उन 9 मिनटों के लिए हमारे और तबलीग़ी जमात के बीच का अंतर धुंधला गया था
रविवार रात 9 बजे शुरू होने वाले नौ मिनट में, भारत के चमत्कारिक लोगों ने दिये और मोमबत्तियाँ जलाईं, उनकी लपटें आशा की चमक के साथ टिमटिमा रही थीं। उन नौ मिनटों में, तर्क और मानव वैसे ही झुलस रहा था जैसे कीट-पतंगे आग में झुलसते हैं। उन नौ मिनटों में, राष्ट्र ने दुनिया के सबसे बड़े कठपुतली शो में भाग लिया, जिसके अंतिम पड़ाव में हमने पटाखे फोड़कर जश्न मनाया।
उन नौ मिनटों में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया के सबसे बेजोड़ कठपुतली नचाने वाले के रूप में उभरे- और हम उनकी कठपुतलियाँ बने, जिनमें वे भी शामिल हैं, जिन्होंने अपने घरों में रोशनी बंद नहीं की थी, लेकिन उन्होंने भी घर से बाहर क़दम रखा, केवल यह देखने के लिए कि कितने लोग उनकी धुन पर नाचने के लिए तैयार थे।
यह वह बला है जिसे घातक आकर्षण कहा जाता है, जो कीटों के आनुवंशिक मेकअप में कोडित होता है। घातक किस्म का आकर्षण मनुष्य में थोड़ा अलग ढंग से काम करता है, इसकी सबसे बड़ी आवश्यकता एक करिश्माई नेता का होना होती है, जो अपने या अपने अनुयायियों को भविष्य के भय से मुक्त करने और वर्तमान को सहने योग्य बनाने का वादा करता है।
इस घातक आकर्षण ने तबलीग़ी जमात के अनुयायियों के बीच के संबंध को भी परिभाषित किया है, जो अनुयायी दिल्ली के निज़ामुद्दीन वेस्ट कॉलोनी में इसके नेता मौलाना साद कांधलवी के साथ मुख्यालय के अंदर थे। उस मौलाना ने उन्हें कोविड-19 से 70,000 तरीकों की सुरक्षा का वादा किया था, और जिसे उन्होंने माना भी।
इसे गलत मत समझिए: मोदी ने कभी भी स्पष्ट रूप से मौत से राष्ट्र की मुक्ति, या यहाँ तक कि भय से मुक्ति की पेशकश नहीं की।
जब उन्होंने 3 अप्रैल को अपना वीडियो जारी किया, तो उन्होंने उस विडियो के ज़रिए हमें 5 अप्रैल को एक मोमबत्ती या दीया जलाने की अपील की और कहा कि वे चाहते हैं कि हम भारत के 130 करोड़ अपनी सामूहिक ताकत की "महानता, महिमा और दिव्यता" का अनुभव करें। उन्होंने कहा, "हमें कोविड-19 से गहराए संकट से निकलने के लिए उजाले और निश्चितता की ओर बढ़ना है ताकि अंधेरे को समाप्त किया जा सके।"
मोदी ने हमें उनके अजीब अनुरोध के पीछे छिपा कारण समझाया: और कहा कि “उस उजाले में, उस चमक में और उस तेज में, हम अपने मन में यह संकल्प करें कि हम अकेले नहीं हैं, कोई भी अकेला नहीं है। 130 करोड़ भारतीय आम संकल्प के माध्यम से प्रतिबद्ध हैं!”
