मुद्दा: आख़िर कब तक मरते रहेंगे सीवरों में हम सफ़ाई कर्मचारी?
26 मई को बीजेपी सरकार या कहें मोदी सरकार को पूरे आठ साल हो रहे हैं। इन आठ सालों में आठ सौ के लगभग सफाई कर्मचारियों की सीवर-सेप्टिक सफाई के दौरान दम घुटने से मौत हो चुकी है। पर प्रधानमंत्री इस विषय पर मौन धारण कर लेते हैं। स्वच्छ भारत अभियान चलाने और भारत के गौरव के बड़े-बड़े दावे करने वाले मोदी सफाई कर्मचारियों की मौतों पर चुप्पी क्यों साध लेते हैं?
हाल ही में (16 मई 2022) नोएडा फेज-2 केसी-17 में होजरी काम्प्लेक्स के पास दो सफाई कर्मचारियों सोनू (30) और श्यामबाबू (45) की सीवर सफाई के दौरान मौत हो गई। अगस्त 2021 से अब तक 61 सफाई कर्मचारी सीवर सेप्टिक टैंको की सफाई के दौरान अपनी जान गंवा चुके हैं। केंद्र सरकार और राज्य सरकार इन मौतों पर चुप्पी साधे रहती है। एक शब्द नहीं बोलती। जैसे ये इंसानों की मौतें न हों। सभ्य समाज भी इन पर संज्ञान नहीं लेता। इस पर हमें अपनी आवाज़ खुद ही उठानी होती है। हमें ही कहना पड़ता है कि इन सीवरों-सेप्टिक टैंको में हमें मारना बंद करो।
जब हम अपनी आवाज लेकर देश की राजधानी की सड़कों पर आते हैं तो पुलिस से अनुमति लेने के बावजूद सड़कों पर पुलिस हमारे साथ ऐसे पेश आती है जैसे हम उपद्रवी हों! हम से बैनर बंद करने को कहा जाता है। हमारे प्ले कार्ड हटाने को कहा जाता है। और पुलिस का ऐसा व्यवहार तब है जब हम शांतिपूर्ण प्रदर्शन करते हैं। सरकार के खिलाफ नारे नहीं लगाते हैं। सड़क के ट्रैफिक को डिस्टर्ब नहीं करते हैं। संविधान ने भले ही हमें शांतिपूर्ण ढंग से विरोध प्रदर्शन का अधिकार दिया हो पर पुलिस हमें हमारे अधिकार से भी वंचित कर देना चाहती है। फिर भी हम हिम्मत नहीं हारते हैं। अपना जागरूकता अभियान चलाते हैं। बाबा साहेब द्वारा दिए गए गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार अपने हक़ के लिए संघर्ष करते रहते हैं।
अभी 11 से 17 मई 2022 तक का सफाई कर्मचारी आंदोलन का “हमें मारना बंद करो” #StopKillingUs का दिल्ली कैंपेन संपन्न हुआ। अब ये कैंपेन 18 मई से उत्तराखंड में शुरू हो गया है। गौरतलब है कि यह आज़ादी का 75वां वर्ष चल रहा है, जिसे अमृत महोत्सव कहा गया है, इसीलिए ये कैंपेन भी 75 दिन का है और ये देश के विभिन्न राज्यों में चलेगा। 75वें दिन इसका समापन दिल्ली में होगा।
सीवर में मौतों की वास्तविकता से भले केंद्र और राज्य सरकारें आँखें चुराती रहें पर वास्तव में सीवर सफाई कर्मचारियों की जिंदगी दयनीय स्थिति में है।
सीवर/सेप्टिक टैंक/खुले नालों की सफाई में काम करने वाले कर्मचारी भारतीय कानून द्वारा परिभाषित सफाई कर्मियों की परिभाषा के अंतर्गत आते हैं। इन सफाई कर्मचारियों का उनके जीवन के हर पहलू में शोषण किया जाता है। वे निजी एजेंसियों के अधीन काम करते हैं जो उन्हें सरकारी दायित्वों (अनुबंधों) के तहत काम करवाते हैं। कानून, नियम और दिशा-निर्देशों में भी इनकी सुरक्षा के उपाय बताए गए हैं। इन व्यवस्थाओं के बावजूद सीवर कर्मचारियों की हालत दिन-प्रतिदिन बदतर होती जा रही है।
