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लॉकडाउन का असर, PMJAY के तहत होने वाले इलाज में बड़ी गिरावट : रिपोर्ट का दावा

कैंसर के इलाज जैसी अनिवार्य सेवाएं और सांस्थानिक प्रसव जैसी ज़रूरी सेवाओं पर लॉकडाउन से बेहद बुरा असर पड़ा है।
PMJAY

आयुष भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PMJAY) के अंतर्गत होने वाले ''धन वापसी के दावों (Claim)'' में लॉकडाउन के दौरान काफ़ी गिरावट आई है। इस बात का खुलासा ''नेशनल हेल्थ अथॉरिटी'' द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में हुआ है। “PMJAY Under Lockdown: Evidence on Utilisation Trends PMJAY” नाम की इस रिपोर्ट के मुताबिक़, लॉकडाउन की घोषणा करने के एक हफ़्ते के भीतर योजना के तहत किए जाने वाले दावों की संख्या में 64 फ़ीसदी की तक गिरावट आ चुकी थी। यह दो हफ़्ते पहले के आंकड़ों से तुलना थी। रिपोर्ट, अचानक लागू किए गए लॉकडाउन से स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच में आई कमी की पुष्टि करती है।

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रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 25 मार्च से 1 जून के बीच 10 हफ़्ते के लॉकडाउन में ''औसत साप्ताहिक दावों की संख्या'' में ''पिछले 12 हफ़्ते के औसत दावों की संख्या'' से तुलना में 51 फ़ीसदी की कमी आई थी। इस अवधि में महिलाओं की हिस्सेदारी में भी कमी आई है। लॉकडाउन के पहले 48 फ़ीसदी दावे महिलाओं द्वारा किए जाते थे, लेकिन लॉकडाउन के बाद यह दर 45 फ़ीसदी पर आ गई।

निजी और सार्वजनिक अस्पतालों के शेयर के हिसाब से देखें, तो सार्वजनिक अस्पतालों के उपयोग में निजी अस्पतालों की तुलना में बड़ी गिरावट दर्ज़ की गई है। लॉकडाउन के ''11 वें से 13 वें हफ़्ते'' के बीच सार्वजनिक अस्पतालों में यह गिरावट 67 फ़ीसदी रही। वहीं निजी अस्पतालों में यह गिरावट 58 फ़ीसदी रही। इसके चलते ''कुल दावों की संख्या'' में ''निजी क्षेत्र के अस्पतालों से होने वाली दावों की संख्या'' में लॉकडाउन के दौरान चार फ़ीसदी का उछाल आया और इसका आंकड़ा 47 फ़ीसदी से बढ़कर 51 फ़ीसदी पहुंच गया। 

राज्यों में दावों की गिरावट की दर में बहुत अंतर रहा। असम, महाराष्ट्र और बिहार में योजना के तहत किए जाने वाले दावों में 75 फ़ीसदी से ज़्यादा की गिरावट दर्ज की गई। वहीं केरल, उत्तराखंड और पंजाब जैसे राज्यों में यह गिरावट 25 फ़ीसदी या इससे कम रही।

लॉकडाउन के दौरान कैंसर के इलाज जैसी अनिवार्य सेवाएं और सांस्थानिक प्रसव जैसी जरूरी सेवाओं पर बहुत बुरी मार पड़ी। कैंसर इलाज़ के एवज में किए जाने वाले दावों में 64 फ़ीसदी की गिरावट आई, वहीं प्रसव और नवजात शिशु सेवाओं में क्रमश: 26 फ़ीसदी और 24 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई।

सार्वजनिक क्षेत्र में कैंसर इलाज के दावों में निजी क्षेत्र की तुलना में गिरावट दर्ज की गई। यह महाराष्ट्र (90 फ़ीसदी) और तमिलनाडु (65 फ़ीसदी) में ज्यादा रही। रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि कुछ मरीज़ों के लिए कीमोथेरेपी का चक्र पूरा किया गया, लेकिन कुछ के लिए अधूरा छोड़ दिया गया। वहीं नए मरीज़ों के लिए कीमोथेरेपी शुरू ही नहीं की गई।