मोदी का प्रयास है कि लोगों के बीच एकजुटता को बढ़ाया जाए, और देश के भीतर बड़ी सामूहिकता का निर्माण किया जाए, ताकि कोविड-19 से पैदा हुए दुख के व्यक्ति के अनुभव को राष्ट्र में सामूहिक रूप से आत्मसात किया जा सके। उनकी यानी जनता के दुखों और अनेक असुविधाओं ने कोविड-19 के ख़िलाफ़ अपनी लड़ाई में भाग लेने और राष्ट्र की सेवा करने के बड़े उद्देश्य को सौंप दिया है। यह मोदी की उस राष्ट्र तक पहुँच की पेशकश है जो भयभीत, हैरान और असहाय है।
उनका यह प्रस्ताव उन लोगों को खामोश कर देगा, जिन पर 21 दिन की तालाबंदी का बोझ भयानक रूप से पड़ा है। उन प्रवासियों के बारे में सोचें, जिन्होंने शहरों से गांवों तक पैदल मार्च किया था, या वे स्वास्थ्य कर्मि जो नोवेल कोरोनो वायरस को फैलने से रोकने के लिए अग्रिम पंक्ति में खड़े हैं।
उनकी दुर्दशा पर सवाल खड़ा होता है: क्या मोदी सरकार को गाड़ी चलाते-चलाते झपकी आ गई थी, और क्या वह भीषण कोविड़-19 की चुनौती से निपटने के मामले में सत्ता के खेल में विचलित हो गई थी? 5 अप्रैल की रात को मोमबत्तियों और दीयों की रोशनी की योजना लोगों को उनके वर्तमान संकटों तथा कुशासन से ध्यान हटाने के लिए डिज़ाइन किया गया था।
कोविड़-19 ने भारत को अंधेरे और अनिश्चितता के माहौल में डुबो दिया है; हम केवल अपने सामूहिक संकल्प के माध्यम से ही उजाले और निश्चितता की तरफ प्रगति कर सकते हैं, जैसा कि मोदी ने 3 अप्रैल को कहा था। मोमबत्ती या दीया सामूहिक संकल्प का प्रतीक है। यह कोरोनावायरस को थाम लेगा। मोदी ने एक श्लोक का अनुवाद करते हुए कहा: “मतलब, हमारी लगन और भावना से बढ़कर दुनिया में कोई ताकत नहीं हो सकती है। दुनिया में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे हम इस ताकत के आधार पर हासिल नहीं कर पाएँ।”
अपने 3 अप्रैल के भाषण में, मोदी ने इस बात का कोई खुलासा नहीं किया कि उनकी सरकार कोविड-19 से निपटने लिए और कौन-कौन से तरीके अख्तियार कर रही हैं- उदाहरण के लिए, पीपीई, या पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट की आपूर्ति बढ़ाने के लिए उठाए गए कदमों का विवरण देना, या फिर भारत की टेस्टिंग बढ़ाने की कोई योजना के बारे में उल्लेख करना, लेकिन अफसोस उनके भाषण में इनका कोई जिक्र नहीं था। मोदी के मुताबिक, कोविड़-19 के इस भयावह समयों में व्यक्ति का दुख हरने के एकमात्र रामबाण के रूप में राष्ट्र के भीतर "जुनून और भावना" को बढ़ाना है और इसका हिस्सा बनने में निहित है।
यह कमोबेश धार्मिक और पंथ के नेताओं की भी पेशकश है। तबलीग़ी जमात, भी इस्लाम के अपने विचार के तहत सामूहिक जुनून और आपसी भावना को बढ़ाने के लिए अनुयाईयों को एकजुट करना चाहता है। जमात के अनुसार, मुसलमानों का संकट इसलिए नहीं है क्योंकि वे एक असमान सामाजिक संरचना में फंसे हुए हैं, या उनके वैज्ञानिक स्वभाव में कमी है; इसका कारण यह है कि वे सीधे रास्ते से भटक गए हैं, जैसा कि जमात द्वारा परिभाषित किया गया है। यही कारण है कि जमात बनी हुई है, और वह कई लोगों को ग़ैर-राजनीतिक बनाती है। इस जीवन में जमात का लक्ष्य अपने अनुयायियों को इस जीवन के बाद यानी मृत्यु के बाद पुरस्कृत करने के लिए तैयार करना है। यह अल्लाह की इच्छा पर है कि वह हमें कोरोना वायरस से सुरक्षा दिलाए या उसके प्रति असुरक्षित बनाए।
वास्तव में, आशा, अजेयता और भाग्यवाद का भ्रम आम तौर पर राष्ट्रवाद और तबलीग़ी जमात के इस्लाम दोनों का ही प्रसाद है।
