Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

'ब्यूटीफिकेशन' के नाम पर DDA का बुलडोज़र क्या एक बार फिर करेगा मनमर्ज़ी?  

DDA का बुलडोज़र एक बार फिर कार्रवाई करने के लिए तैयार है। इस बार दिल्ली के ओबेरॉय होटल के सामने कार्रवाई की तैयारी है। जिस जगह DDA की कार्रवाई होगी वहां क़रीब साढ़े-सात सौ साल पुरानी दरगाह और क़ब्रिस्तान है। 
masjid

दिल्ली के नामी होटलों में से एक ओबेरॉय होटल के सामने निज़ामुद्दीन में सड़क किनारे एक गेट दिखता है जिसमें दाखिल होने पर आमने-सामने दो मस्जिदें दिखती हैं एक मस्जिद का नाम मस्जिद-ए-फिरदौस है और दूसरी का मस्जिद इलाही ख़ान। इसी मस्जिद के गेट से अंदर घुसते ही पता चलता है कि यहां एक मदरसा है, जबकि एक बोर्ड पर ईदगाह लिखा दिखता है। इसके अलावा यहां  लिखा है 735 साल पुरानी पीर की दरगाह,  'दरगाह हज़रत जलालुद्दीन फिरदौसी', क़दीमी कब्रिस्तान, इसके अलावा यहां एक और दरगाह है जिस पर लिखा है 'दरगाह हज़रत मुसाफिर शाह'। दो मस्जिद, दो दरगाह के अलावा जहां नज़र जाती है क़ब्रें ही क़ब्रें दिखती हैं। बताया गया यहां सौ साल से लेकर सात सौ साल पुरानी कब्रें हैं। 

हम क़ब्रों पर लिखी तारीखों को देख रहे थे तो पता चला यहां सैयद अली मुहम्मद ख़ुसरो और उनकी पत्नी की भी क़ब्रे हैं। एएम (अली मुहम्मद) खुसरो के बारे में हमने थोड़ी सी जानकारी जमा करने की कोशिश की तो पता चला कि वे हैदराबाद के निज़ाम परिवार से थे, भारत के राजदूत और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर रह चुके थे।  

सैयद अली मुहम्मद ख़ुसरो की क़ब्र

क्या है मामला? 

वैसे तो दिल्ली का ये इलाक़ा बेहद शांत ही रहता है लेकिन पिछले एक-दो दिन से यहां कुछ हलचल बढ़ गई है, हम 25 मई की सुबह यहां पहुंचे तो चारों तरफ भारी सुरक्षा बल और दिल्ली पुलिस की तैनाती की गई थी। मस्जिद और दरगाह से जुड़े लोग हैरान-परेशान से दिखे, सबकी आखों में एक सवाल दिख रहा था कि क्या बुलडोज़र चल जाएगा? कोई भी कुछ भी बोलने को तैयार नहीं था, लेकिन वहां मौजूद कुछ लीगल टीम से पता चला कि DDA ( Delhi Development Authority) इस जगह का सौंदर्यीकरण  ( Beautification ) करना चाहती है।  पर एक सवाल जो हर किसी के ज़ेहन में चल रहा था कि इलाके को पुलिस छावनी में तब्दील कर किस तरह का ब्यूटिफिकेशन किया जाएगा? 

लेकिन वहां मौजूद कुछ लोगों ने दबी ज़बान में बताया कि ''ब्यूटिफिकेशन के नाम पर यहां अतिक्रमण का हवाला देकर बुलडोज़र चलाने की तैयारी की जा रही है''। 

25 मई को भारी पुलिस की तैनाती की गई थी

तेज़ धूप और उमस के बीच धीरे-धीरे लोगों की भीड़ बढ़ने लगी, और इसी बीच सीनियर वकील महमूद प्राचा भी अपनी टीम के साथ पहुंचे और उन्होंने वहां मौजूद पुलिस प्रशासन से उनकी तैनाती के पेपर मांगे तो पता चला कि जवाब सीनियर अधिकारी देंगे जो उस वक़्त वहां मौजूद नहीं थे। आख़िर किस के ऑर्डर पर यहां इतनी पुलिस-फोर्स की तैनाती की गई थी वहां उस वक़्त जवाब देने वाला कोई नहीं था लेकिन कुछ पुलिस वालों ने कहा कि ''SHO साहब का फोन नंबर ले लीजिए और उनसे बात कर लें''। हमारे सामने ही उन्हें कई बार फोन लगाया गया लेकिन फोन नहीं उठाया गया, हमने ख़ुद भी फोन मिलाया लेकिन हमारा फोन भी नहीं उठाया गया, हालांकि देर शाम हमने एक बार फिर कोशिश की तो फोन उठा लिया गया और जब हमने भारी पुलिस की तैनाती का सबब जानने की कोशिश की तो जवाब मिला '' हम फोन पर नहीं बता सकते आप थाने आकर बात करें''। 

