हरियाणा चुनाव: मुश्किल में भाजपा, बेरोज़गारी और MSP सबसे बड़े मुद्दे
हरियाणा के वित्तमंत्री जे पी दलाल ने मंगलवार को भिवानी जिले में एक जनसभा को संबोधित करते हुए यह कहकर भाजपा को सकते में डाल दिया कि यदि आने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस चुनाव जीत जाती है और सरकार बना लेती है, तो "दिल्ली में बैठे हमारे नेता" यह सुनिश्चित करेंगे कि कांग्रेस सरकार छह महीने से अधिक न चले।
1 अक्टूबर को होने वाले चुनावों से पहले दलाल का यह बयान कि "कुछ लोग कह रहे हैं कि कांग्रेस हरियाणा में सरकार बनाएगी लेकिन दिल्ली में बैठे हमारे नेता इसे 6 महीने भी नहीं चलने देंगे, अपने आप में इस बात का संकेत है कि हरियाणा में भाजपा की ज़मीन खिसक रही है।
हरियाणा भारत का एक ऐसा राज्य है जहाँ आम युवा सरकारी नौकरी पाने के लिए काफी चिंतित नज़र आते हैं। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में बेरोज़गारी और किसानों के मुद्दे छाए रहे जिसकी वजह से भाजपा को लोकसभा की 5 सीटें गवानी पड़ीं और कांग्रेस को बड़ा फायदा मिला। हरियाणा में आज भी बेरोज़गारी और फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य बड़ा मुद्दा है।
संयुक्त किसान मोर्चा की हरियाणा इकाई फसलों के उचित दाम और विरोध प्रदर्शन के दौरान मारे गए किसानों के लिए एक स्मारक बनाने जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों उठा रही है। किसानों का मोर्चा चाहता है कि किसानों को उनकी फसलों का उचित दाम मिले और अपने अधिकारों के लिए लड़ते हुए मारे गए किसानों की याद में एक स्मारक बने। उनकी एक बड़ी मांग यह भी है कि अग्निवीर योजना को तुरंत बंद किया जाए क्योंकि इस योजना से हरियाणा का युवा सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। वह इसलिए क्योंकि हरियाणा उन राज्यों में से एक है जहां से सबसे ज्यादा युवा सुरक्षा एजेंसियों में नौकरियां करते हैं।
चूंकि हरियाणा की 90 सीटों वाली विधानसभा के लिए चुनाव एक अक्टूबर को होंगे। इसलिए सत्तारूढ़ भाजपा, 'नॉनस्टॉप हरियाणा' नामक एक अभियान पूरे राज्य में चला रही है, जबकि हुड्डा के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी 'हरियाणा मांगे हिसाब' नाम का अभियान चला रही है। दोनों ही पार्टियां जनता का समर्थन हासिल करने के लिए पूरी ताक़त लगा रही हैं, और इसलिए विपक्षी पार्टी बेरोज़गारी और खेती से जुड़ी समस्याओं जैसे बड़े मुद्दों पर चर्चा कर रही है।
जेजेपी का भाजपा से मोहभंग होना भी एक ऐसा कारक है जिसे दरकिनार नहीं किया जा सकता है। पिछली विधानसभा में जेजेपी के 10 विधायक थे जिनकी मदद से भाजपा ने गठबंधन सरकार बनाई थी लेकिन किसानों के आंदोलन के चलते और लोकसभा चुनावों से पहले जेजेपी ने भाजपा से नाता तोड़ लिया था जिसका फायदा चुनावों में कांग्रेस को हुआ। जेजेपी मुख्य रूप से जाट समुदाय आधारित पार्टी है और किसान आंदोलन की वजह से उसके आधार में कमी आई है। इन चुनावों में जेजेपी भाजपा के साथ नहीं है और जेजेपी में फूट भी पड़ चुकी है जिसका पूरा फायदा लोकसभा चुनावों की कांग्रेस को जाता नज़र आता है।
