G-20: ग़रीबी छुपाने के लिए झुग्गियों पर परदा डाला!
देश की राजधानी दिल्ली में 9-10 सितंबर को होने वाले G-20 शिखर सम्मेलन की तैयारियां अपने आख़िरी पड़ाव पर हैं। छावनी में तब्दील दिल्ली के चप्पे-चप्पे पर पुलिस और सुरक्षा बल की तैनाती दिखाई दे रही है। इस शिखर सम्मेलन को लेकर कई ख़ास गाइडलाइन जारी की गई हैं।
जहां एक तरफ सोशल मीडिया पर दिल्ली की बेहद ख़ूबसूरत तस्वीरें छाई हुई हैं, वहीं इस बीच एक तस्वीर वायरल हो रही है जिसमें सड़क किनारे का एक इलाका परदे से ढका हुआ दिखाई देता है। इस तस्वीर को शेयर करते हुए किसी ने लिखा "ग़रीबी हटाओ से, ग़रीबी छिपाओ तक" जबकि किसी ने लिखा "ग़रीबों को ढक दिया गया"
From ‘Garibi Hatao’ to ‘Garibi Chupao’.
The “pro-poor govt” is comfortably hiding the slums of Delhi for the G20 event, in an desperate attempt to hide the economic inequalities.
When you cannot eradicate poverty, hide the poor. Mother of Democracy! https://t.co/GTrP0yYnDV
— Advaid അദ്വൈത് (@Advaidism) September 5, 2023
आख़िर कहां की हैं ये तस्वीरें? और क्या है इन हरे पर्दों के पीछे की कहानी हमने पता लगाने की कोशिश की।
दरअसल ये तस्वीरें कुली कैंप की हैं जो नेल्सल मंडेला मार्ग पर रेड लाइट के किनारे पड़ता है, ये मार्ग एयरपोर्ट की तरफ जाता है और शायद यही वजह है कि इन्हें यूं ढक दिया गया हो।
कुली कैंप, जिसे हरे परदे से ढक दिया गया
आपको याद होगा सन् 2020 में उस समय के अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे के दौरान गुजरात के अहमदाबाद में दीवार उठाकर झुग्गियों को छुपा दिया गया था। इससे पहले वहां भी इस तरह के वीआईपी मेहमानों के दौरे के समय हरा परदा डाल दिया जाता था। बाद में यह मुकम्मल इंतज़ाम कर दिया गया। आगे शायद दिल्ली में भी ऐसा हो...
दिल्ली में सड़क किनारे लगे हरे परदे पर सेंट्रल विस्टा, इंडिया गेट, कुतुब मीनार, लाल किला, जंतर-मंतर समेत दिल्ली की तमाम हेरिटेज इमारतों की तस्वीरें हैं लेकिन इस परदे के पीछे भी एक दुनिया बसती है।
माचिस की डिब्बी जैसे घरों में रहने वाले यहां के ज़्यादातर लोग मज़दूरी, कबाड़ और घरों में काम करने वाले हैं। इन घरों में रहने वाले लोगों से बात करके पता चलता है कि उनकी ज़िंदगी महज़ दो जून की रोटी के जुगाड़ में खप रही है। एक-एक कमरे में आठ-आठ लोग रह रहे हैं, पानी के लिए लाइन में लगे हैं।
ज़्यादातर घरों के लोग सार्वजनिक शौचालय में जाते हैं। लोहे की सीढ़ियों से ऊपर जाते रास्ते और उन घरों में रहते ग़रीब लोग और भूलभुलैया सी गलियों में घूमती सी ज़िंदगी!
