सामूहिक प्रयास ख़तरे में है, पाठ्यपुस्तकों से हमारा नाम हटाएं : शिक्षाविदों ने एनसीईआरटी से कहा
राजनीतिक विज्ञान विशेषज्ञ सुहास पालसीकर और योगेन्द्र यादव के राजनीतिक विज्ञान की पुस्तकों से मुख्य सलाहकार के रूप में उनका नाम हटाने के लिए एनसीईआरटी को पत्र लिखे जाने के कुछ ही दिनों बाद 33 शिक्षाविदों ने परिषद से पाठ्यपुस्तकों से अपना नाम हटाने की मांग करते हुए कहा है कि उनका सामूहिक रचनात्मक प्रयाय खतरे में है।
राष्ट्रीय शिक्षा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) के निदेशक दिनेश सकलानी को पत्र लिख कर पाठ्यपुस्तकों से नाम हटाने की मांग करने वालों में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर कांति प्रसाद वाजपेयी भी हैं।
पत्र के हस्ताक्षरकर्ताओं में अशोका विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रताप भानू मेहता, सीएसडीएस के पूर्व निदेशक राजीव भर्गव, जेएनयू की पूर्व प्रोफेसर नीरजा गोपाल जयाल, जेएनयू की प्रोफेसर निवेदिता मेनन, नागरिक संगठन ‘सोशल कॉज’ के प्रमुख विपुल मुद्गल, हैदराबाद विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर के सी सूरी, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज के पूर्व निदेशक पीटर रोनाल्ड डीसूजा शामिल हैं।
इस पत्र में कहा गया है ‘‘चूंकि मूल पुस्तकों में कई व्यापक संशोधन किये गए हैं और इन्हें अलग तरीके की किताब बना दिया गया है... ऐसे में हमारे लिए यह स्वीकार करना कठिन है कि इन्हें हमने तैयार किया और इनसे हमारा नाम जुड़े। हमारा अब मानना है कि यह सामूहिक रचनात्मक प्रयास खतरे में है।’’
इसमें कहा गया है कि पाठ्यपुस्तकों को विभिन्न दृष्टिकोण और विचारधाराओं से जुड़े राजनीतिक विज्ञान विशेषज्ञों के साथ विस्तृत चर्चा और सहयोग के बाद तैयार किया गया था। पत्र के अनुसार, इसका मूल उद्देश्य भारत के स्वतंत्रता संघर्ष, संवैधानिक ढांचे, लोकतंत्र के कामकाज एवं भारतीय राजनीति के महत्वपूर्ण आयामों के बारे में ज्ञान प्रदान करने के साथ साथ वैश्विक घटनाक्रम और राजनीतिक विज्ञान के सैद्धांतिक आयामों को जोड़ना भी था।
पिछले सप्ताह, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) को लिखे पत्र में सुहास पालसीकर और योगेन्द्र यादव ने कहा था कि राजनीतिक विज्ञान की पुस्तकों से मुख्य सलाहकार के रूप में उनका नाम हटा दिया जाए।
उन्होंने कहा था कि पाठ्य पुस्तकों को युक्ति संगत बनाने की कवायद में इन्हें विकृत कर दिया गया है और अकादमिक रूप से बेकार बना दिया गया है।
दोनों ने कहा था कि जो पाठ्यपुस्तकें पहले उनके लिए गर्व का विषय हुआ करती थीं वे अब उनके लिए शर्मिंदगी का विषय बन गयी हैं।
हालांकि, एनसीईआरटी ने कहा था कि पाठ्यपुस्तक से संबद्ध रहे किसी के भी द्वारा नाम वापस लेने का सवाल ही नहीं उठता क्योंकि विद्यालयी स्तर पर पाठ्यपुस्तकें किसी दिए गए विषय पर ज्ञान और समझ के आधार पर विकसित की जाती हैं और किसी भी स्तर पर व्यक्तिगत लेखन संबंधी दावा नहीं किया जाता।
गौरतलब है कि राष्ट्रीय शिक्षा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने नये शैक्षणिक सत्र के लिए 12वीं कक्षा की राजनीतिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में से ‘महात्मा गांधी की मौत का देश में सांप्रदायिक स्थिति पर प्रभाव, गांधी की हिंदू मुस्लिम एकता की अवधारणा ने हिंदू कट्टरपंथियों को उकसाया,’ और ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) जैसे संगठनों पर कुछ समय के लिए प्रतिबंध’ सहित कई पाठ्य अंशों को हाल ही में हटा दिया था।
वहीं, 11वीं कक्षा के समाज शास्त्र की पुस्तक से गुजरात दंगों के अंश को भी हटा दिया गया है।
एनसीईआरटी ने हालांकि कहा था कि पाठ्यक्रम को युक्तिसंगत बनाने की कवायद पिछले वर्ष की गई और इस वर्ष जो कुछ हुआ है, वह नया नहीं है।
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