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मध्यप्रदेश : ग्रामीण इलाक़ों में बायोमेडिकल वेस्ट के प्रबंधन में है अभी कई ख़ामियां

चौड़ी सड़कों से जुड़े स्वास्थ्य केंद्रों में चिकित्सीय कचरे के प्रबंधन का तंत्र नज़र आता है, लेकिन जैसे-जैसे सड़क संकरी होती है यह तंत्र आंखों से ओझल होने लगता है।
madhya pradesh
दोराहा कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर में ज़मीन पर फैले हुए ब्लड पैकेट, ड्रिप पाईप, सिरिंज, इजेंक्शन आदि

सुबह के दस बजे हैं, मध्यप्रदेश के सीहोर जिले में स्थित दोराहा गांव के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में एक आम दिन की तरह ही कामकाज चल रहा है। मरीज़ काउंटर से पर्चा बनवाकर ओपीडी की तरफ जा रहे हैं, स्वास्थ्यकर्मी अलग अलग वॉर्ड में भर्ती मरीज़ों के उपचार में व्यस्त हैं। यह स्वास्थ्य केंद्र दो साल पहले ही अपनी नई बिल्डिंग में शिफ्ट हुआ है, एक नज़र देखने पर यहां साफ-सफाई अच्छी नज़र आती है। 

अस्पताल के इंचार्च हमें दिखाते हैं कि इलाज के दौरान निकलने वाले बायोमेडिकल कचरे को सरकारी नियम के अनुसार अलग-अलग रंग के डस्टबिन में इकट्ठा किया जाता है और अस्पताल के बगल में बने बायमेडिकल वेस्ट स्टोरेज फैसिलिटी में सुरक्षित रख दिया जाता है। इस कचरे को कॉमन बायो मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट एवं डिस्पोज़ल फैसिलिटी (CBWTFs) की गाड़ी कलेक्ट करके ले जाती है। 

अस्पताल की नई बिल्डिंग के बगल में ही खंडहर हो चुकी पुरानी बिल्डिंग से होते हुए जब हम इस स्टोरेज फैसिलिटी की तरफ जाते हैं तो एक कमरे में फैले पड़े चिकित्सीय कचरे पर हमारी नज़र पड़ती है। इस कचरे में दवाई की बोतल, इंजेक्शन,सिरिंज, ड्रिप पाईप्स, ब्लड पैकेट्स साफ दिखाई देते हैं।

सामुदायिक स्वास्थ केंद्र कोठरी में इंतेज़ार करते मरीज़

अस्पताल के इंचार्ज टालने की मंशा से कहते हैं कि सीहोर से जो बायोमेडिकल वेस्ट कलेक्ट करने वाली गाड़ी आती है, वो कहने पर भी इस कचरे को लेकर नहीं जाती। इसीलिए हम यह कचरा स्वीपर्स को दे देते हैं। हालांकि वेस्ट कलेक्ट करने वाली एजेंसी की राय इस विषय पर बिल्कुल अलग है, जिसके बारे में हम आपको आगे बताएंगे। उससे पहले समझते हैं कि बायोमेडिकल वेस्ट क्या है और इसका सही तरीके से निपटान होना क्यों ज़रुरी है?

बायोमेडिकल वेस्ट और उसका उचित निपटान

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक कोई भी अपशिष्ट, जो मनुष्यों या जानवरों के उपचार या टीकाकरण के दौरान, या उससे संबंधित अनुसंधान गतिविधियों में,या जैविक पदार्थों के उत्पादन या परीक्षण में उत्पन्न होता है उसे बायोमेडिकल वेस्ट कहा जाता है। इसमें मानव और पशु के शारीरिक अपशिष्ट, सुई, सिरिंज, जैसे उपचार उपकरण और अन्य सामग्रियां शामिल हैं। पर्यावरणीय दृष्टि से बेहतर तरीके से पृथक्करण, संग्रह और उपचार के माध्यम से बायोमेडिकल वेस्ट का वैज्ञानिक तरीके से निपटान करना ज़रुरी होता है। इससे चिकित्सीय कचरे के संपर्क में आने वाले स्वास्थ्य कर्मियों, सफाई कर्मियों, आमजन की सेहत और पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव को कम किया जा सकता है।