दरअसल इस पुलिस बल की तैनाती DDA की कार्रवाई के मद्देनज़र की गई थी। हमने काफी देर तक इंतज़ार किया की DDA से जुड़ा कोई अधिकारी पहुंचे तो उनसे पूरी जानकारी ली जाए पर कोई नहीं मिला। चूंकि कार्रवाई का भी एक वक़्त होता है तो शाम होते-होते जिस तरह से भारी सुरक्षा बल की तैनाती की गई थी वैसे ही धीरे-धीरे कर हटा ली गई। 

गौरतलब है कि 2017 में एक बार पहले भी यहां अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की जा चुकी है। बताया जा रहा है कि उस कार्रवाई के वजह से पहले ही यहां की शक्ल बहुत बदल दी गई है और एक बार फिर DDA कार्रवाई के लिए तैयार है। 

वहां मौजूद कुछ लोगों से पता चला कि DDA का यहां कार्रवाई को लेकर कोर्ट में केस चल रहा था और अतिक्रमण हटाने का आदेश आ चुका है लेकिन उसकी हार्ड कॉपी उपलब्ध न होने की वजह से  25 मई को कार्रवाई नहीं की गई। 

26 मई को भी नहीं हुई कार्रवाई 

देर रात हमें फोन पर पता चला की DDA 26 मई की सुबह से कार्रवाई करेगी, 26 मई यानी आज शुक्रवार के दिन कार्रवाई हो सकती है, सुबह के वक़्त एक बार फिर कुछ पुलिस वाले पहुंचे लेकिन वे भी कुछ घंटों के बाद चले गए। 

अंदेशों से भरा आज का दिन भी गुज़रा गया, लगा किसी भी वक़्त DDA का बुलडोज़र चलाया जा सकता है लेकिन आज शाम होते-होते फिर पता चला कि अब कार्रवाई कल (शनिवार, 27 मई को) होगी। 

कार्रवाई होगी ये तो तय है। प्रशासन की कार्रवाई का ये तरीका एक बार फिर हमें दिल्ली की मज़ारों पर हो रही कार्रवाई की याद दिला रहा था। 26 अप्रैल को मंडी हाउस मेट्रो स्टेशन के क़रीब रात के करीब 3 बजे डेढ़ सौ साल पुरानी नन्हे मियां चिश्ती की मज़ार को हटा दिया गया। और ऐसा हटाया गया कि कोई बता नहीं सकता कि वहां कभी कोई मज़ार रही होगी। इसी तरह काकानगर, चुनाव आयोग के ऑफिस के बगल में स्थित हज़रत कुतुब शाह चिश्ती की दरगाह और निज़ामुद्दीन में ही पांच सौ साल पुरानी भूरे शाह की मज़ार के साथ भी किया गया था (हालांकि वहां मज़ार तो नहीं हटाई गई लेकिन मज़ार की पुरानी शक्ल बदल कर रख दी गई।) 

इसे भी पढ़ें : 'ग़ायब' होतीं दिल्ली के सूफ़ियों की मज़ार !

दिल्ली में जी-20 के नाम पर आए दिन झुग्गी-बस्तियों पर बुलडोज़र चल रहा है। लोगों के बेघर होने की ख़बर अब दिल्ली के अख़बारों की रोज़ की बात हो गई है। वहीं गायब होती सूफियों की मज़ारों की किस्मत में तो अख़बार का कोई कोना भी नहीं है।

''वक़्फ़ बोर्ड अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभा रहा''

निज़ामुद्दीन के इस इलाक़े में DDA की कार्रवाई के ख़िलाफ़ वकील महमूद प्राचा पहुंचे थे, वे बताते हैं कि दिल्ली में जहां भी मज़ारों को हटाया जा रहा है उसके लिए वक़्फ़ बोर्ड जिम्मेदार है क्योंकि ये सारी मज़ारें, वक्फ बोर्ड की जिम्मेदारी बनती है। उनका मानना है कि वक़्फ़ बोर्ड की किसी भी ज़मीन पर कोई कार्रवाई होती है तो उसे बचाने की ज़िम्मेदारी वक़्फ़ की है लेकिन वक़्फ़ अपनी जिम्मेदारी को सही से नहीं निभा रहा और इसी का खामियाजा दिल्ली की दरगाहों को उठाना पड़ रहा है।  

