तीन साल के भीतर दूसरी बार सड़क पर किसान, आख़िर वादा ख़िलाफ़ी क्यों कर रही मोदी सरकार?
"पिछली बार प्रधानमंत्री मोदी ने साल भर चले किसान आंदोलन के आगे झुकते हुए तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया था। कहा था शायद उनकी तपस्या में कोई कमी रह गई, तभी वे इन कानूनों का लाभ किसानों को समझा नहीं पाए। मौजूदा हाल देखकर लगता है कि प्रधानमंत्री ने तपस्या में हुई कमी को दूर करने का कोई प्रयास नहीं किया। तभी एक बार फिर किसान सड़कों पर हैं तो एक बार फिर किसानों पर उन्हीं अत्याचारों को दोहराने की सरकार तैयार है। एक बार फिर लोगों को किसानों के खिलाफ किया जा रहा है कि वे कानून-व्यवस्था के लिए खतरा हैं। अब मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में 3 साल के भीतर दूसरी बार किसान सड़कों पर हैं, तो निश्चित सरकार की कृषि अर्थव्यवस्था को लेकर समझ और किसानों के लिए संवेदनशीलता में कमी है।"
करीब दो साल के अंतराल के बाद एक बार फिर बड़े किसान आंदोलन की शुरुआत हो गई है। कई किसान संगठन मंगलवार को अपने ‘दिल्ली चलो’ अभियान पर निकल पड़े हैं। इसके तहत हजारों किसान ट्रैक्टरों पर सवार होकर दिल्ली आने की तैयारी में हैं। इस बीच 16 फरवरी को किसान संगठन देश भर में ग्रामीण बंद का आयोजन करेंगे। उस रोज ट्रेड यूनियनें भी उनकी इस लड़ाई में शामिल होंगी। दस ट्रेड यूनियनों ने उस दिन हड़ताल पर जाने का ऐलान किया है। कांग्रेस ने भी मामले में तीखी प्रतिक्रिया दी है तो भाकियू उग्राहां ने कल पंजाब में रेल ट्रेक जाम करने का ऐलान किया है। इस बीच दिल्ली पुलिस ने किसानों को रोकने के ढेरों उपाय किए हैं। दिल्ली की सभी सीमाओं पर बड़ी संख्या में पुलिसकर्मियों की तैनाती गई है। सड़कों पर सीमेंट के बैरिकेड, कंटीली तारें और नुकीले उपकरणों को लगा दिया गया है। दिल्ली में एक महीने के लिए धारा 144 लागू कर दी गई है, जिसके तहत किसी भी तरह का विरोध प्रदर्शन, जुलूस या यात्रा निकलना प्रतिबंधित कर दिया गया है। हरियाणा सरकार ने अलग से ऐसे उपाय किए हैं, जिससे किसानों को दिल्ली पहुंचने के पहले ही रोक दिया जाए। यानी 2020 का नजारा फिर से सामने आ खड़ा हुआ है। लेकिन तब ऐसे उपाय किसानों का हौसला तोड़ने में नाकाम रहे थे। क्या इस बार सरकार सफल होगी? लेकिन इससे भी बड़ा सवाल यह है कि आखिर मोदी सरकार किसानों की मांगों को लेकर वादाखिलाफी पर क्यूं उतारूं है?