सीहोर जिला अस्पताल में तीन अलग रंग के डस्टबिन और एक पंक्चर प्रूफ बॉक्स बायोमैडिकल वेस्ट को इकट्ठा करने के लिए रखे गए हैं

बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट (BMWM) नियम, 2016 भारत में बायोमेडिकल कचरे के प्रबंधन को नियंत्रित करने वाला प्रमुख कानून है। इसके अनुसार सभी स्वास्थ्य केंद्रों को रंगीन बैग या कंटेनरों में अलग किए गए बायोमेडिकल कचरे के स्टोरेज के लिए परिसर के भीतर एक सुरक्षित और हवादार स्थान बनाना होता है। ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई इसके संपर्क में न आए। रीसायकल योग्य वस्तुओं की चोरी न हो,जानवरों द्वारा या अनजाने में परिसर में बायोमेडिकल वेस्ट का बिखराव न हो और कॉमन बायो मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट एवं डिस्पोज़ल फैसिलिटी (CBWTF) यहां से कचरे को कलेक्ट कर वैज्ञानिक तरीके से निपटान के लिए आसानी से ले जा सके। 

कोठरी कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर में बायोमेडिकल वेस्ट इकट्ठा कर यहां स्टोर किया जाता है

अस्पताल खुद भी वेस्ट ट्रीटमेंट प्रणाली स्थापित कर सकते हैं, लेकिन अगर CBWTF 75 किलोमीटर के दायरे में मौजूद है तो उन्हें यह कचरा CBWTF को ही भेजना होता है। 

वर्तमान में मध्यप्रदेश के 52 जिलों को कवर करते हुए कुल 18 अधिकृत सीबीडब्ल्यूटीएफ (CBWTF) संचालित किए जा रहे हैं। राज्य में कुल बायोमेडिकल वेस्ट जनरेशन 15.64 मीट्रिक टन/दिन है जबकि मौजूदा सीबीडब्ल्यूटीएफ की कुल उपचार क्षमता 62 मीट्रिक टन/दिन है जो वेस्ट जनरेशन की कुल मात्रा की तुलना में 4.0 गुना अधिक है। लेकिन इसके बावजूद भी वर्ष 2022 तक पूरे राज्य में 2671 हेल्थ केयर सेंटर ऐसे हैं जहां से CBWTF द्वारा बायोमेडिकल वेस्ट कलेक्ट नहीं किया जा रहा है। जिन हेल्थ सेंटर्स से कलेक्शन हो रहा है वहां भी कई अनियमितताएं देखने को मिल रही है। 

मध्यप्रदेश के सीहोर जिले का दोराहा गांव

महज़ 7,624 की जनसंख्या वाला दोराहा गांव जिला मुख्यालय सीहोर से 41 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां मौजूद 30 बेड क्षमता वाले कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर का चिकित्सीय कचरा सीहोर शहर में इंवायरमेंट प्रोटेक्शन कॉर्पोरेशन (ईपीसी) द्वारा संचालित CBWTF कलेक्ट करती है। 

दोराहा कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर की नई बिल्डिंग 

दोराहा कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर के इंचार्ज अखिलेश बताते हैं कि वैसे तो ईपीसी की गाड़ी एक दिन छोड़कर आ जाती है लेकिन अभी दो दिन से नहीं आई है। रंग के आधार पर जिस कचरे का जितना भार होता है उसे शीट में दर्ज किया जाता है। 

जब हमने इस शीट पर नज़र डाली तो कचरे का भार राउंड फिगर में लिखा हुआ था, और हर दिन के आंकड़े लगभग समान ही थे। वाईट कलर कोड जिसमें इलाज के दौरान इस्तेमाल होने वाले शार्प वेस्ट (सुई, स्केलपेल, ब्लेड, सुई टिप कटर या सुई जैसी धातुएं) को रखा जाता है उसकी एंट्री पूरे महीने ज़ीरो दिखाई देती है। इसके अलावा जो एक और चौंकाने वाली बात सामने आई वो यह थी कि इसमें प्लास्टिक वेस्ट जिसे रेड बिन में रखा जाता है उसे अखिलेश के मुताबिक “CBWTF वाले ले जाने से मना कर देते हैं” और वह स्वीपर्स को देना पड़ता है, उसके कॉलम में भी नियमित रुप से एंट्री दर्ज की गई थी। यहां सवाल पैदा होता है कि जब प्लास्टिक वेस्ट CBWTF वाले नहीं ले जा रहे तो उसके एंट्री क्यों की जा रही है?