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए उन्होंने कहा कि'' मुझे पता चला कि यहां क़रीब 12 एकड़ से भी ज़्यादा वक़्फ़ की ज़मीन है, चूंकि हम लोग मुस्लिम समुदाय से आते हैं तो हमारी भी ज़िम्मेदारी बनती है कि हम वक़्फ़ की ज़मीन की हिफाज़त करें और उस हैसियत से और मस्जिद-ए-फिरदौस के ख़ादिम अब्दुल ख़ालिद के वकील होने की हैसियत मैं यहां आया हूं, हमें पता चला है कि ऑर्डर आया है डेमोलिशन का। वे आगे बताते हैं कि ''इसमें कोई शक की गुंजाइश नहीं है कि ये जगह वक्फ की है यहां चारों तरफ़ क़ब्र ही क़ब्र नज़र आएंगी लेकिन उसके बावजूद ऐसे हालात क्यों पैदा हो गए इसकी जवाबदेही वक़्फ़ बोर्ड के चेयरमैन की बनती है।'' 

क्या होती है वक़्फ़ की प्रॉपर्टी?

इसके साथ ही उन्होंने समझाना चाहा की आख़िर क्या होता है वक़्फ़ का मतलब, वे बताते हैं कि ''सरकार वक़्फ़ की ज़मीन नहीं ले सकती, वक़्फ़ होता है कि कोई मुस्लिम समुदाय का व्यक्ति अपनी ख़ुद की कमाई से बनाई गई प्रॉपर्टी ( जिसमें पैसा, ज़ेवर भी शामिल हो सकता है ) का कुछ हिस्सा या फिर सारा हिस्सा वक़्फ़ करता है तो इसका मतलब होता है वे वक़्फ़ अल्लाह के नाम करता है और फिर उसपर उसका भी हक नहीं रह जाता। फिर किसी भी सरकार का ऑर्डर, किसी बाबर, अकबर, शाहजहां, औरंगजेब का ऑर्डर भी वक़्फ़ से ज़मीन नहीं ले सकता। सरकार की ज़मीन कभी भी वक़्फ़ में नहीं चढ़ाई गई है, कभी भी नहीं।'' । 

''अतिक्रमण हुआ था तो वक़्फ़ कार्रवाई करता''

अगर ओबेरॉय होटल के सामने के कंपाउंड में DDA की होने वाली कार्रवाई को देखें तो महमूद प्राचा एक सवाल उठाते हैं कि '' अगर इस कंपाउंड में किसी भी तरह का अतिक्रमण है तो उसे कौन हटाएगा? अगर ये वक़्फ़ की ज़मीन है तो वक़्फ़ ही हटाएगा न, इस बात को आप यूं समझिए कि अगर आपके घर में किसी तरह का अतिक्रमण हुआ है तो उसे आप ही हटाएंगे या फिर कोई बाहर का आकर। और अगर कोई बाहर का आकर ये करता है तो आपने उसे ये अधिकार दिया है। वक़्फ़ के पास पूरा अधिकार है  अतिक्रमण हटाने का लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया क्यों? जिसका जवाब वक़्फ़ के चेयरमैन से लिया जाना चाहिए, अभी हाल ही में पटपड़गंज में मज़ार हटा दी गई वक़्फ़ बोर्ड की ज़मीन थी और वक़्फ़ बोर्ड पहुंचा ही नहीं।'' 

इसके साथ ही वे कहते हैं कि ''जो कोर्ट से आदेश है और जो ज़मीन पर कार्रवाई होगी उसमें ज़मीन आसमान का फर्क होता है, अब देखते हैं क्या होगा'' ? 

''सुप्रीम कोर्ट जाकर कार्रवाई रुकवाने की कोशिश की''

वहीं इस मामले में कपाउंड में बनी दरगाह-मुसाफिर शाह की कोर्ट में नुमाइंदगी कर रहे वकील सैयद हसन इस्फ़हानी से भी हमने बात की तो उन्होंने बताया कि ''ऑर्डर आ गया है और उसे लेकर हम आज सुप्रीम कोर्ट भी गए थे लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने दख़ल नहीं दिया है, तो अब अतिक्रमण तो हटाएंगे ही जो भी है, लेकिन अब उन्हें क्या अतिक्रमण लगता है वे वक्फ बोर्ड और DDA के बीच तय होगा।  कल होगी कार्रवाई, इसको बचाने का जो तरीका था हमने कोशिश की, सुप्रीम कोर्ट जाकर रुकवाने की कोशिश की लेकिन वो नहीं हो सका''। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि  '' हमें तो DDA के ऊपर कोई भरोसा ही नहीं है,  लेकिन अब हम इससे बाहर हो गए अब ये मामला DDA और वक़्फ़ बोर्ड के बीच का हो गया है।'' 

क़ानूनी आदेश के बीच शनिवार, 27 मई की सुबह DDA का बुलडोज़र किस तरह से चलेगा ये तो शनिवार को ही पता चलेगा। लेकिन इस बीच मस्जिद और दरगाह से जुड़े लोगों की आज की रात भी बेचैनी और अंदेशों के साथ ही गुज़रने वाली है।

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest