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आज़ादी के दिन बिलक़ीस बानो के गैंगरेप दोषियों की आज़ादी कितनी जायज़?

2002 के गुजरात दंगों के दौरान पांच महीने की गर्भवती बिलक़ीस बानो के साथ गैंगरेप किया गया। उनकी तीन साल की बेटी की भी बेरहमी से हत्या कर दी गई। इस दंगे में बिलक़ीस बानो की माँ, छोटी बहन और अन्य रिश्तेदार समेत 14 लोग मारे गए थे।
Bilkis bano
Image courtesy : PTI

आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ पर लाल किले की प्रचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में नारी शक्ति का खास तौर पर जिक्र किया। उन्होंने महिलाओं के अपमान को लेकर अपनी पीड़ा भी जाहिर की। हालांकि इसे मात्र संयोग कहें या विडंबना कि इसी दिन गुजरात के बिलक़ीस बानो गैंगरेप केस में उम्रकैद की सजा पाने वाले सभी 11 दोषियों को रिहा कर दिया गया। बिलक़ीस बानो का मामला 2002 के गुजरात दंगों से संबंधित सबसे महत्वपूर्ण मामलों में से एक था। अब आज़ादी के अमृतकाल में स्वतंत्रता दिवस पर इन दोषियों की रिहाई सवालों के घेरे में है। विपक्ष के साथ ही महिला संगठन भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गुजरात सरकार से जवाब मांग रहे हैं।

बता दें कि उस वक़्त बिलक़ीस करीब 20 साल की थीं, जब 2002 के गुजरात दंगों के दौरान अहमदाबाद के पास रणधी कपूर गाँव में एक भीड़ ने उनके परिवार पर हमला किया था। इस दौरान पाँच महीने की गर्भवती बिलकीस बानो के साथ गैंगरेप किया गया। उनकी तीन साल की बेटी सालेहा की भी बेरहमी से हत्या कर दी गई। इस दंगे में बिलक़ीस बानो की माँ, छोटी बहन और अन्य रिश्तेदार समेत 14 लोग मारे गए थे।

मामले में 21 जनवरी, 2008 को मुंबई की स्पेशल कोर्ट ने 11 लोगों को हत्या और गैंगरेप का दोषी मानते हुए उम्रकैद की सज़ा सुनाई थी। इस मामले में पुलिस और डॉक्टर सहित सात लोगों को छोड़ दिया गया था। सीबीआई ने बॉम्बे हाई कोर्ट में दोषियों के लिए और कड़ी सज़ा की मांग की थी। इसके बाद बॉम्बे हाई कोर्ट ने मई, 2017 में बरी हुए सात लोगों को अपना दायित्व न निभाने और सबूतों से छेड़छाड़ को लेकर दोषी ठहराया था।

क्या है पूरा मामला?

सोमवार, 15 अगस्त को गुजरात की गोधरा जेल में बंद बिलक़ीस बानो मामले के 11 दोषियों को गुजरात सरकार की माफी योजना के तहत रिहाई दे दी गई। इन दोषियों ने 15 साल से अधिक जेल की सजा काटी थी जिसके बाद उनमें से एक ने अपनी समय से पहले रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक राज्य सरकार के एक पैनल ने सजा की माफी के लिए उनके आवेदन को मंजूरी दी जिसके बाद उनकी जेल रिहाई हो पाई।

अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस को गुजरात के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) राज कुमार ने बताया कि जेल में ‘14 साल पूरे होने' और अन्य कारकों जैसे 'उम्र, अपराध की प्रकृति, जेल में व्यवहार आदि' के कारण माफी के आवेदन पर विचार किया गया था।

मालूम हो कि इस मामले के इन 11 लोगों को साल 2004 में गिरफ्तार किया गया था। फिर अहमदाबाद में केस का ट्रायल शुरू हुआ। हालांकि, बिलक़ीस बानो ने आशंका जताई कि गवाहों को नुकसान पहुंचाया जा सकता है और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा एकत्रित सबूतों से छेड़छाड़ की जा सकती है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2004 में इस केस को मुंबई ट्रांसफर कर दिया था।

सजा को माफ करने के लिए सरकार से गुहार

साल 2008 में इन सभी आरोपियों को सज़ा हुई थी, जिसमें राधेश्याम शाह, जसवंत चतुरभाई नाई, केशुभाई वदानिया, बकाभाई वदानिया, राजीभाई सोनी, रमेशभाई चौहान, शैलेशभाई भट्ट, बिपिन चंद्र जोशी, गोविंदभाई नाई, मितेश भट्ट और प्रदीप मोढिया के नाम शामिल थे। इन कैदियों में से एक राधेश्याम ने सजा में छूट के लिए आवेदन दिया था। राधेश्याम ने सजा को माफ करने के लिए गुजरात हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। हाईकोर्ट ने ये कहते हुए याचिका खारिज कर दी थी कि उनकी माफी के बारे में फैसला करने वाली 'उपयुक्त सरकार' महाराष्ट्र है, न कि गुजरात।

राधेश्याम ने तब सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की और कहा कि वह 1 अप्रैल, 2022 तक बिना किसी छूट के 15 साल 4 महीने जेल में रहा। 13 मई को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चूंकि अपराध गुजरात में किया गया था, इसलिए गुजरात राज्य राधेश्याम के आवेदन की जांच करने के लिए उपयुक्त सरकार है। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को 9 जुलाई, 1992 की माफी नीति के अनुसार समय से पहले रिहाई के आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया और कहा था कि दो महीने के अंदर फैसला किया जा सकता है।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह), राज कुमार ने बताया कि 11 दोषियों ने कुल 14 साल की सजा काट ली है। कानून के अनुसार, आजीवन कारावास का मतलब न्यूनतम 14 साल की अवधि है, जिसके बाद दोषी छूट के लिए आवेदन कर सकता है। फिर आवेदन पर विचार करना सरकार का निर्णय होता है। उन्होंने बताया कि कैदियों को जेल सलाहकार समिति के साथ-साथ जिला कानूनी अधिकारियों की सिफारिश के बाद छूट दी जाती है।

रिहाई का विरोध

अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला संगठन (ऐपवा) ने बिलक़ीस बानो के दोषियों की रिहाई का विरोध करते हुए पीएम मोदी और गुजरात सरकार से इस माफी का आधार पूछा है। साथ ही इस छुट पर सवाल उठाते हुए इसे सांप्रदायिक हत्यारों और बलात्कारियों को सज़ा से बचाने का एक जरिया करार दिया है।

संगठन की अध्यक्ष रति राव, महासचिव मीना तिवारी और सचिव कविता कृष्णनन ने एक साझा बयान जारी कर कहा है कि आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ के दिन बिलक़ीस के बलात्कारियों को मुक्त करने का फैसला कर सत्तारूढ़ बीजेपी ने इसे भारत की महिलाओं के लिए शर्म का दिन बना दिया। क्या यही अमृतकाल है? क्या मुसलमानों के बलात्कार और हत्या के लिए छूट और आज़ादी एक इनाम थी?

बयान में आगे कहा गया है कि हिंदू-वर्चस्ववादियों के लिए आज खुलेआम मुसलमानों के नरसंहार और बलात्कार का आह्वान करना आम बात हो गई है। बिलक़ीस बानो के बलात्कारियों को आज़ाद करने का फैसला ऐसे लोगों को और प्रोत्साहित करता है।

संगठन का कहना है कि नारीवादी कार्यकर्ताओं और महिला संगठनों पर अक्सर "बलात्कारियों के प्रति नरम" होने का आरोप 'गोदी मीडिया' लगता रहा है क्योंकि हम बलात्कार के लिए मौत की सजा का विरोध करते हैं। इस मामले में खुद बिलक़ीस ने कहा था कि वह मौत की सजा की मांग नहीं करेंगी, क्योंकि उन्होंने सैद्धांतिक तौर पर इसका विरोध किया था। अब जबकि उनके अपराधियों को कुछ साल की जेल के बाद रिहा किया जा रहा है, तो क्या ये 'गोदी मीडिया' बिलक़ीस के लिए न्याय की मांग को आगे बढ़ाएगा?

