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निज़ामुद्दीन में चला DDA का बुलडोज़र: मनमाने तरीक़े से 'अतिक्रमण' हटाने का आरोप

दिल्ली के निज़ामुद्दीन में DDA ने अतिक्रमण हटाने के नाम पर बुलडोज़र चलाया, इस कार्रवाई के दौरान दरगाह और मस्जिद से जुड़े लोगों ने आरोप लगाया कि DDA ने ग़लत और मनमाने तरीक़े से कार्रवाई की।
DDA

दिल्ली के निज़ामुद्दीन में सड़क किनारे सैयद अब्दुल्लाह उर्फ भूरे शाह की दरगाह पर से अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की जा रही थी वहीं दूसरी तरफ से दो बच्चे भागते हुए मलबे में कुछ तलाश कर रहे थे। हमने जानना चाहा तो पता चला उन्होंने यहां एक पिंजरे में चिड़िया का एक छोटा बच्चा देखा था वे उसी को तलाश रहे थे। काफी देर तक वे चिड़िया के बच्चे को तलाश करते रहे और फिर मायूस होकर लौट गए। चिड़िया के बच्चे को तलाश करते वक़्त दोनों के ज़ेहन में क्या चल रहा होगा चेहरे पर साफ दिखाई दे रहा था। 

फिर चला DDA का बुलडोज़र

दिल्ली के निजामुद्दीन में 27 मई को DDA का बुलडोज़र चला। ये बुलडोज़र कैसे चला और कहां-कहां चला उससे पहले सैयद अब्दुल्लाह उर्फ भूरे शाह की दरगाह की इन तस्वीरों पर गौर करें।

भूरे शाह की दरगाह कार्रवाई से पहले और कार्रवाई के बाद

''अगली सुनवाई से पहले जबरन चला बुलडोज़र''

आज यहां एक बार फिर बुलडोज़र चला और अतिक्रमण के नाम पर यहां बने दो कमरों और एक गेट को जिस पर 'भूरे शाह की मज़ार' लिखा था उसे तोड़ दिया गया। साथ ही पक्के फर्श को भी खोद दिया गया। यहां मौजूद केयरटेकर (ख़ादिम) युसूफ बेग के वकील वसीम अहमद बताते हैं कि ''इन्होंने (युसूफ बेग़) ने इस मज़ार को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में एक रिट पिटिशन दी है, जब पहले डेमोलिशन हुआ था अप्रैल में। जिसके बाद 19 अप्रैल 2023 को जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने स्टे ग्रांट किया था और एक कमेटी बैठाई थी। ये 6 लोगों की कमेटी थी। इस कमेटी को अगली सुनवाई से पहले रिपोर्ट जमा करनी थी लेकिन उससे पहले 27 मई को यहां दोपहर में DDA ने आकर जबरन डेमोलिश कर दिया, जबकि हमें पहले से कोई जानकारी नहीं दी गई थी। DDA दावा कर रही थी कि ये ज़मीन उनकी है, लेकिन ऐसा कोई रिकॉर्ड उन्होंने हमें नहीं दिखाया जबकि हमने उन्हें अपने रिकॉर्ड दिखाए, नोटिफिकेशन दिखाए। एक हज़ार गज़ हमारी ज़मीन थी। उसकी नपाई और पैमाइश भी दिखा दी थी। दिल्ली वक्फ बोर्ड के अधिकारी भी थे उन्होंने भी बताया कि ये ज़मीन हमारी है, लेकिन बावजूद उन्होंने यहां बुलडोज़र चला दिया। पुलिस की मौजूदगी में ये सारा काम हुआ है तो एक हद तक हम पुलिस को भी जिम्मेदार मानते हैं। DDA जिस ऑर्डर को लेकर आया था वे इससे अलग था। वे इसके अपोजिट ओबेरॉय होटल के सामने था। जबकि इसका (भूरे शाह की दरगाह का) उससे कोई लेना देना नहीं था लेकिन बावजूद उन्होंने कोर्ट के आदेश का उल्लंघन किया। अब हम उनके खिलाफ कार्रवाई करेंगे जो भी इसके जिम्मेदार हैं उसे इसकी सज़ा भुगतनी होगी।''

