गुजरात चुनावः राजकोट एम्स के 90% पद खाली पड़े हैं
गुजरात विधानसभा चुनाव के चलते भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) बड़े-बड़े दावे कर रही है लेकिन ज़मीनी सच्चाई क्या है, ये नहीं बता रही। इसी सिलसिले में चाणस्मा गुजरात में एक चुनावी जनसभा को संबोधित करते हुए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने स्वास्थ्य के क्षेत्र की उपलब्धियों का बखान किया। उन्होंने आयुष्मान भारत योजना के साथ-साथ राजकोट में बने एम्स का भी जिक्र किया। गुजरात में चुनाव हैं तो राजकोट एम्स का उदाहरण देना लाज़मी हो जाता है। ये गुजरात का पहला एम्स है। जेपी नड्डा ने चुनावी जनसभा में ये तो बताया कि राजकोट में एम्स स्थापित किया गया है। लेकिन ये नहीं बताया कि उस एम्स की हालत क्या है?
असल में जिस एम्स का गुणगान चुनावी सभाओं में किया जा रहा है वो एम्स खुद वेंटिलेटर पर है। जेपी नड्डा ने ये नहीं बताया कि ये एम्स कैसे चल रहा है? क्या सचमुच भाजपा मेडिकल शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर गंभीर है या फिर ये चुनावी स्टंट है? राजकोट एम्स की स्थिति क्या है? आइये, इसे समझते हैं।
राजकोट एम्स की स्थिति
एम्स जैसे मेडिकल संस्थानों का मकसद ना सिर्फ अच्छा इलाज़ उपलब्ध कराना होता है बल्कि अच्छे डाक्टर तैयार करना, गुणवत्ता परक मेडिकल शिक्षा उपलब्ध करना और स्वास्थ्य के क्षेत्र में उच्च स्तर का शोध करना भी होता है। लेकिन इनमें से किसी भी मकसद में रोजकोट एम्स कामयाब होता नज़र नहीं आ रहा। क्योंकि राजकोट एम्स में लगभग 90% पद खाली पड़े हैं और लगता है कि विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र आनन-फानन में इसे शुरू कर दिया गया है।
15 मार्च 2022 को राज्यसभा में एम्स में डॉक्टरों और फैकल्टी की स्थिति के बारे में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय से एक सवाल पूछा गया। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री भारती प्रवीन पवार ने इसका लिखित जवाब दिया था। जवाब के अनुसार राजकोट एम्स में टिचिंग फैकल्टी के 183 पद स्वीकृत हैं जिनमें से मात्र 43 पदों पर भर्ती की गई है और 140 पद खाली पड़े हैं। सीनियर रेज़िडेंट के 40 पद स्वीकृत हैं जिनमें से मात्र 15 पद भरे गये हैं और 25 पद खाली पड़े हैं। जूनियर रेज़िडेंट के 40 पद स्वीकृत हैं जिनमें से मात्र 28 पद भरे गये हैं और 12 पद खाली पड़े हैं। यानी कुल 263 पद स्वीकृत हैं जिनमें से 177 पद यानी 67% पद खाली पड़े हैं।
ऐसा नहीं है कि मात्र डॉक्टरों और टिचिंग फैकल्टी की ही कमी है बल्कि ग़ैर-शिक्षक पदों पर भर्ती की हालत तो और भी ख़राब है। राजकोट एम्स में 95% ग़ैर-शिक्षकपद खाली पड़े हैं।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री भारती प्रवीन पवार ने राज्य सभा में लिखित जवाब में बताया है कि राजकोट एम्स में ग़ैर-शिक्षक कर्मचारियों के 951 पद स्वीकृत हैं जिनमें से मात्र 46 पदों पर भर्ती की गई है। इस तरह राजकोट एम्स में ग़ैर-शिक्षक कर्मचारियों के 905 पद यानी 95% पद खाली पड़े हैं।