दोराहा कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर से हासिल की गई बायोमेडिकल वेस्ट कलेक्शन शीट

संग्रहण में देरी, प्लास्टिक और मेटल वेस्ट के कम कलेक्शन की वजहें

अलग-अलग स्वास्थ्य केंद्रों में जाकर की गई पड़ताल में हमें तीन चीज़ें एक समान नज़र आई। पहला CBWTF द्वारा कचरा संग्रहण में देरी की शिकायत, दूसरा वाईट कलर कोडेड शार्प वेस्ट का कॉलम खाली रहना और तीसरा प्लास्टिक वेस्ट के कलेक्शन में गड़बड़ी। 

कचरा संग्रहण में देरी की बात करें तो नियम के मुताबिक चिकित्सीय कचरे का 48 घंटे के भीतर संग्रहण और निपटान होना ज़रुरी होता है। संग्रहण में देरी के कारण कई बार संक्रामक कचरे को खुले में छोड़ दिया जाता है, जिससे आम जनता के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने का डर रहता है। 

मध्यप्रदेश प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड द्वारा जारी गैप एनलिसिस रिपोर्ट 2023 के अनुसार राज्य में ऐसी कई CBWTF हैं जो एक से अधिक जिलों को कवर करती हैं और 150 किलोमीटर से अधिक डिस्टेंस से कचरा कलेक्ट करती हैं। 

उदाहरण के लिए सीहोर स्थिति CBWTF इंवायरमेंट प्रोटेक्शन कॉर्पोरेशन (ईपीसी) के ऊपर हरदा, होशंगाबाद, विदिशा और बैतूल जिले का बायोमेडिकल वेस्ट कलेक्ट करने का भी भार है। बैतूल और सीहोर के बीच दूरी 200 किलोमीटर से अधिक है। ऐसे में समन्वय में थोड़ी सी कमी देरी का कारण बन सकती है। 

ग्रामीण इलाके जहां रोड कनेक्टिविटी ठीक नहीं है या सड़के चौड़ी नहीं हैं, वहां कचरे के संग्रहण में देरी ज्यादा देखने को मिलती है। इससे निपटने के लिए मध्यप्रदेश पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड दो पहिया या छोटे ई वहीकल की मदद से कचरे के संग्रहण का सुझाव देता है। लेकिन मध्यप्रदेश में अभी तक किसी भी ग्रामीण इलाके में इस तरह की सुविधा शुरु नहीं हुई है। 

वाईट कलर कोडेड मैटेलिक शार्प वेस्ट का कॉलम महीने भर तक खाली रहना हेल्थ केयर विदाउट हार्म के इंडिया प्रोजेक्ट मैनेजर चंदन खन्ना के मुताबिक मुमकिन नहीं है। वो कहते हैं कि “किसी भी बेडेड हेल्थ केयर फैसिलिटी में शार्प्स और नीडल्स सबसे कॉमन वेस्ट होते हैं। नीडल स्टिक और शार्प इंजुरी सबसे कॉमन है इंफेक्शन फैलाने के मामले में। क्योंकि ये बॉडी फ्लुईड और ब्लड से इंफेक्टेड रहते हैं। ऐसे में इन अस्पतालों में एक महीने तक शार्प्स का कलेक्शन न  होना ठीक संकेत नहीं देता। यह नियमित तौर पर होना चाहिए।”

संक्रामक प्लास्टिक वेस्ट की चोरी

CBWTF सीहोर ईपीसी के प्रबंधक इम्तियाज़ बेग के अनुसार प्लास्टिक वेस्ट जिसे रेड कलर कोड दिया गया है, CBWTF तक सबसे कम पहुंचता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह रीसायक्लेबल वेस्ट होता है जिसमें इंजेक्शन, बॉटल्स, ड्रिप पाईप आदि होते हैं। यह कचरा बाज़ार में आसानी से बिकता है और बेग के मुताबिक “इस काम में अस्पताल के कर्मचारी ही लिप्त होते हैं।”

