पड़ताल: एमपी में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों के 97% पद खाली
मध्य प्रदेश में इसी साल चुनाव होने हैं और प्रोपेगेंडा व प्रचार गति पकड़ चुका है। ऐसे में आप तक लुभावने सरकारी नारे तो पहुंचते हैं लेकिन सरकार का रिपोर्ट कार्ड नहीं पहंचता। जबकि चुनाव का समय ऐसा होता है कि जब हमें विभिन्न क्षेत्र में सरकार के काम की पड़ताल करनी चाहिए। देखना चाहिए कि विभिन्न क्षेत्रों में प्रदेश की स्थिति क्या है? जिस तरह का चमकीला चुनाव प्रचार आप तक पहुंच रहा है, क्या धरातल की तस्वीर वास्तव में उतनी चमकीली है?
आइये, इसी सिलसिले में मध्य प्रदेश के ग्रामीण सरकारी स्वास्थ्य ढांचे की पड़ताल करते हैं। देखते हैं कि क्या एमपी का ग्रामीण स्वास्थ्य ढांचा एमपी की 71% आबादी की स्वास्थ्य जरूरतें पूरा कर रहा है या कर सकता है?
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार मध्य प्रदेश में कुल 10,189 सब-सेंटर, 1,234 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 295 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं। जिनमें से 1,664 सब सेंटर, 94 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 6 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों के पास खुद का सरकारी भवन नहीं है।
अगर कुल मिलाकर स्वास्थ्य ढांचे की पड़ताल की जाए तो एमपी में स्वास्थ्य सुविधाओं में सब-सेंटर स्तर पर 29%, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के स्तर 46% और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के स्तर पर 48% शॉर्टफॉल है। ये एक बड़ा और बुनियादी आंकड़ा है जो बता रहा है कि एमपी की ग्रामीण आबादी की स्वास्थ्य जरूरतों के हिसाब से ढांचा काफी कमजोर है।
आइये, अब देखते हैं कि इस ढांचे में डॉक्टरों, सहायक एवं तकनीकी स्टाफ और अन्य सुविधाओं की क्या स्थिति है?
एमपी के ग्रामीण सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की स्थिति
ग्रामीण स्तर पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों के 1887 पद स्वीकृत हैं जिनमें से 580 पद यानी 30% पद खाली पड़े हैं।
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति और भी दयनीय है। गौरतलब है कि किसी भी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में चार विशेषज्ञ डॉक्टरों का होना अनिवार्य है। जिनमें सर्जन, महिला एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ, फिजिशियन और बाल रोग विशेषज्ञ शामिल हैं।
एमपी में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में 1180 विशेषज्ञ डॉक्टरों की आवश्यकता है, जिनमें से मात्र 945 पद स्वीकृत हैं और उसमें भी सिर्फ 43 पदों पर भर्ती की गई है। यानी मध्य प्रदेश के ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों में विशेषज्ञ डॉक्टरों के सिर्फ लगभग 3% पदों पर ही भर्ती की गई है और 97% पद खाली पड़े हैं।
वर्ष 2020 में एमपी के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की संख्या 46 थी जो वर्ष 2021 में घटकर 43 रह गई। यानी एमपी के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में पहले ही ना के बराबर डॉक्टर हैं ऊपर से उनमें भी कमी ही आ रही है।
एमपी में ग्रामीण सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में 295 सर्जन के पद स्वीकृत हैं जबकि मात्र 6 सर्जन कार्यरत हैं बाकि 97% पद खाली हैं।
प्रसूति एवं महिला रोग विशेषज्ञ के 295 पद स्वीकृत हैं जिनमें से मात्र 22 पर भर्ती की गई है। यानी 92% पद खाली पड़े हैं।
फिजिशियन के 295 पद स्वीकृत हैं जिनमें से मात्र 5 पद भरे गए हैं। यानी 98% पद खाली पड़े हैं।
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के स्तर पर एमपी में 295 बाल रोग विशेषज्ञों की जरूरत है लेकिन मात्र 60 पद ही स्वीकृत हैं जिनमें से मात्र 10 पदों पर भर्ती की गई है। यानी 96% पद खाली पड़े हैं।
सीएचसी स्तर पर 295 आंखों के शल्य चिकित्सकों की जरूरत हैं लेकिन एक भी पद नहीं भरा गया है। यानी एमपी में सीएचसी स्तर पर एक भी आई सर्जन यानी आंखों का शल्य चिकित्सक नहीं है।
मध्य प्रदेश में कुल 295 सीएचसी में से मात्र 5 सीएचसी यानी सिर्फ 1% सीएचसी ऐसे हैं जहां अनिवार्य चारों विशेषज्ञ डॉक्टर कार्यरत हैं।
ये आंकड़ा बता रहा है कि ग्रामीण इलाकों में स्थित स्वास्थ्य केंद्रों की क्या स्थिति है। ऐसा कहा जा सकता है कि एमपी के सामुदायिक केंद्र बिना डॉक्टरों के चल रहे हैं। सवाल उठता है कि जब डॉक्टर ही नहीं हैं तो बीमारी से जूझ रही ग्रामीण आबादी के लिए ये ढांचे कितने उपयोगी हैं?
