देशव्यापी हड़ताल को मिला कलाकारों का समर्थन, इप्टा ने दिखाया सरकारी 'मकड़जाल'
किसानों-मज़दूरों को अधर में ढकेल... कान में रुई लगाकर बैठी केंद्र सरकार को कामगार संगठनों ने चौतरफा घेर लिया है। केंद्र सरकार की अत्याचारी नीतियों के खिलाफ 28 और 29 मार्च को भारत बंद कर ये बता दिया है कि वक्त रहते अगर उचित न्याय नहीं हुआ तो आंदोलन यूं ही जारी रहेंगे। कामगार संगठनों की ओर से बुलाई गई हड़ताल में बैंक संगठनों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, जिसके चलते दो दिनों तक बैंकों को बंद भी करना पड़ा।
इप्टा ने दिखाया ‘’मकड़जाल’’
राजधानी दिल्ली समेत देश के हर कोने में तमाम संगठनों, मज़दूरों और किसानों ने अपनी मांगे रखी और केंद्र सरकार के सामने चुनौती पेश की। हड़ताल के समर्थन में इप्टा यानी भारतीय जन नाट्य संघ ने राजधानी लखनऊ में नुक्कड़ नाटक पेश किए। इप्टा द्वारा पेश किए गए इस नाटक का नाम था ‘’मकड़जाल’’…. इस नाटक के ज़रिए इप्टा के कलाकारों ने बताने की कोशिश की-कि कैसे कॉर्पोरेट घराने का मालिक किसानों, छात्र, नौजवानों, सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों को कर्ज के जाल में फंसा लेता है और जब वे जागने लगते हैं तब उन्हें धर्म और आस्था के नाम पर लड़ाया जाता है।
इप्टा के इस नाटक ‘’मकड़जाल’’ को दर्शकों ने खूब पसंद किया और आज के दौर के लिए बिल्कुल फिट बताया। इस नाटक को राकेश ने लिखा है और निर्देशित भी किया है। इसके अलावा इसमें उदय वीर यादव, राकेश श्रीवास्तव, ऋषि श्रीवास्तव, शहज़ाद रिज़वी, शहाबुद्दीन, पवन, और राकेश ने अभिनय कर आज के हालातों की सच्चाई सबके सामने परोस दी।
इप्टा ने देशव्यापी हड़ताल के समर्थन में लखनऊ के तीन स्थानों पर नाटक किया। इस नाटक का पहला प्रदर्शन गोमतीनगर स्थित केनरा बैंक ज़ोनल ऑफिस के सामने फिर यूनियन बैंक ज़ोनल ऑफिस के सामने फिर आखिरी में इस नाटक का प्रदर्शन हज़रतगंज में जीवन बीमा निगम कार्यालय में प्रस्तुत किया गया।
बिहार में इप्टा का सम्मेलन
सिर्फ लखनऊ में ही नहीं इप्टा ने बिहार के सारण में भी एक कार्यक्रम का आयोजन किया। ध्वजारोहण के साथ आयोजित इस कार्यक्रम में इप्टा के कलाकारों ने ‘’आइले नगाड़ा लेइ के इप्टा मैदान में’’ से शुरुआत की। इसके बाद ‘’लेके ह्रदय कमल का हार कलाकार आए हैं गीत के साथ’’ गाया गया।
इस आयोजन को संबोधित करते हुए प्रोफेसर भूपेश प्रसाद ने कहा कि आज के इस दौर में जब दुनिया युद्ध के मुहाने पर खड़ी है तब इप्टा को बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी का निर्वहन करना है। भूपेश ने कहा कि दुनिया में अमन शांति का पैगाम लेखक और कलाकार ही सही तरीके से पहुंचा सकते है।
इप्टा के अलावा तमाम नाटक मंडलियों ने देश के अलग-अलग शहरों और हिस्सों में नाटक प्रस्तुत किए और हड़ताल में हिस्सा लेकर समर्थन किया।
केंद्र सरकार के खिलाफ इस देशव्यापी हड़ताल में आईएनटीयूसी, एआईटीयूसी, एचएमएस, सीआईटीयू, एआईयूटीयूसी, टीयूसीसी, एसईडब्ल्यूए, एआईसीसीटीयू, एलपीएफ और यूटीयूसी शामिल हैं। इसके अलावा कोयला, इस्पात, तेल, टेलिकॉम, पोस्टल, इनकम टैक्स, तांबा, बैंक, बीमा जैसे क्षेत्रों की ओर से भी हड़ताल को खूब समर्थन मिला। बड़ी बात ये रही है रेलवे और रक्षा क्षेत्रों की यूनियनें भी इस हड़ताल में केंद्र सरकार के खिलाफ आवाज़ बुलंद करती नज़र आईं।
राजधानी दिल्ली में भारतीय महिला जनवादी समिति के बैनर तले केंद्र सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाज़ी हुई। इस दौरान किसानों, मज़दूरों और आमजनों के खिलाफ चलाई जा रही नीतियों के विरोध प्रदर्शन हुआ।
कामगार संगठनों की इस हड़ताल में 14 सूत्रीय मांगें रखी गई हैं। अगर मुख्य मागों पर नज़र डालें तो श्रम कानूनों में प्रस्तावित बदलावों खत्म करना शामिल है। मज़दूर संगठनों के मुताबिक सरकार की ओर से मज़दूरों के लिए लाए चार श्रमिक कानून मज़दूर विरोधी हैं। जिसे तुरंत वापस लेना चाहिए।
बैंक संघों की मांग, निजीकरण रोका जाए
देश व्यापी इस हड़ताल के समर्थन में बैंक कर्मचारी भी ज़ोर-शोर से लगे हुए हैं। बैंक संघठनों की मांग है कि सरकारी क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण को रोकना और इन्हें मजबूत करना है। साथ ही फंसे कर्ज की शीघ्र वसूली, बैंको द्वारा उच्च जमा दर, उपभोक्ताओं पर निम्न सेवा शुल्क और बैंक कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना की बहाली की भी मांग है।
राज्यसभा में उठा मुद्दा
कांग्रेस और वामपंथी दलों ने मंगलवार को राज्यसभा में केंद्रीय श्रमिक संगठनों की दो दिवसीय आम हड़ताल का मुद्दा उठाया और सरकार से उनकी मांगों को संज्ञान में लेते हुए सकारात्मक रुख अपनाने और उनसे संवाद करने की गुजारिश की।
मंगलवार सुबह सदन की कार्यवाही शुरू होते ही सभापति एम वेंकैया नायडू ने आवश्यक दस्तावेज सदन के पटल पर रखवाए और उसके बाद नियम 267 के तहत मुद्दे उठाने की अनुमति वाले नोटिस का उल्लेख करते हुए कहा कि इन मुद्दों को इनसे जुड़े विषयों पर सदन में होने वाली चर्चा के दौरान उठाया जा सकता है।
सड़क से लेकर सदन तक गूंज उठी कामगारों की इस हड़ताल की आवाज़ सरकार में बैठे नुमाइंदों को कितनी सुनाई देती है और कब सुनाई देती है ये देखना बेहद ज़रूरी होगा। लेकिन इतना ज़रूर कहा जा सकता है कि पूरे देश में इतने बड़े स्तर पर हुई हड़ताल से केंद्र सरकार ने मुंह मोड़े रखा ये लोकतंत्र के लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं है
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