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जीटीबी अस्पताल के डॉक्टर की कोरोना से मौत : न मुआवज़ा, न खेद

अनस मुजाहिद, जूनियर रेज़िडेंट डॉक्टर 9 मई को कोरोना वायरस की जांच में पॉज़िटिव पाए जाने के बाद तुरंत इंट्राक्रैनील यानी खोपड़ी के भीतर रक्तस्राव से प्रभावित हो गए थे और कुछ ही घंटों के भीतर उनका निधन हो गया।
जीटीबी

नई दिल्ली: गुरु तेग बहादुर (जीटीबी) अस्पताल में 26 वर्षीय डॉक्टर की कोविड-19 से हुई मौत पर दिल्ली सरकार की उदासीनता, हाल में 'कोविड योद्धाओं' के परिवारों के साथ किए जा रहे  अपमान की एक श्रृंखला में एक नया मामला है, अलबत्ता 'कोविड योद्धा’ वह सूत्रीकरण है जिसके माध्यम सरकार सुर्खियां बटोरने का काम करती है।

दिल्ली की सबसे बड़े कोविड-19 अस्पताल में से एक में जूनियर रेजिडेंट डॉक्टर अनस मुजाहिद का रविवार को कोरोनावायरस की जांच के कुछ घंटों के भीतर निधन हो गया था।

घटना को चार दिन बीत चुके हैं लेकिन न तो सरकार ने किसी मुआवजे की घोषणा की है और न ही किसी अधिकारी ने मृतक के परिवार को फोन करके संवेदना का इज़हार किया है। इस तरह की दिल दहला देने वाली घटना के प्रति उदासीन रवैया न केवल कोविड योद्धाओं की मृत्यु के लिए पर बने मानदंडों से एक किस्म का प्रस्थान है, बल्कि यह उस डॉक्टर की सेवा को भी खारिज करता है, जिसके लिए उसके सहयोगी अस्पताल में अराजक माहौल में भी उस पर अत्यधिक भरोसा करते थे।

डॉक्टरों ने बताया कि मुजाहिद को "मस्तिष्क पक्षाघात" का हमला हुआ और उससे "इंट्राक्रैनील रक्तस्राव (मस्तिष्क सहित खोपड़ी के भीतर रक्तस्राव)" होने लगा था। उन्हें अस्पताल के आपातकालीन विभाग में दाखिल किया गया, जहां उन्हें केंद्रीय ऑक्सीजन पोर्ट के न होने की वजह से जंबो सिलेंडर के ज़रीए ऑक्सीजन दी गई। उन्हें पोर्टबल वेंटिलेटर की मदद से सांस लेने में मदद दी गई। हालांकि, उन्हे तुरंत आईसीयू (गहन देखभाल इकाई) में भर्ती करने की जरूरत थी, जिसमें बेड खाली नहीं थे। जब उनका सीटी स्कैन किया गया तो दिमाग में खून के थक्के नज़र आए।

डॉ॰ मुजाहिद के लिए सुबह आईसीयू में बिस्तर देने का आश्वासन दिया गया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। कुछ घण्टों में ही उनका निधन हो गया।

कोविड रोगियों का इलाज करने की वजह से डॉ॰ मुजाहिद अन्य डॉक्टरों के साथ, आइसोलेशन प्रोटोकॉल को निभाते हुए सरकार द्वारा इंतजाम किए गए एक होटल में रह रहे थे।

“वह पिछले 14 दिनों से घर नहीं आया था। मेरी माँ उसके साथ कम से कम एक इफ्तार रोज़ा खोलने का आग्रह कर रही थी। इसलिए, वह रविवार (9 मई) को अपने एक डॉक्टर मित्र के साथ घर आया था। दोनों ने रोज़ा इफ्तार और डिनर भी किया। हम नहीं जानते कि उसके बाद क्या हुआ। मृतक के बड़े भाई इमादुद्दीन मुजाहिद ने न्यूज़क्लिक को बताया कि जब हमें अचानक  अस्पताल से खबर मिली तो वे स्तब्ध रहे गए।