तकनीकी एवं सहायक स्टाफ की स्थिति
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में रेडियोग्राफर के 295 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 104 पद यानी 35% पद खाली पड़े हैं।
फार्मासिस्ट के 92 पद खाली पड़े हैं।
लैब तकनीशियन के 1,529 पद स्वीकृत हैं जिनमें से 462 पद यानी 30% पद खाली पड़े हैं।
नर्सिंग स्टाफ के 264 पद खाली पड़े हैं।
एमपी में सीएचसी स्तर पर 295 एनेस्थीसिया एक्पर्ट की जरूरत हैं जबकि मात्र 60 पद ही स्वीकृत है जिनमें से भी सिर्फ 7 पदों पर भर्ती की गई है।
ग्रामीण इलाके के सब सेंटर और पीएचसी में महिला स्वास्थ्य कर्मियों के 886 पद खाली पड़े हैं।
एमपी में सब-सेंटर लेवल पर 10,189 पुरुष स्वास्थ्य कर्मियों की जरूरत है जिनमें से मात्र 4260 पद ही स्वीकृत हैं और इनमें से भी मात्र 2,521 पदों पर भर्ती की गई है। यानी पुरुष स्वास्थ्य कर्मियों की संख्या में 75% शार्टफाल है।
पीएचसी स्तर पर 2,468 हेल्थ असिस्टेंट की जरूरत है जबकि मात्र 2,124 पद ही स्वीकृत हैं जिनमें से भी मात्र 631 पद भरे गए हैं। यानी हेल्थ असिस्टेंट के पदों पर 74% शॉर्टफॉल है।
सीएचसी स्तर पर जनरल ड्यूटी मेडिकल ऑफिसरों के 295 पद स्वीकृत हैं लेकिन मात्र 88 पद ही भरे गए हैं। यानी 70% पद खाली पड़े हैं।
बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति
एमपी के लगभग 20% पीएचसी में लेबर-रूम नहीं है।
लगभग 64% पीएचसी में ऑपरेशन थियेटर नहीं है।
10% पीएचसी में पानी की रेगुलर सप्लाई नहीं है।
72 सीएचसी के पास फंक्शनल एक्स-रे मशीन नहीं हैं।
4,243 सब-सेंटर और 142 पीएचसी में महिलाओं के लिए अलग से शौचालय नहीं है।
ऊपर दिए गए आंकड़े स्पष्ट कर रहे हैं कि एमपी का ग्रामीण स्वास्थ्य ढांच बुरी तरह चरमराया हुआ है। मध्य प्रदेश की कुल 6,04,12,000 ग्रामीण आबादी यानी 71% जनसंख्या इसी ढांचे पर निर्भर है। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि प्रदेश की 71% ग्रामीण आबादी के स्वास्थ्य के लिए मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार का यही इंतज़ाम है।
नोट: सभी आंकड़े स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग की रिपोर्ट से लिए गए हैं। आंकड़े 31 मार्च 2021 तक के हैं।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं ट्रेनर हैं। आप सरकारी योजनाओं से संबंधित दावों और वायरल संदेशों की पड़ताल भी करते हैं।)
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