तिरछी नज़र: प्रश्न पूछो, पर ज़रा ढंग से तो पूछो
आर्यव्रत में आज प्रश्न पूछना गुनाह हो गया है। सिर्फ आज ही नहीं हुआ है, पिछले साढ़े सात साल से हो गया है। साढ़े सात साल पहले तक आप तब के सरकार-जी से जो मरजी, जैसा मरजी, जितने मरजी कठिन प्रश्न पूछ सकते थे। पर अब के नए सरकार-जी से आप कठिन प्रश्न नहीं पूछ सकते हैं। कठिन प्रश्न पूछने पर सरकार-जी को कोई दिक्कत हो न हो, पर हां! प्रश्न पूछने वाले को दिक्कत अवश्य हो सकती है।
ऐसा नहीं है कि सरकार-जी से आप कोई प्रश्न पूछ ही नहीं सकते हैं। आप सरकार-जी से कठिन नहीं, बहुत ही अधिक कठिन प्रश्न भी पूछ सकते हैं। बस जरा ढंग से पूछने की जरूरत है। आप सरकार-जी से इतना कठिन सवाल भी कर सकते हैं कि आप चाय कैसी पीते हैं? ठंडी कर के, चुस्कियां ले कर पीते हैं या फिर गर्मागर्म ही गटक जाते हैं? चाय लाइट पीते हैं या फिर तेज पत्ती की स्ट्रांग चाय? चीनी वाली चाय पसंद है या फिर बिना चीनी की? और अगर चीनी लेते हैं तो चीनी कम लेते हैं या ज्यादा चीनी लेते हैं, या फिर ठीक-ठीक? ब्लैक टी पीते हैं या फिर दूध डालकर पीते हैं? साथ ही चाय में अदरक डलवाते हैं या नहीं? इलायची या तेजपत्र या कोई अन्य फ्लेवर वाली चाय पसंद हैं या फिर बिना फ्लेवर वाली चाय पीते हैं? मसाला टी पीते हैं या असम टी, दार्जिलिंग टी, या फिर नीलगिरी टी?
अभी भी आप काली पत्ती वाली साधारण चाय ही पीते हैं या फिर आपने 'मनोहरी गोल्ड चाय' पीनी शुरू कर दी है? यह चाय चालीस-पचास हजार रुपए या फिर इससे भी अधिक रुपए की एक किलो मिलती है। अब तो आप सरकार-जी हैं और जनता के पैसे से चाय पीते हैं, तो फिर जितनी मर्जी महंगी चाय पी सकते हैं। और हां! अब भी आप चाय ही पीते हैं या फिर आपने कॉफी पीना भी शुरू कर दिया है? फिर कॉफी पर भी इतने ही सारे सवाल हो सकते हैं। है न कितना कठिन प्रश्न?
आप आम कैसे खाते खाते हैं? इसी प्रकार यह प्रश्न भी बहुत ही कठिन प्रश्न है। यह प्रश्न अक्षय कुमार ने सरकार-जी से एक बहुत ही मुश्किल प्रश्नोत्तर के क्रम में पूछा था। अक्षय बीरबल बनना चाहता था। पर बस चाहता ही था। वह सरकार-जी को आम की गुठली खिलाना चाहता तो था पर खिला नहीं सकता था। उसमें बीरबल जितना साहस और बुद्धिमत्ता नहीं थी। अक्षय कुमार सरकार-जी से यह नहीं पूछ सका कि सरकार-जी, मैं तो अपने निर्माता-निर्देशक के निर्देशों पर आम कैसे भी खा सकता हूं। छिलका समेत खा सकता हूं, गुठली समेत खा सकता हूं, ऊपर से या नीचे से, कहीं से भी खा सकता हूं, और खा ही नहीं, निकाल भी सकता हूं। पर सरकार-जी, क्या आप भी अपने निर्माताओं और निर्देशकों के निर्देश पर यह सब कुछ कर सकते हैं? अक्षय कुमार के पास मौका था। अक्षय कुमार पूछ सकता था, पर पूछा नहीं। अक्षय को साहस न हुआ। उसे यह पूछना कठिन लगा।
