बच्चों और महिलाओं को कैसे मिले पोषण: देश में आंगनवाड़ी के 1.93 लाख पद खाली
राज्यसभा में एक सवाल का उत्तर देते हुए महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति जुबिन ईरानी ने बताया कि देश में आंगनवाड़ी में विभिन्न स्तरों पर 1.93 लाख पद रिक्त पड़े हैं, जिनमे से 1.29 लाख पद अकेले पांच राज्यों, उत्तर प्रदेश में 50,670, पश्चिम बंगाल में 33,439, महाराष्ट्र में 19,478, तमिलनाडु में 15,720 और बिहार में 9,828 पद खाली हैं।
आंगनवाड़ी देश में पोषण प्रदान करने के मामले में महत्वपूर्ण स्थान रखता हैं। इतनी बड़ी संख्या में पद खाली पड़े होने और सभी स्वीकृत आंगनवाड़ी केंद्रों का संचालन न होने का सीधा प्रभाव बच्चों और महिलाओं को मिलने वाले पोषण पर पड़ रहा है।
केंद्रीय मंत्री ने पोषण से सम्बंधित एक दूसरे सवाल का जबाब देते हुए संसद में बताया कि देश में 6 माह से 6 वर्ष के बीच 9.27 लाख बच्चे अत्यधिक कुपोषण का शिकार हैं, जिनमें से सबसे अधिक 4 लाख बच्चे अकेले उत्तर प्रदेश से हैं।
स्रोत- राज्यसभा प्रश्न संख्या-1272
उत्तर प्रदेश आंगनवाड़ी कार्यकत्रियों और सहायिकाओं के खाली पदों के बारे में आंगनवाड़ी फेडरेशन की उत्तर प्रदेश की अध्यक्ष वीना गुप्ता बताती हैं कि अकेले यूपी में करीब 1 लाख से अधिक पद खाली हैं, वो आगे बताती है कि अचानक निदेशक ने एक पूर्व में निरस्त आदेश का हवाला देकर 62 वर्ष पूर्ण कर रही वर्कर और हेल्पर का मानदेय रोककर सेवा से अलग करने का आदेश सुना दिया। उत्तर प्रदेश में 2011 से कोई नयी नियुक्ति नहीं हुई है, और लगभग 10 प्रतिशत केंद्र बिलकुल खाली हैं, उनका कहना है कि 62 वर्ष के वर्कर्स को हटाने से लगभग 25 फीसदी केंद्र और खाली हो जायेंगे ये वर्कर्स इस वक्त कोविड-19 की निगरानी, सर्वे, टीकाकरण, और पोषाहार वितरण में लगी हैं इनके हटाने से ये दोनों ही काम बुरी तरह से प्रभावित होने, और लाखों बच्चों और महिलाओं, कि ज़िन्दगी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
वर्तमान में देश में करीब 14 लाख आंगनवाड़ी केंद्र स्वीकृत हैं जिनमे से अभी वर्तमान में 13.87 लाख ही संचालित हैं, यानी कि देश में आंगनवाड़ी के स्वीकृत केंद्रों में से 12,265 केंद्र संचालित ही नहीं हैं। आंगनवाड़ी के विभिन्न कार्यक्रमों को संचालित करने के लिए पूरे देश में 27.41 लाख कर्मचारी और आंगनवाड़ी कार्यकत्री और सहायिका हैं, जिनमें 7,075 CDPO (बाल विकास परियोजना अधिकारी), सुपरवाइजर के 51,312 पद, इसके आलावा 14 लाख कार्यकत्रियों, 12.83 लाख सहायिकाओं के पद स्वीकृत हैं।
इनमें से CDPO के 2,191 पद, जोकि कुल स्वीकृत पदों का 31 प्रतिशत है, सुपरवाइजर के करीब 17 हजार जोकि कुल स्वीकृत पदों का 33 प्रतिशत, कार्यकत्रियों के 71 हजार से अधिक पद और सहायिकाओं के एक लाख से अधिक पद खाली पड़े हुए हैं।
देश में पोषण और आंगनवाड़ी पर खर्चे करने पर भी सरकार पीछे
