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पैसा पूरी दुनिया के लोकतांत्रिक व्यवस्था को तबाह कर रहा है!

पैसा लोकतांत्रिक व्यवस्था को तबाह कर देता है, राजनेताओं की निष्ठा को ख़रीद लेता है, नागरिक समाज की संस्थाओं को भ्रष्ट करता है और मीडिया के आख्यानों को गढ़ने में मदद करता है।
ओसवाल्डो टेरेरोस (इक्वाडोर), म्यूरल पारा ला यूनिवर्सिदाद सुपीरियर डी लास आर्तेस (‘कला विश्वविद्यालय के लिए भित्ति-चित्र’), 2012.
ओसवाल्डो टेरेरोस (इक्वाडोर), म्यूरल पारा ला यूनिवर्सिदाद सुपीरियर डी लास आर्तेस (‘कला विश्वविद्यालय के लिए भित्ति-चित्र’), 2012.

2019 में, 61 करोड़ 30 लाख भारतीयों ने भारतीय संसद (लोकसभा) में अपने प्रतिनिधि नियुक्त करने के लिए मतदान किया। चुनाव प्रचार के दौरान, राजनीतिक दलों ने 60,000 करोड़ रुपये ख़र्च किए (लगभग 80 करोड़ अमरीकी डॉलर), जिसका 45% हिस्सा सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा ख़र्च किया गया। भाजपा ने 37% वोट हासिल किए, जिसके आधार पर उसे लोकसभा की 545 सीटों में से 303 मिलीं। एक साल बाद, अमेरिकी राष्ट्रपति और कांग्रेस के चुनावों 140 करोड़ डॉलर की भारी रक़म ख़र्च की गई, जिसमें से ज़्यादातर पैसा जीतने वाली डेमोक्रेटिक पार्टी ने ख़र्च किया। ये काफ़ी ज़्यादा पैसा है, लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर जिसकी पकड़ अब काफ़ी स्पष्ट है। क्या पैसे के इस हिमस्खलन से होने वाले लोकतांत्रिक भावना के क्षरण के बारे में बात किए बिना ‘लोकतंत्र’ के बारे में बात करना संभव है?

पैसा व्यवस्था को तबाह कर देता है, राजनेताओं की निष्ठा को ख़रीद लेता है, नागरिक समाज की संस्थाओं को भ्रष्ट करता है और मीडिया के आख्यानों को गढ़ने में मदद करता है। यह मायने रखता है कि हमारी दुनिया के प्रभावशाली वर्ग मुख्य संचार माध्यमों के मालिक हैं और ये माध्यम हमारे चारों ओर के लोगों की दुनिया को समझने का तरीक़ा निर्धारित करते हैं। हालाँकि संयुक्त राष्ट्र का 'मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा' इस बात की पुष्टि करता है कि 'सभी को राय और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है' (अनुच्छेद 19), लेकिन तथ्य यह है कि कुछ कॉरपोरेट संस्थाओं के हाथों में मीडिया की बागडोर 'किसी भी मीडिया के माध्यम से सूचना और विचार हासिल करने' की स्वतंत्रता को बाधित करती है। इसी वजह से, रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स लगातार मीडिया स्वामित्व का मॉनिटर कर रहा है जो कॉर्पोरेट शक्तियों के नियंत्रण में है, जो बदले में सरकार के मौजूदा व्यवस्था के भीतर राजनीतिक एजेंडा चलाता है।

पॉल गुआरागोसियन (लेबनान), ला लुते दे ला एक्जिस्तेंस (‘अस्तित्व का संघर्ष’), 1988. 

