“मेडिकल का कचरा ख़तरनाक होता है, लेकिन नहीं जानते इससे कौनसी बीमारी होती है”
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक स्वास्थ्य केंद्रों से निकले कुल कचरे का 85 फीसदी नॉन हज़ार्डस वेस्ट होता है। केवल 15% बायोमेडिकल वेस्ट में ही संभावित संक्रामक अपशिष्ट शामिल होते हैं जैसे एचआईवी, हेपेटाइटिस-बी और सी वायरस, एंटीबायोटिक्स, साइटोटॉक्सिक दवाईयां, हैलोजेनेटेड या गैर-हैलोजेनेटेड सॉल्वैंट्स, हैवी मेटल्स, और ऑक्साइड, आदि। लेकिन जब यह 15 फीसदी हज़ार्डस वेस्ट सामान्य कचरे से मिल जाता है तो उससे संपूर्ण कचरा खतरनाक हो जाता है और इसके संपर्क में आने वाले लोगों और पर्यावरण को क्षति पहुंचती है।
बायोमेडिकल वेस्ट के प्रबंधन के लिए देश में सख्त नियम हैं, ये नियम इस उद्देश्य से बनाए गए हैं कि यह कचरा आम लोगों की सेहत और पर्यावरण को खराब न करे। लेकिन बायोमेडिकल वेस्ट के उत्पादन और प्रबंधन के लिए ज़िम्मेदार लोगों की लापरवाही की वजह से यह कचरा ट्रीटमेंट प्लांट न पहुंचकर लैंडफिल साईट या रोड के किनारे जहां तहां बिखरा हुआ दिखाई देता है।
लैंडफिल में जलता बायोमेडिकल वेस्ट
नर्मदापुरम में लैंडफिल साईट पर दम घोंटू धुएं के बीच प्लास्टिक बीनते बच्चे
मध्यप्रदेश के नर्मदापुरम के ग्वालटोली में पूरे शहर का कचरा इकट्ठा किया जाता है। जब हम यहां पहुंचे तो कचरे के पहाड़ में जगह-जगह से धुंआ निकल रहा था और हर तरफ बदबू की वजह से दम घुट रहा था। लेकिन इसी पहाड़ पर कुछ बच्चे प्लास्टिक इकट्ठा कर रहे थे। यहां रहने वाले 30 वर्षीय फरीद कादरी हमें बताते हैं “हर दिन 33 वार्डों का 40 टन कचरा यहां इकट्ठा होता है। कचरे में आए दिन लगने वाली आग की वजह से ग्वालटोली में रहने वाले लोगों का दम घुंटता है। लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होती।”
फरीद हमें बताते हैं कि “यहां पर घरों से निकलने वाले कचरे के अलावा मरे हुए जानवर और अस्पतालों का कचरा भी फेंका जा रहा है।”
नर्मदापुरम स्थित ग्वालटोली लैंडफिल साईट में हरी पन्नियों के आसपास फैले इंजेक्शन सिरिंज और दवाईयां
कचरे के ढेर को ध्यान से देखने पर हमें इंजेक्शन, वायल और दवाईयां दिखाई देती हैं। हालांकि, होशंगाबाद डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर की रिपोर्ट के मुताबिक जिले के सभी स्वास्थ्य केंद्रों का कचरा सीहोर स्थिति कॉमन बायोमेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट फैसिलिटी को भेजा जा रहा है।