अस्पताल से निकलने वाला संक्रामक प्लास्टिक कचरा, तस्वीर दोराहा स्वास्थ्य केंद्र की है

सीहोर डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल मैनेजर संजूलता भार्गव इस बात को स्वीकार करती हैं और कहती हैं कि “हमने कई बार हॉस्पिटल के स्वीपर्स को प्लास्टिक वेस्ट ले जाते हुए पकड़ा है और कार्रवाई भी की है। हम इस बात का ध्यान रखते हैं कि ऐसा न हो क्योंकि इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।”

अस्पतालों में लाल रंग के कूड़ेदान में रीसायकल योग्य कचरे जैसे ट्यूब, बोतलें, मूत्र बैग, सिरिंज (सुइयों के बिना), दस्ताने और इसी तरह का कचरा रखा जाता है। इन सामग्रियों को ऑटोक्लेविंग तकनीक के माध्यम से उपचारित किया जाता है। आटोक्लेव एक ऐसी मशीन है जो दबाव वाले बर्तन के अंदर रखी वस्तुओं पर हानिकारक बैक्टीरिया, वायरस, कवक और बीजाणुओं को मारने के लिए प्रेशराईज़्ड स्टीम का उपयोग करती है। रीसायकल के लिए ले जाने से पहले कचरे का स्टेरलाईज़ेशन ज़रुरी होता है अन्यथा इसके संपर्क में आने वाले व्यक्तियों को इंफेक्शन का खतरा रहता है। आप यहां अंदाज़ा लगा सकते हैं कि जो सफाईकर्मी और कबाड़ी इस अनट्रीटेड कचरे के संपर्क में आ रहे हैं उनकी सेहत पर क्या असर होगा। 

मध्यप्रदेश पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के रीजनल ऑफिसर ब्रजेश शर्मा कहते हैं कि “यह हमारे संज्ञान में है कि प्लास्टिक वेस्ट अस्पतालों से ट्रीटमेंट फेसिलिटी तक कम पहुंचता है। लेकिन इन पर लगाम लगाना तभी संभव होगा जब या तो अस्पताल या फिर ट्रीटमेंट फैसिलिटी इसके खिलाफ शिकायत दर्ज करवाए। ज्यादातर मामलों में ऐसा नहीं होता और हम कार्रवाई नहीं कर पाते।” 

ब्रजेश आगे कहते हैं कि “केवल गांवों में ही नहीं शहरों में भी प्लास्टिक बायोमेडिकल कचरे की खरीद बिक्री बड़ी मात्रा में होती है। इसमें प्राईवेट क्लीनिक और अस्पताल सबसे ज्यादा गड़बड़ी करते हैं। अगर मीडिया साक्ष्य के साथ इन रिपोर्ट को प्रकाशित करे तो पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड कार्रवाई कर सकता है।”

हानिकारक कचरे के संपर्क में आते कबाड़ी और वेस्ट पिकर्स 

सीहोर के मंडी क्षेत्र में कबाड़ी का काम करने वाले मुंंशी एक बोरे में प्लास्टिक की बोतलें भर रहे हैं। हम उनसे पूछते हैं कि क्या वो अस्पताल का कचरा लेते हैं? इस पर मुंशी बिना झिझक कहते हैं कि हां उनके पास ग्लूकोस की बॉटल, इंजेक्शन, पाईप, दस्ताने वगैरह आते हैं। वो आठ रुपए किलों में यह कचरा खरीदते हैं। जब हम उनसे पूछते हैं कि क्या वो अस्पताल के कचरे को हाथ लगाने से पहले ग्लव्स पहनते हैं तो वो हंसकर कहते हैं कि नहीं वो ऐसा नहीं करते। 

भारत में बायोमेडिकल वेस्ट की चोरी न हो इसके लिए बारकोडेड बैग्स और जीपीएस धारी गाड़ियों का इंतेज़ाम किया गया है लेकिन इसके बाद भी संक्रामक कचरा बाज़ार तक पहुंच रहा है। आप उन स्वास्थ्य केंद्रो की स्थिति की कल्पना ही कर सकते हैं जहां वेस्ट कलेक्शन की सुविधा है ही नहीं?

सीहोर जिले में कितने स्वास्थ्य केंद्रों में हो रहा है बायोमेडिकल वेस्ट कलेक्शन?

