कोरोनो वायरस की महामारी से कितनी बदल जाएगी दुनिया
कोरोना वायरस महामारी इस सदी का सबसे बड़ा वैश्विक संकट है। इसका विस्तार और गहराई बहुत ज्यादा है। इस सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट से पृथ्वी पर 7.8 अरब लोगों में से हर एक को खतरा है। इस बीमारी ने पूरे विश्व-के जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है और सभी बाजारों को बाधित कर दिया है।
कोरोना वायरस ने जिस तरह से दुनिया के देशों की सरकारों की क्षमताओं या उनकी कमजोरियों को उजागर किया है, उससे काफी हद तक निश्चित है कि यह राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में मौजूदा तौर-तरीकों में स्थायी रूप से ऐसे बड़े बदलाव लाएगा, जो केवल बाद में ही चलकर पूरी तरह स्पष्ट हो पाएंगे।
कोरोना वायरस महामारी से पैदा वित्तीय और आर्थिक संकट 2008-2009 की बड़ी मंदी के प्रभाव से ज्यादा हो सकता है। बर्लिन की दीवार के गिरने या लेहमैन ब्रदर्स के पतन की तरह कोरोना वायरस महामारी भी एक बड़ी घटना है। इसके दूरगामी परिणामों की हम आज केवल कल्पना ही कर सकते हैं।
कोरोनो वायरस ने वैश्विक अर्थव्यवस्था के उन आर्थिक दोषों को भी उजागर किया है, जिनकी अभी तक शांति काल में अनदेखी करना बहुत आसान था। कोविड-19 महामारी वैश्विक आर्थिक गति की दिशाओं को भले ही मौलिक रूप से नहीं बदलेगी लेकिन यह कुछ ऐसी प्रवृत्तियों की गति को और तेज कर देगी, जो पहले से ही चल रही हैं।
कोरोना वायरस विश्व के औद्योगिक विनिर्माण के मौजूदा मूल सिद्धांतों को कमजोर कर रहा है। वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएं पहले से ही आर्थिक और राजनीतिक दोनों रूप से समस्याओं से घिरी हुईं थीं।
आर्थिक रूप से बढ़ती श्रम लागतें, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रम्प के चीन के साथ व्यापार युद्ध, रोबोटिक्स, ऑटोमेशन और 3डी प्रिंटिंग जैसे मुद्दे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर असर डालते रहे हैं। कोरोना वायरस के हमले के बाद कंपनियां अब मल्टीस्टेप, मल्टीकाउंट सप्लाई चेन को बहुत हद कर सिकोड़ लेंगी, जो आज दुनिया के औद्योगिक उत्पादन परिदृश्य पर हावी हैं।
कोविड-19 ने अब इनमें से कई सप्लाई लिंक्स को तोड़ दिया है। कोरोना प्रभावित क्षेत्रों में फैक्ट्रियां बंद होने से दूसरे निर्माताओं, अस्पतालों, फार्मेसियों, सुपरमार्केटों और खुदरा स्टोरों में उत्पादों की कमी हो गई है। ई-कॉमर्स की दिग्गज अमेज़न के प्लेटफार्म से जुड़ी केवल 45% चीनी कंपनियां ही अभी सामानों की सप्लाई कर रही हैं। इसके कारण अमेजन ने इटली और फ्रांस में गैर जरूरी सामानों की आपूर्ति के आर्डर लेना रोक दिया।
वैश्वीकरण ने कंपनियों को दुनिया भर में विनिर्माण करने और वेयरहाउसिंग की लागतों को दरकिनार करते हुए अपने उत्पादों को बाजार में सीधे पहुंचाने की अनुमति दी है। कुछ दिनों से अधिक समय तक आलमारियों में पड़े रहने वाले सामानों को बाजार की विफलता माना जाता था। आपूर्ति किये जाने वाले सामानों को सावधानी से और वैश्विक स्तर पर निर्धारित स्थानों पर भेजना पड़ता है। कोविड-19 ने साबित कर दिया है कि वायरस न केवल लोगों को संक्रमित कर सकते हैं, बल्कि पूरी आर्थिक प्रणाली को ध्वस्त कर सकते हैं।