ऐसे ही हालात हमें मध्यप्रदेश के सीहोर जिले के कुछ गांवों में भी दिखाई दिए थे, जहां बायोमेडिकल वेस्ट खुले में जल रहा है। जिसकी बात हमने पिछले आर्टिकल में विस्तार से की है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक बायोमेडिकल वेस्ट को खुले में जलाने से, कुछ परिस्थितियों में, डाइऑक्सिन, फ्यूरान और पार्टिकुलेट मैटर का उत्सर्जन हो सकता है।
ग्राम झरखेड़ा में जलाकर नष्ट किया गया आरोग्य केंद्र का कचरा
हेल्थ केयर विदाउट हार्म की रिपोर्ट के मुताबिक ‘यदि हम आज डाइऑक्सिन को पर्यावरण में छोड़ने का निर्णय लेते हैं, तो वे न केवल हमारे जीवनकाल के दौरान, बल्कि हमारे बच्चों और उनके बच्चों और उनके बच्चों के बच्चों के जीवनकाल में भी वहां रहेंगे।’
दरअसल डायऑक्सिन परसिसटेंट ऑर्गेनिक पॉल्यूटेंट हैं, जो पर्यावरण और हमारी फूड चेन में जमा होते जाते हैं। ये अत्यधिक टॉक्सिक होते हैं जिसकी वजह से कैंसर, जन्म दोष, प्रजनन प्रणाली में परिवर्तन, शिशु विकास में प्रभाव, प्रतिरक्षा प्रणाली का दमन, महिला और पुरुष की प्रजनन क्षमता में कमी जैसी स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकते हैं।
लेकिन सीहोर जिले के अहमदपुर जैसे गांव में मौजूद प्राइमरी हेल्थ सेंटर जहां बायोमेडिकल वेस्ट कलेक्ट करने वाली गाड़ी तो छोड़ दीजिए सामान्य कचरा भी नहीं उठाया जा रहा वहां कचरे को जलाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता। हालात यह हैं कि इससे होने वाले स्वास्थ्य जोखिमों के बारे में आम-जन अंजान ही हैं।
अहमदपुर के प्राइमरी हेल्थ सेंटर में सफाईकर्मी आनंद कहते हैं कि “जो ज्यादा खतरनाक कचरा है उसे हम गड्ढे में गाड़ देते हैं। और बाकी का कचरा जलाकर ही नष्ट करते हैं।” आनंद बताते हैं कि वो इस दौरान मुंह पर कपड़ा बांध लेते हैं। उन्हें नहीं पता कि इसके संपर्क में आने से क्या क्या बीमारियां हो सकती हैं, लेकिन वो यह जानते हैं कि यह खतरनाक होता है।
अहमदपुर स्वास्थ्य केंद्र पर जलाकर नष्ट किया गया चिकित्सीय कचरा
बायोमेडिकल वेस्ट से जुड़े स्वास्थ्य संबंधी जोखिम
सामुदायिक चिकित्सा विभाग और स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ, PGIMER में पर्यावरण स्वास्थ्य के प्रोफेसर रवींद्र खैवाल बायोमेडिकल कचरे की वजह से होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में विस्तार से बताते हुए कहते कि “सबसे अधिक संभावना नीडल स्टिक इंजुरी और संक्रामक शार्पस से कट लगने की रहती है। इससे हेपेटाइटिस-बी, हेपेटाइटिस-सी, एचआईवी के साथ त्वचा संबंधी संक्रमण होने का खतरा रहता है।”