और तो और, मोदी सरकार अपनी पिछली गलती से भी न कोई सबक ले रही है, न ही उस गलती के लिए पछतावे का कोई भाव दिखाई दे रहा है। गौरतलब है कि 2020 के अंत में किसान आंदोलन शुरु हुआ था। केंद्र सरकार ने किसानों से चर्चा किए बगैर, सारे पहलुओं को जांचे बिना ही तीन कृषि कानून लागू कर दिए थे। इन कानूनों से किसानों से उनकी जमीन और उपज दोनों ही कार्पोरेट के पास चले जाने का रास्ता साफ हो गया था। इससे किसानों का तो नुकसान था ही, देश को भी दीर्घकालिक नुकसान होता।
देश के बेहतर भविष्य की खातिर तब किसानों ने काले कानूनों को वापस लेने के लिए खेतों को छोड़ सड़कों पर उतरने का फैसला लिया था। केंद्र सरकार ने तब कई दौर की बातचीत किसानों से की, लेकिन वह दिखावा ही साबित हुई क्योंकि किसानों की मांगों और उनकी समस्याओं को सरकार ने समझने की कोशिश नहीं की। 2020 से शुरु हुआ आंदोलन 2021 तक चलता रहा। इस दौरान किसानों को कभी आतंकवादी और खालिस्तानी कहा गया, कभी उनके रास्ते में कांटे गाड़े गए, कभी उनके शिविरों में लगे एसी और आंदोलन स्थल पर मिल रहे भोजन को लेकर तंज कसे गए कि किसान ऐश कर रहे हैं। उस आंदोलन में 750 से ज्यादा किसानों की मौत हो गई।
लेकिन सरकार तब भी विचलित नहीं हुई। सबसे दुखद पहलू यह था कि किसानों के इस आंदोलन पर जनता भी गुमराह नजर आई। आंदोलन के कारण ट्रैफिक में दिक्कतें आ रही हैं, यह तो लोगों को दिखाई दिया, लेकिन यह बात समझ नहीं आई कि कुछ दिनों की दिक्कत सालों साल की बदहाली से बेहतर है। अगर कृषि कानून लागू हो जाते तो देश में हुई हरित क्रांति का कोई अर्थ नहीं रह जाता, क्योंकि खेतों से लेकर गोदामों तक कुछ उद्योगपतियों का कब्जा होता। किसानों ने तब देश को एक बड़ी बर्बादी की ओर धकेलने से बचा लिया था, और अब फिर से उन्हें उन्हीं कारणों और मांगों के साथ आंदोलन पर मजबूर होना पड़ा है। पिछली बार प्रधानमंत्री मोदी ने साल भर चले किसान आंदोलन के आगे झुकते हुए तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया था और कहा था कि शायद उनकी तपस्या में कोई कमी रह गई, तभी वे इन कानूनों का लाभ किसानों को समझा नहीं पाए। मौजूदा हाल देखते हुए लगता है कि प्रधानमंत्री ने अपनी तपस्या में हुई कमी को दूर करने का कोई प्रयास ही नहीं किया। तभी एक बार फिर किसानों को सड़कों पर उतरना पड़ा है, एक बार फिर किसानों पर उन्हीं अत्याचारों को दोहराने की सरकार की तैयारी है और एक बार फिर जनता को किसानों के खिलाफ किया जा रहा है कि वे कानून-व्यवस्था के लिए खतरा हैं।
मोदी सरकार के 10 सालों में किसानों ने कई बार अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन किया, लेकिन इस दूसरे कार्यकाल में तीन साल के भीतर दूसरी बार किसान सड़कों पर हैं, तो निश्चित ही सरकार की कृषि अर्थव्यवस्था को लेकर समझ और किसानों के लिए संवेदनशीलता में कमी है। इस कमी को तभी दूर किया जा सकता है जब सरकार किसानों से खुलकर चर्चा करे। लेकिन पिछली बार की तरह इस बार भी आंदोलन से पहले किसान प्रतिनिधियों और केंद्र सरकार के नुमाइंदों के बीच बातचीत असफल रही है। एमएसपी की कानूनी गारंटी, कर्जमाफी, भूमि अधिग्रहण कानून 2013 में संशोधन, किसान आंदोलन में मारे गए किसानों के परिजनों को मुआवजा, लखीमपुर खीरी में किसानों को कुचलने वाले अपराधियों को सजा और प्रभावित किसानों को न्याय, ऐसी महत्वपूर्ण मांगें सरकार के सामने किसानों ने रखी हैं। लेकिन न जाने किन कारणों से किसान हितैषी होने का दावा करने वाली मोदी सरकार इन मांगों को पूरा नहीं करना चाहती।
सरकार की कथनी करनी में अंतर?
सरकार की कथनी और करनी में अंतर का इससे बेहतरीन उदाहरण दूसरा नहीं हो सकता। एक ओर चौधरी चरण सिंह और एमएस स्वामीनाथन को भारत रत्न और दूसरी ओर किसानों पर अत्याचार करके उनके विचारों का अपमान। हालांकि पहले किसान आंदोलन के बाद भाजपा ने उत्तरप्रदेश समेत कई राज्यों के चुनाव जीत लिए, लेकिन क्या आम चुनावों से पहले खड़ा हुआ यह दूसरा आंदोलन भाजपा के प्रदर्शन को प्रभावित कर पाएगा, यह देखना होगा।
पिछले किसान आंदोलन से कोई सबक नहीं ले रही मोदी सरकार?
