सुर्खियां बटोरने वाली घटनाओं ने भारी मात्रा में ग़लत सूचनाओं को जन्म दिया जिसकी शुरुआत राज्य के विधानसभा चुनावों (27.4%) से हुई जो साल भर फैली रही. ऑल्ट न्यूज़ ने उत्तर प्रदेश (फ़रवरी-मार्च), पंजाब और गोवा (फ़रवरी) और गुजरात (दिसंबर) में विधान सभा चुनावों के चलते सोशल मीडिया पर शेयर की गई ग़लत सूचना के कई उदाहरणों का डॉक्यूमेंटेशन किया है. हमने यूपी चुनावों के आस-पास सबसे बड़ी संख्या में फ़ैक्ट चेक आर्टिकल्स पब्लिश किए. इसकी संख्या 29 हैं और वहीं पंजाब, गुजरात और गोवा के विधानसभा चुनाव के चलते पब्लिश किये गए फ़ैक्ट-चेक क्रमशः 14, 5 और 2 हैं.
इस श्रेणी में दूसरी सबसे बड़ी संख्या (18% से कम) रूस-यूक्रेन युद्ध के बारे में शेयर की गई ग़लत सूचनाओं की है. ऑल्ट न्यूज़ ने यूक्रेन पर रूस के हमले से संबंधित अलग-अलग दावों को खारिज करते हुए 32 फ़ैक्ट चेक आर्टिकल्स पब्लिश किए. युद्ध के बारे में भ्रामक वीडियोज़ और तस्वीरों के अलावा, हमने उन दावों को भी खारिज किया जो ये दिखाने के लिए गढ़े गए थे कि वैश्विक राजनीति में भारत का प्रभाव बढ़ गया है.
मार्च में पत्रकारों और मीडिया आउटलेट्स द्वारा एक ग़लत दावा किया गया था कि रूस ने भारतीय नागरिकों की सुरक्षित निकासी के लिए “युद्ध को 6 घंटे के लिए रोक दिया.” विदेश मंत्रालय ने इस दावे का खंडन करते हुए इसे ”बिल्कुल ग़लत” बताया. 8 महीने बाद, नवंबर में गृह मंत्री अमित शाह ने एक चुनावी रैली में यही दावा किया था जिसे ऑल्ट न्यूज़ ने फिर से खारिज किया था.
इससे पता चलता है कि राजनेता (इस मामले में देश के गृह मंत्री) ग़लत दावों को बढ़ाने और ग़लत सूचना का इस्तेमाल करने में संकोच नहीं कर रहे हैं जब तक कि ये सूचनाएं उनके पक्ष में होती थी. (सरकार के मंत्रालय ने ही इस दावे को खारिज किया था)
हिजाब विवाद ने भी ग़लत सूचनाओं में तेज़ी ला दी. कर्नाटक में कई शैक्षणिक संस्थानों ने हिजाब पहनने वाली छात्राओं के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी जिसके बाद राज्य के कई हिस्सों में छात्राओं द्वारा विरोध प्रदर्शन किया गया. ऑल्ट न्यूज़ ने फ़रवरी और मार्च में इस विषय के बारे में 19 झूठे दावों को खारिज किया था. ऑल्ट न्यूज़ की स्टोरीज़ में इस मामले से जुड़े फ़ैक्ट-चेक का हिस्सा 10.6% था.
भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा की विवादित टिप्पणी ने साल के बीच में ग़लत दावों और ग़लत सूचनाओं को जन्म दिया. बड़ी घटनाओं से जुड़े हमारे फ़ैक्ट-चेक में से 6.7% इसी विषय पर थे. 27 मई को नुपुर शर्मा ने टाइम्स नाउ की बहस के दौरान इस्लाम के पैगंबर के बारे में टिप्पणी की थी जिसके कारण पूरे भारत में सांप्रदायिक तनाव पैदा हो गया. CNN ने रिपोर्ट किया कि कम-से-कम 15 मुस्लिम बहुल देशों ने उनकी टिप्पणी की निंदा की थी. ऑल्ट न्यूज़ ने इस हेडलाइन बनने वाली घटना और इसके नतीजों से संबंधित कम-से-कम 14 झूठे दावों को खारिज किया. इससे जुड़ी दो अहम आर्टिकल्स ये हैं: फ़ैक्ट-चेक 1 और फ़ैक्ट-चेक 2.
