'बेगार' खटाये जाने से बंगाल की आशा कर्मियों में बढ़ रहा असंतोष
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के तहत पूरे देश में लाखों आशा (एक्रिडिटेड सोशल हेल्थ एक्टिविस्ट) कर्मी काम कर रही हैं। इनका मुख्य काम गर्भवती ग्रामीण महिलाओं को संस्थागत प्रसव से जोड़ना और नवजात शिशुओं का नियमित टीकाकरण सुनिश्चित करना है। गांवों में, खासकर महिलाओं के बीच स्वास्थ्य व व्यक्तिगत स्वच्छता के प्रति जागरूकता पैदा करना भी इनकी अहम जिम्मेदारी है। बीमारों को सरकारी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं का लाभ दिलाने के काम में भी इन्हें लगा दिया गया है। डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया जैसी मच्छरवाहित बीमारियों के फैलाव को रोकने जैसे कामों में भी इनकी मदद ली जाती है। एनआरएचएम की गाइडलाइन के मुताबिक, आशा कर्मियों को 43 अलग-अलग कामों में लगाया जा सकता है, जिसके लिए काम के हिसाब से तय मेहनताना देना होता है।
आशा कर्मियों को केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की ओर से कार्य आधारित राशि के साथ-साथ सुनिश्चित मासिक प्रोत्साहन राशि दी जाती है। केरल-तेलंगाना जैसे अपवादों को छोड़ दें तो विभिन्न राज्यों में उन्हें तीन से चार हजार रुपये महीने ही मिल पाते हैं। पश्चिम बंगाल में आशा कर्मियों को कार्य आधारित छोटी-मोटी राशि के अलावा 3500 रुपये का सुनिश्चित मासिक भुगतान होता है। हालांकि, इतने कम पैसे में ही बंगाल सरकार इनसे वेतनभोगी कर्मचारियों की तरह ड्यूटी करा रही है। इसे लेकर राज्य की आशा कर्मियों में आक्रोश बढ़ रहा है। बेगार खटाये जाने का विरोध करनेवाली आशा कर्मियों का स्वास्थ्य विभाग की ओर से मासिक भुगतान रोका जा रहा है।
पश्चिम बंगाल में लगभग 53 हजार महिलाएं आशा कर्मी के रूप में कार्यरत हैं। प्रत्येक आशा कर्मी को साल में एक महीने के लिए किसी सरकारी अस्पताल में 'दिशा' योजना की ड्यूटी करनी पड़ती है। आशा कर्मियों का सबसे ज्यादा विरोध और आपत्ति राज्य स्वास्थ्य विभाग की 'दिशा' ड्यूटी को लेकर ही है। दिशा योजना के तहत, मरीजों को स्वास्थ्य सेवाएं दिलाने में मदद के लिए सरकारी अस्पतालों में हेल्प डेस्क का संचालन किया जाता है। कायदे से इस हेल्प डेस्क का संचालन नियमित कर्मचारियों या ठेका कर्मचारियों से कराया जाना चाहिए। लेकिन सरकार पैसे बचाने के लिए आशा कर्मियों को बारी-बारी से एक-एक महीने की दिशा ड्यूटी पर लगाती है। चूंकि हेल्प डेस्क चौबीसों घंटे संचालित होते हैं, इसलिए नाइट ड्यूटी भी करनी पड़ती है। आशा कर्मी एक तरह की वॉलेंटियर हैं और उन्हें अपने गांव-घर में रहते हुए ग्रामीणों की स्वास्थ्य के मामले में मदद करनी है। लेकिन दिशा ड्यूटी के लिए उन्हें किसी वेतनभोगी कर्मचारी की तरह काम करना पड़ रहा है। वह भी लगभग बेगार की तरह।
दिशा ड्यूटी के लिए सरकार की ओर से केवल 1700 रुपये महीने अतिरिक्त दिये जाते हैं। ज्यादातर आशा कर्मियों ने इसे बेगार खटाने की तरह बताया है। उनका कहना है कि अगर कोई दिशा ड्यूटी करने से मना करता है तो विभाग उनका 3500 रुपये का स्थायी मासिक भुगतान भी रोक देता है। इसलिए मजबूर होकर उन्हें सरकार की मनमानी सहनी पड़ रही है। आशा कर्मियों को कर्मचारी का दर्जा नहीं हासिल है, इसलिए कानून का दरवाजा भी इनके लिए खटखटाना संभव नहीं हो पा रहा है।
साल 2012 में राज्य सरकार की ओर से एक आदेश जारी किया गया कि जिन प्रसूताओं या मरीजों को लेकर आशा कर्मी पहुंचेंगी उनके साथ आशा कर्मियों को रात में भी अस्पताल में रुकना होगा। दिशा के नाम से इस परियोजना के तहत अस्पताल परिसर में किसी महफूज जगह पर हेल्प डेस्क और विश्राम कक्ष बनाने को कहा गया। लेकिन अब भी बहुत से अस्पतालों में आशा कर्मियों के रुकने के लिए समुचित व सुरक्षित व्यवस्था नहीं हो पायी है। कई जगह महिलाओं के लिए अलग से शौचालय की बुनियादी सुविधा भी नहीं है। कई बार आशा कर्मी नाइट ड्यूटी के समय अपनी सुरक्षा को लेकर भी चिंता जता चुकी हैं।
पश्चिम बंगाल आशा कर्मी यूनियन की सचिव इस्मत आरा खातून का कहना है, ''राज्य में 80 से 85 प्रतिशत जगहों पर बुनियादी ढांचे की समस्या है। अगर आशा कर्मियों को उपयुक्त पारिश्रमिक व प्रशिक्षण नहीं दिया गया तो वे दिशा का काम नहीं करेंगी।'' हालांकि इस बारे में सरकारी अधिकारियों का कहना है कि धीरे-धीरे बुनियादी ढांचे की समस्या दूर की जा रही है।
हाल ही में नदिया जिले के नवद्वीप ब्लॉक में तीन आशा कर्मियों ने विभागीय अधिकारियों को पत्र दिया कि वे दिशा ड्यूटी नहीं करेंगी। इस पर उनका स्थायी मासिक भुगतान रोक देने की बात कही गयी है, जबकि वे अपने अन्य काम काम कर रही हैं। इस सबंध में आशा यूनियन की सचिव इस्मत आरा खातून का कहना है, ''स्वास्थ्य विभाग ने तीनों आशा कर्मियों को दिशा ड्यूटी नहीं करने पर स्थायी मासिक भुगतान व बाकी काम का पैसा भी नहीं देने की बात कही है, जो कि घोर अन्याय है।'' विभाग की ओर से दार्जिलिंग जिले के नक्सलबाड़ी ब्लॉक की तीन आशाकर्मियों का 3500 रुपये का स्थायी मासिक भुगतान रोका भी जा चुका है, क्योंकि उन्होंने दिशा ड्यूटी नहीं की।
इस संबंध में स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि अगर कोई आशा कर्मी दिशा ड्यूटी से इनकार करती है तो इसे अनुशासनहीनता माना जायेगा। ऐसे में उसे स्थायी मासिक भत्ता भी नहीं दिया जायेगा।
जो हालात बन रहे हैं उसे देखते हुए लगता है कि अगर आशा कर्मियों को बेहतर स्थायी मासिक भत्ता दिये बिना, उन पर नये-नये कामों का दबाव बढ़ाया गया तो सरकार के साथ उनका टकराव और बढ़ेगा। निश्चित रूप से यह ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था के हित में नहीं होगा।
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