एजाज़ अहमद, ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान के वरिष्ठ फ़ेलो, का तर्क है कि धुर दक्षिणपंथी राजनीतिक परियोजनाओं के लिए लोकतांत्रिक संस्थानों के माध्यम से अपना एजेंडा चलाना इसलिए संभव हो पाता है, क्योंकि इन देशों में - संयुक्त राज्य अमेरिका से लेकर भारत तक - राजनीतिक संरचनाओं के लोकतांत्रिक मूल्यों का काफ़ी क्षरण हो गया है। जैसा कि अहमद बताते हैं, संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत जैसे देशों में धुर दक्षिणपंथ ने संवैधानिक, उदार लोकतांत्रिक रूप को चुनौती नहीं दी है, बल्कि ‘संस्कृति, धर्म और सभ्यता के सभी क्षेत्रों में’ समाज को बदलकर औपचारिक संस्थानों का गला घोंटा है।

लैटिन अमेरिका में, धुर दक्षिणपंथ ने अपने शत्रुओं की विश्वसनीयता को समाप्त करने के लिए हर हथियार का इस्तेमाल किया है, जिसमें वामपंथी नेताओं के ख़िलाफ़ दुर्भावनापूर्ण तरीक़े से प्रभावी भ्रष्टाचार निरोधक क़ानूनों का ग़लत तरीक़े से उपयोग शामिल है। यह एक रणनीति है जिसे 'लॉफ़ेयर' (क़ानूनी युद्ध) कहा जाता है, जहाँ क़ानून का उपयोग - अक्सर बिना सबूत के - लोकतांत्रिक रूप से चुने गए वामपंथी नेताओं को सत्ता से बेदख़ल करने या उन्हें अपना काम करने से रोकने के लिए किया जाता है। 2009 में होंडुरस के राष्ट्रपति जोस मैनुअल ज़ेलाया, 2012 में परागुवे के राष्ट्रपति फ़र्नांडो लुगो और 2016 में ब्राज़ील की राष्ट्रपति दिल्मा रूसेफ़ को हटाने के लिए लॉफ़ेयर का इस्तेमाल किया गया; ये सभी नेता न्यायिक तख़्तापलट के शिकार हुए। ब्राज़िल के पूर्व राष्ट्रपति लुइज़ इनासियो लूला दा सिल्वा को 2018 में बेबुनियाद अभियोग लगाकर राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने से रोक दिया गया, जबकि सभी चुनावी भविष्यवाणियों में उन्हें विजेता बताया जा रहा था। अर्जेंटीना की पूर्व राष्ट्रपति क्रिस्टीना फ़र्नांडीज़ डी किरचनर ने 2016 में शुरू होने वाले कई मामलों का सामना किया, जिसकी वजह से वो 2019 का चुनाव नहीं लड़ सकीं (वह अब उपराष्ट्रपति हैं, जो देश में उनकी लोकप्रियता का प्रमाण है)।

एमिलियानो दि कैवलन्ती (ब्राज़ील), सोनहोस कार्नावल (‘कार्निवाल का सपना’), 1955.

इक्वाडोर में, कुलीन वर्ग ने पूरे वामपंथ विशेष रूप से पूर्व राष्ट्रपति राफ़ेल कोर्रेआ (2007-2017) को अवैध साबित करने के लिए गुर्रा जुरिडिका (‘कानूनी युद्ध’) की तकनीकों का इस्तेमाल किया। कोर्रेआ पर रिश्वतख़ोरी का आरोप लगाया गया था - इस मामले की जड़ में 'मानसिक प्रभाव' की विचित्र धारणा थी। उन्हें आठ साल की सज़ा सुनाई गई, जिसकी वजह से उन्हें इक्वाडोर में सत्ता में बने रहने से रोक दिया दिया।

इक्वाडोर के प्रभुत्वशाली वर्ग और संयुक्त राज्य अमेरिका दोनों के लिए कोर्रेआ अभिशाप क्यों थे? कोर्रेआ ने जिस नागरिक क्रांति का नेतृत्व किया, उसने 2008 में एक प्रगतिशील संविधान पारित किया, जो ‘अच्छा जीवन जीने’ (स्पैनिश में buen vivir और कुएचुआआ में sumak kawsay) के सिद्धांत को महत्व देता है। सरकार ने सामाजिक और आर्थिक अधिकारों को मज़बूत करने के साथ-साथ कॉर्पोरेट भ्रष्टाचार (बहुराष्ट्रीय सहित) कार्रवाई की। तेल से मिलने वाले राजस्व को विदेशी बैंकों में नहीं जमा किया गया था, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, सड़क और अन्य बुनियादी ढाँचे में निवेश किया जाता था। इक्वाडोर की 1 करोड़ 70 लाख की आबादी में से लगभग 20 लाख लोगों को कोर्रेआ के शासनकल में ग़रीबी से बाहर निकाला गया था।