जैसे ही हम इस स्लम में घुसे, गेट से लगे एक घर की सीढ़ियों पर बैठी महिला सर्वेश मिली, हमने उनसे पूछा कि इन हरे पर्दों से उनकी बस्ती को क्यों ढक दिया गया है तो वो कहती हैं, "20 देशों के आदमी आ रहे हैं, नेता लोग हैं वो। बाहर के लोग आ रहे हैं तो उन्हें देखना चाहिए कि ग़रीब गुरबा लोग कैसे रह रहे हैं, उन्होंने तो बंद कर दिया वो बस रोड-रोड से निकल जाएंगे, ये ग़लत कर रहे हैं, लेकिन जब यहां कोई नहीं बोल रहा तो हमारे बोलने से क्या होगा? क्या पता ये परदे लगाने से ग़रीबी छिपा लेंगे।" वे आगे बताती हैं कि "ग़रीबों की कौन सोचता है, ग़रीब कैसे रोटी खा रहा है, कोई रोज़ी नहीं, कोई काम-धंधा नहीं, जो रोड पर रेहड़ी लगा रहे थे उन्हें भी फेंक रहे हैं, फिर क्या खाएगा ग़रीब।"
हम गलियों में आगे बढ़ रहे थे, कहीं घरों के बाहर मुर्गियां घूम रहीं थी तो कहीं बरकियां बंधी थीं, कोई गेहूं धो रहा था तो कोई कपड़े, यहीं हमें पुष्पा मिलीं हमने उसने भी पूछा कि उनके घरों के इर्द-गिर्द जिस तरह से हरे परदे का एक घेरा बना दिया गया है उसके बारे में वो क्या सोचती हैं और उन्हें G-20 के बारे में क्या पता है? पुष्पा हमें बताती हैं कि "ये कपड़ा इसलिए लगाया गया है क्योंकि ये झुग्गी-झोपड़ियां न दिखें, कूड़ा-कबाड़ा किसी को दिखाई न दे, लोग जो बाहर से आएंगे देखेंगे तो कहेंगे कि देखो दिल्ली में ये सब कैसा है। लेकिन हरे कपड़े से घेर देने से साफ-सुथरा दिखेगा, सुंदर लगेगा।"
हमने पुष्पा से पूछा कि आपको क्या लगता है, क्या ऐसा करना ठीक है? तो उन्होंने कहा कि "ठीक है हमें कोई दिक्कत नहीं है" लेकिन जब हमने उनसे पूछा कि इस जगह को ढकने की बजाए अगर सौंदर्यीकरण कर दिया जाता तो क्या वो ठीक नहीं होता? तो उन्होंने कहा कि "ये तो सरकार की सोच है, क्या हर बार कोई आएगा तो क्या हर बार ऐसे ही हमें छिपा दिया जाएगा, ऐसा नहीं है कि उन्हें पता नहीं चलता, पता तो चलता ही होगा, चार दिन के लिए छिपा देंगे कभी ना कभी तो दिखता है कि झुग्गी है।"
कुली कैंप का एक घर
इन्हीं गलियों में कुछ लड़के खेलते हुए मिले हमने उसने भी बात की। नौंवी क्लास में पढ़ने वाले नरेंद्र से हमने पूछा कि वो G-20 के बारे में क्या जानते हैं और उनके घरों को इस तरह से ढकने की वजह पूछी तो नरेंद्र ने कहा "ये हरा कपड़ा इसलिए लगाया गया है क्योंकि 20 देशों से जो नेता आ रहे हैं उनको ये लगे कि यहां काम (कंस्ट्रक्शन वर्क) चल रहा है, बिल्डिंग बन रही है, झुग्गी ना दिखे।"
अगर इस बस्ती पर परदा ना डाला होता तो बेतरतीब बने घर दिखते, उन घरों से झांकते कुछ मजबूर चेहरे दिखते, बेबसी दिखती। घरों के आगे बंधी रस्सी पर धोने के बावजूद मलीन कपड़े दिखते, जगह-जगह कूड़े के ढेर दिखते, छोटी-छोटी दुकानों पर बैठे ग़रीब दुकानदार दिखते, उन दुकानों पर लटके बच्चे दिखते जो दोपहर में खाने की बजाए चिप्स या फिर कोई दूसरी चीज़ खरीदते हैं।
