केंद्रीय अर्धसैनिक बलों ने भी उठाई पुरानी पेंशन बहाली की मांग : ‘न कामदार, न नामदार, मैं हूं बिना पेंशन सरहदों का चौकीदार!’
पूरे देश के कर्मचारी लगातर पुरानी पेंशन बहाल करने को लेकर अपना विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। इसी कड़ी में आज पहली जुलाई को देश की सुरक्षा करने वाले पूर्व अर्धसैनिक बलों के जवानों ने सोशल मीडिया के माध्यम से अपना विरोध जताया। इससे पहले 26 जून को देशभर के सरकारी कर्मचारियों ने भी सोशल मीडिया के माध्यम से विरोध जताया था।
कॉन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्स वेलफेयर एसोसिएशन ने कहा कि केंद्रीय सरकार द्वारा अर्धसैनिक बलों के प्रति भेदभाव व सौतेले व्यवहार को लेकर 20 लाख परिवारों में भारी रोष एवं बैचेनी व्याप्त है। पुरानी पेंशन बहाली, वन रैंक वन पेंशन व ऑर्गेनाइज्ड ग्रुप “ए” सर्विस को लेकर 1 जुलाई 2020 को ट्वीटर अभियान चलाया गया।
हालांकि यह कोई इनका पहला प्रदर्शन नहीं है। ये पिछले 7 सालों से जंतर-मंतर, राजघाट, संसद मार्ग व देश के अन्य हिस्सों में बराबर शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन के जरिए अपनी मांगों को लेकर सरकार का ध्यान दिलाने का प्रयास करते रहे हैं। प्रधानमंत्री व गृहमंत्री को कई बार ज्ञापन भी दिए गए लेकिन अभी तक परिणाम जीरो ही रहा।
‘न कामदार, न नामदार, मैं हूं बिना पेंशन सरहदों का चौकीदार!’
वेलफेयर एसोसिएशन के महासचिव रणबीर सिंह ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री देश के चौकीदार बताते है लेकिन जो सही में देश की चौकीदारी करता है उनके बारे में कुछ नहीं बोलते हैं। उन्होंने कहा हम सैनिक अपने परिवारों से हज़ारों किलोमीटर दूर दिन रात देश की सीमाओं की सुरक्षा करते है लेकिन हमारे भविष्य की कोई सुरक्षा ही नहीं है। नई पेंशन स्कीम लागू होने के बाद से पेंशन पूरी तरह ख़त्म हो गई है।
उन्होंने अपने ट्विटर पर लिखा कि न कामदार न नामदार, मैं हूं बिना पेंशन सरहदों का चौकीदार!
रणबीर सिंह ने बताया कि कोरोना महामारी के चलते प्रशासन द्वारा शांति पूर्ण धरना प्रदर्शन की इजाजत नहीं दी गई, इसलिए ट्वीटर के माध्यम से सरकार तक आवाज पहुंचाने का निर्णय लेना पड़ा। एसोसिएशन तकरीबन 20 लाख अर्धसैनिक परिवारों का प्रतिनिधित्व करती है। उन्होंने कहा कि दुःख की बात कि किसी आईपीएस डीजी ने जनवरी 2004 में न्यू पेंशन स्कीम लागू करने का विरोध नहीं किया। आज के परिप्रेक्ष्य में जब सरहदों पर तनातनी के चलते जवान मोर्चा संभाले हुए हैं और दूसरी ओर सुरक्षा बलों के जवान कोविड महामारी में आम जनता की मददगार साबित हो रहे हैं। आए दिन पैरामिलिट्री फोर्स के जवान कश्मीर में शहीद हो रहे हैं, सड़क से संसद तक अर्धसैनिक बलों के जवान पूरे देश की चाक-चौबंद चौकिदारी कर रहे हैं ऐसे में जवानों को पुरानी पेंशन व वन रैंक वन पेंशन से वंचित करना एक गंभीर चिंतनीय विषय है। ढाई दिन के सांसद को पेंशन ओर जो देश को महत्वपूर्ण चालीस साल सेवा दे उसकी पेंशन बंद। सुविधाओं के नाम पर सरहद के चौकीदारों के साथ छलावा यानी अर्धसैनिक आधे-अधूरे ठगे से ओर दूसरी तरफ चार-चार पेंशन लेने वाले नकली चौकीदार मालामाल।