नीचे, हमने साल की उन प्रमुख घटनाओं को दिखाया है जिनके बारे में ग़लत सूचनाएं चरम पर थी.
ग़लत सूचना के विषय
2020 में फ्रंटियर्स में पब्लिश एक रिसर्च का हेडलाइन है, ‘एक महामारी के दौरान डिजिटल युग में राजनीतिक ग़लत सूचना: पक्षपात, प्रचार और लोकतांत्रिक निर्णय लेना’. इसमें कहा गया है, “राजनीतिक गलत सूचना के तंत्र को और जनमत निर्माण के साथ इसके संबंध, इसलिए महत्वपूर्ण है लोकतंत्र के लिए चुनौती है क्योंकि इसके कामकाज के लिए हाई क्वालिटी इनफ़ॉर्मेशन ज़रूरी है.”
ऑल्ट न्यूज़ ने भी अपनी स्थापना के बाद से अपने मुख्य फ़ोकस के रूप में राजनीतिक ग़लत सूचना को प्राथमिकता दी है. 2022 में हमारे फ़ैक्ट चेक में से 41% इसी श्रेणी से संबंधित थे.
इस सीरीज के दूसरे आर्टिकल में इन स्टोरीज़ के डिटेल्स (राजनीतिक ग़लत सूचना के सोर्स और टारगेट कौन थे) के बारे में चर्चा की गई है.
अगला प्रमुख विषय जो सामने आया वो था साम्प्रदायिक ग़लत सूचना. ये इस साल के कुल फ़ैक्ट-चेक का 30.5% है. इसी तरह, 2.5% फ़ैक्ट चेक को धर्म की थीम के तहत वर्गीकृत किया गया. दो श्रेणियों के बीच अंतर ये है कि सांप्रदायिक ग़लत सूचना के मामले में नेरेटिव बनाने के लिए एक समुदाय को हानिकारक और आक्रामक रूप से टारगेट किया गया था. दूसरी ओर, ‘धर्म’ विषय के तहत वर्गीकृत की गयी ग़लत सूचनाएं क्षति नहीं पहुंचाने वाली थी. (ऐसा एक इंस्टैंस यहां पढ़ा जा सकता है.)
साफ सामूहिक टारगेट वाले 311 फ़ैक्ट-चेक्स के गहन विश्लेषण पर, हमने पाया कि हमारे डेटाबेस के मुताबिक, 2022 में 40.8% ग़लत सूचनाओं ने सीधे तौर पर मुस्लिम समुदाय को टारगेट किया.
एक महत्वपूर्ण स्टोरी जिसमें हमने सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील ग़लत सूचना का पर्दाफाश किया था, वो निर्देशक सुदीप्तो सेन की फ़िल्म ‘द केरल स्टोरी’ के बारे में थी. इस फ़िल्म के टीज़र में मुसलमानों को इस झूठे दावे के आधार पर टारगेट किया गया था कि केरल की 32 हज़ार महिलाएं ISIS आतंकवादी बन गई थीं. टीज़र को सच मानते हुए कई लोगों ने इसे काफी शेयर किया था. ऑल्ट न्यूज़ ने पाया कि ये आंकड़ा मौजूद डेटा से बिल्कुल अलग था.
इस साल का अन्य प्रमुख विषय अंतर्राष्ट्रीय राजनीति था. इस श्रेणी की कई स्टोरीज़, रूस-यूक्रेन युद्ध के इर्द-गिर्द थीं. ग़लत सूचना के अन्य विषय खेल, रक्षा, प्राकृतिक आपदा, विज्ञान, इतिहास, बॉलीवुड आदि थे.