रवींद्र के मुताबिक बायोमेडिकल वेस्ट के प्रबंधन में जुटे स्वास्थ्य कर्मी, लैंडफिल कर्मचारी या वेस्ट-पिकर्स कई बार शारीरिक तरल या संक्रमित ब्लड से दूषित सिरिंज से चोटिल हो जाते हैं। इसमें रोगजनक होते हैं जो बॉडी में प्रवेश कर जाते हैं और संक्रमण का कारण बनते हैं। हेपेटाईटिस और एचआईवी के अलावा ऐसे 20 से अधिक ब्लड बॉर्न पैथोजन्स हैं जो शार्प इंजुरी से बॉडी में प्रवेश कर सकते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक एक व्यक्ति जो संक्रमित रोगी पर इस्तेमाल की गई सुई से चोटिल होता है, उसके एचबीवी से 30%, एचसीवी 1.8% और एचआईवी से 0.3% संक्रमित होने का जोखिम रहता है।
अस्पतालों से निकलने वाला तरल कचरा
2016 के बायोमेडिकल अपशिष्ट प्रबंधन नियम (बीएमडब्ल्यूएम) के अनुसार अस्पतालों से निकलने वाले तरल कचरे को स्रोत पर ही अलग किया जाना और शहर के सीवेज में छोड़ने से पहले उसका उपचार करना ज़रुरी होता है। अहमदपुर गांव में अभी तक सीवेज लाईन का काम पूरा नहीं हुआ है, ज़ाहिर है कि यहां मौजूद प्राइमरी हेल्थ सेंटर में भी सीवेज निकास की उचित व्यवस्था नही हैं। यहां के प्रबंंधक डॉ. केसी मोहनिया बताते हैं कि “हम नियम के मुताबिक तरल कचरे को उपचारित कर पाईप के माध्यम से गहरे टैंक में डालते हैं।”
रवींद्र खैवाल कहते हैं कि बायोमेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट के मामले में तरल कचरे पर सबसे अधिक ध्यान देने की ज़रुरत है। क्योंकि अस्पताल में ऑपरेशन थिएटर, लेबर वार्ड, प्रयोगशाला, कैंटीन, कपड़े धोने और शौचालय जैसी जगहों से निकलने वाले तरल बायोमेडिकल कचरे को अलग कर कीटाणुरहित करके ही शहर के सीवेज में डिस्चार्ज किया जाना होता है। क्योंकि यह काम अस्पतालों के ही जिम्मे होता है इसमें अधिक लापरवाही देखी जाती है।
खैवाल आगे कहते हैं कि “अस्पतालों से निकले तलर कचरे के सीवेज के ज़रिए स्थानीय जल निकाय जैसे झीलों, नदियों आदि में मिलने से आमजन में बीमारी फैलने का खतरा रहता है।”
अहमदपुर का प्राइमरी हेल्थ सेंटर खेतों के बेहद नज़दीक है, यहां जल निकासी की उचित व्यवस्था न होने की वजह से बारिश में पानी भर जाता है। ऐसे में हेल्थ सेंटर के पीछे जहां बायोमेडिकल कचरा इकट्ठा किया जाता है वो तैरकर खेतों में चला जाता है।
अहमदपुर स्वास्थ्य केंद्र के पीछे बाईं ओर बने पिट में ठोस कचरा और दाएं तरफ टैंक में तरल कचरा इकट्ठा किया जाता है। उसके बगल में आप खेत भी देख सकते हैं।
एक्सपायर्ड दवाईयों का निपटान और जोखिम
जब हम अहमदपुर के करीब स्थित मुंगावली उप स्वास्थ्य केंद्र पहुंचते हैं, तो यहां ताला लटका मिलता है। गांव के लोग बताते हैं कि स्वास्थ्य केंद्र कभी-कभी ही खुलता है। स्वास्थ्य केंद्र के पीछे हमें ढेर सारी एक्सपायर्ड दवाईंयों के पैकेट देखने को मिलते हैं, जिन्हें कुछ दिनों पहले ही आग लगा कर नष्ट किया गया था। ऐसी ही दवाईयां हमें नर्मदापुरम की लैंडफिल साईट पर भी देखने को मिलती हैं।
