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ज्ञानवापी केसः इलाहाबाद हाईकोर्ट ASI सर्वे पर अब तीन अगस्त को सुनाएगा फैसला, तब तक सर्वे पर रहेगी रोक 

अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के जनरल सेक्रेटरी एसएम यासीन ने कहा है, "इलाहाबाद हाईकोर्ट  ज्ञानवापी मामले को लेकर काफी संजीदा है। उम्मीद है कि कोर्ट प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट-1991 को ध्यान में रखते हुए फैसला सुनाएगा।
Gyanwapi

इलाहाबाद हाईकोर्ट वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) का सर्वे कराने के मामले में तीन अगस्त को फैसला सुनाएगा। कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद फैसले से पहले ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे पर रोक लगा दी है। मुस्लिम पक्ष के अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के अधिवक्ता एसएफए नकवी ने कहा कि अभी यह तय होना बाकी है कि ज्ञानवापी का मामला अदालत में चलने योग्य है अथवा नहीं। ऐसे में ASI सर्वे का आदेश देने का कोई तुक नहीं है। नकवी के अनुसार कोर्ट ने हिंदू पक्ष से पूछा कि एएसआई की कानूनी पहचान क्या है, जिसका वो माकूल जवाब नहीं दे सके।

अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के जनरल सेक्रेटरी एसएम यासीन ने कहा है, "इलाहाबाद हाईकोर्ट  ज्ञानवापी मामले को लेकर काफी संजीदा है। उम्मीद है कि कोर्ट प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट-1991 को ध्यान में रखते हुए फैसला सुनाएगा।"

अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी की अपील पर 26 जुलाई और बाद में 27 जुलाई 2023 को ज्ञानवापी मस्जिद में ASI सर्वे रोकने के मामले में सुनवाई हुई। कोर्ट ने कल ज्ञानवापी परिसर में ASI सर्वे पर स्‍टे को एक दिन के लिए और बढ़ा दिया था। एएसआई के एडिशनल डिप्टी डायरेक्टर आलोक त्रिपाठी बुधवार को हाईकोर्ट पहुंचे और उन्होंने हलफनामा दाखिल करते हुए कहा कि सर्वे से ज्ञानवापी परिसर में कोई नुकसान नहीं होगा। अभी तक सर्वे का सिर्फ पांच फीसदी काम हो सका है। 26 जुलाई 2023 को हाईकोर्ट में करीब चार घंटे तक सुनवाई हुई। इस दौरान कोर्ट ने वाराणसी से ASI सर्वे टीम को बुलाने का निर्देश दिया था। कोर्ट के निर्देश पर एएसआई की टीम साढ़े चार बजे कोर्ट में पेश हुई। मुस्लिम पक्ष ने दावा किया था कि सर्वे से मस्जिद के ढांचे को नुकसान होगा। तब मुस्लिम पक्ष ने कहा कि उन्‍हें एएसआई का हलफनामा पढ़ने और अपनी दलील रखने के लिए कुछ और समय दिया जाए। इसके मद्देनजर हाईकोर्ट कोर्ट फैसले को एक दिन के लिए टाल दिया।

गुरुवार को दोपहर बाद ज्ञानवापी में सर्वे के मामले पर सुनवाई हुई। मुस्लिम पक्ष के अधिवक्ता एसएफए नकवी ने इस बात को जोरदार ढंग से उठाया कि अभी इस मामले में फैसला आना बाकी है कि ज्ञानवापी का मामला कोर्ट में चलने योग्य है अथवा नहीं। ऐसे में एएसआई सर्वे का आदेश देना व्यर्थ और निरर्थक है। हिंदू पक्ष हड़बड़ी में सर्व क्यों करना चाहता है? इसके पीछे उसकी मंशा क्या है?