कोर्रेआ की सरकार बहुराष्ट्रीय कंपनियों - जैसे अमेरिका स्थित तेल कंपनी शेवरॉन - और इक्वाडोर के कुलीन वर्गों के लिए रुकावट पैदा कर रही थी। इक्वाडोर के ख़िलाफ़ मुआवज़े के लिए शेवरॉन का ख़तरनाक मामला, कोर्रेआ के पद संभालने के साथ ही उनके सामने लाया गया, फिर भी कोर्रेआ की सरकार द्वारा इसका जमकर विरोध किया गया। द डर्टी हैंड अभियान ने शेवरॉन के ख़िलाफ़ भारी अंतर्राष्ट्रीय दबाव बनाया, शेवरॉन ने क्विटो में अमेरिकी दूतावास और अमेरिकी सरकार के साथ मिलकर कोर्रेआ और बड़ी तेल कम्पनियों के ख़िलाफ़ उनके द्वारा चलाए जा रहे अभियान को कमज़ोर करने का काम किया।

वे न केवल कोर्रेआ को बाहर करना चाहते थे, बल्कि वे साथ-ही-साथ सभी वामपंथियों- जिन्हें संक्षेप में कोर्रिएस्तास कहा जाता था- को बाहर करना चाहते थे। लेनिन मोरेनो, जो कभी कोर्रिआ के क़रीबी थे, 2017 में राष्ट्रपति पद पर आसीन हुए थे, इक्वाडोर के वामपंथ को तबाह करने के मुख्य साधन बन गए हैं, और इक्वाडोर को वापस कुलीनों और संयुक्त राज्य अमेरिका के हाथों में सौंप दिया है। मोरेनो की सरकार ने शिक्षा और स्वास्थ्य की बजट में कटौती करके, श्रम और आवास के अधिकारों को वापस लेकर, इक्वाडोर की रिफ़ाइनरी को बंद करके और वित्तीय प्रणाली को नियंत्रण से मुक्त करके सार्वजनिक क्षेत्र को प्रभावित किया है। तेल की क़ीमतों में कटौती, जिसके कारण तेल सब्सिडी में कटौती हुई, उदारवादी उपायों की क़ीमत पर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से भारी ऋण, और महामारी को ठीक से नहीं संभाल पाने की वजह से मोरेनो की विश्वसनीयता में कमी आई है। इन नीतियों का एक परिणाम यह हुआ है कि इक्वाडोर महामारी को ठीक से संभाल नहीं पाया, मोरेनो सरकार पर यह आरोप भी लगाया जा रहा है कि COVID-19 से होने वाली 20,000 से अधिक की मौतों को कम करके बताया जा रहा है।

फ़िरोज़ महमूद (बांग्लादेश), औपोनिबेशिक/पोरोउपोनिबेशिक (‘औपनिवेशिक/उत्तर औपनिवेशिक’), 2017.