मुंगावली स्थित आरोग्य केंद्र के पीछे जलाकर नष्ट की गई दवाईयां
हेल्थ केयर विदाउट हार्म के इंडिया प्रोजेक्ट हेड चंदन खन्ना हमें बताते हैं कि “फार्मासुटिकल वेस्ट जैसे एक्सपायर्ड दवाईयों और इक्विपमेंट्स को इस तरह खुले में फेंक देने से हमारी सेहत और पर्यावरण दोनों को नुकसान पहुंचता है। वॉटर बॉडीज़ में इस वेस्ट के जाने से जलीय जीवों को नुकसान होता है। एंटीबायोटिक दवाओं के डिस्चार्ज से जानवरों में म्यूटेशन और रोगाणुरोधी प्रतिरोधी बैक्टीरिया का विकास भी हो सकता है।”
सीहोर शहर में गीला सूखा कचरा उठाने वाले सफाईकर्मी राजेश कुशवाह के अनुसार घरों से मिलने वाले कचरे में भी एक्सपायर्ड दवाईयां होती हैं। लोग एक्सपायर हो चुकी दवाईयों को डस्टबिन में डालते हैं और उसे आम कचरे के साथ उन्हें देते हैं। राजेश कहते हैं “इसे लैंडफिल साइट पर ले जाकर अलग करना हमारे लिए मुमकिन नहीं होता।”
डॉक्टर खैवाल के मुताबिक लैंडफिल साईट में अगर फार्मासुटिकल वेस्ट या बायोमेडिकल वेस्ट पहुंचता है और आम कचरे से मिक्स होता है तो इससे निकलने वाले हानिकारक पदार्थ का पर्यावरण में लीच होने का खतरा रहता है। अगर लैंडफिल साइट पर लीचेट के ट्रीटमेंट की उचित व्यवस्था नहीं है तो यह टॉक्सिक वेस्ट हमारी मिट्टी और पानी को प्रदूषित कर सकते हैं। आपको बता दें कि सेंट्रल पॉल्यूश कंट्रोल बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2021 तक भारत में कुल जनित सॉलिड वेस्ट का केवल 50 फीसदी वेस्ट ही ट्रीट होता है।
स्वास्थ्य और सफाई कर्मियों की सुरक्षा का सवाल
अहमदपुर स्वास्थ्य केंद्र के पीछे बने पिट में चिकित्सीय कचरा
रवींद्र आगे बताते हैं कि उनके द्वारा भारत के स्वास्थ्य केंद्रों में बायोमेडिकल वेस्ट के प्रबंधन पर की गई रीसर्च में यह सामने आया है कि “प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों में माध्यमिक स्वास्थ्य केंद्रों की तुलना में बायोमेडिकल वेस्ट के प्रबंधन की स्थिति अधिक खराब है। इसकी मुख्य वजह संसाधन और ट्रेनिंग का अभाव है।”
सीहोर जिला अस्पताल में प्रबंधक संजुलता भार्गव जिले में मौजूद स्वास्थ्य केंद्रों में पिछले 7 सालों से स्वास्थ्य कर्मियों को बायोमेडिकल वेस्ट हैंडल करने की ट्रेनिंग प्रदान कर रही हैं। वो ग्रामीण इलाकों में भी ट्रेनिंग देने जाती हैं। संजुलता बाताती हैं कि “हम सभी स्वास्थ्य कर्मियों को नियमानुसार रंग के आधार पर कचरे को अलग-अलग डस्टबिन में ऱखने की ट्रेनिंग तो देते ही हैं, हर नए कर्मचारी का बचाव के लिए टीकाकरण किया जाता है। स्वास्थ्य कर्मियों को बायोमेडिकल के कुशल प्रबंधन पर पुरस्कृत भी किया जाता है ताकि वो यह काम पूरी जिम्मेदारी के साथ करते रहें।”