5 अप्रैल की रात मोमबत्तियों की रोशनी के आयोजन को, 9 नंबर के आसपास के किसी धार्मिक रहस्य की वजह से किया गया था। मोदी ने आम जनता से तालाबंदी के नौवें दिन बात की; उन्होंने 3 अप्रैल को सुबह 9 बजे अपील का वीडियो जारी किया; उन्होंने लोगों से 9 अप्रैल की रात 9 बजे मोमबत्ती और दीये जलाने को कहा, वह भी नौ मिनट के लिए।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और कार्डियोलॉजिस्ट केके अग्रवाल ने मोदी के भाषण के कुछ ही मिनटों के बाद लोगों को 9 नंबर के खगोलीय महत्व का महत्व बताने की कोशिश की। अग्रवाल ने दावा किया कि मोदी ने लोगों से 9 बजकर 9 मिनट पर मोमबत्तियां और दीया जलाने की अपील योगा वशिष्ठ में सूचीबद्ध सामूहिक चेतना के सिद्धांत पर आधारित थी; और यह कि सामूहिक चेतना कोरोनोवायरस को जनता से दूर कर सकती है।
क्या भारत की सामूहिक शक्ति के संदर्भ में मोदी का सामूहिक चेतना का योग सिद्धांत एक इशारा था? हां, या ऐसा बहुत से लोगों को लग रहा था, क्योंकि एक सरकारी पोर्टल- @ mygovindia- ने अग्रवाल के वीडियो का एक लिंक ट्वीट किया था, जिसे केवल मिनटों में डिलीट कर दिया गया था।
फिर भी, अटकलें लगी हुई थी क्योंकि मोदी ने अतीत में भी, विज्ञान के साथ मिथकों को गलत ढंग से मिलाने की प्रवृत्ति दिखाई है, और उन्होंने कहा था कि प्राचीन भारतीय ग्रंथों में हमारे पास मौजूद तकनीकी कौशल के प्रमाण दिखाई देते हैं। 2014 में, उन्होंने प्रसिद्ध रूप से दावा किया था कि दुनिया द्वारा की गई प्लास्टिक सर्जरी और स्टेम सेल तकनीक की खोज को भारत ने सदियों पहले ही कर लिया था।
प्राचीन भारत की तकनीकी प्रगति के बारे में मोदी के दावे मौलाना साद के उस दावे से बहुत अलग नहीं हैं कि अल्लाह के फ़रिश्ते कोरोनो वायरस के ख़िलाफ़ मुस्लिम सुरक्षा की गारंटी हैं। काल्पनिक या अनुचित रूप से उनके अलग-अलग दुनिया के विचारों को परिभाषित करते हैं।
आस्था व्यक्तियों को आराम प्रदान करता है। लेकिन कोविड -19 से निपटने की रणनीति के रूप में चिकित्सा विज्ञान की जगह आस्था का इस्तेमाल निश्चित तौर पर एक आपदा को न्योता देना है। ग़लती उस उपदेशक या नेता की उतनी ही है जितनी कि उसके अनुयायियों की।
मोदी ने अपने 3 अप्रैल के भाषण में लोगों से सामाजिक दूरी बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर दिया। यह वह सिद्धांत था जिसे बहुत से लोग उस वक़्त भूल गए जब वे 22 मार्च की शाम 5 बजे अपने अलगाव से बाहर निकले, जिस दिन ‘जनता कर्फ्यू’ था और लोग बर्तन और घंटी बजाने के लिए जुलूस निकालते देखे गए।
इसके विपरीत, मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि तबलीग़ी जमात ने सामाजिक दूरी बनाए रखने को मुस्लिमों को विभाजित करने की साज़िश के रूप में देखा था। इस मुताल्लिक, सोशल मीडिया पोस्टों की बाढ़ आ गई है, जिसमें मुसलमानों पर बहुत ही ग़लत इरादे से लॉकडाउन की धज्जियां उड़ाने का आरोप लगाया गया है। इनमें से कई पोस्ट नकली साबित हुए। फिर भी यह सच है कि कई तबलीग़ी जमात के सदस्यों ने मौलाना साद के विश्व-दृष्टिकोण, इस्लाम की उनकी व्याख्या के तर्क और इच्छाशक्ति को माना था।
रविवार रात 9 बजे मोमबत्तियाँ और दीये जलाने के लिए बड़ी संख्या में लोगों के आने को हम कह सकते हैं कि राष्ट्र भी मोदी के आह्वान पर अपने तर्क और स्वतंत्र इच्छा दोनों को निलंबित कर सकता है। क्योंकि उन्होंने कोरोनो वायरस को रोकने के मामले में उनके नुस्खे की प्रभावशीलता पर कोई सवाल नहीं उठाया। वे कठपुतली बन गए। वे भविष्य में किसी अन्य धुन पर नाचेंगे। उस रविवार को, उन नौ मिनटों के लिए, हमारे और तबलीग़ी जमात के बीच का अंतर धुंधला गया था।
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।
अंग्रेजी में लिखे गए मूल आलेख को आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं
For 9 Minutes, Distinctions Between Us and Tablighi Jamaat Blurred
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