कोषाध्यक्ष वीएस कदम ने विधायकों, सांसदों, खिलाड़ियों, फिल्मी हस्तियों व पैरामिलिट्री फोर्स के करोड़ों भारतीय प्रशंसकों से उनके इस अभियान में शामिल होने की अपील की और कहा कि अभियान में भागीदारी निभा कर सरहदों के वास्तविक चौकीदारों की पुरानी पैंशन बहाली, वन रैंक वन पेंशन व ऑर्गेनाइज्ड ग्रुप “ए” सर्विस के समर्थन आगे आएं यही गलवान व पुलवामा शहीदों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
‘पुष्प वर्षा नहीं पुरानी पेंशन चाहिए’
इसी तरह देश के बाकी केंद्र और राज्य सरकार के करोड़ो कर्मचारी इस नई पेंशन स्कीम से प्रभावित हैं और वो लगातर इसको वापस लेने के लिए प्रदर्शन कर रहे है। इन कर्मचारियों ने भी 26 जून को #RestoreOldPension हैशटैग के साथ ट्विटर और बाकी सोशल मीडिया पर विरोध जतया था। इसमें डॉक्टर, स्वास्थ्य कर्मचारी, शिक्षक समेत वो सभी लोग थे जिन्हें प्रधानमंत्री कोरोना योद्धा बता रहे हैं। कई कर्मचारियों ने सोशल मीडिया पे लिखा कि उन्हें 'पुष्प वर्षा नहीं पुरानी पेंशन चाहिए।’
गौरतलब है कि जनवरी 2004 में एनडीए सरकार ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकारी कर्मचारियों के लिए वर्षों से चली आ रही पुरानी पेंशन योजना अर्थात गारंटीड पेंशन योजना की जगह शेयर बाजार आधारित एक नई पेंशन योजना को अध्यादेश के जरिए लागू किया था। जिसका नाम न्यू पेंशन स्कीम दिया गया। 2004 से लेकर 2013 तक अध्यादेश के माध्यम से इस योजना को बनाए रखा गया तत्पश्चात 2013 में यूपीए द्वारा पीएफआरडीए एक्ट पास कर इस योजना को परमानेंट किया गया।
नई पेंशन स्कीम क्या है?
नई पेंशन व्यवस्था यानी राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) 1 जनवरी, 2004 को या उसके बाद केंद्र सरकार (सशस्त्र बलों को छोड़कर) के लिए सभी नई भर्तियों के लिए अनिवार्य योगदान योजना है। कुछेक राज्यों को छोड़कर सभी राज्य सरकारों ने इसे अनिवार्य बना दिया है। 2013 में स्थापित एक स्वतंत्र पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए), एनपीएस को नियंत्रित करता है।
यह अमेरिकी मॉडल पर आधारित योजना है जिसे आम भाषा में निजी पेंशन या पेंशन का निजीकरण कह सकते हैं। यह 2003 में पूर्व एनडीए सरकार द्वारा लागू की गई थी। जबकि पेंशन नियामक की स्थापना के बारे में 2004 में कानून यूपीए द्वारा भाजपा के समर्थन से पारित किया गया था। बड़े पेंशन फंड को इक्विटी और बांडों में निवेश किया जाता है, जिससे बाजार संबंधी जोखिम बढ़ जाता है।
एक निश्चित कट ऑफ तिथि के बाद शामिल होने वाले कर्मचारियों के लिए यह अनिवार्य है, साथ ही उनके वेतन का 10% स्वचालित रूप से निधि में जा रहा है। त्रिपुरा कुछ ऐसे राज्यों में से एक था, जो अपने कर्मचारियों के लिए एनपीएस लागू नहीं कर रहा था और पुरानी पेंशन योजना को जारी रखे हुआ था, यानी जो कर्मचारियों की कड़ी मेहनत से अर्जित किए गई पेंशन को जोखिम में नहीं डालता था लेकिन अब वहां भी भाजपा के शासन में आने के बाद इसे समाप्त कर दिया गया है। और नई पेंशन स्कीम लागू कर दी गई है।
न्यू पेंशन स्कीम का कर्मचारी क्यों कर रहे है विरोध?