संयुक्त राज्य अमेरिका की इनायत हासिल करने के लिए, मोरेनो ने विकीलीक्स के संस्थापक जूलियन असांजे को इक्वाडोर के लंदन दूतावास से बाहर निकाल दिया, कंप्यूटर प्रोग्रामर और गोपनीयता कार्यकर्ता ओला बीनी को एक मनगढ़ंत मामले में गिरफ़्तार कर लिया, और कोर्रेएस्तास के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया। कोर्रेएस्तास का राजनीतिक संगठन टूट गया था, उसके नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया था, और चुनावों के लिए फिर से संगठित होने से मना कर दिया गया था। इसका एक उदाहरण है सोशल कॉम्प्रोमाइज़ फ़ोर्स या फ़ुएर्ज़ा कोम्प्रोमिसो सोसियल प्लेटफ़ॉर्म, जिसे 2019 में स्थानीय चुनावों के लिए कोर्रेएस्तास चलाते थे; इस मंच को तब 2020 में प्रतिबंधित कर दिया गया था। फ़रवरी 2018 में देश पर जनमत संग्रह थोपा गया, जिससे सरकार को राष्ट्रीय निर्वाचन परिषद (CNE), संवैधानिक न्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय, न्यायपालिका परिषद, अटॉर्नी जनरल, कॉम्पट्रोलर जनरल, और अन्य के लोकतांत्रिक ढाँचे को नष्ट करने की अनुमति मिल गई। लोकतंत्र को खोखला कर दिया गया।

7 फ़रवरी 2021 के राष्ट्रपति चुनाव से एक महीने पहले, यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि अगर निष्पक्ष चुनाव हुआ तो वामपंथियों के उम्मीदवार आंद्रेस अराउज़ गलारज़ा आगे रहेंगे। बहुत से चुनावी सर्वेक्षकों का मानना है कि अराउज़ पहले दौर में 40% से अधिक मतों से जीतेंगे, जो कि अगले दौर के लिए निर्धारित सीमा है। अराउज़ (उम्र 35) एक आकर्षक उम्मीदवार हैं, केंद्रीय बैंक में उनकी एक दशक की सेवा और कोर्रेआ सरकार के मुश्किल भरे आख़री दो साल को दौरान मंत्री के रूप में उनपर किसी तरह के भ्रष्टाचार और अक्षमता का एक भी आरोप नहीं है। जब कोर्रेआ ने पद छोड़ा, तो अराउज़ पीएचडी करने के लिए मेक्सिको के नेशनल ऑटोनॉमस यूनिवर्सिटी ऑफ़ मेक्सिको (UNAM) चले गए। उनको जीतने से रोकने के लिए कुलीनतंत्र ने सभी प्रकार के उपक्रम किए हैं।

गुलनारा कास्मलिएवा और मूरत ज़ुमालिएव (किर्गिस्तान), छाया, 1999.

14 जनवरी को, यूएस इंटरनेशनल डेवलपमेंट फ़ाइनेंस कॉरपोरेशन (डीएफ़सी) ने इक्वाडोर को 28 करोड़ डॉलर का ऋण इसलिए दिया ताकि इसका इस्तेमाल इक्वाडोर का ऋण चुकाने के लिए किया जाए और साथ ही यह सुनिश्चित किया जा सके कि इक्वाडोर चीन के साथ वाणिज्यिक संबंधों को तोड़ने का वादा करे। यह जानते हुए कि अराउज़ जीत सकते हैं, अमेरिका और इक्वाडोर के कुलीनतंत्र ने एंडियन देश को एक ऐसी व्यवस्था में जकड़ने का फ़ैसला किया जो किसी भी प्रगतिशील सरकार का दम घोंट सकता है। 2018 में गठित, डीएफ़सी ने 'अमेरिका में विकास' नामक एक परियोजना विकसित की, जिसका संपूर्ण नीतिगत ढाँचा चीनी व्यापार को अमेरिकी गोलार्ध से ख़त्म करना है। वॉशिंगटन के ‘क्लीन नेटवर्क’, अमेरिकी विदेश विभाग का एक प्रोजेक्ट, पर क्विटो ने पहले ही हस्ताक्षर कर रखा है, जिसमें देशों को ऐसे दूरसंचार नेटवर्क बनाने के लिए मजबूर किया जा सकता है, जिसमें चीनी दूरसंचार प्रदाता शामिल न हो। यह विशेष रूप से तेज़ गति वाले पाँचवीं पीढ़ी (5G) नेटवर्क पर लागू होता है। इक्वाडोर नवंबर 2020 में क्लीन नेटवर्क में शामिल हो गया, जिसकी वजह से डीएफ़सी ऋण का रास्ता खुला।