ठेकेदारी व्यवस्था के चलते सीवर कर्मचारियों के सिर पर उनकी रोजी-रोटी को लेकर हमेशा अनिश्चितता बनी रहती है। यह अनिश्चितता बढ़ती ही जा रही है। आजीविका की अनिश्चितता के डर से उनका अमानवीय तरीके से शोषण किया जाता है।
दिल्ली में हजारों की संख्या में सीवर कर्मचारी ठेकेदारों के अधीन काम कर रहे हैं। जब हम एनसीआर क्षेत्र को भी शामिल करेंगे तो यह संख्या कई गुना बढ़ जाएगी। सीवर कर्मचारी का काम खतरनाक और घातक गैसों के तहत है। गैसों के लगातार संपर्क में आने के कारण अधिकांश कर्मचारी बीमार पड़ जाते हैं और घायल हो जाते हैं और उन्हें किसी भी प्रकार का मुआवजा, स्वास्थ्य सुविधा या अन्य रूप में सहायता नहीं मिलती है।
11 मई को सफाई कर्मचारी आंदोलन ने पटेल नगर और राजेंद्र प्लेस के बीच गोल सर्किल पर प्रदर्शन कर कैंपेन की शुरूआत की। पर्चे बांटे। और राहगीरों को संबोधित करते हुए कहा कि किस तरह सीवर सेप्टिक टैंक साफ़ करने वालों की जान सफाई के दौरान जा रही है। सरकार इन मौतों पर कोई संज्ञान नहीं ले रही है। सीवरों का मशीनीकरण नहीं कर रही है। जो लोग बिना सुरक्षा उपकरणों के सफाई कर्मचारियों को सीवरों में उतार रहे हैं उन दोषियों को कोई सजा नहीं हो रही है जबकि कानून में ऐसे लोगों के लिए सजा का प्रावधान है। यह सब राजनीतिक उदासीनता के कारण हो रहा है। यदि सरकारें इन मौतों को गंभीरता से लें और राजनीतिक इच्छाशक्ति का उपयोग करें तो सीवरों-सेप्टिक टैंको की सफाई में तकनीक का प्रयोग कर मशीनों से सफाई करा सकती हैं। इस तरह किसी भी सफाई कर्मचारी की मौत नहीं होगी।
12 मई रविवार को दिल्ली विश्वविद्यालय में कैंपेन किया। यहाँ पर दिल्ली विश्वविद्यालय और हिन्दू कॉलेज के विद्यार्थियों ने भी भागीदारी की और हमारे कैंपेन का समर्थन किया। 25 से 30 विद्यार्थी हमारे साथ आए। वहां हमने पर्चे बांटे और stop killing us का दिल्ली कैंपस और सड़कों पर प्रदर्शन किया।
13 मई को कनाटप्लेस में हमने अपना रोड शो किया पर यहाँ परमिशन के बावजूद दिल्ली पुलिस ने हमें प्रदर्शन से रोका। फिर हम जंतर-मंतर चले गए वहां पर हमने अपना कैंपेन किया।
14 मई को हमने प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया से इंडियन वीमेन प्रेस कोर्प्स सर्किल तक मार्च किया। यहाँ भी पुलिस ने बाधा डाली और हमें कैंपेन करने से रोका। फिर भी जितना संभव हो सका हमने कैंपेन किया।
15 मई को कैंपेन नहीं किया। 16 मई को आईटीओ और मंडीहाउस पर कैंपेन किया। यहाँ पर भी हमारे कैंपेन के दौरान पुलिस ने दखल दिया। और बीच रास्ते में ही हमें हमारा कैंपेन रोकना पड़ा। फिर भी हमें जहां भी जैसे भी मौका मिला हमने “हमें मारना बंद करो” का प्रदर्शन किया। पर्चे बांटे।
