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एडवा ने निर्भया को याद करते हुए निकाला मशाल जुलूस 

लखनऊ के विभिन्न इलाकों से आई महिलाओं ने बहादुर लड़की निर्भया को याद करते हुए रात पर भी अपना दावा पेश करने के लिए  28 दिसंबर को अंधेरा होते ही सड़कों पर  मशाल जलाते हुए आज़ादी के गीत गाते हुए जुलूस निकाला।
Aidwa

लखनऊ: अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति (एडवा) ने बुधवार की रात राजधानी लखनऊ की हैवलॉक रोड पर महिलाओं की सुरक्षा की मांग को लेकर पर मशाल जुलूस निकाला।

इस जुलूस में लखनऊ के विभिन्न इलाकों से आई महिलाओं ने बहादुर लड़की निर्भया को याद करते हुए रात पर भी अपना दावा पेश करने के लिए  28 दिसंबर को अंधेरा होते ही सड़कों पर  मशाल जलाते हुए आजादी के गीत गाते हुए जुलूस निकाला। जुलूस का नारा था-

"दिन है मेरा, रात भी मेरी, 

प्रकृति की हर रंगत मेरी" 

जुलूस का नेतृत्व करते हुए एडवा नेता मधु गर्ग ने कहा कि अक्सर महिलाओं पर हो रही हिंसा के लिए महिलाओं को ही दोषी ठहराया जाता है। महिलाओं या लड़कियों को हर क्षेत्र में आगे बढ़ने का अधिकार है और काम के सिलसिले में रात में भी घर से बाहर रहना पड़ सकता है तो सड़कों, कार्यस्थलों, पब्लिक कन्वेंस में उनकी सुरक्षा सुनिश्चित होनी चाहिए।

मधु गर्ग ने आगे कहा कि प्रकृति ने इंसान को सुबह , दोपहर शाम और रात का तोहफा दिया है। जिस पर हर इंसान का बराबर का हक़ है तो क्यों हम महिलाओं और लड़कियों को इस तोहफे से वंचित किया जा रहा है? क्यों नहीं हमारी सड़कें रात में भी एक महिला और लड़की को डर से आज़ाद कर सकतीं हैं?

मशाल जुलूस में एडवा की प्रदेश अध्यक्ष सुमन सिंह ने कहा कि हमारा भी यही सवाल है, क्यों नहीं कोई महिला रात में भी घर से बाहर निकल सकती? इसलिए कि रात के अंधेरे में शैतान सड़कों पर आ जाते हैं तो उन शैतानों को कैद करने की जरूरत है या औरतों को ही कैद कर देना ठीक है?

एडवा की वरिष्ठ नेता वंदना राय ने कहा कि रात की सुरक्षा का सवाल तब बहुत मुखरता से उठा जब, 16 दिसंबर 2012 की  काली रात  दिल्ली की एक लड़की को चलती बस में इंसान के वेश में छह जालिमों ने अपनी हवस का शिकार ही नहीं  बनाया बल्कि उसके शरीर को बुरी तरह रौंद दिया था। 

इस वीभत्स सामूहिक बलात्कार के मामले ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया था। उस बहादुर लड़की को "निर्भया" का नाम दिया गया । 

महिलाओं के अधिकारों के लिए सक्रिय रहने वाली स्मिता पांडे, सुशीला, माया, रूबी ज़ैदी, चंद्रा वर्मा ने संयुक्त रूप से कहा कि 16 दिनों तक जिंदगी और मौत से संघर्ष करती हुई निर्भया ने आखिर में  दम तोड़ दिया था। लेकिन अपराधियों के खिलाफ पूरे देश का आक्रोश इस नृशंस कांड पर फूट पड़ा था। दिसंबर की सर्द रातों में भी इंसाफ मांगने के लिए लोग सड़कों पर उमड़ पड़े थे। जबकि उस समय कुछ ऐसे लोग भी थे जो निर्भया को ही ग़लत ठहरा रहे थे कि वह रात में क्यों घर से बाहर थी? 

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