ग्राउंड रिपोर्ट: राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित बिहार की धनौती नदी के अस्तित्व पर संकट !
बिहार की राजधानी पटना से 170 किमी दूर पूर्वी चंपारण नेपाल की सीमा पर बसा है। अधिकांश लोग इसे मोतिहारी के नाम से भी जानते हैं। मोतिहारी शहर के पश्चिमी भाग से होकर गुजरने वाली धनौती नदी के लिए वर्ष 2020 में राष्ट्रीय जल पुरस्कार के सम्मान से पूर्वी चंपारण को राष्ट्रीय जल शक्ति मंत्रालय के द्वारा सम्मानित किया गया। पुरस्कार मिलने के दो साल बाद 'न्यूज़क्लिक' ने नदी की मौजूदा स्थिति की पड़ताल की।
80-85 किमी लंबी धनौती नदी हो रही अतिक्रमण का शिकार
राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित चंपारण जिले के सात प्रखंडों में बहने वाली 80-85 किलोमीटर लंबी धनौती नदी का अस्तित्व संकट में है। पूर्वी चंपारण के स्थानीय पत्रकार प्रतीक सिंह बताते हैं कि, "धनौती नदी से नगर की आधी आबादी को लाभ होता है। नदी का पानी धीरे-धीरे सूखता जा रहा है और नदी के दोनों और के किनारे धराशायी हो रहे हैं। नदी पर अतिक्रमण करके घर बनाए जा रहे हैं।"
वहीं 63 वर्षीय स्थानीय निवासी राजू जायसवाल बताते हैं कि, "धनौती नदी मोतिहारी की पहचान हुआ करती थी। लगभग 35-40 साल पहले नदी 200 से 250 फुट की हुआ करती थी जो अब 40 फुट की रह गई है। कई जगहों पर तो इसकी चौड़ाई महज 10 से 15 फुट ही बची है।"
धनौती नदी के बड़े भू-भाग पर मिट्टी भर कर किया जा रहा क़ब्ज़ा
पश्चिम चंपारण के माधोपुर मन प्रखंड के सामाजिक कार्यकर्ता चांद अली न्यूज़क्लिक को बताते हैं कि, "नदी की जमीन का अतिक्रमण एक सुनियोजित साजिश के तहत किया गया है जिससे एक ऐतिहासिक पहचान तो गुम होगा ही, वहीं गांव में पानी का संकट खड़ा हो जाएगा। धनौती के प्रवाह वाधित होने से बारिश के दिनों में आधा मोतिहारी शहर के साथ राघुनाथपुर, तुरकौलिया और बंजरिया प्रखंड के लोगों और मवेशियों को काफी कष्ट होता है। किसानों का फसल भी नष्ट होता है।"
मोतिहारी ज़िले में ही धनौती नदी की तरह लालबकैया नदी भी धीरे-धीरे सिकुड़ रही है।
मल्लाहों की स्थिति
मोतिहारी शहर से कुछ किलोमीटर माधोपुर प्रखंड के उत्तरी श्रीपुर, दक्षिणी श्रीपुर गांव पानी के लिए धनौती नदी पर निर्भर है। गांव के सद्दाम अंसारी बताते हैं कि, "लगभग 15-20 साल पहले गांव में नाव चलाया जाता था। गरीब तबका खासकर मल्लाह मछली व्यवसाय पर निर्भर था। अब रोजगार की तलाश में पंजाब, बंगाल, हरियाणा, दिल्ली जैसे बड़े शहर चले गए हैं।"
42 वर्षीय सतीश बताते हैं कि, "हमलोगों का परिवारिक पेशा मछली पकड़ना था। लेकिन जब पानी ही नहीं है तो मछली कहां से पकड़ पाएंगे। इस वक्त कभी दिल्ली तो कभी पंजाब जाकर कमाना पड़ता है। नदी की अगर ठीक से उड़ाही हो जाए तो मछली पालन और सब्जी की खेती बहुत अच्छी हो जाएगी।"
42 वर्षीय सतीश नदी के माध्यम से पहले मछली पालन किया करते थे।
पर्यावरणविद और स्थानीय निवासी चिंतित
जल-जीवन-हरियाली योजना के तहत धनौती नदी प्रोजेक्ट के लिए गाद सफाई व पौधारोपण में पूर्वी चंपारण को सरकार द्वारा राष्ट्रीय जल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
स्थानीय पत्रकार प्रतीक बताते हैं कि, "मनरेगा, जीविका व वन विभाग के माध्यम से धनौती नदी का बंजरिया प्रखंड अंतर्गत चैलहा में दो किलोमीटर तक जीर्णोद्धार कार्य किया गया था। नदी के चारों तरफ पौधारोपण, जल संरक्षण व सौंदर्यीयकरण के साथ-साथ मोतीझील मोतिहारी से भी अतिक्रमण को हटाया गया था। धनौती नदी कार्य योजना में सिर्फ गाद सफाई में करीब 69 लाख रुपये खर्च हुए। साथ ही पौधारोपण में दो से ढाई करोड़ रुपये खर्च किए गए थे।"
आगे प्रतीक बताते है, "डीएम शीर्षत कपिल अशोक ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान बताया था कि सुगौल में बालगंगा प्रोजेक्ट व रामगढ़वा के पखनहिया पहाड़ी सोती में 23 लाख की लागत से चेक डैम बना कर उसके पानी को सिंचाई के लिए इस्तेमाल करने की योजना है। साथ ही जिले के तालाब, अहर पईन की भी सफाई की जाएगी। एक योजना तो ठीक से हो नहीं पाई बाकी योजना का भी बंदरबांट हो जाएगा।"