कुली कैंप में हमें कुछ वो परिवार भी मिले जिनके घरों पर जून के महीने में बुलडोज़र चला था। ये 10 से 12 परिवार पहले प्रियंका गांधी कैंप में रहते थे लेकिन जून के महीने में जब बुलडोज़र चला तो कुछ दिन ये सड़क पर या फिर रिश्तेदारों के यहां रहे और अब किसी तरह एक कमरे के घर में रह रहे हैं।
यहां हमें रीता मिलीं वो अपने तीन बच्चों और पति के साथ एक कमरे के घर में रह रही हैं। किराए के इस घर में शौचालय नहीं है इसलिए पूरे परिवार को सार्वजनिक शौचालय में जाना पड़ता है। रीता घरों में काम करती हैं और उनके पति बेलदारी करते हैं, तीन बच्चे हैं। वो बताती हैं कि जिस वक़्त घर पर बुलडोज़र चला उस दौरान उनका काम छूट गया, अब किसी तरह काम तो मिल गया है लेकिन किराए का पैसा देने के बाद समझ ही नहीं आ रहा कि घर कैसे चलाएं। जिस वक्त घर टूटा था दो बेटियों ने 12वीं पास की थी लेकिन बीए में दाखिले के लिए CUET के एग्जाम नहीं दे पाईं। रीटा बस किसी तरह अपने बच्चों के सिर पर एक सुरक्षित छत चाहती हैं। हमने उसने भी पूछा कि कुली कैंप को ढकने के लिए जो हरा परदा लगाया गया है उसके बारे में वो क्या जानती हैं तो उन्होंने कहा कि "जब हमने ये देखा तो यहां के कुछ लोगों से बात की तो पता चला कि यहां कि गंदगी नहीं दिखनी चाहिए और ये मेन रोड पर है इसलिए छिपा दिया, लेकिन ये ग़लत है।"
इसे भी पढ़ें :प्रियंका गांधी कैंप: ''घर भी तोड़ रहे हैं और बेघर लोगों को मार भी रहे हैं ये कैसी कार्रवाई?''
प्रियंका गांधी कैंप में बुलडोज़र चलने के बाद घूमन भी अपनी छह बेटियों और पति के साथ कुली कैंप में किराए का घर लेकर रह रही हैं। घूमन रोते हुए बताती हैं कि पति का काम छूट गया, वो घर में काम करती थीं उनका भी काम छूट गया। वो बताती हैं कि "पहले मेरे पति MCD में काम करते थे, कच्ची नौकरी थी वो छूट गई, मालिक ने दो महीने का पैसा भी नहीं दिया, जब घर टूटा तो छुट्टी ली थी फिर काम छूट ही गया। मैं काम करती थी मेरा भी काम छूट गया। पहले अपना घर था लेकिन अब किराए के कमरे में रहती हूं, बहुत मुश्किल हो रही है, मेरी छह बेटियां हैं, पालना मुश्किल हो रहा है, एक कमाने वाला है। चार हज़ार का कमरा ले रखा है, चाहे खाने के लिए हो या ना हो लेकिन किराया भरना पड़ता है, बहुत तकलीफ में हूं बच्चे पाले या उनको पढाएं, बच्चे बार-बार बीमार हो रहे हैं बहुत टेंशन हो रही है जब से झुग्गी टूटी है। मेरे पति अब दिहाड़ी करते हैं, चार सौ रुपए मिलते हैं उसमें क्या होगा, काम भी कभी मिलता है कभी नहीं, एक दिन मिलता है चार दिन बैठते हैं, मेरे लिए बच्चे पालना बहुत मुश्किल है। सोचते हैं गांव चले जाएं लेकिन वहां भी कुछ नहीं है, जो कमाया था घर बना लिया था लेकिन अब घर टूट गया।" वो कुली कैंप को ढकने पर कहती हैं कि "ग़रीब आदमी को ढक दिया, ये सोच कर कि ग़रीब दिखने नहीं चाहिए, हमसे बोला कि विदेश से लोग आ रहे हैं गंदगी की वजह से ढक दिया, ये ग़लत है।"