ऐसा लग रहा है कि केंद्र सरकार ने एक साल तक चले किसान आंदोलन का सबक भुला दिया है। तभी वह एक बार फिर किसान आंदोलन को रोकने और किसानों को दबाने के लिए उन्हीं उपायों का सहारा ले रही है, जिनका इस्तेमाल 2020-21 के किसान आंदोलन के समय किया गया था। तब किसानों को दिल्ली कूच करने से रोकने के लिए रास्ते बंद किए गए। फोन और इंटरनेट पर पाबंदी लगाई गई। किसानों को बदनाम करने के लिए एक पूरा इकोसिस्टम विकसित किया गया, जिसने किसानों और उनसे सहानुभूति रखने वालों को देशद्रोही ठहराया। किसानों को विदेश से फंडिंग मिलने और भारत विरोधी टूलकिट से मदद मिलने की बातें प्रचारित करके उनको बदनाम करने का प्रयास किया गया। इन सबका कुल जमा नतीजा यह था कि किसान एक साल तक सड़क पर लड़ते रहे, जिसमें सात सौ किसानों की जान गई और अंत में केंद्र सरकार को तीनों कृषि कानून वापस लेने पड़े।
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए तीनों कृषि कानून वापस लेने का ऐलान किया तब ऐसा लगा था कि सरकार को सबक मिल गया है। सरकार ने समझ लिया है कि किसानों से टकराने या उन्हें आजमाने का कोई मतलब नहीं है। लेकिन एक बार फिर किसान आंदोलन पर उतरे हैं तो वही सारी तिकड़में आजमाई जा रही हैं। किसानों से दिखावे की बातचीत हुई है, जैसी बातचीत तब होती थी। किसान नेताओं के ट्विटर हैंडल बंद कराए गए हैं। पंजाब से लगती हरियाणा की सीमा पर ऐसी बाड़ेबंदी की गई है, जैसी भारत पाकिस्तान की सीमा पर नहीं है। सड़कों पर कंक्रीट की दीवारें खड़ी कर दी गई हैं। लोहे की बड़ी बड़ी कीलें सड़कों पर लगाई गई हैं। कंटेनर लगा कर सड़कों को बंद किया गया है। किसानों के ऊपर ड्रोन से आंसू गैस के गोले छोड़े जा रहे हैं और अर्धसैनिक बलों को तैनात किया गया है। दिल्ली की सीमा भी चारों तरफ से बंद कर दी गई है। अब सोचें, किसान ऐसा क्या कर रहे हैं कि उनके लिए इस तरह से उपाय करने की जरुरत है? किसान उन्हीं मांगों को तो दोहरा रहे हैं, जिनको सरकार ने नवंबर 2021 में मान लिया था।
आखिर वादाखिलाफी पर क्यों उतरीं मोदी सरकार?