अखिल भारतीय जनवादी महिला संगठन (एडवा) की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व सांसद सुभाषिनी अली ने बिलक़ीस के दोषियों की माफी को लेकर नाराज़गी जाहिर करते हुए कहा कि आज़ादी का महोत्सव तो यही लोग मना रहे हैं जिन्हें हत्या और बलात्कार करने की आज़ादी मिली है। बिलक़ीस का चेहरा बार बार आंखों के सामने तैरता है।

सुभाषिनी ने अपने ट्वीट में लिखा, "कल प्रधानमंत्री ने लोगों से महिलाओं का सम्मान करने का आवाहन किया। आज उनकी बातों की सच्चाई सामने आई, जब बिलक़ीस बानो और उनके परिवार की महिलाओं के साथ बलात्कार करने वालों जिन्होंने उसके परिवार के 14 सदस्यों और उसके 4 साल के बच्चे की हत्या भी की थी को जेल से रिहा करके मिठाई खिलाई गई।"

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) अध्यक्ष और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि धर्म को लेकर बीजेपी इतनी पक्षपाती है कि रेप और नफ़रती हिंसा के लिए भी माफ़ी मिल जाती है।

ओवैसी ने ट्वीट किया है, "आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाने का ये बीजेपी का तरीक़ा है। जो लोग जघन्य अपराध के दोषी हैं, उन्हें रिहा कर दिया गया है। एक धर्म के लिए बीजेपी इतनी पक्षपाती है कि बलात्कार और हेट क्राइम भी माफ़ कर दिए जाते हैं। क्या बीजेपी-शिंदे की महाराष्ट्र सरकार भी रुबीना मेमन की रिहाई के लिए समिति बनाएगी?"

अपने ट्वीट में ओवैसी ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर दिए प्रधानमंत्री मोदी के भाषण का ज़िक्र करते हुए कहा, "आज के भाषण में प्रधानमंत्री ने भारतीयों से संकल्प लेने के लिए कहा कि वो महिलाओं के अपमान करने वाले आचरण को व्यवहार से हटाए। उन्होंने 'नारी शक्ति' की बात की। गुजरात बीजेपी ने इसी दिन बलात्कार के दोषी अपराधियों को रिहा कर दिया। संदेश साफ है।"

गौरतलब है कि 27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के एक डिब्बे में आग लगने से करीब 60 लोग मारे गए थे। ये सभी कारसेवक थे, जो अयोध्या से लौट रहे थे। गोधरा कांड के बाद पूरे गुजरात में दंगे भड़क उठे। इन दंगों में 1,044 लोग मारे गए थे। उस समय राज्य में बीजेपी की सरकार थी और नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। उनपर और उनकी सरकार पर भी कई आरोप लगे थे, हालांकि कोर्ट उन्हें क्लीन चीट दे चुकी है लेकिन ये मामला अभी भी लगातार सुर्खियों में है। कई लोगों का कहना है कि सरकार की छूट नीति का फायदा उठाकर 11 गैंगरेप दोषी बाहर तो आ गए लेकिन उसी गुजरात में पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट तीन वर्षों से जेल में बंद हैं। इसी तरह सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ और पूर्व आईपीएस बीआर श्रीकुमार को गुजरात पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया है। ऐसे में अब एक बार फिर गुजरात में बीजेपी की सरकार है, जिसे लेकर सवाल उठना लाज़मी है।

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