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के 2020-21 के एनुअल प्रोग्राम इम्प्लीमेंटेशन प्लान (APIP) के अनुसार आंगनवाड़ी पर होने वाला खर्चा SNP- Supplementary Nutrition Programme और आंगनवाड़ी सामान्य सेवाओं मदों के अंतर्गत केंद्र एवं राज्य सरकार दोनों के द्वारा वहन किया जाता हैं, इन दोनों मदों के लिए उत्तर पूर्व के राज्यों और हिमालयी राज्यों को केंद्रीय और राज्य अंश क्रमश 90:10 और केंद्र शासित प्रदेशों को 100 प्रतिशत केंद्रीय सहायता मिलती हैं और बाकी सभी राज्यों को आंगनवाड़ी सामान्य सेवाओं के लिए केंद्रीय और राज्य अंश के तहत क्रमश 60:40 हैं और सुपलेमेंटरी नुट्रिशन प्रोग्राम के लिए क्रमश 50:50 केंद्रीय व् राज्य अंश होता हैं।
दिनांक 23 जुलाई 2021 को लोकसभा में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने अतारांकित प्रश्न संख्या 915 के उत्तर में वर्ष 2018-19 से 2020-21 तक पिछले तीन वर्षों में SNP-Supplementary Nutrition Programme और आंगनवाड़ी सामान्य सेवाओं में राज्यों को स्वीकृत कि गयी धनराशि और जारी की गई धनराशि का विवरण पेश किया, जिसमें उन्होंने बताया कि इन तीन वर्षों में सभी राज्यों को 54,505 करोड़ रूपये कि धनराशि स्वीकृत की गयी थी जिसमे से केंद्र द्वारा 48,044 करोड़ रूपये की राशि ही जारी की गयी हैं, यानी मानकों के आधार पर तय धनराशि से 6,460 करोड़ रूपये कम जारी किये गए हैं।
2020-21 में कोरोना ने देश में त्राहिमाम मचाया हुआ था, जिसके कारण सभी आंगनवाड़ी केंद्र थे जिसका सीधा प्रभाव पोषण पर पड़ा हैं, ऐसे में केंद्र सरकार को कोई ऐसा रास्ता निकलने की जरूरत थी की अधिकांश लोगो को सही रूप से पोषण मिल सके, परन्तु इस और ध्यान देने की वजाए केंद्र ने राज्यों को तय मानकों में निर्धारित राशि से 4,100 करोड़ कम जारी किये हैं | और यदि हम राज्यों द्वारा उपयोग की गयी धनराशि का विवरण देखते है तो पाते है कि 2018-19 में राज्यों द्वारा 565 करोड़ और 2019-20 में 1,596 करोड़ रूपये उपयोग ही नहीं किये गए हैं, वर्ष 2020-21 के उपयोग की गयी धनराशि के आंकड़े अभी उपलब्ध नहीं हैं |
ऐसे में जब केंद्र सरकार ही अपने द्वारा तय की राशि राज्यों को पूरी नहीं देगा तो राज्य आंगनवाड़ी योजना में अपने सीमित संसाधनों के साथ अपने खर्चे के हिस्से के अलावा कैसे केंद्र का भी हिस्सा कैसे देंगे |
केंद्र सरकार द्वारा जारी की गयी धनराशि का विवरण राज्यवार अध्ययन करने से ज्ञात होता हैं कि मानकों के अनुसार जारी धनराशि में कम दिए जाने में उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर हैं, उत्तर प्रदेश को तय मानकों से 1941.58 करोड़ रूपये कम दिए गए है, इसी प्रकार बिहार को 600 करोड़, कर्नाटक को 475 करोड़, असम को 317.2 करोड़, पश्चिम बंगाल को 287 करोड़ और राजस्थान को 280 करोड़ रूपये केंद्र सरकार द्वारा कम जारी किये गए हैं, केंद्र द्वारा मानकों से कम राशि दिए जाने की यह स्थिति सभी राज्यों के लिए ऐसी ही हैं। जिन राज्यों का यहां जिक्र किया गया हैं ये वो राज्य है जिनमें बड़ी संख्या में कुपोषित बच्चे और एनिमिक महिलाएं हैं, उनके पोषण से सम्बंधित खर्चों में कमी होने का ख़ामियाजा बच्चे और महिलाएं लगातार भुगत रहे हैं।
ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ़ आंगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स (AIFAWH) की राष्ट्रीय महासचिव एआर सिंधु कहती हैं कि मोदी सरकार ने ICDS के बजट में भारी कटौती की है, इसके साथ ही एआर सिंधु कहती है कि सुप्रीम कोर्ट की लगातार दखल और आंगनवाड़ी की जनता में भारी मांग के चलते बंद तो नहीं कर पा रहे हैं लेकिन लगातर और वास्तविक खर्चों में कटौती कर रहे हैं, जबकि कैग और संसदीय समिति की रिपोर्ट में और सरकार जब खुद कुपोषण और पूर्वं प्राथमिक स्कूली बच्चों की बात करती है तो हमेशा कहा जाता है कि आंगनवाड़ी मजबूत करना होगा, परन्तु धरातल पर इसके लिए कोई कदम नहीं उठाये जा रहे हैं। खाली पदों पर बात करते हुए वे कहती हैं कि जिन आंगनवाड़ी केंद्रों पर पद खाली हैं उनकी जिम्मेदारी पास के केंद्रों के वर्कर्स को महज़ 50 रुपये प्रतिमाह के हिसाब से दे दी जाती हैं जिसके चलते वर्कर्स के ऊपर अतिरिक्त भार पड़ता हैं, परन्तु सरकार के द्वारा कोई भर्ती नहीं की जा रही हैं, जिसके चलते लाभार्थियों को ठीक से लाभ नहीं पहुँच पा रहा है।
आंगनवाड़ी केंद्रों की संख्या ज़रूरत से काफ़ी कम
आंगनवाड़ी कि पहुँच से बड़ी संख्या में बच्चे बाहर हैं, राज्यसभा में एक सवाल के उत्तर में केंद्रीय मंत्री ने बताया कि 31 मार्च 2021 तक आंगनवाड़ी सेवाओं के तहत 8.31 करोड़ लाभार्थियों को संपूरक पोषण दिया गया हैं जिसमे से 6.75 करोड़ बच्चे लाभार्थी हैं और गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं कि संख्या 1.57 करोड़ हैं , जबकि 2011 कि जनगणना के अनुसार देश में 0 से 6 वर्ष के बीच 16.45 करोड़ बच्चे थे जिसमें से ग्रामीण क्षेत्रों में 12.13 करोड़ थे और बाकी 4.32 करोड़ शहरों में हैं, इस विषय पर एआर सिंधु कहती है कि वर्तमान में आंगनवाड़ी के अंतर्गत केवल 50 प्रतिशत लाभार्थी ही शामिल हैं, देश में वर्तमान में करीब 16 करोड़ बच्चे 6 वर्ष कि आयु से कम के हैं, और वही सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वर्तमान में आंगनवाड़ी के अंतर्गत 6.75 करोड़ बच्चे ही शामिल हैं, इससे हम इस बात का अंदाजा लगा सकते है कि वर्तमान में जो 14 लाख स्वीकृत आंगनवाड़ी केंद्र हैं और वह जरूरत से काफी कम हैं, केंद्र सरकार को वर्तमान बच्चों कि संख्या एवं गृभवती और स्तनपान करवाने वाली महिलाओं कि संख्या को ध्यान में रख कर केंद्रों कि संख्या और कर्मचारियों कि संख्या में वृद्धि करनी चाहिए |
आंगनवाड़ी के अंतर्गत शामिल सेवाएं