किसान उन्हीं मांगों को दोहरा रहे हैं, जिनको सरकार ने नवंबर 2021 में मान लिया था। वरिष्ठ पत्रकार अजीत द्विवेदी अपने कॉलम में लिखते हैं कि उस समय नवंबर 2021 में सरकार ने किसानों से कई वादे किए थे लेकिन एक बार आंदोलन खत्म होने के बाद जब किसानों की मांगें पूरी करने की बारी आई तो टालमटोल का दौर शुरू हो गया। न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी को कानूनी दर्जा देने की किसानों की मांग पर एक कमेटी बना दी गई। कमेटी की रिपोर्ट का क्या हुआ किसी को पता नहीं है लेकिन इतना पता है कि किसान सरकार की पहल से संतुष्ट नहीं हैं और न सहमत हैं। तभी एक बार फिर उनको उसी मांग के लिए सड़क पर उतरना पड़ा है, जिसे मानने का वादा सरकार ने दो साल पहले किया था।
किसान चाहते हैं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी दर्जा दिया जाए। इसके जवाब में सरकार और इसके इकोसिस्टम की ओर से समझाया जाता है कि अब तो निजी कारोबारी एमएसपी से ज्यादा कीमत पर अनाज खरीद रहे हैं। इसके आंकड़े भी पेश किए जाते हैं, जिसमें बताया जाता है कि कहां निजी कारोबारियों ने एमएसपी से कितनी ज्यादा कीमत पर अनाज की खरीद की, उस कारोबारी ने किसानों को कितनी सुविधाएं दीं और उसके भुगतान का सिस्टम कितना अच्छा है। सवाल है कि जब खुले बाजार में एमएसपी से ज्यादा कीमत पर अनाज की खरीद फरोख्त हो रही है किसान सरकार से ज्यादा निजी कारोबारियों को अनाज बेच रहे हैं तो सरकार को एमएसपी को कानूनी दर्जा देने में क्या दिक्कत है? सरकार कानूनी दर्जा दे दे कि एमएसपी से कम कीमत पर अनाज की खरीद फरोख्त गैरकानूनी होगी।
सरकार ऐसा नहीं कर रही है इसका मतलब है कि पूरे मामले में कोई पेंच है। असल में यह बाजार की तिकड़म होती है कि शुरू में आकर्षित करने के लिए बेहतर डील दो और उसके बाद मनमानी करो। किसानों को आशंका है कि निजी कारोबारियों के खरीद का सिस्टम इसी तरह से चलता रहा तो थोड़े समय में सरकारी खरीद का सिस्टम बिगड़ जाएगा और बंद कर दिया जाएगा। तब किसान कारोबारियों के हवाले हो जाएगा और फिर कारोबारी मनमानी करेंगे। अगर सरकार एमएसपी को कानूनी दर्जा दे देगी तो भले सरकारी खरीद का सिस्टम बंद हो जाए लेकिन बाजार में किसानों का अनाज अच्छी कीमत पर बिकेगा। तभी सरकार को किसानों की इस मांग पर ध्यान देना चाहिए।
एमएसपी से ही जुड़ी उनकी एक मांग है कि एमएसपी को कानूनी दर्जा देने के साथ साथ सभी उपज की एमएसपी तय हो और एमएसपी निर्धारित करने के लिए एमएस स्वामीनाथन फॉर्मूले का इस्तेमाल किया जाए। केंद्र सरकार ने हाल ही में एमएस स्वामीनाथन को भारत रत्न से सम्मानित किया है। निश्चित रूप से वे इस सम्मान के हकदार थे और बहुत पहले उनको यह सम्मान मिलना चाहिए था। देर से ही सही लेकिन उन्हें भारत रत्न मिल गया तो अब सरकार को उनकी ओर से तय किए गए फॉर्मूले पर एमएसपी तय करना चाहिए। सरकारें बार बार स्वामीनाथन फॉर्मूले की चर्चा भी करती हैं। लेकिन उसके हिसाब से किसानों को अनाज की कीमत नहीं देना चाहती हैं। सरकार को अब इस पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए कि खाद, बीज के दाम और सिंचाई में होने वाले खर्च के साथ साथ फसल को मंडी तक पहुंचाने के खर्च और किसान परिवार के सदस्यों की मजदूरी और जमीन के किराए को शामिल करके लागत तय हो और उसके ऊपर एक निश्चित मुनाफा तय किया जाए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों कहा कि वे मानते हैं कि देश में चार जातियां हैं। उन्होंने महिला, गरीब और युवा के साथ चौथी जाति के तौर पर किसान को शामिल किया। सवाल है कि क्या वे इस जाति के लिए कुछ सोच रहे हैं? उन्होंने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की घोषणा की थी। आज 2024 में सरकार और सरकारी दल भी यह दावा नहीं कर रहे हैं कि किसानों की आय दोगुनी हो गई। उलटे कृषि लागत बढ़ती गई है, जिससे किसान की कमाई खत्म हो गई है। अगर सचमुच प्रधानमंत्री किसानों को एक जाति मान रहे हैं और उनके कल्याण के लिए प्रतिबद्ध हैं तो स्वामीनाथन फॉर्मूले के आधार पर सभी फसलों की एमएसपी तय की जाए और एमएसपी को कानूनी रूप दिया जाए ताकि किसी स्थिति में किसान के साथ धोखाधड़ी न हो पाए।
