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कैसे ग़ज़ा पर युद्ध ने भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप के आर्थिक गलियारे को रोक दिया है

अब, सऊदी अरब और यूएई का इज़रायलियों के साथ ऐसे किसी भी किस्म के प्रोजेक्ट में उतरना समझ से परे की बात है।
gaza
फ़ोटो : PTI

9 सितंबर, 2023 को नई दिल्ली में जी-20 की बैठक के दौरान, सात देशों की सरकारों और यूरोपीयन यूनियन ने भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) बनाने के लिए एक समझौता-ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए थे। केवल तीन देश (भारत, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात या यूएई) सीधे तौर पर इस गलियारे का हिस्सा होंगे, जिसे भारत से शुरू होना था और खाड़ी से गुजरते हुए सीधे ग्रीस में समाप्त होना था। यूरोपीय देश (फ्रांस, जर्मनी और इटली) के साथ-साथ यूरोपीयन यूनियन भी इस मूहीम में शामिल हो गए थे क्योंकि उन्हें भी यह उम्मीद थी कि आईएमईसी उनके माल को भारत पहुंचाने में एक व्यापार मार्ग बनेगा और उनके पहुँच भी भारतीय माल तक हो जाएगी, जैसा कि उन्हें उम्मीद थी यह सब कम लागत में होगा।

संयुक्त राज्य अमेरिका, जो आईएमईसी की पहल करने वालों में से एक था, ने इसे चीन और ईरान को अलग-थलग करने के साथ-साथ इज़राइल और सऊदी अरब के बीच संबंधों को सामान्य बनाने और उनमें तेजी लाने के साधन के रूप में आगे बढ़ाया। यह वाशिंगटन के लिए एक आदर्श कदम की तरह लग रहा था: जिसमें चीन और ईरान को अलग करना, इज़राइल और सऊदी अरब को एक साथ लाना, और भारत के साथ संबंधों को मजबूत करना, जो रूस के मामले में संयुक्त राज्य अमेरिका की नीति न मानने या भारत द्वारा अनिच्छा जताने के कारण कमजोर हो गए थे।

गज़ा में फ़िलिस्तीनियों पर इसरायल के युद्ध ने पूरे समीकरण को बदल दिया है और आईएमईसी की प्रगति को रोक दिया है। अब सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात का इसरायलियों के साथ इस तरह की परियोजना में प्रवेश करना समझ से परे की बात है। इसराइल द्वारा गज़ा में की जा रही अंधाधुंध बमबारी और नागरिकों के जीवन तबाही से अरबी दुनिया के जनमत में बेताहाशा गुस्से है। इसराइल के साथ घनिष्ठ संबंध रखने वाले इलाकाई देशों - जैसे जॉर्डन और तुर्की - को इसराइल के खिलाफ अपनी बयानबाजी सख्त करनी पड़ी है। कुछ समय तक, कम से कम, आईएमईसी को लागू करने की कल्पना करना असंभव है।

एशिया की ओर धुरी

चीन के वन बेल्ट, वन रोड" या बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) का उद्घाटन करने से दो साल पहले ही, संयुक्त राज्य अमेरिका ने पहले ही भारत को यूरोप से जोड़ने और वाशिंगटन और नई दिल्ली के बीच संबंधों को मजबूत करने के लिए एक निजी क्षेत्र-वित्त पोषित व्यापार मार्ग की योजना बना ली थी। 2011 में, तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने चेन्नई, भारत में एक भाषण दिया था, जहाँ उन्होंने एक नए सिल्क रोड के निर्माण की बात कही थी जो भारत से पाकिस्तान और मध्य एशिया तक जाएगी। यह नया "अंतर्राष्ट्रीय वेब और आर्थिक और पारगमन कनेक्शन का नेटवर्क" संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए एक नया अंतर सरकारी मंच और एक "मुक्त व्यापार क्षेत्र" बनाने का एक साधन होगा जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका एक सदस्य होगा (लगभग उसी तरह से) जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग या एपीईसी (APEC) का हिस्सा है)।

जैसा कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा था, न्यू सिल्क रोड एक व्यापक "एशिया की धुरी" का हिस्सा है। इस "धुरी" को चीन के उत्थान को रोकने और एशिया में उसके प्रभाव को रोकने के लिए डिज़ाइन किया गया था। विदेश नीति में क्लिंटन के लेख ("अमेरिकाज पैसिफ़िक सेंचुरी," 11 अक्टूबर, 2011) में कहा गया कि यह न्यू सिल्क रोड चीन का विरोधी नहीं है। हालाँकि, "धुरी" की यह बयानबाजी अमेरिकी सेना की नई एयरसी बैटल अवधारणा के साथ आई थी, जिसे संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बीच सीधे संघर्ष के आसपास तैयार किया गया था (यह अवधारणा 1999 के पेंटागन अध्ययन पर आधारित थी, जिसे "एशिया 2025" कहा गया था, जिसमें कहा गया था कि "खतरे एशिया में हैं”)।