शहर के व्यापारी बंटी झा बताते है, "शहर के लोग मिट्टी भरवा कर घर बनवा रहे हैं और धनौती नदी से गांव के लोगों को कोई फायदा नहीं मिल रहा है। अतिक्रमण की सारी सूचनाओं के बावजूद प्रशासन खामोश है। पता नहीं केंद्र सरकार ने किस आधार पर धनौती नदी को यह सम्मान दिया है।"
युवा संगठन ने चलाया था हस्ताक्षर अभियान
युवा संगठन के अध्यक्ष रंजीत गिरी बताते हैं कि, "मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समाज सुधार अभियान के तहत जब मोतिहारी आ रहे थे, तब कई दिनों तक युवा संगठन के सदस्य अलग-अलग जगहों पर जाकर लोगों को जागरूक कर उनका हस्ताक्षर कराए थे। मोतिहारी में धनौती नदी की तरह ही लालबकैया नदी भी अतिक्रमण का शिकार हो रही है। मुख्यमंत्री से मिलकर हम लोगों ने नदी से संबंधित ज्ञापन सौंपा था। 4 महीने से अधिक समय बीत गए हैं। फिर भी इस दिशा में प्रशासनिक स्तर पर कोई पहल शुरू नहीं की गई है।"
बिहार की 50 से ज़्यादा छोटी नदियां सूख गईं
बेतिया के नौतन प्रखंड स्थित गहिरी मन से धनौती नदी निकलती है। जो जिले के पहाड़पुर, हरसिद्धि, तुरकौलिया, बंजरिया, मोतिहारी, पीपराकोठी व चकिया प्रखंड में बहती है। चकिया में यह नदी सिकरहना में मिल जाती है। जिले में इस नदी की लंबाई 80-85 किलोमीटर है। पूरे बिहार में बहने वाली लगभग 206 नदियों में अधिकतर नदियों की लगभग यही स्थिति है।
जल संसाधन विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक 23 जिलों में 48 नदियों की स्थिति बेहद नाजुक है। इनमें से कई नदियां तो चार-पांच जिलों से बहती हैं। अधिकांश नदियों में तो कई-कई दिनों तक पानी नहीं रहता, जहां है भी तो बेहद कम। उधर, कई नदियों का जलस्तर तेजी से नीचे जा रहा है।
कोसी नदी पर लगभग 40 साल काम करने वाले इंजीनियर अमोद कुमार झा बताते हैं कि, "कभी पानी से लबालब भरी रहने वाली नदियों का हाल बुरा है। भोजपुर के कुछ इलाकों में गंगा वहीं मिथिलांचल इलाकों में कोसी नदी में भी पानी नहीं दिख रहा। अनियमित बारिश के कारण भू-जल स्तर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। राज्य में कई वर्षों से सामान्य से काफी कम बारिश हो रही है।"
विकास प्रकृति पर हावी
ग्राम्यशील एनजीओ के संस्थापक चंद्रशेखर बताते हैं कि," बिहार में चानन नदी के सूख जाने से कतरनी चावल का अस्तित्व संकट में है। मुंगेर का मोहनी, सुपौल का गजाना और भोजपुर का बनास और सोन नदी अतिक्रमण की वजह से धीरे-धीरे सूख रहा है। इसकी मुख्य वजह छोटी नदियों पर बन रहा तटबंध है। तटबंध बनने से छोटी और बड़ी नदी का जो कनेक्शन या संपर्क था वो टूट गया। हालांकि जल संसाधन विभाग के द्वारा कई छोटी नदियों को पुनर्जीवित करने की कोशिश की जा रही है।"
नदी से जुड़े विशेषज्ञ दिनेश कुमार मिश्रा बताते हैं कि, "शहरीकरण के कारण सड़कें, छतें सब पक्के होने लगे हैं। सड़क मार्ग बहुत तेजी से बढा। इससे ऊपर से जो पानी आता है, वह जमीन के अंदर नहीं जा कर नालों में चला जाता है या बेकार हो जाता है। तटबंध बना कर हमने गलती की, पानी अपना रास्ता चाहता था लेकिन हम पानी को बांधना चाहते हैं। नदियों के अविरल बहने से ही उनका अस्तित्व बचा रहेगा।"
सरकारी महकमों की सुनिए
धनौती नदी की दुर्दशा पर चिंता व्यक्त करते हुए आपदा प्रबंधन विभाग के अपर समाहर्ता अनिल कुमार न्यूज़क्लिक से बताते हैं कि, "अवरुद्ध जलधारा का निरंतर प्रवाह के लिए धनौती नदी से मिट्टी व सिल्ट हटाने के लिए स्थलीय जांच करते हुए नदी की साफ-सफाई का आवश्यक कार्य शीघ्र ही प्रशासन के द्वारा चालू किया जाएगा। साथ ही शहर के ऐतिहासिक मोतीझील में जलधारा प्रवाह बनाए रखने के लिए भी उसे धनौती नदी से जोड़ा जाएगा। ताकि मोतीझील में जलधारा को निरंतर किया जाए।"
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