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इसके साथ ही वकील वसीम अहमद भूरे शाह की दरगाह पर अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के दिन पर भी सवाल उठाते हैं। वे कहते हैं कि ''अतिक्रमण हटाने की तारीख 25-26 मई थी लेकिन इन्होंने जानबूझकर शनिवार का दिन चुना क्योंकि शनिवार और रविवार को कोर्ट बंद होता है तो हम चाहकर भी कोर्ट जाकर ये कार्रवाई नहीं रुकवा सकते थे। हमें तो कोई जानकारी ही नहीं थी कि ये भूरे शाह की दरगाह पर भी कोई कार्रवाई कर सकते हैं। हमने यहां जगह-जगह कोर्ट के आदेश लगा रखे हैं जो इन्होंने देखे भी लेकिन उसे भी नज़रअंदाज़ कर दिया गया।

''पांच सौ साल पुरानी है भूरे शाह की दरगाह''

बताया जाता है कि ये पांच सौ साल पुरानी दरगाह है। भूरे शाह निज़ामुद्दीन औलिया के मुरीदों में से एक थे। साथ ही हमें बताया गया कि जिस सड़क किनारे ये दरगाह है वे सड़क यहां 1980 के क़रीब बनी थी। उससे पहले तो यहां एक मिट्टी की पगदंडी थी। दिल्ली के जामा मस्जिद से आगरा को जाने वाली सड़क थी जिसे अब मथुरा रोड कहा जाता है।

हालांकि DDA की कार्रवाई में किसी भी मज़ार को नहीं छुआ गया लेकिन दरगाह की शक्ल-ओ-सूरत बदल कर रख दी। अब बस सड़क किनारे कुछ कब्रें दिखती हैं।

सौ साल पुरानी ईंट होने का दावा

यहां पहुंचे सीनियर वकील महमूद प्राचा तोड़े गए मलबे से कुछ पतली ईंटों को उठाकर दिखाते हुए कहते हैं कि ''ये ईंटें कम से कम सौ साल पुरानी होगी। यहां सैकड़ों साल पुराने construction को तोड़ा गया है। ये सारी कार्रवाई वक्फ बोर्ड के चेयरमैन, DDA के भ्रष्ट अधिकारियों और लैंड माफिया की मिलीभगत से हो रही है।'' वे आगे कहते हैं कि ''मैं जो हालात देख पा रहा हूं, वक्फ बोर्ड के चेयरमैन, DDA और दिल्ली पुलिस के अधिकारी ये सब लोग मिलकर कोर्ट के आदेश का ग़लत तरीके से इस्तेमाल कर रहे हैं। कोर्ट को मिसलीड करके कोर्ट का आदेश लिया जाता है। कोर्ट को बताया जाता है कि अतिक्रमण हो रहा है, तो कोई भी कोर्ट बोलेगी ही कि अतिक्रमण हटाओ लेकिन उस अच्छे ऑर्डर की बुनियाद पर ज़मीन पर क्या क्राइम होते हैं ये हम हाइलाइट करेंगे। और इन सभी लोगों ने क्रिमिनल ऑफेंस किया है, उसके खिलाफ हम कानूनी कार्रवाई करवाएंगे और इनके खिलाफ़ FIR करवाएंगे।''

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दो दिन पहले कोर्ट का ऑर्डर आने पर जब हमने वकील महमूद प्राचा से बात की थी तो उन्होंने कुछ ऐसी ही कार्रवाई की संभावना जताई थी और जब DDA की कार्रवाई हुई तो उन्होंने कहा कि ''हमने पहले ही बता दिया था कि कोर्ट जो आदेश देती है और ज़मीन पर DDA जो कार्रवाई करती है उसमें ज़मीन आसमान का अंतर होता है और वो आज यहां दिख रहा है।''

