एनआईए की आनंद तेलतुंबड़े की ज़मानत के ख़िलाफ़ अर्ज़ी ख़ारिज
उच्चतम न्यायालय ने एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में सामाजिक कार्यकर्ता आनंद तेलतुंबडे को मिली जमानत के खिलाफ राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) की याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी।
प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि वह तेलतुंबडे को जमानत देने से संबंधित बंबई उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप नहीं करेगी।
अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय की टिप्पणियों को ट्रायल में निर्णायक या अंतिम निष्कर्ष नहीं माना जा सकता है।
एनआईए ने आरोप लगाया था कि तेलतुंबडे के संबंध एक प्रतिबंधित संगठन के साथ थे जिसमें उन्होंने एक सक्रिय भूमिका निभाई और उसके लिए उन्होंने फंड इकट्ठे किए थे।
इसपर, CJI चंद्रचूड़ ने एजेंसी से तेलतुंबडे की भूमिका पर सवाल किया। CJI ने कहा, "आईआईटी मद्रास के कार्यक्रम में आपने आरोप लगाया कि वह दलित लामबंदी को लामबंद कर रहे हैं। क्या दलित लामबंदी या दलितों के लिए कार्यक्रम आयोजन करना प्रतिबंधित गतिविधि के लिए एक प्रारंभिक कार्य है?
उच्च न्यायालय ने इस बात का संज्ञान लेते हुए 18 नवंबर को तेलतुंबडे की जमानत अर्जी मंजूर कर ली थी कि प्रथम दृष्टया तेलतुंबडे के खिलाफ एकमात्र मामला एक आतंकवादी समूह के साथ कथित संबंध और उसे दिए गए समर्थन से संबंधित है, जिसके लिए अधिकतम 10 साल जेल की सजा है।
उच्च न्यायालय ने, हालांकि, एक सप्ताह के लिए अपने जमानत आदेश पर रोक लगा दी थी, ताकि मामले की जांच कर रही एजेंसी एनआईए उच्चतम न्यायालय का रुख कर सके।
तेलतुंबडे (73) इस मामले में गिरफ्तार कुल 16 आरोपियों में तीसरे आरोपी हैं, जिन्हें जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया गया है।
कवि वरवर राव वर्तमान में स्वास्थ्य कारणों से जमानत पर बाहर हैं, जबकि वकील सुधा भारद्वाज नियमित जमानत पर बाहर हैं।
इससे पहले बीते शनिवार को इसी मामले में गौतम नवलखा कोर्ट के आदेश के बाद जेल से बाहर आ गए। उन्हें शनिवार शाम को नवी मुंबई की तलोजा जेल से रिहा किया गया था। अब वह एक महीने तक नजरबंद रहेंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने एक महीने के लिए नवलखा को तलोजा जेल से निकालकर नवी मुंबई में हाउस अरेस्ट के आदेश दिए गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने नवलखा पर शर्ते भी लगाईं थीं और कहा था कि हाउस अरेस्ट के दौरान किसी तरह का कोई संचार उपकरण यानी कोई लैपटॉप, मोबाइल, कंप्यूटर आदि कुछ नहीं होगा।
इस दौरान वो किसी भी अवैध गतिविधि में शामिल नहीं होंगे। ना ही मीडिया से बात करेंगे, साथ ही मामले से जुड़े लोगों और गवाहों से भी बात नहीं करेंगे।
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