बिहार: ध्रुवीकरण की राजनीति के चलते सीमांचल को किया जा रहा बदनाम!
किशनगंज में चुनावी अभियान के दौरान बीजेपी कार्यकर्ता
2021 के फरवरी महीने में बिहार के वरिष्ठ नेता और तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने बिहार विधानसभा में बयान दिया था कि बिहार से ज्यादा आबादी किशनगंज जिले में बढ़ रही है। 19 महीने के बाद भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष संजय जायसवाल ने सितंबर 2022 में कहा कि सीमांचल के किशनगंज और अररिया जिले में सबसे अधिक जनसंख्या वृद्धि दर है। जिसके लिए उन्होंने आंशिक रूप से बांग्लादेशी घुसपैठियों के गैरकानूनी रूप से आने को जिम्मेदार ठहराया। संजय जयसवाल का यह बयान उस वक्त आया था जब देश के गृहमंत्री अमित शाह सीमांचल दौरे पर आने वाले थे। बाद में एक इंटरव्यू के दौरान संजय जायसवाल ने बयान दिया था कि उन्होंने कभी भी जनसंख्या वृद्धि दर और मुसलमानों के बीच संबंध नहीं बनाया। हालांकि बिहार में कई भाजपा नेता जनसंख्या वृद्धि को लेकर सीमांचल पर लगातार टारगेट करते रहते हैं।
संजय जायसवाल के बयान के बाद भारत की कई मीडिया एजेंसियों ने इस पर लगातार खबरें बनाईं। हाल ही में विदेशी मीडिया रायटर्स ने भी इस विषय पर स्टोरी की है। जिसमें यही दावा किया गया है, लेकिन आकड़ों के नाम पर सिर्फ एक लाइन है राज्य के स्वास्थ्य अधिकारियों का अनुमान है कि किशनगंज की प्रजनन दर 4.8 या 4.9 है। लेकिन ये आंकड़े कहां से आए? सरकार ने ऐसे आंकड़े कब जारी किए? या किस संस्थान ने ये आंकड़ा निकाला है? इसका कोई जवाब नहीं है।
किशनगंज के एक मंदिर में देश के गृह मंत्री अमित शाह
सीमांचल के स्थानीय वेब पोर्टल 'मैं मीडिया' के संस्थापक तंजील आसिफ सोशल मीडिया पर लिखते हैं कि, "पिछले साल के सितंबर महीने में जब पूर्व भाजपा अध्यक्ष संजय जायसवाल ने दावा किया था कि दुनिया में सबसे ज्यादा बच्चे किशनगंज, अररिया में पैदा हो रहे हैं। इसके बाद मुझे दो विदेशी मीडिया हाउसेस के पत्रकारों के फ़ोन आ चुके हैं। उनकी बस एक ही मांग थी, हमें ज़्यादा बच्चों वाले किशनगंज की कुछ महिलाओं का नंबर दे दीजिए। हमने उनसे पूछा कि आपके पास ऐसा कौन सा आंकड़ा है, जिससे ये साबित होता है किशनगंज की प्रजनन दर सबसे ज़्यादा है, तो उनके पास जवाब नहीं था। ऐसा लगता है कि विदेशी मीडिया को इन दिनों किशनगंज की जनसंख्या को लेकर ख़बरें करने की कोई बड़ी ज़िम्मेदारी मिली हुई है।"
आंकड़े क्या कहते हैं?