आंगनवाड़ी सेवा स्कीम के अंतर्गत लाभार्थी 6 वर्ष तक कि आयु के बच्चे, गर्भवती महिलाएं और स्तनपान करवाने वाली माताएं शामिल कि जाती हैं जिनको सेवा पैकेजके रूप में
- अनुपूरक पोषण (SNP)
- पूर्व विद्यालयी गैर औपचारिक शिक्षा
- पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा
- टीकाकरण
- स्वास्थ्य जाँच और रेफरल सेवाएं
परन्तु इन सब कार्यों के आलावा आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं से पंचायत विभाग, चुनाव आयोग, स्वास्थ्य विभाग और अनेकों संस्थानों और विभागों द्वारा अनेक कार्यों और सर्वेक्षण के लिए कार्यकत्रियों और सहायिकाओं को शामिल किया जाता हैं।
कोरोना महामारी के दौरान कोविड के प्रभाव को सीमित करने के लिए देशभर के सभी आंगनवाड़ी केंद्र बंद कर दिए गए थे, परन्तु लाभार्थियों को निरंतर पोषण सहयोग सुनिश्चित करने के लिए कार्यकत्रियों और साहिकाओं को महीने में दो बार घर-घर जाकर संपूरक पोषण वितरण करने के दिशानिर्देश थे।
न कोई न्यूनतम मज़दूरी और न ही कोई सामाजिक सुरक्षा
आंगनवाड़ी कार्यकत्री और सहायिका एक अवैतनिक कार्यकर्त्ता हैं जिनको सरकार कर्मचारी नहीं मानती हैं और यह न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 के अंतर्गत भी नहीं आते हैं और सरकार द्वारा इनको बहुत ही कम धनराशि दी जाती हैं जिसको मानदेय कहा जाता है। केंद्र सरकार द्वारा मानदेय की राशि कार्यकत्री के लिए 4,500 रुपये, मिनी आंगनवाड़ी की कार्यकत्री के लिए 3,500 रुपये और सहायिका के लिए 2,250 रुपये मात्र है। केंद्र सरकार द्वारा इस तय राशि में कुछ राज्य अपनी तरफ से भी कुछ धनराशि मिलाकर देते हैं पर वह भी काफी कम होती है।
आंगनवाड़ी कार्यकत्रियों और सहायिकाओं को सामाजिक सुरक्षा के नाम पर केवल प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY) और प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (PMSBY) के अंतर्गत 2-2 लाख रूपये का बीमा कवर दिया जाता हैं, यह बीमा PMJJBY के अंतर्गत 50 वर्ष तक और PMSBY के अंतर्गत 59 वर्ष तक की आयु तक ही दिया जाता है जबकि उनसे सेवाएं 65 वर्ष ली जाती हैं।
आपको यहां बता दे कि PMJJBY और PMSBY के अंतर्गत बीमा कोई भी आम नागरिक भी 330 रुपये और 12 रुपये देकर प्राप्त कर सकता हैं, इसके आलावा गंभीर बिमारी होने पर 20 हजार रुपये देने का प्रावधान हैं। इसके अलावा आंगनबाडी में कार्यकत्रियों और सहायिकाओं को भविष्य निधि (PF) और ग्रेचुटी का कोई लाभ भी नहीं मिलता है।
आंगनवाड़ी वर्कर्स द्वारा अपने को कर्मचारी मानने की मांग और न्यूनतम वेतन मिलने की मांग बहुत लम्बे समय से है, जिसको सरकार लगातर नजरअंदाज कर रही है। आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं जिन पर की देश के भविष्य के पोषण की जिम्मेदारी हैं उनके साथ सरकार की यह अनदेखी बहुत ही गलत है, जिसको तत्काल प्रभाव से दुरुस्त किये जाने की ज़रूरत है।
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