सीहोर जिला कलेक्टर कार्यालय की रिपोर्ट के मुताबिक जिले में सरकारी और निजी मिलाकर, बिस्तर वाले स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या 60 और बिना बिस्तर वाले स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या 69 है। सीहोर CBWTF ईपीसी द्वारा 54 बिस्तर वाले, 56 बिना बिस्तर वाले स्वास्थ्य केंद्र और 23 पैथोलॉजी से ही बायोमेडिकल वेस्ट कलेक्ट किया जा रहा है। 

ग्राम कोठरी स्थित स्वास्थ्य केंद्र की तस्वीर

अगर सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों की ही बात की जाए तो जिले में मौजूद कुल 25 सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों में से केवल 13 से ही बायोमेडिकल वेस्ट कलेक्ट किया जा रहा है। जिन 12 स्वास्थ्य केंद्रो तक ईपीसी की गाड़ी नहीं पहुंचती वो ग्रामीण इलाकों के प्राईमरी हेल्थ सेंटर्स हैं। सीहोर जिला कलेक्टर कार्यालय की रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों के दूरदराज के स्थानों में स्थित स्वास्थ्य केंद्र अपने कचरे का निपटान डीप बरीयल मेथड से ही कर रहे हैं।

डीप बरियल मेथड अभी भी जारी

दोराहा गांव के कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर से निकलकर हम यहां से 4 किलोमीटर दूर अहमदपुर गांव के प्राईमरी हेल्थ सेंटर पहुंचते हैं। बायोमेडिकल वेस्ट के बारे में पूछने पर यहां के प्रबंधक डॉ केसी मोहनिया कहते हैं “बहुत बुरा हाल है यहां”। 

अहमदपुर प्राईमरी हेल्थ सेंटर 

अहमदपुर प्राईमरी हेल्थ सेंटर से ईपीसी की गाड़ी बायोमेडिकल वेस्ट कलेक्ट नहीं करती। ऐसे में हेल्थ सेंटर के पीछे एक गड्ढे में ही सारा कचरा जला कर खत्म किया जाता है। येलो कैटेगरी बायोमेडिकल वेस्ट जैसे प्लेसेंटा और ह्यूमन एनाटॉमिकल वेस्ट डीप बरीयल मेथड से नष्ट किया जाता है। 

आपको बता दें कि WHO के मुताबिक स्वास्थ्य देखभाल अपशिष्टों को खुले में जलाने से, कुछ परिस्थितियों में, डाइऑक्सिन, फ्यूरान और पार्टिकुलेट मैटर का उत्सर्जन हो सकता है। जो स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक होते हैं। 

डीप बरीयल पिट, अहमदपुर स्वास्थ्य केंद्र

डॉ केसी मोहनिया कहते हैं कि “बारिश के दिनों में हेल्थ सेंटर के कंपाउंड में पानी भर जाता है, जिससे सारा कचरा बहकर खेतों में चला जाता है। हमने नगरपालिका में कई बार आवेदन दिया लेकिन बायोमेडिकल वेस्ट तो छोड़ दीजिए यहां गीला सूखा कचरा उठाने वाली नगरपालिका की गाड़ी भी नहीं आती।”

डॉ मोहनिया के मुताबिक अहमदपुर प्राईमरी हेल्थ सेंटर में डेली ओपीडी की संख्या बढ़ रही है, ऐसे में बायोमेडिकल वेस्ट भी बढ़ रहा है। वो प्रशासन से इस ओर ध्यान देने की अपील करते हैं। 

एमपीपीसीबी के ब्रजेश शर्मा यह जानकर आश्चर्य में पड़ जाते हैं कि रोड कनेक्टिविटी होने के बावजूद अहमदपुर तक बायोमेडिकल वेस्ट कलेक्शन वाहन नहीं पहुंच रहा है। वो आश्वासन देते हुए कहते हैं कि “हम जल्द इस मामले की जांच करेंगे।”