आंकड़ों की पूरी कहानी बीजेपी नेताओं के बयान का खंडन करती है। जनगणना 2011 के मुताबिक बिहार के मधेपुरा जिले में किशनगंज और अररिया की तुलना में जनसंख्या वृद्धि दर अधिक है। 2001 और 2011 की जनसंख्या गणना की तुलना की जाए तो 2001 और 2011 में किशनगंज में प्रजनन दर क्रमशः 5.3 और 5.2 थीं। यानी जनसंख्या दर घटी थी। वहीं अररिया जिला में प्रजनन दर साल 2001 और 2011 में 4.9 थी। यानी ना बढ़ी ना ही घटी।
पूरे देश में सबसे ज्यादा प्रजनन दर की बात की जाए तो मेघायल राज्य के वेस्ट खासी हिल्स में 2001 और 2011 में प्रजनन दर क्रमशः 5.8 और 5.5 थीं। वहीं जैंतिया हिल्स में 2001 और 2011 में प्रजनन दर क्रमशः 5.4 और 5.6 थीं। यानी सीमांचल के किशनगंज और अररिया की तुलना में ज्यादा हैं।
2019 में प्रकाशित एनएफएचएस-5 के आंकड़ों की मानें तो किशनगंज और अररिया का आंकड़ा क्रमशः 3.50 और 3.91 है। जबकि खगड़िया जिला की प्रजनन दर 4:00 है। किशनगंज से ज्यादा प्रजनन दर सीतामढ़ी, पूर्णिया और सुपौल जिले की है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के आंकड़ों पर काम कर चुके आशीष गुप्ता ट्वीटर के माध्यम से बताते हैं कि दुनिया में कई देश ऐसे हैं जिनकी प्रजनन दर इन सालों में बिहार या बिहार के किसी भी ज़िलों से बहुत ज़्यादा है। वहीं हाल के सर्वे में अररिया और किशनगंज का कुल प्रजनन दर बिहार में भी सबसे ज़्यादा नहीं थी।
ध्रुवीकरण की राजनीति में सीमांचल बना राजनीति का अखाड़ा
2024 में देश में लोकसभा और 2025 में बिहार में विधानसभा चुनाव होंगे। अभी जिस हिसाब से बिहार में राजनीतिक समीकरण हैं, राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो चुनावी लड़ाई का सेंटर प्वाइंट सीमांचल ही होगा। सीमांचल में पिछले विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी AIMIM के पांच विधायक जीते थे। सीमांचल के राजनीति का असर बंगाल पर भी पड़ता है।
राजकमल पब्लिकेशन में काम कर चुके लेखक संजय सिंह बताते हैं कि, "सीमांचल इलाके में अन्य क्षेत्र की तुलना में मुस्लिम आबादी ज्यादा है। किशनगंज जिले की बात की जाए तो यहां लगभग करीब 68 फीसदी मुस्लिम आबादी है। वहीं दूसरी तरफ बिहार की राजनीति को देखिए, एक बात तय हैं कि जदयू और राजद एक साथ रहीं तो बीजेपी की स्थिति बिहार में बहुत खराब रहेगी। इसलिए बीजेपी हिंदू वोटों को संगठित करने के उद्देश्य से सीमांचल को बदनाम कर रही है। किशनगंज जिला पश्चिम बंगाल से घिरा हुआ है। सीमांचल के जरिए बिहार और बंगाल दोनों जगह ध्रुवीकरण की राजनीति हो रही है। ताकि बिहार में हुए सीट का नुकसान वो बंगाल से पूरा कर सकें।" अभी तक भाजपा ने बस एक बार 1999 में शाहनवाज हुसैन के रूप में यहां से सासंद बनाया है। किशनगंज से 9 बार कांग्रेस और 3 बार राजद का सांसद रहा है।
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक आत्मेश्वर झा का कहना है. "बिहार में हो रहीं जातिगत जनगणना सामाजिक से ज्यादा राजनीतिक है। बीजेपी के पास इसका कोई तोड़ नहीं है। भाजपा की हिंदू राष्ट्रवादी नीति बिहार की तत्कालीन राजनीति में बिखर रही है। इसलिए देश के गृहमंत्री ने बिहार में अपने पहले भाषण में सीमांचल को चुना है।"
आरएसएस सीमांचल में क्यों मज़बूत?
अन्य राज्यों की तुलना में बिहार में संघ का प्रभाव कम है। वहीं सीमांचल में संघ और बजरंग दल की भूमिका अधिक रहती है। हाल में ही विश्व हिंदू परिषद सीमांचल और बंगाल के कुछ क्षेत्र को मिलाकर केंद्र शासित प्रदेश घोषित करने की मांग कर रही थी। विश्व हिन्दू परिषद के बिहार झारखंड के संपर्क प्रमुख अधिवक्ता अशोक श्रीवास्तव ने इस पर तर्क दिया था कि केंद्र शासित प्रदेश बनने से हिन्दुओं को प्रताड़ना नहीं झेलनी पड़ेगी। रोहिंग्या मुसलमान व बांग्लादेशी घुसपैठ पर भी अंकुश लगेगा।
किशनगंज के भाजपा जिलाध्यक्ष सुशांत गोप बताते हैं कि, "संघ बिहार में भी सक्रिय रूप से काम कर रही है। जहां दलित और आदिवासी क्षेत्र है वहां पर वनवासी विद्यालय की स्थापना की जा रही है। वहीं जहां पर 'देश विरोधी' कार्यक्रम होते हैं वहां पर हम लोग पूर्ण रूप से सक्रिय रहते हैं। सीमांचल में भी सक्रिय रहने की यही वजह है। जनसंख्या वृद्धि की बात भी बिल्कुल सही है। आप हाल में हुए दो चुनाव के वोटर लिस्ट के माध्यम से इसका पता आसानी से लगा सकते हैं।"
बिहार के वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह ने सोशल मीडिया पर किशनगंज की तुलना कैराना से की। उत्तर प्रदेश स्थित 'कैराना' जगह को हिंदू पलायन के लिए बीजेपी के द्वारा बदनाम किया गया था। बीजेपी के पूर्व सांसद हुकुम सिंह ने बाकायदा 2016 में पलायन करने वाले 346 लोगों की एक सूची भी जारी की थी। हालांकि बाद में इस सूची में शामिल लोगों की कभी आधिकारिक तौर पर पुष्टि भी नहीं की गई। कई मीडिया संस्थान के रिपोर्टिंग ने हुकुम सिंह के आरोप को बेबुनियाद ठहराया था। और बाद में हुकुम सिंह भी अपने बयान से पलट गए थे।
किशनगंज को संप्रदायिकता में उलझाना चाहते हैं जबकि यहां की असली समस्या ग़रीबी है
संतोष सिंह कहते हैं कि, "किशनगंज एक ऐसा इलाका है जहां ड्रैगन फूड, अनानास और चाय की खेती होती है। यानी खेती के मामले में किशनगंज समृद्ध होता जा रहा है। हालांकि गरीबी भी किशनगंज में बाक़ी राज्य की तुलना में अधिक है। इसके अलावा किशनगंज एक ऐसा क्षेत्र रहा हैं, जहां कभी दंगे की खबरें सुनने को नहीं मिलती हैं। बिहार के गांधी कहे जाने वाले तस्लीमुद्दीन के परिवार का वर्चस्व कम होने और संघ का प्रभाव बढ़ने के बाद सीमांचल की स्थिति बदल गई है। बीजेपी इसका फायदा उठाना चाहती है। गोदी मीडिया के सहारे बीजेपी किशनगंज को कैराना बनाने में देर नहीं करेगी।"
किशनगढ़ की समस्या ग़रीबी है, सांप्रदायिकता नहीं!
किशनगंज स्थित ठाकुरगंज नगर पंचायत के मुख्य पार्षद सिकंदर पटेल बताते हैं कि, "मुसलमानों की इतनी संख्या होने के बावजूद आज तक किसी भी हिंदू ने खुद को असुरक्षित महसूस नहीं किया। किशनगंज में कभी दंगा फसाद की घटनाएं नहीं सुनने को मिली हैं। मीडिया जानबूझकर किशनगंज को संप्रदायिकता में उलझाना चाहता हैं जबकि यहां की असली समस्या गरीबी है। यहां के भौगोलिक क्षेत्र की वजह से बाढ़ से यहां की अधिकांश आबादी लड़ाई लड़ती है। सरकार को उस पर ध्यान देना चाहिए।"
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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