उसकी माँ को अभी भी यह बात रास नहीं आ रही है कि उसने चार बेटों में से दूसरे को भी खो दिया। “वह घर से फिट और स्वस्थ गया था। उसने हमें यहां तक कहा था कि वह ईद पर घर में रहने की कोशिश करेगा और इसलिए, वह साप्ताहिक अवकाश नहीं ले रहा है। मेरी माँ अभी भी इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है कि उसके बेटे का निधन हो गया है। इमादुद्दीन ने कहा कि पूरा परिवार हैरान और बेंतहा दुख में है।

मुजाहिद को घर से होटल लौटते समय बुखार महसूस हुआ था। इसलिए, वह अपने सहकर्मी के साथ कोविड की जांच कराने अस्पताल चला गया था।

“जबकि अस्पताल के बुखार क्लिनिक में ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर अपनी पर्ची लिख ही रहे थे कि वह तभी वहीं गिर गया। उन्हें हताहत (Casualty) वार्ड में ले जाया गया। उनकी सीटी स्कैन रिपोर्ट में मस्तिष्क में बड़े पैमाने पर रक्तस्राव का पता चला। उन्हे आईसीयू की जरूरत थी लेकिन तुरंत उन्हे अस्पताल के न्यूरोलॉजिकल विभाग के आईसीयू दाखिल कर दिया गया। अस्पताल में मौजूद सूत्रों ने बताया कि करीब 2:30 बजे उनकी मौत हो गई थी।

यूसीएमएस अस्पताल के डीन और जीटीबी अस्पताल के कोविड-19 संबंधित प्रबंधन के प्रभारी डॉ॰ अनिल जैन ने बताया कि युवा डॉक्टर की मौत बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है परंतु उन्होने आईसीयू में बिस्तर न होने के आरोप को साफ तौर पर खारिज कर दिया।

"उन्हें तुरंत आईसीयू में स्थानांतरित कर दिया गया था, लेकिन उन्हें पुनर्जीवित नहीं किया जा सका।"

दावे की मुखालफत करते हुए, डॉक्टर मुजाहिद के साथी ने कहा कि नौजवान डॉक्टर को न्यूरोसर्जरी विभाग के आईसीयू में दाखिल किया गया था। “उन्हें कोविड आईसीयू देखभाल की जरूरत थी, न कि न्यूरोसर्जरी आईसीयू की। उन्हे वहां इसलिए स्थानांतरित नहीं किया गया क्योंकि आईसीयू की हालत खस्ता है और वहां रोगियों की देखभाल के लिए केवल एक सीनियर रेजीडेंट डॉक्टर और एक सलाहकार डॉक्टर ही मौजूद है। जीटीबी अस्पताल एक बहु-विशिष्ट (multi-specialty) अस्पताल नहीं है और इसलिए, इसमें समृद्ध न्यूरोसर्जरी विभाग भी नहीं है। अस्पताल के अंदरूनी व्यक्ति होने के नाते, हम यह बात अच्छी तरह से जानते हैं। कैजुअल्टी रूम में ही उनका इलाज करना वहां शिफ्ट करने से बेहतर था, ”उन्होंने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर उक्त बातें बताई।

उन्होंने आगे कहा कि आईसीयू का पूरा भरना कतई उचित नहीं है। “आईसीयू उन रोगियों के लिए है जिन्हे ज़िंदा रखने के लिए मशीनों के समर्थन की जरूरत होती हैं। लेकिन यहां ऐसे भी मरीज हैं जो बिना किसी मशीन के सांस ले रहे हैं। इस तरह के मरीजों की छुट्टी नहीं की जा रही है, क्योंकि उन्हें हाई-प्रोफाइल रेफरेंस या सिफ़ारिश से भर्ती कराया गया है।