संजूलता के मुताबिक पिछले कुछ सालों में अस्पताल के स्तर पर मेडिकल वेस्ट के सेग्रीगेशन में सुधार आया है। उनके यहां मौजूद इंफेक्शन कंट्रोल नर्स हर वॉर्ड में राउंड करके इस काम पर नज़र रखती हैं। स्वास्थ्य विभाग इस काम को लेकर काफी सतर्क रहता है। हालांकि गांवों में स्थिति को लेकर वो इतनी आश्वस्त नज़र नहीं आतीं।
संजूलता कहती हैं कि “गांवों में नियमित तौर पर मॉनिटरिंग नहीं हो पाती, हम वहां के स्टाफ को ट्रेनिंग तो दे आते हैं लेकिन इसका पालन हो रहा है या नहीं यह सुनिश्चित नहीं हो पाता। हां लेकिन गांवों में भी अब पहले की तुलना में जागरुकता बढ़ी है।”
मुंगावली आरोग्य केंद्र के बाहर क्रिकेट खेलते बच्चे
स्वास्थ्यकर्मियों के लिए क्या हैं नियम
बायोमेडिकल वेस्ट के संपर्क में आने वाले स्वास्थ्य और सफाई कर्मियों के लिए सख्त नियम बनाए गए हैं। हर नए हेल्थ स्टाफ का टीकाकरण किया जाता है और ट्रेनिंग में बताया जाता है कि उसे बायोमोडिकल कचरे से जुड़े एक्सीडेंट या घटनाओं को तरुंत रिपोर्ट करना है। इसमें कचरे का अनुचित तरीके से किया गया पृथक्करण, नीडल या शार्प इंजुरी, BMW बैग का फट जाना, कचरे का फैलना या अंजाने में संपर्क में आना शामिल है। इसका रिकॉर्ड बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट कमिटी को तैयार कर पॉल्यूशन कंट्रोल कमिटी को वर्षिक रिपोर्ट के रुप में भेजना होता है।
संजुलता कहती हैं कि "नीडल स्टिक या शार्प इंजुरी होने पर स्वास्थ्य कर्मी हमें रिपोर्ट करते हैं, हम उन्हें ज़रुरी चिकित्सीय मदद देते हैं और उन्हें ऑबज़र्वेशन में ऱखते हैं।"
वो आगे कहती हैं कि बायोमेडिकल वेस्ट का प्रबंधन और निगरानी तभी अच्छे से हो सकती है जब हमारे पास पर्याप्त स्टाफ और फंड्स हों। कई बार शासन की ओर से फंड मिलने में देरी होती है, जिसकी वजह से वेस्ट सेग्रीगेशन के लिए बैग्स खरीदने के लिए भी उन्हें परेशानी होती है। क्योंकि यह जिला हेडक्वार्टर है यहां इस काम में 13-14 लोगों का स्टाफ लगा है, इसीलिए बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट और निगरानी काफी बेहतर ढंग से कर पा रही है। ग्रामीण इलाकों में हर काम 2-3 लोगों के जिम्मे होता है।
डॉ खैवाल के मुताबिक “कोविड-19 महामारी के बाद चिकित्सा से जुड़े कर्मचारियों में बायमेडिकल वेस्ट प्रबंधन में गंभीरता और सतर्कता बढ़ी है। लेकिन आम लोगों में आज भी इसके गंभीर परिणामों को लेकर उतनी जागरुकता नहीं है।”
जागरुक हों भी तो कहां करें शिकायत?