ग़लत सूचना के विषयों के अध्ययन से जो दूसरा पैटर्न सामने आया, वो बच्चा चोरी की अफवाहों के संबंध में था. ये एक खतरनाक सोशल मीडिया ट्रेंड है जहां एक वीडियो के साथ बच्चे के अपहरण के झूठे और भ्रामक दावे शेयर किए जाते हैं. इस साल, हमने बच्चा चोरी की ग़लत सूचना से संबंधित कम से कम 10 मामलों का भांडाफोड़ किया. उनमें से डर की भावना पैदा करने के लिए कई स्क्रिप्टेड और असंबंधित वीडियो का इस्तेमाल किया गया था.
सितंबर के पहले सप्ताह में ऑल्ट न्यूज़ को बच्चा चोरी की घटनाओं से संबंधित ऑडियो और वीडियो क्लिप की सच्चाई जानने के लिए कई रिक्वेस्ट मिलने लगीं. इसके आधार पर हमने की-वर्ड्स सर्च का इस्तेमाल करते हुए न्यूज रिपोर्ट्स का विश्लेषण किया और सोशल मीडिया पर भी नजर रखी. हमने देखा कि 30 अगस्त से 13 सितंबर के बीच ऐसी अफवाहों के कारण लोगों पर हमले के मामले में तेजी से बढ़ोतरी हुई है.
इसके अलावा पाकिस्तान समर्थक नारे लगाए जाने के आरोप भी खूब लगाये गए. इस प्रवृत्ति में राजनीतिक रैलियों और विरोध प्रदर्शनों की क्लिप्स इस दावे के साथ शेयर की गयीं कि सार्वजनिक स्थानों पर पाकिस्तान समर्थक नारे लगे. 2014 से विपक्षी राजनीतिक दल और नागरिक समाज के विरोध प्रदर्शन को बदनाम करने के लिए बार-बार ऐसे दावे किए गए.
ऑल्ट न्यूज़ ने 2022 में ऐसे कम से कम 10 दावों को खारिज किया था. और इनमें से किसी भी वीडियो में पाकिस्तान समर्थक नारे नहीं लगाए गए थे. हमने पाया कि आकिफ भाई जिंदाबाद, माटी चोर भगाना है, ओवैसी साहब जिंदाबाद, शाकिर हुसैन जिंदाबाद, SDPI जिंदाबाद, छोटी चा जिंदाबाद, वाजिद भाई जिंदाबाद और पॉपुलर फ्रंट जिंदाबाद जैसे नारों को ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ बताकर झूठा दावा किया गया था.
पॉपुलर फ्रंट ज़िंदाबाद के नारे से जुड़ी ऑल्ट न्यूज़ की डिटेल रिपोर्ट आप यहां पर पढ़ सकते हैं. दावे के खारिज होने के एक दिन बाद, उसी घटना के दूसरे वीडियो के विश्लेषण के आधार पर, एक मराठी न्यूज चैनल ने हमारे फ़ैक्ट चेक पर सवाल उठाया था. ऑल्ट न्यूज़ ने उसी घटना पर एक दूसरी रिपोर्ट पब्लिश की जिसमें हाई-रिज़ॉल्यूशन वीडियो और नारों के फ़ोनेटिक एनालिसिस का इस्तेमाल करते हुए हम अपने पहले के निष्कर्ष पर बने रहे.
कंटेंट के प्रकार
पिछले कुछ सालों की तरह, 2022 में भी ऑल्ट न्यूज़ को व्यस्त रखने वाले कंटेंट का सबसे बड़ा हिस्सा वायरल वीडियोज़ का रहा. हमने 50% से ज़्यादा ऐसे झूठे दावों को देखा जो वायरल वीडियो के माध्यम से या उनके आधार पर किए गए थे. उनमें से एक श्रेणी जो हमें बार-बार देखने को मिली वो थी स्क्रिप्टेड वीडियोज़ की. सोशल मीडिया के इस चलन में नाटकीय वीडियो को फिर से शेयर किया गया जिसमें वीडियो के उस हिस्से को हटा दिया जाता है जिसमें ये महत्वपूर्ण डिस्क्लेमर होता है कि ये वीडियो मनोरंजन के मकसद से बनाया गया है.
