भगत सिंह जयंतीः अंग्रेज़ी हुकूमत से ज़्यादा ज़ुल्म-ज़्यादती कर रही मोदी सरकार
शहीद भगत सिंह की 115वीं जयंती पर भगत सिंह छात्र मोर्चा ने विशाल जुलूस निकाला और जनवादी गीत गाते हुए पैदल मार्च निकाला। कार्यक्रम के शुरुआत में क्रांतिकारी गीत गाए गए। बाद में बीएचयू के छात्र अधिष्ठाता कार्यालय में आयोजित सेमिनार में शहीद भगत सिंह के विचारों पर चर्चा करते हुए वक्ताओं ने कहा कहा, "अगर सरकारें बहरी हों तो उसे सुनाने के लिए धमाका जरूरी है। क्या आज की सरकारें बहरी नहीं हैं? क्या किसान आंदोलन, नागरिक आंदोलन, छात्र आंदोलन और दूसरे आंदोलनों को सरकारें नहीं कुचल रही हैं? क्या मोदी सरकार आंदोलनकारियों पर अंग्रेजी हुकूमत से भी ज्यादा गैर-कानूनी तरीके से मुकदमें कायम नहीं कर रही है? आज अगर भगत सिंह जिंदा होते तो भारत-पाक की धर्मांधता पर उनके विचार क्या होते? जो लोग भगत सिंह के विचारों को तिलांजलि दे चुके हैं उन्हें किसी देशभक्त शहीद को याद करने की जरूरत नहीं है।"
"भगत सिंह के सपनों का भारत" विषय पर आयोजित सेमिनार में प्रोफेसर चौथी राम यादव (पूर्व विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग बीएचयू), ने भगत सिंह के संघर्षों की कहानी सुनाते हुए कहा, "भगत सिंह ने बहुत कम उम्र में दुनिया के सभी बड़े दार्शनिकों को पढ़ लिया था। आज जो लोग सचमुच भगत सिंह के वारिस हैं, वे जेल में हैं, चाहे वो सुधा भारद्वाज, स्टेन स्वामी औप जीएन साईबाबा हों या वरवरा राव। भगत सिंह ने अपने समय में ब्राह्मणवाद के खिलाफ संघर्ष लड़ा था। उन्होंने उनकी तुलना लोकमान्य तिलक से की, जिन्होंने कहा था कि हल चलाने वाले लोगों को पढ़ने की जरूरत नहीं है। भगत सिंह ने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का नाम बदलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन कर दिया था। वे सभी मुद्दों को अपने संगठन के बैनरतले लाना चाहते थे। उनकी सोच का दायरा बहुत व्यापक था। भगत सिंह छात्र मोर्चा उनके सपने को आगे लेकर जा रहा है।"
बीएचयू के दर्शनशास्त्र विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ राहुल मौर्य ने कहा, "आज़ादी का स्वाद आज तक बहुत लोगों को नहीं मिली है और 1947 में केवल सत्ता की अदला-बदली हुई है। हमें भगत सिंह से सीख लेते हुए अपने सभी विश्वासों व धारणाओं के प्रति आलोचनात्मक नज़रिया रखना चाहिए और अपने विचारों में जड़ता से बचना चाहिए। जिस शिक्षा से रोज़गार न मिल सके उसके लिए वह व्यक्ति दोषी नहीं, बल्कि वह सरकार की नाकामी है। शिक्षा पर बढ़ता साम्राज्यवाद का प्रभाव चिंताजनक है। "
मजदूर अधिकार संघठन की नेता नौदीप कौर ने यूपी-बिहार से आए प्रवासी मजदूरों की बदहाल हालत और महिला मजदूरों के साथ ठेकेदारों व मालिकों द्वारा हो रहे यौन उत्पीड़न के बारे में बताया। कहा, "समाज के परिवर्तन के अगुआ मजदूर और युवा ही हैं, जिनके दुश्मन वर्तमान व्यवस्था के पोषक और साम्राज्यवादियों की दलाल सरकारें हैं। भगत सिंह की जयंती मनाने का मतलब है परेशान हाल मजदूरों, किसानों, महिलाओं और शोषितों की मुक्ति के लिए संघर्ष की लड़ाई में शामिल होना।"
दर्शनशास्त्र विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर प्रमोद बागड़े ने भगत सिंह के विचारों को रेखांकित करते हुए कहा कि उनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक है जितने कि उस समय थे। उन्होंने कहा, "आज नवउदारवाद और मनुवादी फासीवाद का गठजोड़ जनता पर हमला कर रहा है। भगत सिंह ने यह क्रांतिकारी बात कही थी कि अछूत ही देश के असली सर्वहारा है और उनको उठ खड़े हो कर इस निज़ाम को बदल देना चाहिए। जब तक हमारे अंदर एक आलोचनात्मक दृष्टि नहीं होगी, हम एक अच्छे इंसान नहीं बन सकते हैं।"