कुली कैंप में फैली गंदगी
हमने इस तरह से झुग्गियों को ढकने पर एक सामाजिक कार्यकर्ता रेखा सिंह से भी बात की। वो बताती हैं कि "2 सितंबर को रात क़रीब 12 बजे मैं स्टेशन से आ रही थी तो अचानक ही रेड राइट में हमने देखा तो मेरे मुंह से निकला हे भगवान, ये क्या किया है, मतलब देश से ग़रीबी नहीं हटानी, ग़रीब को ही छिपा देना है। हम सब हैरान थे, मैंने पहली बार ऐसा देखा था, मैंने सुना था जब गुजरात में अमेरिका के राष्ट्रपति आए थे तो एयरपोर्ट से स्टेडियम के रास्ते में जितनी भी झुग्गियां थीं उन्हें छिपा दिया गया था, दिल्ली में वैसा ही किया है, कुली कैंप तो एक उदाहरण है, पूरी दिल्ली में निकलेंगे तो जगह-जगह इसी तरह कवर किया है, सिर्फ इस झुग्गी को नहीं और जगह भी किया है।"
रेखा आगे कहती हैं कि "एक तो तीन दिन का लॉकडाउन कर दिया है, रेहड़ी पटरी वालों का क्या होगा?” हमने उनसे पूछा कि हो सकता है सुरक्षा कारणों से ऐसा किया हो तो उनका जवाब था "सुरक्षा कारण से ढका है इसका क्या मतलब? क्या बस्ती के लोग शरारती तत्व हैं ? और रही बात अगर सुरक्षा कारण से ये सब कर रहे हैं तो पुलिस बैरिकेडिंग करो, न कि पूरी बस्ती छिपाओ, पूरी बस्ती छिपाने का बस एक ही कारण है कि उन्हें ग़रीबी नहीं दिखानी है।"
ग़रीबी के नाम पर ऐसे व्यवहार पर वे कहती हैं कि "हमने GDP पर एक रिसर्च किया है, अन-ऑर्गेनाइज्ड सेक्टर से 50 फीसदी से ज़्यादा GDP आती है, वर्कर्स के द्वारा और उनके साथ ऐसा व्यवहार। दूसरा आप इनसे वादा करते सत्ता में आते हैं लेकिन जब आप बाहर के देशों में जाकर कहते हैं कि हमारे भारत में ग़रीबी नहीं है, जब ऐसी बात बोलकर आओगे और फिर जब वहां से लोग आएंगे तो आपको वही चीज़ दिखानी भी तो पड़ेगी इसलिए इसको ढककर छिपाकर रखना है, जितने स्लम हैं उनको ढक दो ताकि लोगों को ये ना लगे कि इंडिया में स्लम भी है, ग़रीबी भी है।"
ये क़दम क्या सोच कर उठाया गया है इस पर लोगों की अपनी-अपनी राय हो सकती है लेकिन वहां के लोगों से बात करके तो यही समझ में आया कि ग़रीबी न दिखे शायद इसलिए ऐसा किया गया। और बात घूम कर वहीं आ पहुंची
'ग़रीबी नहीं हटानी, ग़रीब को ही छिपा देना है'...ब्यूटीफिकेशन के नाम पर करोड़ों खर्च किए गए लेकिन ये इलाका छूट गया और शायद लास्ट मिनट में उसका यही तरीका समझ में आया। लेकिन जिस वक़्त G-20 में आर्थिक विकास पर चर्चा हो रही होगी उस दौरान देश का वो तबका कहां होगा जिसे ग़रीबी की वजह से छिपा दिया गया। ग़रीबों के नाम पर सत्ता में आने वाले, नौ साल सत्ता में रह कर विकास की बात करने वालों की नज़र में इस हरे परदे के पीछे रहने वाले लोग कहां हैं?
इसे भी पढ़ें : G—20: जब आएं मेहमान तुम्हारे मेरी दिल्ली भी दिखलाना
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।