सर्वे को क्यों दी गई चुनौती

अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमिटी ने 25 जुलाई 2023 को इलाहाबाद हार्ईकोर्ट में याचिका दायर कर 21 जुलाई 2023 के वाराणसी की डिस्ट्रिक कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी।  डिस्ट्रिक कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को मस्जिद परिसर का सर्वेक्षण करने का आदेश दिया था। मस्लिम पक्ष के अधिवक्ता एसएफए नकवी ने मुख्य न्यायाधीश प्रितिंकर दिवाकर की अदालत में इस मामले में जल्द सुनवाई करने का आग्रह किया कि सुप्रीम कोर्ट का 24 जुलाई 2023 का आदेश 26 जुलाई शाम पांच बजे तक ही प्रभावी है। सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद कमेटी को हाईकोर्ट में अपील दायर करने के लिए दो दिनों की मोहलत दी थी।

हाईकोर्ट में 26 जुलाई 2023 को ज्ञानवापी केस की विधिवत सुनवाई हुई। अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के अधिवक्ता एसएफए नकवी ने तमाम दलीलें पेश करते हुए 21 जुलाई 2023 के डिस्ट्रिक कोर्ट के आदेश को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट से अनुरोध किया। साथ ही यह भी कहा ही सर्वे के मामले में हाईकोर्ट पहले ही स्टे दे चुका है, जिसकी अनदेखी करते हुए डिस्ट्रिक कोर्ट ने सर्वे का फैसला सुनाया। उन्होंने यह भी कहा, "ज्ञानवापी मस्जिद पिछले 1000 साल से भी ज्यादा समय से वहां पर मौजूद है। साल 1669 में किसी मंदिर को किसी मुगल बादशाह ने नहीं तोड़ा था। हिंदू पक्ष की अर्जी में पहले ही कहा गया है कि तीन गुंबदों के नीचे खुदाई की जाएगी। हम पिछले अनुभवों की वजह से किसी भी सर्वे पर भरोसा नहीं कर सकते। कोई भी कोर्ट किसी और को सबूत जुटाने के लिए नहीं कह सकता। हिंदू पक्ष ASI से जुटाए गए सबूतों को आधार बनाएगा और उसे कोर्ट में सबूत के तौर पर पेश करेगा। हिंदू पक्ष का रुख स्पष्ट नहीं है।"

"राम जन्मभूमि के मामले में फैसले की परिस्थितियां अलग थीं। अयोध्या रामजन्म भूमि स्थित राम मंदिर का उदाहरण और हवाला ज्ञानवापी के मामले में नहीं दिया जा सकता है। ज्ञानवापी मस्जिद के नीचे विश्वेश्वर भगवान का मंदिर होने की जो बात की जा रही है,वो मनगढ़ंत है। हिंदू पक्ष की यह दलील सिर्फ कल्पना है कि पश्चिमी दीवार और मस्जिद के ढांचे के नीचे कुछ मौजूद है। ऐसे में ASI सर्वे की इजाजत नहीं दी जा सकती है। जिला जज की कोर्ट से ज्ञानवापी परिसर का ASI से आधुनिक वैज्ञानिक और तकनीकी सर्वे का आदेश जारी किया जाना गैरकानूनी है।"

जल्दबाजी में सर्वे क्यों?

मुस्लिम पक्ष की ओर से यह भी कहा गया, "डिस्ट्रिक कोर्ट ने एएसआई को जल्दबाजी में ASI सर्वे करने का आदेश देते हुए चार अगस्त तक रिपोर्ट भी सौंपने का पैसला सुना दिया। निचली अदालत ने याचिकाकर्ता को इस आदेश को चुनौती देने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया। डिस्ट्रिक कोर्ट ने फैसले की नकल भी जारी नहीं की और ASI की भारी-भरकम टीम सर्वे के लिए बुला ली गई। इस संवेदनशील मामले में जल्दबाजी क्यों की जा रही है। मुस्लिम पक्ष के अधिवक्ता ने हाईकोर्ट का ध्यान उस प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट की ओर आकृष्ट कराया, जिसे साल 1991 में बनाया गया था। इस कानून के तहत 15 अगस्‍त 1947 से पहले मौजूद किसी भी धर्म की उपासना स्‍थल को किसी दूसरे धर्म के उपासना स्‍थल में नहीं बदला जा सकता है। आजादी के समय जो धार्मिक स्थल जैसा था वैसा ही रहेगा। हिन्दू पक्ष जिसे शिवलिंग बता रहा है, वह फव्वारा है। निचली कोर्ट के वाद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) न तो पक्षकार है, न ही परिसर में सर्वेक्षण का अदालती आदेश कानूनी रूप से तामील  हुआ है। अफरातफरी में ASI ने सर्वे शुरू कर दिया, जो ज्ञानवापी मस्जिद को नुकसान पहुंचाने की पूर्व नियोजित प्रक्रिया है। जिला जज का आदेश असामयिक है, क्योंकि अभी तक लंबित केस में कोर्ट ने वाद बिन्दु तय नहीं किए हैं। निचली अदालत के आदेश का अनुचित लाभ उठाने की कोशिश की जा रही है।"  