दो साल बाद, चीनी सरकार ने कहा कि वह "वन बेल्ट, वन रोड" नामक एक विशाल बुनियादी ढांचे और व्यापार परियोजना का निर्माण करेगी, जिसे बाद में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) कहा जाएगा। अगले 10 वर्षों में, 2013 से 2023 तक, बीआरआई निवेश 148 देशों (दुनिया के तीन-चौथाई देशों) में फैला हुआ कुल 1.04 ट्रिलियन डॉलर का प्रोजेक्ट बन गया था। इस छोटी सी अवधि में, बीआरआई परियोजना ने दुनिया भर में, विशेष रूप से अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के गरीब देशों पर काफी छाप छोड़ी है, जहां बीआरआई ने बुनियादी ढांचे और उद्योग के निर्माण में निवेश किया है।

बीआरआई की तरक्की से प्रेरित होकर, अमेरिका ने विभिन्न तरीकों से इसे अवरुद्ध करने की कोशिश की: जिसमें लैटिन अमेरिका के लिए अमेरिका क्रेस और दक्षिण एशिया के लिए मिलेनियम चैलेंज कॉर्पोरेशन शामिल है। इन दोनों प्रयासों की सबसे बड़ी कमज़ोरी यह थी कि ये दोनों ही उत्साहहीन निजी क्षेत्र के वित्तपोषण पर निर्भर थे।

आईएमईसी की जटिलताएँ

गज़ा पर इस इसरायली बमबारी से पहले भी, आईएमईसी को कई गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था।

सबसे पहले, चीन को अलग-थलग करने का प्रयास भ्रामक नज़र आया, यह देखते हुए कि गलियारे में पीरियस में नौजूद मुख्य यूनानी बंदरगाह को चीन महासागर शिपिंग कॉर्पोरेशन द्वारा प्रबंधित किया जाता है, और दुबई बंदरगाहों में चीन के निंगबो-झोउशान बंदरगाह और झेजियांग बंदरगाह में काफी निवेश है। जबकी, सऊदी अरब और यूएई अब ब्रिक्स+ के सदस्य हैं, और दोनों देश शंघाई सहयोग संगठन में भी भागीदार हैं।

दूसरा, पूरी की पूरी आईएमईसी प्रक्रिया निजी क्षेत्र के वित्तपोषण पर निर्भर है। अदानी समूह - जिसे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीब माना जाता है और कथित धोखाधड़ी प्रथाओं के लिए सुर्खियों में हैं - पहले से ही मुंद्रा बंदरगाह (गुजरात, भारत) और हाइफ़ा बंदरगाह (इसराइल) का मालिक है, और पीरियस में बंदरगाह में हिस्सेदार बनना चाहता है। दुसरे शब्दों में कहा जाए तो, आईएमईसी गलियारा ग्रीस से गुजरात तक अडानी के निवेश के लिए भू-राजनीतिक कवर प्रदान कर रहा है।

तीसरा, हाइफ़ा और पीरियस के बीच समुद्री मार्ग तुर्की और ग्रीस के बीच विवादित जल क्षेत्र से होकर गुजरेगा। इस "एजियन विवाद" ने तुर्की सरकार को ग्रीस को अपने मंसूबों पर अमल करने पर युद्ध की धमकी देने के लिए उकसा दिया है।

चौथा, यह पूरी की पूरी परियोजना सऊदी अरब और इसराइल के बीच "सामान्य संबंध" को बढ़ावा देने पर निर्भर थी, जो अब्राहम समझौते का एक विस्तार था जिसने अगस्त 2020 में बहरीन, मोरक्को और संयुक्त अरब अमीरात को इसराइल को मान्यता देने के लिए आकर्षित किया था। जुलाई 2022 में, भारत, इज़राइल, संयुक्त अरब अमीरात, और अमेरिका ने अन्य बातों के अलावा, "बुनियादी ढांचे को आधुनिक बनाने" और "निजी उद्यम भागीदारी" के माध्यम से "कम कार्बन विकास मार्गों को आगे बढ़ाने" के इरादे से I2U2 समूह का गठन किया था। यह आईएमईसी का मुख्य मक़सद था। इस माहौल में न तो सऊदी अरब के साथ "सामान्यम रिश्ते बनाना" संभव है और न ही संयुक्त अरब अमीरात और इसराइल के बीच I2U2 प्रक्रिया की प्रगति संभव है। गज़ा में फ़िलिस्तीनियों पर इसरायल की बमबारी ने इस प्रक्रिया को रोक दिया है।

पिछली भारतीय व्यापार मार्ग परियोजनाएं, जैसे अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण व्यापार गलियारा (भारत, ईरान और रूस के साथ) और एशिया-अफ्रीका विकास गलियारा (भारत और जापान के नेतृत्व में), कई कारणों से वर्षों से कागज से बंदरगाह तक नहीं पहुंची हैं। ये योजनाएं व्यवाहरिक थीं और इनमें दम था। आईएमईसी का भी इन गलियारों जैसा ही हश्र होगा, कुछ हद तक गज़ा पर इसरायल की बमबारी के कारण, लेकिन वाशिंगटन की इस कल्पना के कारण भी ऐसा होगा कि उसका मानना है कि वह आर्थिक युद्ध में चीन को "पराजित" कर सकता है।

लेखक, एक भारतीय इतिहासकार, संपादक और पत्रकार हैं। वे ग्लोबट्रॉटर में राइटिंग फेलो और मुख्य संवाददाता हैं। वे लेफ्टवर्ड बुक्स के संपादक और ट्राइकॉन्टिनेंटल: इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च के निदेशक हैं। व्यक्त विचार निजी हैं। 

स्रोत: इस लेख को ग्लोबट्रॉटर में प्रकाशित किया जा चुका है। 

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