गैप एनलिसिस रिपोर्ट 2023 में मध्यप्रदेश प्रदषण कंट्रोल बोर्ड ने दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में स्थित स्वास्थ्य केंद्रों में जारी डीप बरीयल मेथड को पूरी तरह खत्म करने के लिए बायमेडिकल वेस्ट के संग्रहण और परिवहन को मज़बूत कर सीबीडबल्यूटीएफ के दायरे में लाने का निर्देश दिया था। इसका मुख्य मकसद आसपास के इलाकों में हो रहे भूजल प्रदूषण और पैदा हो रही स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं पर लगाम लगाना था। लेकिन एक वर्ष गुज़र जाने के बाद भी ग्रामीण इलाकों के प्राईमरी हेल्थ सेंटर में डीप बरीयल मेथड से ही बायमेडिकल कचरे का निपटान हो रहा है। 

गांवों में खुलते प्राईवेट क्लीनिक्स

सरकारी हेल्थ सेंटर्स के अलावा ग्रामीण इलाकों में कुछ प्राईवेट क्लीनिक भी खुले हैं। भोपाल जैसे शहर से कई डॉक्टर सप्ताह के अंत में गांवों में जाकर हेल्थ कैंप लगाते हैं। इन कैंपों से जो कचरा निकलता है वो आम कचरे में मिला दिया जाता है। 

दोराहा के करीब झरखेड़ा गांव में एक निजी क्लीनिक है। एक कमरे के इस क्लीनिक के बाहर मरीज़ों की लंबी कतार लगी है। अंदर एक बिस्तर है जिस पर लेटे मरीज़ को ड्रिप लग रही है। कुर्सी पर बैठे दूसरे मरीज़ की नब्ज डॉक्टर टटोलते हैं और पर्चे पर दवाई लिखकर देते हैं। हमारी नज़र मरीज़ की पलंग के बगल में रखे एक कार्टन पर पड़ती है जिसमें इंजेक्शन, सिरिंज, बॉटल्स, कांच की शीशियों के कचरे का ढेर लगा हुआ है। सवाल करने पर डॉक्टर कहते हैं कि सुबह जब नगरपालिका की गीला सूखा कचरा उठाने वाली गाड़ी आती है तो उसी को वो यह कचरा देते हैं। वो कहते हैं कि “हम जानते हैं कि यह कचरा कितना खतरनाक है, लेकिन हमारे पास दूसरा विकल्प नहीं है, यहां गांव में कोई सुविधा नहीं है।” 

मध्यप्रदेश पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड गैर-बिस्तर वाले स्वास्थ्य केंद्रो में बायोमेडिकल वेस्ट के कलेक्शन के लिए "सर्विस ऑन कॉल" के प्रावधान की बात करता है लेकिन प्राइवेट प्रैक्टिशनर इस तरह की सेवा की जानकारी होने से इंकार करते हैं। 

बृजेश शर्मा कहते हैं कि कोई भी हेल्थ केयर फैसिलिटी जो बायोमेडिकल कचरे का उत्पादन कर रही है उसे पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड से अनुमति लेना ज़रुरी होता है। ऐसा न करने पर लाईसेंस कैंसिल किया जा सकता है।

घरों से निकलने वाला चिकित्सीय कचरा

गीला सूखा कचरा कलेक्ट करने वाली नगर निगम की गाड़ी के पीछे चिकित्सीय कचरे के लिए एक बॉक्स होता है

सीहोर शहर में गीला सूखा कचरा इकट्ठा करने वाले राजेश कुशवाह बताते हैं कि कुछ क्लीनिक्स के अलावा उन्हें कई बार घरों से भी इंजेक्शन, सिरिंज, बॉटल और दवाईयों का कचरा प्राप्त होता है। लोग इसे आम कचरे में ही मिला कर देते हैं। राजेश कहते हैं “हमारी गाड़ी में पीछे की ओर एक बॉक्स होता है जिसमें सैनटरी पैड्स और मेडिकल वेस्ट रखा जा सकता है। लेकिन यह ज्यादातर खाली ही रहता है। समस्या यह है कि लोग गीला सूखा कचरा ही अलग नहीं करते तो मेडिकल वेस्ट अलग क्या करेंगे।” 

जनरेशन सोर्स पर कचरे का सेग्रीगेशन न होना भारत में एक बहुत बड़ी समस्या है। अगर लोग चिकित्सीय कचरे को सेग्रीगेट करके वेस्ट कलेक्शन व्हीकल को दें तो लैंडफिल साईट पर मौजूद मटेरियल रिकवरी फैसिलिटी में इस कचरे को रखा जा सकता है। जहां से सीबीडबल्यूटीएफ इसे प्राप्त कर उचित तरीके से निपटान कर सकती है। लेकिन धरातल पर ऐसा नहीं हो रहा है। 