दूसरी ओर, हिन्दू पक्ष के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कहा, "मस्जिद परिसर के वैज्ञानिक सर्वेक्षण से यह साबित करने में मदद मिलेगी कि उक्त धार्मिक स्थल मस्जिद है अथवा मंदिर। इस सर्वे से कोर्ट को निष्कर्ष पर पहुंचने में भी मदद मिलेगी। हिंदू पक्ष दावा किया कि प्लॉट नंबर 9130 पर साल 1585 में राजा टोडरमल ने मंदिर का निर्माण कराया और साल 1669 में उसे तोड़ दिया गया। उसी मंदिर में देवी श्रृंगार गौरी, हनुमान और गणेश भगवान की पूजा की मांग महिलाएं कर रही हैं। सचाई जानने के लिए ASI सर्वे बेहद जरूरी है।"

डिस्ट्रिक कोर्ट ने दिया था सर्वे का आदेश

बनारस के जिला जज एके विश्वेश ने 21 जुलाई 2023 को मस्जिद परिसर का वैज्ञानिक सर्वे कराने का आदेश दिया था। साथ ही ASI को चार अगस्त तक सर्वे की रिपोर्ट डिस्ट्रिक कोर्ट को सौंपने का निर्देश दिया था। इसी आदेश के बाद ASI की टीम आनन-फानन में ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे करने पहुंच गई थी। हालांकि उसके पास उस समय तक डिस्ट्रिक कोर्ट के फैसले की वैध प्रतिलिपि नहीं थी।

उल्लेखनीय है कि अगस्त 2021 में पांच महिलाओं ने वाराणसी के सिविल जज (सीनियर डिविजन) रवि कुमार दिवाकर की अदालत में एक वाद दायर किया था, जिसमें उन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद के बगल में बने श्रृंगार गौरी मंदिर में रोजाना पूजा और दर्शन करने की अनुमति मांगी थी। कोर्ट के आदेश पर पिछली साल तीन दिनों तक सर्वे हुआ। इसी दौरान हिंदू पक्ष ने वहां वजूखाने में एक आकृति को शिवलिंग बताना शुरू कर दिया। मुस्लिम पक्ष का कहना था कि वो शिवलिंग नहीं, बल्कि फव्वारा है जो हर मस्जिद में होता है। बाद में कोर्ट के आदेश पर विवादित स्थल को सील करने का आदेश दिया।

इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई पूरी होने बाद महासचिव एसएम यासीन ने न्यूजक्लिक से कहा, "ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे के मामले में कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। साथ ही यह भी कहा है की फैसला आने तक यानी तीन अगस्त से पहले ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में कोई सर्वे नहीं होगा। हमें लगता है कि हाई कोर्ट कोई ऐसा फैसला नहीं देगा जिससे प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 अब बेमतलब साबित हो जाए। यह कानून साल 1991 में लागू किया गया था, जिसमें साफ-साफ उल्लेख है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता है। अगर प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट-1991 की अनदेखी करते हुए फैसला आता है तो अदालते मुकदमों से पट जाएंगी। "   
 

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