'ब्यूटीफिकेशन' के नाम पर कार्रवाई

दरअसल 25 मई को ही ओबेरॉय होटल के सामने क़दीमी क़ब्रिस्तान में DDA 'ब्यूटीफिकेशन' का हवाला देकर अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई करने वाला था। यहां दो मस्जिदें, दो दरगाह और चारों तरफ कब्र ही क़ब्र हैं। 25 मई को यहां भारी सुरक्षा बल और दिल्ली पुलिस की तैनाती की गई थी लेकिन उस दिन कोई कार्रवाई नहीं की गई, 26 मई को भी कोई कार्रवाई नहीं हुई।

दरगाह मुसाफिर शाह से हटाया गया 'अतिक्रमण'

27 मई को भारी सुरक्षा बल, दिल्ली पुलिस की तैनाती कर DDA के अधिकारी, कर्मचारियों ने यहां बुलडोज़र चलाने की कार्रवाई की और सबसे पहले बुलडोज़र 'हज़रत मुसाफिर शाह' की दरगाह के आस-पास चला, जिस वक़्त बुलडोज़र चल रहा था चारों तरफ धूल के ग़ुबार में सिसकियां सुनाई दे रही थीं। ज़ार-ज़ार रोती महिलाएं पुलिस प्रशासन को कोस रही थीं। वहीं दरगाह से जुड़े पुरुषों की आंखें भी नम थी लेकिन वे बार-बार पुरानी तस्वीरों को दिखाकर DDA के अधिकारियों से संभल कर बुलडोज़र चलवाने की गुज़ारिश कर रहे थे। इसके बावजूद DDA बहुत जल्दी में कार्रवाई को अंजाम देने में दिखाई दे रहा था।

रोती हुई महिलाओं ने बताया कि ''2017 में भी इसी तरह की कार्रवाई हुई थी लेकिन इस बार तो लग रहा है कि कार्रवाई करने वाले कोई रंजिश निकाल रहे हैं। हम उनके साथ जितना सहयोग कर रहे हैं वे उतनी ही बेरहमी से बुलडोज़र चलवाए जा रहे हैं।''

''कहां गई यहां की ख़ानक़ाह''?

कुछ बुजुर्ग महिलाओं ने बताया कि ''यहां सिर्फ दरगाह नहीं थी ये पूरी ख़ानक़ाह थी (ख़ानक़ाह उसे कहा जाता है जो दरगाह से लगी हुई सूफियों के ठहरने की जगह होती थी)। लेकिन इन्होंने तोड़ते-तोड़ते सब तोड़ दिया। सिर्फ़ दरगाह के नाम पर अब क़ब्र बची है। यहां कव्वालियां हुआ करती थीं, लेकिन सब बंद हो गया।'' इसके साथ ही वे उन तमाम पुरानी तस्वीरों को दिखाते हुए बताती हैं कि ''ये देखिए जिन्हें ये बाद में बनाए हुए कमरे कह रहे हैं वे ख़ानक़ाह थी लेकिन इन्होंने सब तोड़ दिया, ये इन तस्वीरों को देख ही नहीं रहे हैं।''

दरगाह की पुरानी तस्वीर

जैसे-जैसे लोगों को दरगाह से अतिक्रमण हटाने की ख़बर मिल रही थी भीड़ बढ़ती जा रही थी।लेकिन पुलिस प्रशासन सख्ती से लोगों को हटा रहा था। यहां तक की पत्रकारों को कैमरे बंद करने के आदेश दिए जा रहे थे। पत्रकारों को कार्रवाई के दौरान मौजूद न रहने के नियम-कानून पढ़ाए जा रहे थे।

साढ़े सात सौ साल पुरानी दरगाह से भी हटा 'अतिक्रमण'

