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असम चुनाव : क्या वेतन बढ़ोतरी और भू-पट्टे पर चाय बागानों के कामगारों की नाराज़गी बीजेपी के लिए मुसीबत बनेगी

भले ही निर्वतमान बीजेपी सरकार ने चुनावों में जाने से ठीक पहले चाय बागानों के कामगारों के वेतन में बढ़ोतरी की हो, जो वायदे से बहुत कम है, लेकिन कामगारों का दावा है कि अब भी यह बढ़ा हुआ पैसा उनके पास नहीं पहुंचा है। 
असम चुनाव

2016 में असम विधानसभा चुनाव के पहले भारतीय जनता पार्टी ने चाय बागानों में काम करने वाले कामगारों का दैनिक भत्ता 138 रुपये से बढ़ाकर 351.33 रुपये करने का वायदा किया था। लेकिन अब जब इस वायदे को 5 साल से ज़्यादा वक़्त बीत चुका है और विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होने वाला है, तब मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने कामगारों का भत्ता 167 रुपये से बढ़ाकर 217 रुपये किया है। मतलब 27 मार्च से शुरू होने वाले चुनावों के ठीक पहले सिर्फ़ 50 रुपये की बढ़ोतरी की गई, जबकि बीजेपी ने 134 रुपये की बढ़ोतरी का वायदा किया था। 

इस बेहद कम बढ़ोतरी के एक महीने के बाद 20 मार्च को प्रधानमंत्री मोदी ने आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस पार्टी उन लोगों का साथ दे रही है, जो "असम चाय की पहचान नष्ट करना चाहते हैं।" लेकिन वह अपनी सहूलियत के हिसाब से यह बताना भूल गए कि क्यों 5 साल शासन करने के बाद भी बीजेपी चाय बागान के कामगारों से किया गया अपना वायदा पूरा नहीं कर पाई। 

तिनसुकिया जिले के छाबुआ में एक महारैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, "देश में 50-55 साल शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी अब खुलकर उन लोगों का समर्थन कर रही है, जिन लोगों ने साजिश रचकर 'भारत की चाय के साथ पहचान' को खत्म करने की कोशिश की। क्या हम कांग्रेस को इसके लिए माफ़ कर सकते हैं? कांग्रेस को सजा मिलनी चाहिए या नहीं मिलनी चाहिए?"

मोदी ने आरोप लगाते हुए कहा, "आपने टूलकिट के बारे में तो सुना ही होगा। टूलकिट को बनाने वाले असम की चाय और हमारे साधुओं द्वारा प्रदत्त योग को नष्ट करना चाहते हैं। कांग्रेस पार्टी इन साजिशकर्ताओं का समर्थन कर रही है।"

मोदी यहां स्वीडन की सामाजिक-पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग द्वारा ट्वीट किए गए "टूलकिट" की बात कर रहे थे। इस टूलकिट में पिछले नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसानों के समर्थन करने के तरीकों के बारे में बताया गया था। एक शुरूआती ट्वीट में टूलकिट में भारत के "योग और चाय की पहचान" में बाधा डालने का जिक्र था। बाद में थनबर्ग ने इस ट्वीट को हटा लिया था। कथित तौर पर इस टूलकिट का इस्तेमाल उन किसानों ने किया, जिन्होंने 26 जनवरी को भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में खलल डाला।

दुनिया भर में प्रसिद्ध असम चाय की पहचान खराब करने के लिए एक वैश्विक षड्यंत्र की बात बेहद हास्यास्पद है, लेकिन देश के प्रधान द्वारा आधी सच्चाई वाले विचारों का प्रसार मजाकिया नहीं हो सकता। न्यूज़क्लिक ने चाय बागानों में काम करने वाले कुछ कामगारों से बात की, ताकि हम जान सकें कि वे पांच साल बाद भी बीजेपी सरकार को पसंद कर पा रहे हैं या नहीं। 

क्या वाकई में भत्ता बढ़ाया गया है? 