जून में ऑल्ट न्यूज़ ने इस ट्रेंड का विश्लेषण पब्लिश किया था. और ये नोट किया कि – a) कई वेरीफ़ाईड फ़ेसबुक अकाउंट्स ने मोनेटाइज़ करने के लिए इस तरह के कंटेंट वाले ऐसे वीडियोज़ शेयर किए और b) भारतीय मुस्लिम समुदाय को टारगेट करने वाले संदर्भ से बाहर कई वीडियो क्लिप्स शेयर किए जा रहे थे.
ऑल्ट न्यूज़ ने 2022 में जिस कंटेंट-टाइप की जांच की, उसमें 25.2% के साथ वायरल तस्वीरें दूसरी स्थान पर थी. हमने जुलाई में एक महत्वपूर्ण आर्टिकल पब्लिश की थी जिसे आप पढ़ सकते हैं. उस वक्त सोशल मीडिया यूज़र्स ने झूठा दावा किया था कि एक टीवी शो में नूपुर शर्मा की टिप्पणी के लिए फटकार लगाने वाले सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत और जेबी पारदीवाला को एनडीटीवी के प्रणय रॉय और भाकपा (मार्क्सवादी) नेता बृंदा करात राधिका रॉय के साथ लंच करते हुए देखा गया.
अगली प्रमुख श्रेणी मीडिया की ग़लत रिपोर्ट्स थीं. अगर हम उन्हें एक विशेष प्रकार के कंटेंट के रूप में वर्गीकृत करते हैं, तो इनकी हिस्सेदारी 12.7% थी. जब हमने 2022 की हर स्टोरीज़ को खंगाला, तो पाया कि 462 फ़ैक्ट चेक में से कम से कम 105 मामलों में एक मीडिया आउटलेट द्वारा ग़लत जानकारी शेयर की गई थी. इसका मतलब है कि एक मेनस्ट्रीम मीडिया आउटलेट ने महीने में कम से कम 8 बार झूठे दावे को हवा दी थी. मेनस्ट्रीम के न्यूज़ आउटलेट्स की भारी पहुंच का मतलब था कि इस तरह की झूठी बातें जंगल में आग की तरह फैलती रहीं.
फ़रवरी में हमने रिपोर्ट किया था कि किस तरह टाइम्स नाउ, रिपब्लिक, न्यूज़ 24, न्यूज़X और जन की बात द्वारा यूक्रेन में चल रहे रूसी सैन्य अभियानों के विजुअल्स के रूप में 2020 का एक यूट्यूब वीडियो चलाया गया था.
कई मौके पर मेनस्ट्रीम मीडिया ने सांप्रदायिक ग़लत सूचना प्रसारित की. जुलाई में न्यूज़X ने सिलचर में आई बाढ़ को ‘बाढ़ जिहाद’ कहा और तटबंध टूटने के बाद आपदा के लिए असम के मुस्लिम समुदाय को दोषी ठहराया. उसी महीने में कई मीडिया आउटलेट्स ने झूठी ख़बर दी कि हिंदुओं ने लूलू मॉल में नमाज़ अदा की.
ठीक एक महीने बाद टाइम्स नाउ ने बताया कि जम्मू के फागसू में एक मस्जिद में राष्ट्रीय ध्वज फ़हराया गया जिसमें एक कथित मौलवी धर्मोपदेश भी दे रहे थे. ऑल्ट न्यूज़ ने पाया कि एक राजनेता को मौलवी के रूप में इस तरह पेश करने के लिए मजबूर किया गया था.