बुलडोज़र रुकने का नाम नहीं ले रहा था। हज़रत मुसाफिर शाह की दरगाह के बाद 'मस्जिद अल-फिरदौस' के आस-पास के निर्माण को अतिक्रमण बताते हुए तोड़ दिया गया। इसके साथ ही यहां साढ़े-सात सौ साल पुरानी दरगाह के भी सामने के गेट के आस-पास हुए निर्माण को तोड़ दिया गया। इस कार्रवाई से बेहद दुखी दरगाह के ख़ादिम अब्दुल ख़ालिद की आंखे भी नम हो गई। उन्होंने बताया कि वे पिछली आठ-नौ पीढ़ी से यहीं हैं। वे कहते हैं कि ''ये साढ़े सात सौ साल पुरानी दरगाह है। दरगाह और मस्जिद का नाम गजेट (Gazette ) में दर्ज है। हमारे पास सारे सबूत हैं लेकिन DDA वालों ने आज आकर यहां डेमोलिशन कर दिया है। मस्जिद से लगे वॉशरूम तोड़ दिए गए हैं। दरगाह का आगे का हिस्सा तोड़ दिया है। वक्फ बोर्ड वालों ने भी उन्हें बहुत बोला लेकिन उन्होंने किसी की नहीं सुनी। DDA वाले अपनी मर्जी चला रहे थे। वे किसी को आगे नहीं आने दे रहे थे। हमने ये देखा है कि हम अपनी बात लेकर किसी भी विभाग में जाएं तो हमारी कहीं सुनवाई नहीं है। कोई हमें समझने को तैयार नहीं है। ऑर्डर में है कि जहां केस चल रहा है वहां कोई कार्रवाई नहीं होगी। हमारा केस चल रहा है लेकिन उन्होंने यहां भी तोड़फोड़ की है। हमें तो यही लगता है कि इस ज़मीन पर बहुत बड़े बड़े भू माफिया की नज़र है हमें यहां से हटाकर यहां पर बिल्डर कब्जा करेंगे।''

कार्रवाई के दौरान यहां लोकल लोग भी पहुंचे। ऐसे ही एक शख्स ने हमसे बात की। उन्होंने कहा कि ''ये आज-कल की जगह नहीं है साढ़े-सात सौ, आठ सौ साल पुरानी दरगाह, कब्रिस्तान है। उसे आकर DDA कह रहा है हमारी ज़मीन है। ये कैसे हो सकता है, ये वक्फ की ज़मीन है और अगर अतिक्रमण हुआ भी है तो वे वक्फ बोर्ड हटावा सकता है लेकिन यहां तो मनमाने तरीके से कार्रवाई हो रही है। ऐसा लग रहा है मुसलमानों की कोई सुन नहीं रहा है।''

सुबह से शाम हो गई लेकिन DDA का बुलडोज़र रुकने का नाम नहीं ले रहा था। वे हर दीवार, ढांचा जो उन्हें लग रहा था अतिक्रमण है साफ करते चल रहे थे।

पहले ओबेरॉय होटल के सामने फिर, सब्ज़ बुर्ज के सामने भूरे शाह की दरगाह पर अतिक्रमण के नाम पर DDA का बुलडोज़र दहाड़ता हुआ चला। फिर न किसी मासूम के गिरते आंसू दिखे न किसी की सिसकियां। वे अपने काम को बहुत ही मुस्तैदी से अंजाम देकर शाम को पांच-साढ़े पांच बजे एक सकुशल संपन्न कार्य की मुस्कुराहट के साथ सरकारी गाड़ियों में बैठे और चले गए और पीछे छोड़ गए मलबे का ढेर और आंसुओं में डूबी बेबसी। हम भी अपने काम को समेट कर आगे बढ़ गए लेकिन जैसे ही भूरे शाह की दरगाह के सामने से गुज़रे तो एक पिंजरे पर नज़र पड़ी जिसमें चिड़िया का वही छोटा सा बच्चा था जिसे दो बच्चे तलाश रहे थे। क़रीब जाकर देखा तो चिड़िया का बच्चा अजीब बेचैन कर देने वाली आवाज के साथ चीं-चीं कर रहा था।

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