मंगलवार, 23 मार्च को गुवाहाटी हाईकोर्ट ने भारतीय चाय संगठन और 17 अन्य की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए अहम फ़ैसला दिया। फैसले में बीजेपी सरकार को भत्ता बढ़ाने वाले आदेश का पालन करने में असमर्थ रहने वाले चाय बागान मालिकों के खिलाफ़ कार्रवाई ना करने का आदेश दिया गया। 

उस वक़्त तक न्यूज़क्लिक कई चाय बागानों की यात्रा कर चुका था और कामगारों का साफ़ कहना था कि उन्हें तब तक बढ़ा हुआ भत्ता नहीं मिला था। उनमें से ज़्यादातर लोग तो हाईकोर्ट में लंबित मामले के बारे में जानते भी नहीं थे। 

11 मार्च को असम टी ट्राइब स्टूडेंट्स एसोसिएशन (ATTSA) ने कामगारों के दैनिक भत्तों में इज़ाफा करने के लिए राज्य व्यापी हड़ताल का आह्वाह्न किया। लेकिन दिलचस्प तरीके से उन्होंने 21 मार्च को हाईकोर्ट में केस के लंबित होने की बात कहकर हड़ताल वापस ले ली। अगले दिन हाईकोर्ट का फ़ैसला चाय बागान मालिकों के पक्ष में आया। न्यूज़क्लिक ने तब ATTSA अध्यक्ष धीरज गोवाला को कई बार फोन लगाया, लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया। 

दीपक कोले तिनसुकिया शहर के पास पानिटोला टी एस्टेट में नियमित कर्मचारी के तौर पर काम करते हैं। कोले ने कहा, "हमें अब भी हजीरा (दैनिक भत्ता) 167 रुपये मिलता है। कहा गया कि भत्ते को बढ़ा दिया जाएगा, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ है।"

कांग्रेस पार्टी ने भी दैनिक भत्ते को 365 रुपये प्रतिदिन बढ़ाए जाने का वायदा किया था। लेकिन गुटिबारी डिवीज़न में काम करने वाले देबनाथ माझी जैसे कामगार इससे इत्तेफ़ाक नहीं रखते। वह भत्ता बढ़ाने में बीजेपी सरकार की असफलता की तरफ ध्यान दिलाते हुए कहते हैं, "बीजेपी के वायदे के बारे में तो आप जानते ही हैं। बाकी कांग्रेस ने कहा है कि अगर वो सत्ता में आते हैं, तो भत्ता बढाएंगे, लेकिन उनका सत्ता में आना निश्चित नहीं है।"

डेप्यूटलाइन डिवीज़न के उमेश भूमिजी का कहना है कि उनकी इच्छा है कि बीजेपी ने जैसा वायदा किया है, दैनिक भत्ता 351.33 रुपये करने का, उसके बजाए इस भत्ते को 365 रुपये किया जाए। वह कहते हैं, "हम बीजेपी से बिल्कुल भी खुश नहीं हैं, उन्होंने कहा था कि वे दैनिक भत्ते को 351 रुपये कर देंगे, बावजूद इसके सिर्फ़ 50 रुपये की बढ़ोतरी की गई, वह भत्ता भी पता नहीं कब मिलेगा।"

न्यूज़क्लिक को कामगारों की 14 फरवरी से 27 फरवरी के बीच 14 दिन की भुगतान पर्चियां हासिल हुईं, जो बताती हैं कि इस दौरान हर कामगारों को 2,016 रुपये की आय हुई, लेकिन उन्हें कुल 1540 रुपये ही मिले। इस तरह दैनिक भत्ता 102.67 रुपये हुआ। यह नियमति कटौतियां, प्रोविडेंट फंड (262.32 रुपये), कर्ज कटौती (92 रुपये), स्वास्थ्य उधार कटौती (100 रुपये), राशन कीमत कटौती (10 किलो गेहूं के आटे और 10 किलो चावल के लिए 10.80 रुपये) और अन्य कटौतियों (10 रुपये) के तहत की गईं। कुल कटौतियों का मूल्य 475.12 रुपये है, जो कुल देय से अब भी 0.88 या करीब एक रुपये कम है।

राशन के बारे में क्या?