सरकार किसानों के मुद्दे पर कार्य करेगी: भाजपा
भाजपा नेता सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि सरकार पूरी संवेदशीलता और सतर्कता के साथ किसानों के मुद्दे पर कार्य कर रही है। उनकी अधिकांश मांगों को स्वीकार भी कर लिया है और आगे भी सरकार संवेदनशीलता के साथ काम करेगी। अभी कानून की मांग तकनीकी दृष्टि से थोड़ी विचित्र है। अब चुनाव की अधिसूचना जारी होने वाली है तो सरकार चाह कर भी कानून नहीं बना सकती।
राहुल ने घायल किसान से फोन पर बात की, आंदोलन का समर्थन किया
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने किसानों के ‘दिल्ली चलो’ मार्च के दौरान कथित तौर पर पुलिस कार्रवाई में घायल हुए एक किसान से बुधवार को फोन पर बात की और इस आंदोलन के प्रति अपना समर्थन जताया। पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अरविंदर सिंह राजा वडिंग ने राजपुरा स्थित एक अस्पताल के दौरे पर गए जहां से उन्होंने फोन पर राहुल गांधी की बात घायल किसान गुरमीत सिंह से करवाई। राजपुरा के अस्पताल में ही गुरमीत सिंह का इलाज चल रहा है। राहुल गांधी ने अपने व्हाट्सएप चैनल पर इस बातचीत का एक वीडियो साझा किया।
हम किसानों से बातचीत करने को तैयार: अर्जुन मुंडा
किसान आंदोलन पर केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि सरकार प्रदर्शनकारी किसानों से बातचीत करने को तैयार हैं। सरकार किसानों के साथ है। प्रदर्शन से आम लोगों को परेशानी न हो, इसका प्रदर्शनकारी ख्याल रखें। कहा सरकार को किसानों की चिंता है। केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि किसान राजनीति से प्रेरित हैं। उन्हें राजनीति से प्रेरित न होने की सलाह देते हुए कहा कि जिस कानून की बात हो रही है, उसके बारे में जल्दबाजी में ऐसा कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता, जिसकी बाद में आलोचना हो।
किसानों के पक्ष में उतरीं मायावती
किसान आंदोलन पर बसपा सुप्रीमो मायावती का ट्वीट आया है. मावायवती ने कहा, 1. अपने भारत को अन्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाने वाले मेहनतकश किसानों की जो मांगें हैं, सरकार उन्हें गंभीरता से ले तथा उन पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करके उनका समय से समुचित समाधान करे, ताकि अन्नदाता किसानों को अपनी माँगों के समर्थन में बार-बार आन्दोलन के लिए मजबूर न होना पड़े। 2. इस सम्बंध में ’दिल्ली चलो’ के वर्तमान अभियान के तहत आन्दोलित किसानों पर सख्ती करने के बजाय केन्द्र सरकार उनसे सही वार्ता करके उनके आन्दोलन को समाप्त करने का प्रयास करे तो बेहतर तथा इनका शोषण करना भी ठीक नहीं।
कल पंजाब में होगा रेलवे ट्रैक जाम: भाकियू
किसान आंदोलन के बीच पंजाब के सबसे बड़े किसान संगठन भारतीय किसान यूनियन (उग्राहां) ने बड़ा ऐलान किया है और कहा है कि पंजाब भर में कल यानी 15 फरवरी को दोपहर 12:00 बजे से लेकर 4:00 बजे तक रेलवे ट्रैक जाम किए जाएंगे। भारतीय किसान यूनियन ने दिल्ली जा रहे किसानों को रास्ते में रोकने, उनके ऊपर आंसू गैस छोड़ने और लाठी चार्ज के विरोध में यह फैसला लिया है. भारतीय किसान यूनियन (उग्राहां) के अध्यक्ष जोगेंद्र सिंह उग्राहां ने यह ऐलान किया है। हालांकि, भारतीय किसान यूनियन (उग्राहां) किसानों के दिल्ली कूच आंदोलन का हिस्सा नहीं है।