तमाम मुद्दों को दरकिनार करते हुए भाजपा नें हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव से पहले हरियाणा की राजनीति में जाट समुदाय के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए ओबीसी को मुख्यमंत्री बनाया था लेकिन चुनावों के नतीजे बताते हैं कि उनकी इस रणनीति से अपेक्षित परिणाम नहीं मिले हैं। इसके बजाय, जाट बनाम गैर-जाट फैक्टर ने जाट मतदाताओं को एकजुट कर दिया और समुदाय को रणनीतिक रूप से मतदान करने का रास्ता दिखाया, ताकि उनके समुदाय के गैर-भाजपा उम्मीदवारों को उनके सभी वोट मिल सके। बीजेपी के लिए के चिंता यह भी है कि आम मतदाताओं में खट्टर की खास योजना, परिवार पहचान पत्र (पीपीपी) को लेकर असंतोष है। इस योजना की व्यापक आलोचना यह कहकर की गई कि अनुचित ढंग से डेटा इकट्ठा किया जा रहा है जिसके कारण निवासियों को विभिन्न सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। इनमें राज्य की सबसे लोकप्रिय पेंशन योजना भी शामिल है, जिसे पहली बार पूर्व उप-प्रधान मंत्री और जाट नेता देवी लाल ने शुरू किया था।
इसके अलावा हरियाणा में युवाओं का समय काफी खराब चल रहा है। हालांकि पूरे देश में स्थिति कुछ ऐसी ही है फिर भी हरियाणा बेरोज़गारी का बड़ा शिकार है। अब चूंकि खेती और सेना में नौकरियाँ पहले जितनी विश्वसनीय नहीं हैं तो युवाओं के भीतर असुक्षा का पनपना कोई नई बात नहीं है। यदि खेती में मुनाफा नहीं है तो दूसरे उद्योगों में भी अच्छी नौकरियां नहीं हैं। यहां तक कि अग्निपथ योजना, जो सेना में नौकरी देने वाली योजना है, में भी नौकरी की कोई सुरक्षा नहीं है।
हरियाणा में नौकरी के अवसरों को लेकर बहस तेज़ हो गई है। सरकार और विपक्ष दोनों ही बेरोज़गारी की दरों के बारे में बहस कर रहे हैं, यद्यपि कुछ डेटा दिखाते हैं कि हरियाणा में भारत में सबसे ज़्यादा बेरोज़गारी है। इस वजह से, कई लोग बेहतर अवसरों की तलाश में हरियाणा छोड़ रहे हैं, या हज़ारों छात्र अपनी पढ़ाई के लिए विदेश जा रहे हैं।
गुरुग्राम (गुड़गांव) जैसी जगहों पर, जो आमतौर पर अपने व्यापार और विकास के लिए जानी जाती हैं, असुरक्षा और कभी-कभार की हिंसा सहित विभिन्न मुद्दों के कारण निवेश धीमा हो गया है। इसका मतलब है कि अच्छी नौकरियां पाना मुश्किल होता जा रहा है और किसानी में अच्छी आय की तलाश कर रहे युवाओं दोनों के लिए चीजों को बेहतर बनाने के लिए बहुत काम करने की ज़रूरत है।
सीएमआईई (CMIE) के आंकड़ों के मुताबिक हरियाणा में पीएलएफएस के आंकड़ों के मुकाबले भारत में काफ़ी अधिक बेरोजगारी दर है, जो इसे चौथे स्थान पर रखती है। इसका निष्कर्ष यह है कि हरियाणा का प्रदर्शन पड़ोसी राज्यों पंजाब, यूपी, हिमाचल और यहां तक कि राजस्थान से भी खराब रहा है। नौकरियों के संकट को ठीक करने की सरकार की कोशिश के तहत स्थानीय श्रमिकों के लिए 75 फीसदी कोटा पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है। यह संकट बाहर जाने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि से स्पष्ट है। 2018 और 2022 के बीच, 30,000 से अधिक छात्र अध्ययन करने के लिए विदेश गए - उनमें से 2,000 यूक्रेन में तब फंस गए थे जब रूस और यूक्रेन का संघर्ष शुरू हुआ। हालात ऐसे हैं कि जातीय समीकरण भी भाजपा के पक्ष में काम करते नज़र नहीं आते हैं। इसकी तस्दीक हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों से होती जिसमें भाजपा 2019 के मुक़ाबले पांच सीटें हारी है। उस पर बढ़ती महंगाई और कम आय ने भी परिवारों के खर्च पर भी बड़ा असर डाला है। यानी परिवारों को अपना खर्च चलाने में बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
इसलिए इस बात की संभावना जाताना कि हरियाणा का यह चुनाव भाजपा के लिए आसान नहीं होगा, इस बात की पुष्टि करता है कि हरियाणा बदलाव चाहता है और भाजपा के मंत्री का ऊपर दिया गया बयान भी इसी डर को उजागर करता नज़र आता है।
(लेखक, दिल्ली स्थित स्वतंत्र पत्रकार है।)
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