14-15 दिन की भुगतान पर्चियां बताती हैं कि कामगारों को केवल 20 किलो आटा और चावल ही मिलता है। जिसका मतलब हर दिन के लिए 1.7 किलोग्राम खाद्यान्न की आपूर्ति। इतनी कम मात्रा में उनका परिवार कैसे गुजर-बसर करता है, तो कोले कहते हैं, "पत्नी और दो बच्चों के परिवारों के साथ एक वक़्त का भोजन बनाने में एक किलो चावल लगता है। हम दिन में तीन बार भोजन करते हैं। जितना राशन मिलता है, वह सिर्फ़ 2-3 दिन में ही ख़त्म हो जाता है। बाकी दिनों के लिए 25 रुपये प्रति किलो के हिसाब से चावल खरीदना पड़ता है। हमें जितना वेतन मिलता है, उससे ज़्यादा उधार हमारा राशन की दुकान पर होता है।"

माझी समेत कई दूसरे लोगों ने बीजेपी पर राशन व्यवस्था को ख़त्म करने की चाहत रखने के आरोप लगाए। माझी कहते हैं, "बीजेपी ने हमें जो पत्रक उपलब्ध कराए हैं, वह बताते हैं कि हमें राशन के बदले 101 रुपये दिए जाएंगे। ऐसा लगता है जैसे यह लोग राशन व्यवस्था को ख़त्म करने वाले हैं।"

यह आरोप गंभीर हैं और इन पर चर्चा किए जाने की जरूरत है, क्योंकि बीजेपी ने अपने पत्रक में इस चीज को अस्पष्ट रखा है। पत्रक में मौजूद बिंदुओं का हिंदी अनुवाद कुछ इस तरह है, "टी-एस्टेट कामगारों का दैनिक भत्ता 167 रुपये से बढ़ाकर 217 रुपये किया जाएगा। इसके अलावा राशन के लिए 101 रुपये का अतिरिक्त भत्ता दिया जाएगा।"

"राशन के लिए भत्ता" या असमी भाषा में "एक्शो एक तोकालोई राशनॉर बाबोद ब्रिद्धी" वाक्यांश किसी तरह का मतलब निकालने के लिए अस्पष्ट है। कई कामगार इसका मतलब 101 रुपये दैनिक भत्ते के ऐवज़ में राशन व्यवस्था को ख़त्म किया जाना निकाल रहे हैं। इस तरह के अस्पष्ट हालातों में पानितोला कामगारों के एक समूह का कहना है कि उन्हें मौजूदा राशन के साथ-साथ, जैसा पत्रक में बीजेपी ने वायदा किया है, 101 रुपये का दैनिक भत्ता भी चाहिए। इस पत्रक पर बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष रंजीत दास ने हस्ताक्षर किए हैं।

पट्टा का वायदा और वास्तविकता

बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में साफ़ कहा कि उनकी सरकार ने 3.33 लाख लोगों को पट्टा दिया गया। पट्टा सरकार द्वारा लोगों को उपयोग करने के लिए दी गई भूमि होती है। लेकिन घोषणापत्र में किए गए इस दावे के उलट, न्यूज़क्लिक तिनसुकिया के पानितोला और इताखुली एस्टेट, जोरहट के तियोक और तोकलाई एस्टेट, डिब्रूगढ़ के सरोजिनी और तिंगखोंग चाय बागानों में ऐसे किसी कामगार के परिवार को नहीं खोज सका, जिसे नया पट्टा दिया गया हो।