उन्होंने कहा कि डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ, जो किसी भी चिकित्सा सुविधा से जुड़े हुए हैं, का यहाँ पर ध्यान नहीं रखा जाता है, जिससे उनका मनोबल गिरता है और वे हतोत्साहित होते हैं।  डॉक्टरों ने कहा, "मुआवजे की घोषणा न करना और सरकार की ओर से संवेदना के कुछ शब्दों का इजहार न करना सरकार की गंभीर उदासीनता को दर्शाता है।"

यह पूछे जाने पर कि क्या डॉ॰ मुजाहिद के परिवार को सरकार ने कोई शोक संदेश या मुआवजे की पेशकश की बाबत कोई फोन किया है, उनके भाई ने कहा कि न तो किसी राजनेता ने और न ही किसी सरकारी अधिकारी ने अब तक उनसे संपर्क किया है। “मेरे भाई ने महमारी के इस संकट में लोगों की सेवा कर के अपना जीवन बलिदान कर दिया। वह शहीद हो गया। यह समय किसी भी आरोप-प्रत्यारोप में लिप्त होने का नहीं है। हमें जो नुकसान हुआ वह अपूरणीय है और उसकी क्षतिपूर्ति नहीं की जा सकती है। इमादुद्दीन ने यह भी कहा कि किसी भी किस्म की रक़म उसे वापस नहीं ला सकती है।

डॉ॰ मुजाहिद की विनम्र पारिवारिक पृष्ठभूमि को देखते हुए, उनके कॉलेज के पूर्व छात्र संघ, यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ मेडिकल साइंसेज (UCMS) ने कुछ वित्तीय मदद देने की पेशकश की है, लेकिन परिवार ने विनम्रतापूर्वक यह कहते हुए मना कर दिया कि वे किसी भी किस्म का मुवावज़ा सरकार से ही स्वीकार करेंगे, उनके साथी ने बताया।

इसके अलावा, डॉक्टर ने बताया कि कोविड-19 के गंभीर लक्षणों वाले रोगियों में आंतरिक रक्तस्राव और रक्त के थक्के बन जाते हैं, डॉक्टरों ने कहा कि मुजाहिद का मामला दुर्लभ है क्योंकि वह शाम तक ठीक था। अस्पताल के एक वरिष्ठ डॉक्टर ने कहा कि, "यह मामला तीव्र प्रगति का प्रतीत होता है जो अपने में चिंताजनक मसला है।"

मुजाहिद ने जनवरी माह में अस्पताल में अपनी इंटर्नशिप पूरी की थी और मार्च में जूनियर रेजिडेंट के रूप में काम करने लगे थे। डॉक्टर मुजाहिद मूल रूप से आजमगढ़ के निवासी हैं, वे पूर्वोत्तर दिल्ली के भागीरथी विहार में वर्षों से किराए के मकान में रह रहे थे।

‘आप’ पार्टी की प्रतिक्रिया

दिल्ली सरकार पर लगे उदासीनता के आरोपों के जवाब में, आम आदमी पार्टी (आप) के प्रवक्ता ने कहा है कि मुआवज़े में समय लगता है, हालाँकि उन्होंने मुआवज़े के आश्वासन के बारे में कुछ नहीं कहा और न ही यह बताया कि सरकार ने शोक-संतप्त परिवार से संपर्क किया है या नहीं।

‘आप’ पार्टी के मुख्य मीडिया संयोजक विकास योगी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, "मुआवजा आमतौर पर एक लंबी प्रक्रिया होती है। यह विभिन्न स्तरों से होकर गुजरती है और फिर कहीं जाकर इसे अंतिम मंजूरी दी जाती है, जिसमें एक महीने का समय भी लग जाता है। उन्होंने कहा कि एक बार जब सरकार को संबंधित संस्थान से मुआवजे का अनुरोध प्राप्त होता है, तो तब जाकर प्रक्रिया की शुरूवात होती है।

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