गौरतलब है कि डॉक्टर्स और फैकल्टी किसी भी एम्स की रीढ़ होते हैं जो ना सिर्फ मरीज़ों का इलाज़ करते हैं बल्कि भविष्य के लिए अच्छे डॉक्टर भी तैयार करते हैं। इसी प्रकार ग़ैर-शिक्षक कर्मचारियों के बिना किसी भी संस्थान को सुचारु रूप से चलाने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। राजकोट एम्स में दोनों का ही अभाव है।
राजकोट एम्स की शुरुआत की कहानी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा 31 दिसंबर 2020 को ऑनलाइन तरीके से राजकोट एम्स का शिलान्यास किया गया था। राजकोट एम्स का निर्माण कार्य सितंबर-अक्टूबर 2020 में शुरू हुआ। एम्स राजकोट की वर्ष 2020-21 की वार्षिक रिपोर्ट में लिखा है कि “सरकार एम्स का संचालन शीघ्र करने की इच्छुक है”। परिणामस्वरूप बिना निर्माण कार्य पूरा हुए सरकार ने पीडीयू मेडिकल कॉलेज और सिविल अस्पताल राजकोट में अस्थायी परिसर की व्यवस्था की। मतलब बिना इमारत, लैबोरेट्री एवं अन्य सुविधाओं के एम्स को शुरू कर दिया गया।
गौरतलब है कि राजकोट एम्स के लिए 750 बेड का आधुनिक सुविधाओं से लैस अस्पताल (ओपीडी, आइपीडी और आयुष के साथ), 125 सीटों का एमबीबीएस मेडिकल कॉलेज, 75 सीटों का नर्सिंग कॉलेज, पुस्तकालय, डॉक्टरों और नर्सों के लिए आवासीय परिसर, गैस्ट हाउस और रैन बसेरे का निर्माण होना है। मात्र इतना ही नहीं राजकोट एम्स में बिना पर्याप्त शिक्षकों के ही एमबीबीएस के पहले बैच की शुरुआत कर दी गई। ये भी लक्ष्य रखा गया कि 31 दिसंबर 2021 तक ओपीडी शुरू कर दी जाए।
अब सवाल ये उठता है कि आखिर सरकार को इतनी जल्दी क्यों थी? क्या सरकार लोगों के स्वास्थ्य और मेडिकल शिक्षा को लेकर गंभीर थी या फिर 2022 में गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनाव का दबाव था।
एम्स राजकोट में 2021 में एएमबीबीएस का पहला बैच शुरू कर दिया गया। लेकिन क्या पर्याप्त संख्या में लेक्चर रूम, थियेटर और अध्यापक थे? बिल्कुल नहीं। रिपोर्ट में बताया गया कि मेडिकल फैकल्टी के कुल 183 पद स्वीकृत हैं जबकि मात्र 15 पद ही भरे गये हैं। ग़ैर-शिक्षक कर्मचारियों के 900 पद स्वीकृत हैं जिनमें से मात्र 9 पद भरे गये हैं। ये आंकड़े मार्च 2021 के हैं और एम्स राजकोट की वार्षिक रिपोर्ट से लिए गये हैं।
सरकार पर एम्स राजकोट को शीघ्र शुरू करने का दबाव था। परिणामस्वरूप 31 दिसंबर 2021 को यानी गुजरात विधानसभा चुनाव के साल में ओपीडी शुरू कर दी गई। प्रेस विज्ञप्ति में राजकोट एम्स के निदेशक ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि अभी आपरेशन की सुविधा उपलब्ध नहीं है और आधुनिक लैबोरेट्रीज़ का काम भी अधूरा है। चुनाव के चलते आनन-फानन में राजकोट एम्स को शुरू किया गया जिसे भाजपा उपलब्धी के तौर पर पेश कर रही है। माना कि राजकोट एम्स एक नया संस्थान है, लेकिन देश का कोई भी एम्स ऐसा नहीं है जिसे भाजपा एक आदर्श की तरह पेश कर सके। देश के एक भी एम्स में पूरा स्टाफ नहीं है।
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(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं ट्रेनर हैं। आप सरकारी योजनाओं से संबंधित दावों और वायरल संदेशों की पड़ताल भी करते हैं।)
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