बुद्धिराम कोले अपनी उम्र के नौवें दशक में चल रहे हैं। उनका परिवार ईंट-सीमेंट से बने एक घर में रहता है, जो उनकी पत्नी को आवंटित हुआ था, लेकिन अब उनकी पत्नी के रिटायरमेंट के बाद यह घर उनकी बेटी के नाम पर आवंटित है। बुद्धिराम और उनकी पत्नी को लगातार यह डर सताता है कि उनकी बेटी की शादी के बाद उन्हें इस घर से निकाला जा सकता है। उनका परिवार लाखों परिवारों में से एक है, जो इसी तरह के डर में रहने के लिए मजबूर हैं। पानितोला के माछबारी डिवीज़न के मीथु महाली 17 साल से नियमित कामगार के तौर पर काम कर रहे हैं, लेकिन अब भी उन्हें पक्का मकान नहीं मिला। ज़मीन पर पट्टे के बारे में बात करते हुए वे कहते हैं, "पट्टे को भूल जाइए, मुझे तो घर तक नहीं मिला।"

इन बुनियादी सुविधाओं की अनुपलब्धता के साथ चाय बागानों के कामगारों के पास उचित शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा तक भी पहुंच नहीं है। बीजेपी अपने चुनावी घोषणापत्र में दावा करती है कि उसने टी-एस्टेट में काम करने वाले दिव्यांगों को हर महीने 1000 रुपये देने का काम किया है। लेकिन पानितोला के सूरल महाली का कहना है कि कई लोगों को यह पैसा नहीं मिला, उन्हें खुद को सिर्फ़ एक महीने ही यह पैसा मिला है।

सूरज का यह आरोप भी है कि अटल अमृत अभियान का कार्ड लाखों कामगारों के पास होने का बीजेपी का दावा झूठा है। इस कार्ड के ज़रिए 2 लाख रुपये तक की स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध होती हैं। सूरज का कहना है कि उनके परिवार और उनके पड़ोसियों को अब भी यह कार्ड मिलना बाकी है। बीजेपी सरकार ने दावा किया कि उन्होंने राज्य में हर परिवार को जल जीवन मिशन के तहत स्वच्छ जल उपलब्ध करा दिया है, बल्कि सच्चाई यह है: टी-एस्टेट में काम करने वाले ज़्यादातर कामगार खुद के द्वारा लगाए गए ट्यूब-वेल से पीने का पानी पाते हैं। कामगारों के घरों में शायद ही कोई ऐसा घर होगा, जहां सार्वजनिक जल आपूर्ति या एकल नल लगा होगा।

जहां ज़्यादातर विश्लेषक कम वेतन को चाय बागानों में काम करने वाले कामगारों के लिए मुख्य मुद्दा मानते हैं, लेकिन बहुत सारे लोगों का मानना है कि इससे इतर, जैसे अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल किए जाने की मांग जैसे भी कई अहम मुद्दे हैं। चाय बागान के कामगारों को अनुसूचित जनजाति में शामिल किए जाने की मांग का मुद्दा ऊपरी असम में कई सालों से ज्वलंत मुद्दा रहा है।

सरकार आती और जाती रहती हैं, लेकिन इन कामगारों की परेशानियां ज्यों के त्यों बरकरार रहती हैं। पिछली बार 2016 में चाय जनजातियों (टी ट्राइब्स) या आदिवासियों ने बीजेपी को सत्ता में पहुंचाने के लिए वोट दिया था, क्योंकि पार्टी ने उनसे ST दर्जे से लेकर भत्ता बढ़ाए जाने जैसे तमाम वायदे किए थे। लेकिन लगभग हर मोर्चे पर बीजेपी सरकार ने उन्हें निराश किया है। इस समुदाय के असम में 60 लाख वोट हैं, अगर यह अपना पाला बदलते हैं, तो इससे किसी सरकार का बनना या गिरना तय हो सकता है।

तो 27 मार्च को पहले दौर के मतदान में निर्वतमान बीजेपी सरकार को डरने की जरूरत है। खासकर उस क्षेत्र में जहां 500 टी-एस्टेट हैं, जहां लाखों आदिवासी और चाय बाग़ानों से जुड़े जनजातीय लोग आबादी का बड़ा हिस्सा बनाते हैं। चुनावों में यह लोग किसी पार्टी या गठबंधन का असम में अगले पांच सालों के लिए भविष्य तय कर सकते हैं।

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

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