लखनऊ यूनिवर्सिटी की पूर्व कुलपति रहीं प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा कुछ अपरिहार्य कामों के कारण कार्यक्रम में नहीं आ सकी, लेकिन अपना एक छोटा मगर जोशीला संदेश जरूर भेजा। उन्होंने अपने संदेश में कहा, "अभी का दौर एक अंधेरे का दौर है, जिसमें गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, सांप्रदायिकता बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे दौर में यदि भगत सिंह होते तो वे जनसैलाब को एकजुट कर इस शोषणकारी व्यवस्था के खिलाफ़ संघर्ष में जाते। आज यही हम सबको करने की जरूरत है।"
इंकलाबी छात्र मोर्चा, इलाहाबाद के सहसचिव देवेंद्र आज़ाद ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में 400 फीसदी फीस वृद्धि का मामला उठाया। शिक्षा के निजीकरण, बाजारीकरण व भगवाकरण का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, "देश के नए पूंजीपति और साम्राज्यवादी देश की शिक्षा, स्वास्थ्य सहित सभी मूलभूत चीजों को बेच रहे हैं। सरकारें उन्हें ऐसा करने से रोक नहीं रही हैं, अलबत्ता उन्हें सहयोग दे रही हैं।"
इंकलाबी छात्र मोर्चा के संस्थापक और अधिवक्ता विश्वविजय ने अपने वक्तव्य में भगत सिंह के लेखों के माध्यम से आज की परिस्थितियों और संघर्ष की जरूरतों पर बात रखी। उन्होंने भगत सिंह के लेख "विद्यार्थी और राजनीति" पर चर्चा की। भगतसिंह के लेख "सांप्रदायिक दंगे और उसका इलाज" का जिक्र करते हुए कहा, "भारत में दो समुदायों के बीच दंगे नहीं होते, बल्कि राज्य द्वारा एक समुदाय विशेष पर दमन किया जा रहा है। अछूत समस्या के मध्यम से उन्होंने समाज में व्याप्त घिनौनी जाति व्यवस्था के बारे में बताया है। जो सरकारें आदिवासियों की जल, जंगल, जमीन को लूट रही हैं उनका विरोध जरूरी है। अन्याय के खिलाफ लड़ना हिंसा नहीं होता। साल 1947 से जो व्यवस्था है, वो सामंतों और साम्राज्यवादियों की दलाली कर रही है। इंकलाब का मतलब ऐसा अमूल परिवर्तन जिससे एक इंसान दूसरे का शोषण न कर सके।"
आखिर में बीसीएम की अध्यक्ष आकांक्षा आज़ाद ने अपनी बात रखी जिसमें उन्होंने बीएचयू के हालातों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। बताया, "बीएचयू में गुंडागर्दी बढ़ती जा रही है। लड़कियों के साथ छेड़खानी यहां आमबात है। बीएचयू प्रशासन इन मामलों में गूंगा और बहरा हो जाता है। न्यायालय में सुनवाई नहीं होती है। बीएचयू प्रशासन बीसीएम को आंदोलन-प्रदर्शन करने से रोकता आया है। विश्वविद्यालयों में फीस बढ़ाई जा रही है। स्टूडेंट्स पर दमन किया जा रहा है।"
बीसीएम की सेमिनार के बाद भगत सिंह पर कविता पाठ का आयोजन किया गया। संस्था के सदस्यों ने जनपक्षीय कविताएं सुनाईं। इस दौरान कई जोशीले क्रांतिकारी गीत गाए गए जैसे "ए भगत सिंह तू जिंदा है", "सूली चढ़कर वीर भगत ने", "मसाले लेकर चलना कि जब तक रात बाकी है" आदि, जिनको सुनकर श्रोतागण में भी उत्साह भर गया और वे भी साथ में गीतों को दोहराते रहे।
सेमिनार हाल में भगत सिंह से संबंधित, पितृसत्ता व जाति व्यवस्था से संबंधित मुद्दों पर अनेक पोस्टर लगाए गए थे। इसके अलावा सेमिनार में भगत सिंह, अंबेडकर की लिखी पुस्तकों, प्रगतिशील पत्रिकाओं व संगठन के दस्तावेजों का भी स्टॉल लगाया गया था। सेमिनार के बाद कार्यक्रम स्थल से लेकर बीएचयू मुख्य द्वार तक मार्च निकालकर कार्यक्रम का समापन किया गया। मार्च के दौरान मुख्य द्वार पर भारी संख्या में पुलिस ने बीएचयू से बाहर जाने से रोकने की कोशिश की, लेकिन एसबीएम को कार्यकर्ताओं ने क्रांतिकारी गीत गाए। साथ ही शहीद भगत सिंह के सपनों समाज में फैलाने का संकल्प लिया।
सेमिनार में मानवाधिकार कार्यकर्ता सीमा आज़ाद, बनारस के ऐपवा संगठन से कुसुम वर्मा और स्मिता बागड़े, भैयालाल यादव, आरडी सिंह, समाजवादी जन परिषद से अफलातून, गांधीवादी नेता राजेंद्र चौधरी के अलावा करीब 250 स्टूडेंट्स और प्रबुद्धजन शामिल हुए।
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