अभी ऐसे ही, बारहवीं कक्षा की परीक्षा में एक प्रश्न पूछ लिया गया कि किस सरकार के तहत सन् दो हजार दो में गुजरात में अप्रत्याशित स्तर पर मुस्लिम विरोधी हिंसा हुई थी। प्रश्न सिलेबस से ही था। पाठ्यक्रम का हिस्सा ही था। पाठ्य पुस्तक में लिखा हुआ भी था। पढ़ाया भी गया था। पर सरकार को अखर गया, माथा ठनक गया। इतना कठिन प्रश्न और इतने छोटे बच्चों से। ये बच्चे जब अगले चुनाव में वोट डालेंगे तो इसी ज्ञान से डालेंगे! बोर्ड को तो माफी मांगनी ही पड़ी, प्रश्न पत्र सेट करने वाले व्यक्ति पर भी कड़ी कार्यवाही की ही गई होगी। परन्तु गलती प्रश्न पत्र सेट करने वाले की भी नहीं थी। वह क्या करता। उसे तो पूरी की पूरी पाठ्य पुस्तक में एक ही कार्य ऐसा मिला था जिसका श्रेय भाजपा को दिया जा सकता था। तो उसने वही सवाल पूछ लिया।
प्रश्न मल्टीपल चॉइस था। चार संभावित उत्तर थे। भाजपा, कांग्रेस, रिपब्लिकन और डेमोक्रेट। जिन्होंने उत्तर दिया- भाजपा, मतलब उन्होंने पाठ पढ़ा था और साथ ही उन्हें यह भी विश्वास था कि भाजपा आज ही नहीं बीस साल पहले भी इन सब कर्मों को करने में उतनी ही सक्षम थी जितनी कि आज है। वे ठीक थे, और किसी भी तरह से गलत नहीं थे। न पाठ्य पुस्तक की दृष्टि से, न सत्य की दृष्टि से और न ही भाजपा पर पूरा विश्वास करने की दृष्टि से।
जिन्होंने उत्तर कांग्रेस दिया, उन छात्र-छात्राओं ने भी एक तरह से उत्तर ठीक ही दिया था। वे छात्र देश में दो हजार चौदह से पहले हुए हर अच्छे-बुरे, सभी कामों के लिए और उसके बाद हो रहे सभी गलत कामों के लिए, ठीक सरकार-जी की ही तरह कांग्रेस को उत्तरदायी मानते हैं। इसलिए जिन छात्रों ने उत्तर में कांग्रेस के आप्शन का चुनाव किया, वे भी ग़लत नहीं थे, सही ही थे।
और जिनका उत्तर रिपब्लिकन या डेमोक्रेट था, वे भी ग़लत नहीं थे। और गलत हो भी कैसे सकते थे। वे छात्र तो भारत सरकार की तरह हर गलत काम के लिए विदेशी हाथों को ही जिम्मेदार मान रहे हैं, तो फिर गलत कहां हुए। इसलिए चारों ही उत्तर ठीक थे। और अगर पांचवीं आप्शन हो सकती थी, तो वह चीन या पाकिस्तान हो सकती थी और वह उत्तर भी ठीक ही होता।
तो प्रश्न पूछना गुनाह तो नहीं ही है न। न सरकार-जी से और न ही छात्रों से। बस प्रश्न ऐसा आसान होना चाहिए जिसका कोई भी उत्तर ठीक हो। ऐसा सवाल, जिसके सारे उत्तर ठीक ही हों। जैसे आप चाय कैसी पीते हैं? आप आम कैसे खाते हैं? आप कौन सा टॉनिक लेते हैं? आप मोबाइल में कौन सा सिम इस्तेमाल करते हैं? आदि, आदि। और न तो सरकार-जी से और न ही छात्रों से ऐसे सवाल हरगिज ही नहीं पूछे जाने चाहिए जिनसे सवाल पूछने वाला ही मुश्किल में पड़ जाए। जैसे कि दो हजार दो में गुजरात दंगों के दौरान किस दल की सरकार थी या वहां कौन मुख्यमंत्री था? जैसे कि नोटबंदी किस के राज में हुई और उससे किस किस को लाभ पहुंचा। अरे! प्रश्न पूछो पर ढंग का तो पूछो, ढंग से तो पूछो।
(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं। विचार निजी हैं।)
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