कोरोना वायरस महामारी के कारण अगर आने वाले समय में पश्चिमी देशों के व्यवसायों और एशियाई और अफ्रीकी देशों के श्रम बल की श्रृंखला कमजोर पड़ती है तो लंबी अवधि में संभवतः वैश्विक अर्थव्यवस्था की उत्पादक क्षमता घट जाएगी।
इसके बदलने से वर्तमान अंतरराष्ट्रीय प्रणाली बड़े दबाव में आ जाएगी। जो साफ तौर पर पश्चिमी विकसित देशों के पक्ष में झुकी हुई है। वैश्विक अर्थव्यवस्था का यह जोखिम विशेष रूप से विकासशील देशों, आर्थिक रूप से कमजोर श्रमिकों और गरीब लोगों के एक बड़े हिस्से के लिए बहुत अच्छा साबित हो सकता है। इससे उनके लिये नई संभावनाओं और अवसरों का मार्ग खुल सकता है।
इसके परिणाम-स्वरूप वैश्विक पूंजीवाद में एक नाटकीय नया चरण आ सकता है। जिसमें आपूर्ति श्रृंखलाओं को आस-पास ही रखा जाता है और भविष्य के आपात व्यवधानों से बचने के लिए गोदामों को ज्यादा सामान से भरा रखा जाता है। यह कंपनियों के हाल के मुनाफे में कटौती कर सकता है, लेकिन पूरी आर्थिक प्रणाली को अधिक लचीला बना सकता है।
महामारी के बाद ज्यादा से ज्यादा कंपनियां अब यह जानने का प्रयास करेंगी कि उनकी मूल आपूर्ति कहां से आती है। सरकारें भी घरेलू उद्योगों की घरेलू बैकअप योजनाओं और भंडार के लिए रणनीतिक उद्योगों पर विचार कर रही हैं। इससे लाभप्रदता में गिरावट जरूर आएगी, लेकिन आपूर्ति स्थिरता में वृद्धि होने का उद्देश्य पूरा होना चाहिए।
दुनिया की वित्तीय और आर्थिक प्रणाली के लिए कोरोना वायरस एक बुनियादी झटका है। यह पहले से ही माना जाता है कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला और वितरण नेटवर्क किसी बड़े झटके के लिए बहुत कमजोर हैं। इसलिए कोरोना वायरस महामारी का न केवल लंबे समय तक चलने वाला आर्थिक प्रभाव होगा, बल्कि इससे एक बड़ा मौलिक परिवर्तन भी होगा।
कोरोना वायरस अमेरिका-केंद्रित वैश्वीकरण की ओर से चीन-केंद्रित वैश्वीकरण की ओर बढ़ रही दुनिया की गति को केवल और बढ़ाने का काम करेगा। यह प्रवृत्ति क्यों तेजी से बढ़ेगी? इसका एक बड़ा कारण है कि अमेरिकी जनता ने वैश्वीकरण और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अपना भरोसा करीब-करीब खो दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रम्प के कारण मुक्त व्यापार समझौते अब अपनी अंतिम सांसे गिन रहे हैं। इसके विपरीत चीन ने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में विश्वास नहीं खोया है। क्योंकि इसके गहरे ऐतिहासिक कारण हैं।
चीनी नेताओं को यह अच्छी तरह से पता है कि चीन का 1842 से 1949 तक एक कमजोर राष्ट्र रहने का सबसे बड़ा कारण उसका स्वयं को दुनिया से काट देने का निरर्थक प्रयास था। इसके विपरीत पिछले कुछ दशकों में चीन का आर्थिक पुनरुत्थान वैश्विक जुड़ाव का परिणाम है। चीनी लोगों ने भी अपने बढ़ते सांस्कृतिक आत्मविश्वास का अनुभव किया है। उनका मानना है कि अब वे कहीं भी प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं।
इस सबके बावजूद कोविड-19 एक ऐसी दुनिया बनाएगा जो कम खुली, कम समृद्ध और कम आजाद हो सकती है। एक घातक वायरस, अपर्याप्त योजना और अक्षम नेतृत्व के संयोजन ने मानवता को एक नए और चिंताजनक मार्ग पर डाल दिया है। कोरोना वायरस महामारी वह बड़ा भार साबित हो सकता है जो आर्थिक वैश्वीकरण और उदारीकरण की कमर भी तोड़ सकता है।