झागरिया गांव में स्वास्थ्य केंद्र के पीछे मिट्टी में पड़े मिले दवाईयों की शीशियां

क्या हैं अन्य समस्याएं

हमने अपनी इस रिपोर्ट के दौरान यह पाया कि बायोमेडिकल वेस्ट के सेग्रीगेशन, कलेक्शन से लेकर उसके निपटान तक एक तंत्र स्थापित तो हुआ है लेकिन अभी भी उसमें कई खामियां मौजूद हैं। यह तंत्र ग्रामीण इलाकों में अभी भी बेहद कमज़ोर नज़र आता है। इसकी मुख्य वजह दूरदराज के इलाकों में सिस्टम का न होना और जहां सिस्टम मौजूद है वहां मॉनिटरिंग का अभाव और नियमों का सख्ती से पालन न होना है।

इसका दूसरा पक्ष 16 जून 2023 को सीबीडबल्यूटीएफ ऑपरेटर और बायोमेडिकल वेस्ट प्रबंधन के लिए गठित स्टेट एडवाईज़री कमीटी के बीच हुई मीटिंग में भी सामने आया है। इसमें ऑपरेटर्स  ने कहा है कि क्योंकि इस काम में ट्रांस्पोर्टेशन से लेकर इंसीनरेशन तक सभी काम डीज़ल पर आधारित हैं, इसीलिए लगातार बढ़ती डीज़ल की कीमतें उनके लाभ को कम कर रही हैं। इसके साथ ही सरकारी संस्थानों की ओर से समय पर पेमेंट न होने की वजह से भी उन्हें कई वित्तीय समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। सीबडब्लयूटीएफ ऑपरेटर चाहते हैं कि सरकार प्रति बेड मिलने वाली दरों में बदलाव करे। 

मध्यप्रदेश प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2032 तक राज्य में बायोमेडिकल वेस्ट उत्पादन मौजूदा 15.64 मीट्रिक टन/प्रति दिन से बढ़कर 31 मीट्रिक टन पर पहुंच जाएगा। राज्य में सीबीडब्ल्यूटीएफ (19 मौजूदा + 04 प्रस्तावित) की कुल स्थापित उपचार क्षमता 4000 किलोग्राम/घंटा यानी 96 मीट्रिक टन/दिन होगी। जो वर्ष 2032 तक अनुमानित बीएमडब्ल्यू उत्पादन का लगभग तीन गुना है। लेकिन सावल अभी भी वही है कि जब क्षमता पर्याप्त है तो फिर दायरा अभी भी सीमित क्यों है?

कार्यान्वयन की बाधाओं के अलावा, बायोमेडिकल अपशिष्ट प्रबंधन को एक सामाजिक जिम्मेदारी के रूप में अपनाने की आवश्यकता है। कई विशेषज्ञ मौजूदा प्रणाली को मुनाफे और राजस्व से अधिक प्रेरित मानते हैं। यहां तक कि खतरनाक और जहरीले कचरे को भी मामूली मुनाफे के लिए बाजार में बेचे जाने वाली वस्तु माना जाता है। कोविड-19 महामारी के बाद जैव-चिकित्सा कचरे के इर्द-गिर्द दिशानिर्देशों के प्रारूपण और बातचीत में महत्वपूर्ण बदलाव आया है। हालांकि, सीहोर जिले के उपनगरीय और ग्रामीण क्षेत्रों में कचरे के कुशलतापूर्वक निपटान के लिए संघर्ष जारी है। 

पल्लव जैन मध्य प्रदेश के सीहोर स्थित पत्रकार हैं। वे पर्यावरण, स्वास्थ्य और विकास संबंधी मुद्दों पर रिपोर्टिंग करते हैं।

यह लेख HSTP स्वास्थ्य पत्रकारिता फेलोशिप 2023के एक भाग के रूप में फोरम फॉर हेल्थ सिस्टम्स डिज़ाइन एंड ट्रांसफ़ॉर्मेशन द्वारा समर्थित है

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