सितंबर में ज़ी हिंदुस्तान ने पाकिस्तान में हिंदुओं के खिलाफ अत्याचार के रूप में भूमि विवाद को लेकर एक बुजुर्ग महिला की पिटाई का वीडियो शेयर किया. ऑल्ट न्यूज़ ने पीड़िता से बात की जिन्होंने हमें बताया कि वो मुस्लिम समुदाय से हैं. उसी महीने, कई मीडिया घरानों ने मध्य प्रदेश से एक असंबंधित वीडियो क्लिप शेयर करते हुए झूठा दावा किया कि महाराष्ट्र में साधुओं को बच्चा चोरी के लिए पीटा जा रहा है.
नवंबर में मेनस्ट्रीम मीडिया ने दावा किया कि विश्व कप में अर्जेंटीना को हराने के लिए सऊदी अरब के फ़ुटबॉलरों को उपहार के तौर पर रोल्स रॉयस कार दी जाएगी. राष्ट्रीय टीम के कोच ने बताया कि ये रिपोर्ट्स झूठी थीं.
ऑल्ट न्यूज़ ने जिन अन्य श्रेणियों को देखा उनमें फ़र्ज़ी सोशल मीडिया अकाउंट, व्हाट्सऐप टेक्स्ट और मनगढ़ंत कोट शामिल थे. अगस्त में हमने सोशल मीडिया पर चल रही एक वायरल टेक्स्ट चेन का भांडाफोड़ किया था जिसमें दिखाया गया था कि नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. अमर्त्य सेन ने दावा किया है कि श्रीलंका अलग-अलग वैश्विक सूचकांकों के मामले में भारत से बेहतर प्रदर्शन कर रहा है.
विश्लेषणात्मक स्टोरीज़
2022 में ऑल्ट न्यूज़ ने 12 लम्बी एनालिटिकल स्टोरीज़ कीं. ये मीडिया विश्लेषण प्लेटफ़ॉर्म की जवाबदेही और सार्वजनिक चर्चा में हेट स्पीच के खिलाफ ऑल्ट न्यूज़ की अथक लड़ाई के बारे में थी. अक्टूबर में हमने विश्लेषण किया कि कैसे न्यूज़18 के अमन चोपड़ा ने गुजरात पुलिस द्वारा मुसलमानों की सार्वजनिक पिटाई को जश्न की तरह ‘पुलिस का डांडिया’ कहकर महिमामंडित किया और हर तरह के संपादकीय नैतिकता को हवा में उड़ा दिया.
फिर से, नवंबर में ऑल्ट न्यूज़ ने यति नरसिंहानंद द्वारा अपनी जमानत शर्तों का उल्लंघन करते हुए, लगातार नफरत भरे भाषण देने, और बच्चा चोरी के वीडियोज़ के संबंध में समस्याग्रस्त कंटेंट को मॉडरेट करने में यूट्यूब की विफलता पर बैक-टू-बैक लंबी-चौड़ी स्टोरीज कीं. हमने इस पर भी एक स्टोरी की कि कैसे यूट्यूब नेशन टीवी नामक एक चैनल के खिलाफ़ कार्रवाई करने में विफल है जो लगभग सबसे अपमानजनक तरीके से राजनीतिक पक्षपाती ग़लत सूचनाओं पर फल-फूल रहा है.
2023 में भी ग़लत सूचना और दुष्प्रचार के खिलाफ़ हमारी लड़ाई पूरी तरह जारी रहेगी. मीडिया की निगरानी और प्लेटफ़ॉर्मों की जवाबदेही ऐसे क्षेत्र हैं जिन पर ऑल्ट न्यूज़ आने वाले साल में ज़्यादा मजबूत तरीके से ध्यान केंद्रित करना चाहता है.
स्टोरी के सभी आंकड़े 2022 में ऑल्ट न्यूज़ द्वारा किये गए फ़ैक्ट-चेक्स और मेनस्ट्रीम मीडिया के दावों पर आधारित हैं.
साभार : ऑल्ट न्यूज़
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