कोरोना वायरस जैसी पिछली कई विपत्तियों ने ताकतवर देशों के बीच की शक्ति प्रतिद्वंद्विता को समाप्त नहीं किया। ऐसी विपत्तियों में 1918-1919 की इन्फ्लूएंजा महामारी भी शामिल थी। इसने महान-शक्तियों की प्रतिद्वंद्विता को समाप्त नहीं किया और न ही वैश्विक सहयोग के एक नए युग की शुरुआत की।
कोरोना वायरस से भी ऐसा कुछ नहीं होगा। कोरोना वायरस के बाद पूरी दुनिया में संभवत: ग्लोबलाइजेशन से पीछे हटने की गति तेज होते हुए देखी जा सकती है। क्योंकि नागरिक अपनी सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय सरकारों की ओर ज्यादा देख रहे हैं।
कई देशों ने दिखाया है कि एक निर्णायक कार्रवाई कोरोना वायरस के उभार को कम से कम कर सकती है। चीन ने आश्चर्यजनक रूप से अब घरेलू प्रसारण के एक भी नए मामले की सूचना नहीं दी। इससे यह स्पष्ट रूप से साबित हो गया है कि कोरोना वायरस को खत्म किया जा सकता है। पश्चिमी देश चीन की जबरदस्त रणनीति की नकल करने वाले नहीं हैं, लेकिन सिंगापुर, ताइवान, दक्षिण कोरिया और हांगकांग ने भी प्रदर्शित किया है कि कम से कम अस्थायी रूप से कोरोना वायरस को नियंत्रित किया जा सकता है।
अमेरिका और दक्षिण कोरिया ने एक ही दिन में अपने पहले कोरोना वायरस मामलों की सूचना दी थी। लेकिन दक्षिण कोरिया ने महामारी को गंभीरता से लिया, तुरंत एक प्रभावी परीक्षण व्यवस्था बनाई। इसका व्यापक रूप से उपयोग किया और इससे देखा गया कि कोरोना वायरस संक्रमण के मामले 90 प्रतिशत तक अधिक नीचे चले गए हैं।
इसके विपरीत अमेरिका के राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रम्प ने कोरोनो वायरस से किसी बड़े संकट की संभावना को बार-बार यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह पूरी तरह से नियंत्रण में है। संयुक्त राज्य अमेरिका ने अभी भी कनाडा, ऑस्ट्रिया और डेनमार्क के प्रति व्यक्ति परीक्षण की तुलना में केवल 10 प्रतिशत से थोड़ा ज्यादा ही कोरोना वायरस संक्रमण के परीक्षण किये हैं।
जैसा कि हमेशा से होता रहा है, कोविड-19 का इतिहास इस संकट के "विजेताओं" द्वारा लिखा जाएगा। प्रत्येक राष्ट्र और हर व्यक्ति तेजी से नए और शक्तिशाली तरीकों से इस बीमारी से पैदा समस्याओं का सामना कर रहा है। वे राष्ट्र जो अपनी राजनीतिक और आर्थिक प्रणालियों के साथ-साथ सार्वजनिक स्वास्थ्य को सुचारू बनाए रखने में सफल होंगे, वे साफ तौर पर ज्यादा विनाशकारी परिणामों का अनुभव करने वाले देशों के ऊपर सफलता का दावा करेंगे।
कोविड-19 पश्चिम से पूर्व की ओर शक्ति और प्रभाव के हस्तांतरण की गति को और तेज कर देगा। कोरोना वायरस से निपटने में दक्षिण कोरिया, ताइवान, वियतनाम, जापान और सिंगापुर ने सबसे बेहतर व्यवस्था दिखाई है। चीन ने अपनी शुरुआती गलतियों के बाद बहुत अच्छे और तेज सुधार के दम पर कोरोना वायरस पर काबू पाया है।
इसकी तुलना में पश्चिमी देशों खासकर इटली, स्पेन और फ्रांस सहित पूरे यूरोप और अमेरिका के उपाय ढीले-ढाले रहे हैं। चीन, ताइवान, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर जैसे देशों के हजारों छात्र अमेरिका और यूरोप के देशों में अपनी पढ़ाई छोड़ कर घर वापस लौट रहे हैं। कोरोना वायरस ने इन विकसित देशों में स्वास्थ्य सेवाओं के अक्षम और कमजोर ढांचे की पोल खोल कर रख दी है।