न्यू पेंशन स्कीम के तहत कर्मचारियों की बेसिक सैलरी और डीए से 10% हिस्सा काट लिया जाता है और सरकार उस हिस्से के बराबर ही अर्थात 10% रकम मिलाकर तीन कंपनियों में यथा एलआईसी, यूटीआई और एसबीआई में बराबर बराबर निवेश कर देती है फिर यह कंपनियां इस पैसे को अलग-अलग फंड मैनेजर के माध्यम से निवेश करती हैं। जहां यह समस्त रकम कर्मचारी के रिटायरमेंट तक जमा रहती है।
कर्मचारियों के साथ समस्या यह है कि इस संपूर्ण 20% रकम को वे कभी निकाल नहीं सकते हैं। यही नहीं आज 15 साल बीत जाने के बाद भी सरकार ने कर्मचारियों को इस रकम में से केवल अपने हिस्से का अधिकतम 25% विशेष परिस्थितियों में ही निकालने की छूट दी है यह विशेष परिस्थितियां अत्यंत अव्यावहारिक हैं। इस पेंशन स्कीम के लागू होने के बाद से ही कर्मचारियों में भारी गुस्सा है।
यही नहीं 2004 से पहले सेवा में आए कर्मचारी की सेवाकाल के दौरान मृत्यु होने पर उसकी फैमिली को फैमिली पेंशन प्राप्त है जबकि 2004 अर्थात एनपीएस लागू होने के बाद सेवा में आए कर्मचारी की सेवाकाल में मृत्यु होने पर उसकी फैमिली को सरकार तभी फैमिली पेंशन देगी जब उसके एनपीएस अकाउंट की समस्त धनराशि सरकार के खाते में जमा कर दी जाएगी।
कर्मचारी इसे हड़प नीति की संज्ञा दे रहे हैं उनका आरोप है कि सरकार कर्मचारी के हिस्से को किस आधार पर हड़प रही है। यही नहीं निवेश की गई समस्त धनराशि आज ऐसी कंपनियों में जोखिम उठा रही है जहां लगातार घोटाले हो रहे हैं। अभी हाल ही में 15 जनवरी 2019 को आईएल एंड एफएस नामक कंपनी में 92,000 करोड रुपये स्लोडाउन का शिकार हुए जिसमें 16000 करोड़ रुपये कर्मचारियों के पेंशन फंड के थे। जिसके कारण कर्मचारियों की नींद उड़ी हुई है। उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड के कर्मचारियों का कई हजार करोड़ रुपये जो कि एनपीएस में जमा हुआ था घोटाले का शिकार हो गया।
पीएफआरडीए के तहत संपूर्ण राशि का केवल 15% शेयर मार्केट में लगाया जाना था जबकि 85% सरकारी प्रतिभूतियों में लगाया जाना था किंतु आज तक पीएफआरडीए इस बात की पुष्टि नहीं कर सका है कि समस्त धनराशि का 85% कहां लगा है और 15% कहां लगा है, और न ही इस पर अलग अलग रिटर्न मिलता है, यही नहीं इस रकम पर कोई मिनिमम रिटर्न की गारन्टी नही है। कर्मचारियों का कहना है कि इस समस्त धनराशि को कंपनियां शेयर मार्केट में लगा रहे हैं जहां उनका पैसा सुरक्षित नहीं है।
कर्मचारी की सेवानिवृत्ति के पश्चात इसी एनपीएस में जमा हुई रकम के 40% हिस्से से कर्मचारी को पेंशन दी जानी है जबकि 60% रकम सेवानिवृत्ति के बाद कर्मचारी को दे दी जाएगी किंतु इस बात की पुष्टि नहीं हो पा रही है कि जिस तरह पुरानी पेंशन योजना के तहत रिटायरमेंट कर्मचारी को उसकी अंतिम सैलरी का 50% पेंशन के तौर पर डीए मिला कर दिया जाता है और हर छह माह में उसकी पेंशन में डीए की बढ़ोतरी होती रहती है साथ ही साथ हर साल तीन परसेंट का इंक्रीमेंट मिलता है एवं पे रिवीजन की फैसिलिटी भी प्राप्त होती है किंतु एनपीएस के तहत सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारी को अंतिम बेसिक सैलरी का कितने प्रतिशत पेंशन प्राप्त होगी
न्यू पेंशन स्कीम में मिनिमम पेंशन की गारंटी भी नहीं है जबकि पुरानी व्यवस्था में 9000 रुपये की सेवानिवृत्ति के पश्चात मिनिमम पेंशन की गारंटी होती है। आज एनपीएस के तहत रिटायर होने वाले कर्मचारियों को कहीं 100, 200, 500, 800 रुपये की पेंशन मिल रही है जिसके कारण कर्मचारी लगातार विरोध प्रदर्शन करते चले आ रहे हैं।
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