17 मई को दिल्ली में कैंपेन का आखिरी दिन था। इस दिन हमें इंडिया गेट पर प्रदर्शन करना था। पर पुलिस द्वारा परमिशन न मिलने पर हमने तिलक मार्ग से इंडिया गेट तक आकर इंडिया गेट पर प्रदर्शन समाप्त कर दिया।
18 मई से यह कैंपेन उत्तराखंड राज्य में शुरू हो गया। हरिद्वार जिले की रुड़की तहसील में यह कैंपेन किया गया। वाल्मीकि धर्मशाला से अम्बर तालाब तक यह कैंपेन चला।
सफाई कर्मचारी आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक बेजवाडा विल्सन ने कहा कि एक तरफ देश आजादी के 75वें वर्ष का अमृत महोत्सव मना रहा है दूसरी ओर यहाँ हम सफाई कर्मचारी सीवर-सेप्टिक टैंको की सफाई में अपनी जान गंवा रहे हैं। क्या ये राष्ट्रीय शर्म का विषय नहीं होना चाहिए कि अपनी उन्नत तकनीक के जरिये एक तरफ भारत मंगलयान, चंद्रयान के माध्यम से अन्तरिक्ष में जा रहा है वहीं आज भी इंसान का मल इंसान द्वारा हाथ से उठाया जा रहा है? आज भी यह अमानवीय और जघन्य प्रथा जारी है। यह राष्ट्रीय शर्म का मुद्दा है। इस पर प्रधानमंत्री से लेकर पूरी सरकार ने चुप्पी साध रखी है। आखिर कब तक हमारे लोग सीवर में अपनी जान देते रहेंगे? कब तक हमें सीवर में घुसा कर मारा जाता रहेगा? इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? कौन यह जिम्मेदारी लेगा कि अब सीवर-सेप्टिक टैंक में एक भी सफाई कर्मचारी की मौत नहीं होगी।
मैला प्रथा के विरुद्ध दो–दो कानून हैं एक 1993 और एक 2013 का। इसके अलावा 27 मार्च 2014 का सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट है। आखिर कानूनों का कार्यान्वन क्यों नहीं होता? सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन क्यों नहीं किया जाता? कानून के अनुसार मैला प्रथा दंडनीय अपराध है। फिर मैला प्रथा करवाने वाले व्यक्ति को सजा क्यों नहीं मिलती?
हमारे देश में जातिवादी मानसिकता और पितृसत्तात्मक व्यवस्था दोनों ही इसके लिए जिम्मेदार हैं। हम सरकार को यह बताना चाहते हैं कि हम इस देश के नागरिक हैं। और देश के संविधान के अनुसार हर नागरिक को गरिमा के साथ जीने का अधिकार है। संविधान के अनुच्छेद-21 सम्मानपूर्ण आजीविका का अधिकार देता है। फिर हमें क्यों हमारे मानवीय अधिकारों से वंचित किया जा रहा है।
सफाई कर्मचारी आंदोलन देश के 22 राज्यों में काम कर रहा है। हम इन राज्यों में “हमें सीवर में मारना बंद करो” की आवाज उठाएंगे। अब हमने यह ठाना है। मैला प्रथा बंद कराना है। सीवर सेप्टिक टैंक में मरने से हर सफाई कर्मचारी को बचाना है। इसलिए इन 22 राज्यों में ये कैंपेन चलाना है। फिलहाल 75 दिनों का हमारा ये कैंपेन जारी है।...
(लेखक सफाई कर्मचारी आंदोलन से जुड़े हैं।)
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