रिपोर्ट में ''महिलाओं द्वारा किए जाने वाले दावों'' में आई कमी का भी पता चलता है। लॉकडाउन से पहले कुल दावों में से 48 फ़ीसदी महिलाओं द्वारा किए जाते थे, वहीं लॉकडाउन के बाद यह दर 45 फ़ीसदी पर आ गई। अप्रैल की शुरुआत में NHA द्वारा प्रकाशित एक दूसरी रिपोर्ट से, राज्य स्तर पर औसत स्वास्थ्य खर्च पर बड़े स्तर के लैंगिक भेद'' के बारे में पता चला था। रिपोर्ट में नेशनल सैंपल सर्वे के हवाले से बताया गया कि राज्यों में ''यह अंतर 1.9 फ़ीसदी से 67 फ़ीसदी'' तक है। रिपोर्ट में कहा गया PM-JAY योजना में भर्ती किए गए ''महिला-पुरुषों को चुकाए गए पैसे'' में लैंगिक आधार का यह अंतर 2.9 फ़ीसदी से लेकर 30 फ़ीसदी तक है।

स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए औसत दावों में लॉकडाउन के दौरान 46 फ़ीसदी तक की कमी आई और यह 65,300 से गिरकर 35,100 पर आ गया। वहीं सर्जिकल सर्विस के लिए यह गिरावट (62,600 से 27,100) 57 फ़ीसदी की रही।

रिपोर्ट के मुताबिक, दावों की कीमत (76 फ़ीसदी कमी) में दावों की संख्या (64 फ़ीसदी कमी) से ज़्यादा गिरावट रही। इसका कारण बड़े स्तर की कीमत वालों पैकेज में बड़ी गिरावट रही। अगर हम दो स्थितियों की बात करें, मतलब मौजूदा स्थिति (जब लॉकडाउन लागू हुआ) और अगर लॉकडाउन लागू न हुआ होता, तो 10 हफ़्ते में PM-JAY द्वारा जारी किए जाने वाले पैसे में 1000 करोड़ रुपये की कमी आई है। यह PM-JAY का क़रीब 15 फ़ीसदी हिस्सा है।

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जहां तक गैर आपात सुविधाओं की बात है, तो वहां मोतियाबिंद सर्जरी के लिए किए जाने वाले दावों की संख्या में 99 फ़ीसदी की बड़ी कटौती हुई है, वहीं ''कूल्हे या घुटने के बदलाव'' वाले दावों की संख्या में 97 फ़ीसदी की गिरावट आई।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की एक इकाई, नेशनल हेल्थ सिस्टम रिसोर्स सेंटर के पूर्व निदेशक टी सुंदरारमन कहते हैं, ''इस रिपोर्ट से कई जगह जरूरी स्वास्थ्य सेवाओं के बिखर जाने की स्थिति का पता चलता है।''

जन स्वास्थ्य अभियान ने पहले ही लॉकडाउन के स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ने वाले असर पर चिंता जताई थी। अभियान ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा इलेक्टिव सर्जरी और बाहरी मरीज़ों को सुझाव देने को हतोत्साहित करने के पीछे के तर्क पर सवाल किया था। 

निजी क्षेत्र में आए बदलाव पर टिप्पणी करते हुए सुंदरारमन ने टेलीग्राफ़ से कहा, ''सार्वजनिक अस्पतालों को कोरोना के इलाज के लिए परिवर्तित करने से निजी क्षेत्र की ओर झुकाव बढ़ेगा।''

NHA की रिपोर्ट में पता चलता है कि निजी अस्पतालों ने अपने स्वास्थ्य कर्मियों में कोरोना वायरस फैलने के डर या फिर बिज़नेस मजबूरियों से अपनी सेवाओं में कमी कर दी है। यह बिज़नेस मजबूरी इस अनुमान से है कि अगर अस्पतालों ने कोरोना के मरीज़ों का इलाज चालू किया तो उनके बिज़नेस की बाहरी दिखावट पर बुरा असर पड़ेगा। 

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Lockdown Impact: Massive Fall in Hospitalisations Under PMJAY, Says Report

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