इक्वाडोर के बुनियादी ढाँचे (विशेष रूप से पनबिजली बाँधों के निर्माण के लिए) को मज़बूत करने के लिए कोर्रेआ ने चीनी बैंकों से 50 करोड़ डॉलर का लोन लिया था; इक्वाडोर का कुल बाहरी ऋण 520 करोड़ डॉलर है। मोरेनो और संयुक्त राज्य अमेरिका ने चीनी फ़ंडों को एक 'ऋण जाल' के रूप में चित्रित किया है, हालाँकि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि चीनी बैंक कुछ भी ऐसा कर रहे हैं। 2020 के अंतिम छह महीनों में, चीनी बैंक 2022 तक ऋण भुगतान पर रोक लगाने के लिए तैयार हैं (इसमें चीन के निर्यात-आयात बैंक को 47 करोड़ 40 लाख डॉलर और चाइना डेवलपमेंट बैंक को 41 करोड़ 70 लाख डॉलर का ऋण चुकाने में देरी शामिल है।)। इक्वाडोर के वित्त मंत्रालय का कहना है कि फ़िलहाल पुनर्भुगतान की यह योजना मार्च 2022 में शुरू होकर 2029 तक समाप्त होगी। मोरेनो ने इन दोनों ऋण भुगतान में देरी की घोषणा करने के लिए ट्विटर का सहारा लिया। इन दोनों बैंकों द्वारा और न ही किसी अन्य चीनी वित्तीय संस्था द्वारा कोई आक्रामक क़दम उठाए गए।

अनिवार्य रूप से, डीएफ़सी ऋण अराउज़ के राष्ट्रपति काल को अस्थिर करने की एक कोशिश है। लैटिन अमेरिका में चीन के ख़िलाफ़ अमेरिका द्वारा थोपा गया यह संघर्ष व्यापक हमले का हिस्सा है। 30 जनवरी को, ट्राइकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान ने इंस्तीत्यूतो सिमोन बोलीवर, एएलबीए सोशल मूविमेंतोस और नो कोल्ड वार प्लेटफ़ॉर्म के साथ मिलकर इस हाइब्रिड युद्ध के लैटिन अमेरिकी युद्ध क्षेत्र के बारे में चर्चा करने के लिए एक सेमिनार का आयोजन किया।

वक्ताओं में एलिसिया कास्त्रो (अर्जेंटीना), एडुआर्डो रेगेल्डो फ़्लोरिडो (क्यूबा), जोआ पेड्रो स्टेडिले (ब्राज़ील), रिकार्डो मेनडेन्डेज (वेनेज़ुएला), मोनिका ब्रुकमैन (पेरू/ब्राजील), राजदूत ली बोरॉन्ग (चीन), और फ़र्नांडो हैडड (ब्राज़ील) शामिल थे।

लोकतंत्र को खोखला करने के बावजूद, चुनाव राजनीतिक संघर्ष में एक मोर्चा हैं, और उस संघर्ष में, वामपंथ लोकतांत्रिक भावना को वापस हासिल करने के लिए लड़ता है। शायद कविता इस संघर्ष के स्वरूप को स्पष्ट करने का सबसे अच्छा तरीक़ा है। लेखक और साम्यवादी जॉर्ज एनरिक एदोम इक्वाडोर की मुक्तिवादी सोच की समृद्ध परंपरा से निकले हैं। यहाँ उनकी सशक्त कविता, फुगज़ रिटोर्नो (‘क्षणिक वापसी’) का एक हिस्सा प्रस्तुत है:

और हम भागे, दो भगोड़ों की तरह,

उन दुरूह किनारों तक जहाँ सितारे

हमसे अलग हो गए। मछुआरों ने हमें बताया

आस-पास के प्रांतों में लगातार जीत के बारे में।

और भोर की फुहार से हमारे पैर भीग गए।

जो जड़ों से भरे थे जो हमारी थीं और दुनिया की

कवि पूछता है, ‘ख़ुशी कब मिलेगी?’ कल। क्या हम सब कल की तलाश में नहीं हैं?

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