अमेरिका में अस्पतालों में डॉक्टरों तक को मॉस्क जैसी मामूली चीज के लिए जूझना पड़ रहा है। अमेरिका में कई अस्पतालों ने कहा है कि अगर रोगियों की संख्या बढ़ी तो उन्हें वेंटिलेटर या आईसीयू सुविधाओं की कमी का सामना करना पड़ सकता है। इससे गंभीर रोगियों के मरने की संभावना बढ़ सकती है।
अमेरिका में कोरोना वायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित न्यूयॉर्क के मेयर बिल डे ब्लासियो ने तो साफ कह दिया है कि अगले 10 दिनों में शहर में मेडिकल सप्लाई के अभाव का सामना करना पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि देश को सच का पता होना चाहिए। अगर ऐसे ही हालात बने रहे तो अप्रैल और मई में और भयानक स्थिति होने वाली है।
इटली में कोरोना वायरस से मरने वालों की संख्या बढ़कर करीब 5500 हो गई है। इटली में केवल शनिवार को एक ही दिन में 793 लोगों की कोरोना वायरस से मौत हुई। रविवार को इटली में कोरोना वायरस से 651 मौतें हुईं। इसी तरह स्पेन में मरने वालों की संख्या 1700 तक पहुंच गई है। इटली में जिस तरह से कोरोना वायरस बेकाबू हो गया है, उससे इटली की स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है।
इटली की मदद करने के लिए रूस ने रविवार को अपनी सेना के मेडिकल दस्तों को आपात सेवा के लिए उतार दिया है। जबकि अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगी देशों के संगठन नाटो ने इस मामले में कोई पहल नहीं की है। अमेरिकी सेना के जवानों को देश में यात्रा करने से भी रोक दिया गया है। इसने विकसित पश्चिमी देशों की चमक को धूमिल किया है।
सभी प्रकार की सरकारें संकट के प्रबंधन के लिए आपातकालीन उपाय अपनाएंगी। संकट खत्म होने के बाद इन नई शक्तियों को त्यागने के लिए कई लोग अनिच्छुक हो जाएंगे। अपने नागरिकों के सामने खुद को सक्षम साबित करने नेता तो और ज्यादा ताकतवर होंगे लेकिन जो असफल होंगे उनके लिए दूसरों को दोष देना मुश्किल होगा।
यदि यूरोपीय संघ अपने 50 करोड़ नागरिकों को पर्याप्त सहायता प्रदान नहीं कर सका तो भविष्य में राष्ट्रीय सरकारें ब्रुसेल्स से ज्यादा शक्तियां वापस ले सकती हैं। कोरोना वायरस महामारी राज्य तंत्र और राष्ट्रवाद को मजबूत करेगी।
अल्पावधि में कोरोना वायरस संकट पश्चिमी दुनिया में विचारधाराओं की रणनीतिक बहस में विभिन्न विरोधी खेमों को ताकत प्रदान करेगा। राष्ट्रवादी और उसके विरोधी, साम्यवादी और सोशल डेमोक्रेट्स, यहां तक कि उदारवादी अंतर्राष्ट्रीयतावादी भी अपने विचारों की तात्कालिक प्रासंगिकता के लिए इसमें कुछ न कुछ नए सबूत जरूर खोजेंगे।
कोरोना वायरस के कारण जो आर्थिक क्षति और सामाजिक तनाव सामने आया है, उसे देखते हुए राष्ट्रवादी उभार और ताकतवर देशों की शक्ति प्रतिद्वंद्विता और ज्यादा बढ़ेगी। किसी भी तरह से कोरोना वायरस संकट अंतरराष्ट्रीय शक्ति संरचना में जरूर बदलाव लायेगा। इसके अलावा इस समय और कुछ भी कह पाना मुश्किल है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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