स्वामीनाथन की बेटी ने किया किसानों का समर्थन
कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन को भारत रत्न से सम्मानित किए जाने के उपलक्ष्य में मंगलवार को आयोजित एक कार्यक्रम में उनकी बेटी मधुरा स्वामीनाथन ने कहा कि प्रदर्शनकारी किसान ‘हमारे अन्नदाता’ हैं और उनके साथ अपराधियों जैसा व्यवहार नहीं किया जा सकता है। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, उन्होंने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) में एक स्मृति व्याख्यान में कहा, ‘अखबारों की रिपोर्ट के अनुसार, हरियाणा में उनके लिए जेलें तैयार की जा रही हैं, बैरिकेडिंग की जा रही है, उन्हें रोकने के लिए हर तरह की चीजें की जा रही हैं। ये किसान हैं, अपराधी नहीं हैं। मैं आप सभी से, भारत के प्रमुख वैज्ञानिकों से अनुरोध करती हूं कि हमें अपने अन्नदाताओं से बात करनी होगी, हम उनके साथ अपराधियों जैसा व्यवहार नहीं कर सकते। हमें समाधान ढूंढना होगा। यह मेरा अनुरोध है।’ उन्होंने आगे कहा, ‘मुझे लगता है कि अगर हमें एमएस स्वामीनाथन का सम्मान करना है तो हम भविष्य के लिए जो भी रणनीति बना रहे हैं उसमें किसानों को अपने साथ लेकर चलना होगा।’ बेंगलुरू के भारतीय सांख्यिकी संस्थान में आर्थिक विश्लेषण इकाई की प्रमुख मधुरा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से इस कार्यक्रम में शामिल हुईं।.
MSP पर नए कानून की जरूरत: आरबी सिंह
वैज्ञानिक और आईएआरआई के पूर्व निदेशक आरबी सिंह भी कार्यक्रम में मौजूद थे। वह भी 2000 के दशक के मध्य में किसान संकट का अध्ययन करने वाले स्वामीनाथन आयोग का हिस्सा थे। एनडीटीवी के मुताबिक, उन्होंने कहा कि भारतीय किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर एक नए कानून की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, ‘किसानों को उनकी फसल का सही दाम मिले, इसके लिए आयोग की सिफारिशों को ठीक से लागू करने के लिए देश में एमएसपी पर नया कानून बनाना जरूरी है।’ सिंह ने बताया कि आयोग द्वारा अनुशंसित व्यवस्था जिसमें एमएसपी को फसल उत्पादन की लागत से कम से कम 50 फीसदी अधिक स्तर पर तय किया जाएगा, को ‘देश में एक समान तरीके से लागू नहीं किया गया है।’
किसान आंदोलन के बीच राहुल गांधी का वादा- हम देंगे MSP की कानूनी गारंटी
पंजाब हरियाणा के किसान दिल्ली कूच करने को लेकर बॉर्डर पर अड़े हुए हैं। पुलिस लगातार किसानों को वापस धकेलने की कोशिश में लगी हुई है। आंसू गैस के गोले छोड़े जा रहे हैं। हर तरफ हालात बेकाबू होते नजर आ रहे हैं। किसान अपनी मांगों को लेकर दिल्ली कूच की कोशिश में हैं। ऐसे में कांग्रेस ने किसानों की मांगों के समर्थन में ट्वीट किया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा, 'किसान भाइयों आज ऐतिहासिक दिन है। कांग्रेस ने हर किसान को फसल पर स्वामीनाथन कमीशन के अनुसार MSP की कानूनी गारंटी देने का फैसला लिया है। यह कदम 15 करोड़ किसान परिवारों की समृद्धि सुनिश्चित कर उनका जीवन बदल देगा। न्याय के पथ पर यह कांग्रेस की पहली गारंटी है।
राहुल गांधी की सोशल मीडिया पोस्ट के मुताबिक, हमारी MSP पर कानूनी गारंटी किसानों के जीवन में 3 बड़े बदलाव लाएगी। 1. फसल के सही दाम मिलने से किसान कर्ज़ की मुसीबत से छुटकारा पा जाएगा। 2. कोई भी किसान आत्महत्या को मजबूर नहीं होगा। 3. खेती मुनाफे का व्यवसाय होगा और किसान समृद्ध बनेगा और समृद्ध किसान देश की तकदीर बदल देगा।
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