बिहार : भाकपा-माले की राष्ट्रीय रैली के लिए व्यापक जन अभियान, एक नए वामपंथी उभार की तैयारी
‘गांव-समाज और सत्ता से भाजपा को बाहर करो’ के आह्वान के साथ भाकपा-माले की राष्ट्रीय रैली व महाधिवेशन की ज़मीनी तैयारी ज़ोरों पर है। शहरों-कस्बों से लेकर गांव-टोलों में जत्थे निकालकर जन संपर्क, धन संग्रह और जन प्रचार का अभियान व्यापक स्तर पर चलाया जा रहा है।
इस क्रम में महाधिवेशन, केंद्रीय मुद्दों के साथ-साथ देश व राज्य के ज्वलंत मुद्दों को लेकर भी स्थानीय स्तर पर ग्राम सभाओं, कार्यकर्ता कन्वेंशन और मार्च-प्रदर्शन जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से गोलबंदियां कर रहा है जिसे संगठित करने में पार्टी के पोलिट ब्यूरो से लेकर केंद्रीय कमेटी के सदस्य जुटे हुए हैं। दूसरी ओर, पार्टी के सभी विधायक भी अपने-अपने क्षेत्र के गावों में घर-घर जाकर अनाज व धन संग्रह और जन प्रचार का कार्य कर रहे हैं।
सनद रहे कि भाकपा-माले का 11वां राष्ट्रीय महाधिवेशन बिहार की राजधानी में सन 2002 के बाद दूसरी बार आयोजित होने जा रहा है। उस समय देश फासीवाद के पहले दौर से गुज़र रहा था जिसके खतरे को पार्टी ने अपने महाधिवेशन में पूरी गंभीरता के साथ चिह्नित किया था। उस समय गुजरात में सांप्रदायिक जनसंहार हो चुका था जिसकी भयावहता और नृशंसता ने पूरी दुनिया में भारत को शर्मसार किया था। इसी की परिणति थी कि सन 2014 में आरएसएस-भाजपा का सांप्रदायिक व फासीवादी उन्मादी कुचक्र और भी अधिक संगठित और आक्रामक हो गया जो आज अपने चरम पर पहुंचता दिख रहा है। इसकी बानगी इसी से समझी जा सकती है कि जब देश की स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने पर 15 अगस्त को लाल किले की ऐतिहासिक प्राचीर से प्रधानमंत्री, एक ओर महिला सशक्तिकरण की बात कर रहे होते हैं तो वहीं दूसरी ओर, ठीक उसी समय गुजरात जनसंहार की पीड़िता बिल्किस बानो के साथ अमानवीयता करने वाले सभी अपराधी बलात्कारी-हत्यारों को गुजरात की भाजपा सरकार ससम्मान रिहा कर रही थी।
कुल मिलाकर मोदी सरकार का पहला कार्यकाल यदि अग्रिम चेतावनी थी तो दूसरा कार्यकाल राज्य संरक्षित हिंसा व दमन तथा कॉर्पोरेट लूट का चरम साबित हो रहा है।
इन्हीं अर्थों में ‘फासीवाद हटाओ-लोकतंत्र बचाओ, शहीदों के सपनों का भारत बनाओ’ के प्रमुख नारों के तहत आगामी 15 फरवरी को पटना के गांधी मैदान में विशाल जन-रैली होनी है। दूसरे दिन 16 से 20 फरवरी तक गांधी मैदान से ही सटे श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल में पार्टी का राष्ट्रीय महाधिवेशन होना है।
पार्टी द्वारा मीडिया को जारी बयानों में ये बताया जा रहा है कि इस बार पटना में आयोजित होने वाला महाधिवेशन, पहले से भी अधिक हमलावर हो रहे फासीवाद के खिलाफ ‘देश में एक नया वामपंथी उभार’ पैदा करने की दिशा में एक सुनियोजित और संगठित कदम होगा जिसे साकार करने के लिए महाधिवेशन के उदघाटन सत्र में सीपीएम-सीपीआई समेत देश की सभी वामपंथी पार्टियों के प्रतिनिधियों को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया है। साथ ही भारत के पड़ोसी मुल्क नेपाल व बांग्लादेश की भी वामपंथी पार्टियों के प्रतिनिधियों को न्योता भेजा गया है।
पिछले दिनों महागठबंधन सरकार के शिक्षा मंत्री द्वारा रामचरितमानस के कुछ उद्धरणों पर की गई टिप्पणी-प्रकरण के सहारे अभी भी भाजपा और कतिपय हिंदुत्ववादी संगठनों द्वारा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने की कवायद जारी है जिसके खिलाफ प्रदेश के कई इलाकों में माले की स्थानीय इकाइयों द्वारा प्रतिवाद-मार्च निकालकर सांप्रदायिक फ़ासीवाद से ज़मीनी मुकाबले का संदेश पहुंचाया जा रहा है।
इसी क्रम में सिवान में पुनः ज़हरीली शराब पीने से हुई कई मौतों के खिलाफ प्रतिवाद-मार्च निकालकर राज्य की सरकार से शराब माफिया और पुलिस-प्रशासनिक गठजोड़ के मुद्दे पर कारगर कार्रवाई करने की मांग की जा रही है।
रैली और महाधिवेशन की तैयारी में छात्र-युवाओं के जत्थे पूरे जोश और जज़्बे के साथ सक्रिय देखे जा रहें हैं जो विश्वविद्यालय और कॉलेज कैंपसों के अलावा शहरों में जन संपर्क अभियान चलाते हुए डब्बा-कलेक्शन का अभियान चला रहे हैं। इसके साथ ही व्यापक स्तर पर वॉल पेंटिंग का कार्य भी कर रहे हैं।
जगह-जगह छात्र-युवाओं की बैठकें आयोजित कर मोदी सरकार की दमनकारी और रोज़गार विरोधी नीतियों के बारे में बताया जा रहा है, मसलन मोदी सरकार ने लोकतंत्र पर चौतरफा हमला बोल रखा है। “देश” के नाम पर ‘देश की जनता’ के ही बड़े हिस्से को निशाना बनाया जा रह है। अडानी-अंबानी देश में फासीवादी मुहिम की संचालक आरएसएस-भाजपा के साथ पूरी मजबूती के साथ खड़े हैं। वे इस सरकार को बनाए रखने के लिए पानी की तरह पैसा बहा रहे हैं। बदले में मोदी सरकार देश के संविधान और लोकतांत्रिक नीतियों को तहस-नहस कर सभी सरकारी संस्थानों का धड़ल्ले से इस्तेमाल कर देश के कीमती संसाधनों समेत तमाम सार्वजनिक उपक्रमों को कॉर्पोरेट-पूंजीपतियों के हाथों बेच रही है। इसके कारण देश से रोज़गार के तमाम अवसर खत्म होते जा रहें हैं। बिहार में भी “पेपर लीक व संस्थाबद्ध धांधली और अपारदर्शी परीक्षा पैटर्न” एक स्थायी परिघटना बनती जा रही है। केंद्र के साथ अब प्रदेश की सरकार भी छात्र-युवाओं के साथ भद्दा मज़ाक कर रही है। ऐसे में 15 फरवरी की रैली को युवाओं के जन आंदोलनों के उत्सव में बदलने का अवसर बनाया जा रहा है। रैली में आज के ज्वलंत सवालों-महंगाई व बेरोज़गारी इत्यादि के साथ-साथ युवाओं के रोज़गार के सवाल को भी प्रमुखता के साथ केंद्र व राज्य की सरकारों के समक्ष उठाया जाएगा।
गावों में जन प्रचार अभियान की विशेष बात यह है कि घर-घर से अनाज व धन संग्रह के दौरान पार्टी कार्यकर्ता इस बात को विशेष रूप से स्थापित कर रहें हैं कि कम्युनिस्ट पार्टी किसी कॉर्पोरेट से नहीं बल्कि आम जनता के पसीने से चलती है, ये जनता की अपनी पार्टी है और जनता के सहयोग से चलती है।
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