आश्चर्य की बात यह है कि अगर कोई नागरिक बायोमेडिकल वेस्ट के प्रबंधन में लापरवाही देखता है तो जिला या स्थानीय स्तर पर शिकायतों की सुनवाई की कोई व्यवस्था नहीं है। मध्यप्रदेश कंट्रोल बोर्ड के रीजनल ऑफिसर ब्रजेश शर्मा बताते हैं कि मध्यप्रदेश में स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के 15 संभागीय कार्यालय हैं जहां रीजनल ऑफिसर के पास शिकायत दर्ज करवाई जा सकती है। वो आगे कहते हैं कि “बायोमेडिकल रुल्स किसी भी अस्पताल को बाध्य नहीं करते हैं कि वो बायोमेडिकल वेस्ट प्रबंधन से जुड़ी जानकारी नागरिकों को मुहैया करवाएं।”
नर्मदापुरम ग्वालटोली निवासी फरीद कादरी कहते हैं कि “हमने कई बार कचरा खंती से हो रही परेशानी और यहां फेंके जा रहे अस्पताल के कचरे के बारे में कलेक्टोरेट और नगरपालिका में ज्ञापन दिया है। लेकिन इस मामले पर कभी कोई संज्ञान नहीं लिया गया। उल्टा हमें डराया धमकाया जाता है कि हम मीडिया में बयान न दें।”
किसी भी सिस्टम के उचित तरीके से काम करने के लिए उसमें जनता की भागीदारी सुनिश्चित करना ज़रुरी होता है। इंदौर शहर में नागरिकों की शिकायतों पर त्वरित कार्रवाई के लिए 311 एप संचालित किया जाता है जिसमें कोई भी व्यक्ति नगर निगम से जुड़े कामों की शिकायत कर सकता है। इंदौर नगर निगम में कंट्रोल रुम अधिकारी अरविंद कल्याने बताते हैं कि “इस ऐप पर अगर कोई व्यक्ति बायोमेडिकल वेस्ट को लेकर शिकायत करता है तो उसे डिस्क्रिप्शन में यह लिखना होता है कि यह किस प्रकार का कचरा है, इसके बाद नगर निगम संबंधित विभाग को इसकी सूचना देती है और कचरे का सही निपटान सुनिश्चित करती है। हमारे पास गड़बड़ी करने वाले व्यक्तियों के खिलाफ चालान करने का अधिकार होता है।”
हालांकि इंदौर 311 एप का प्रबंधन करने वाले दीपक साहू बताते हैं कि कोविड-19 के समय 311 ऐप पर बायोमेडिकल वेस्ट का अलग से टैब होता था, क्योंकि तब इसको लेकर शिकायतें अधिक थी। लेकिन अब इसे डिसेबल कर दिया गया है।
निष्कर्ष
ज़रुरत है कि सरकार बायोमेडिकल वेस्ट के मैनेजमेंट में अस्पताल और सीबीडबल्यूटीएफ की ओर से हो रही लापरवाहियों को ठीक करे और आम लोगों को इसके संपर्क में आने से होने वाली स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों के प्रति जागरुक करे। इसके साथ ही ग्रामीण इलाकों में इंफ्रास्ट्रक्चर को दुरुस्त कर डीप बरीयल मैथठ को खत्म कर हर स्वास्थ्य केंद्र को सीबीडबल्यूटीएफ से जोड़े ताकि गांवों में रहने वाले लोग भी स्वस्थ्य जीवन जी सकें। एक्सपायर दवाईयों को लैंडफिल साइट जाने से रोकने के लिए एक अलग सिस्टम तैयार करने की ज़रुरत है।
यह देखा गया है कि चाहे गांव हो या शहर आम लोगों में बायोमेडिकल वेस्ट से होने वाले स्वास्थ्य संबंधी खतरों के बारे में ज्ञान सीमित और अपर्याप्त है अस्पतालों में प्रशिक्षित मानव संसाधनों की कमी सहित वित्तीय समस्याएं भी सामने आती हैं जो बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट के सख्त सिस्टम को लचीला बनाती हैं। ऐसे में बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट के प्रति लोगों को संचार माध्यमों के ज़रिए जागरुक करना और इसको लेकर स्थानीय स्तर पर शिकायत दर्ज करने का सिस्टम बनाना बेहद ज़रुरी है।
पल्लव जैन मध्य प्रदेश के सीहोर स्थित पत्रकार हैं। वे पर्यावरण, स्वास्थ्य और विकास संबंधी मुद्दों पर रिपोर्टिंग करते हैं
यह लेख HSTP स्वास्थ्य पत्रकारिता फेलोशिप 2023के एक भाग के रूप में फोरम फॉर हेल्थ सिस्टम्स डिज़ाइन एंड ट्रांसफ़ॉर्मेशन द्वारा समर्थित है
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