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झारखंड विधानसभा चुनाव: ‘घुसपैठिया’ पर स्थानीयता नीति का सवाल भारी

पहले चरण के चुनाव का समापन होते-होते घुसपैठिया का मुद्दा “हिन्दू-मुसलमान” राजनीति की तर्ज़ पर “आदिवासी-मुसलमान” में बदल दिया गया है।
Jharkhand
झारखंड में एक चुनावी सभा का दृश्य।

“अच्छे दिन का झांसा देकर बोका (निरा बेवकूफ़) क्यों बनाया रे,भोट खातिर झारखंड का फेरा क्यों लगया रे” ... जन संस्कृतिकर्मियों की चुनावी प्रचार मण्डली का यह जन गीत लोगों को काफी आकर्षित कर रहा है। उत्तरी छोटानागपुर इलाके के खोरठा भाषी गांवों में शादी के अवसर पर महिलाओं द्वारा गाये जाने वाले गाली-गीत की तर्ज़ पर तैयार किये गए इस गीत को महिलाएं खूब पसंद कर रहीं हैं।

गीत के बोलों में झारखंड प्रदेश के सर्वाधिक ज्वलंत मुद्दों को बेहद तीखे अंदाज़ में उठाकर भारतीय जनता पार्टी और केंद्र की सरकार से जवाब माँगा गया है। 

अदृश्य कारणों से नियत समय के पूर्व हो रहे झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 के प्रथम चरण का मतदान 13 नवम्बर को संपन्न हो चुका है। झारखंड राज्य गठन उपरांत पहली बार 43 विधान सभा सीटों पर हुए मतदान में विशेषकर आदिवासी सुरक्षित इलाकों में वोटिंग प्रतिशत 79.11 तक पहुँच जाना चर्चा का विषय बन गया है। 

प्रदेश की राजधानी रांची में वोटिंग प्रतिशत 52.27 की सुस्त चाल ने फिर से दिखला दिया कि झारखंड के शहरों-नगरों में बाहर से आकर बसे मतदाताओं में कितना दायित्व बोध है। जबकि राज्य के कस्बों-गांवों में बसे मूल झारखंडी मतदाताओं द्वारा बढ़ चढ़कर वोटिंग करना दर्शाता है कि वे कितने जागरूक हैं।  

प्रथम चरण के चुनाव में हुई बम्पर वोटिंग को लेकर सभी राजनीतिक दलों व प्रत्याशियों के अपने अपने दावे होने के बावजूद सबों के दिल की धड़कनें तेज़ हैं। 

भाजपा-NDA गठबंधन के शीर्ष नेता-प्रवक्ताओं का दावा है कि राज्य में सत्तासीन INDIA गठबंधन का सूपड़ा साफ़ होगा और हेमंत सोरेन की सरकार की विदाई तय है। वहीं INDIA गठबंधन के नेताओं ने भी दावा किया है राज्य के मूल निवासी-ग्रामीण मतदाताओं की बम्पर वोटिंग दर्शा रही है कि झारखंडी जनता पर भाजपा-NDA का सारा मिथ्या प्रचार कितना बेअसर है।

झारखंड विधानसभा चुनाव को लेकर शुरू से ही देश के प्रधानमंत्री-गृहमंत्री से लेकर भाजपा-NDA के सभी नेताओं ने एक स्वर से “घुसपैठी” को ही सर्वप्रधान मुद्दा बनाया। जिसके जरिये यह स्थापित करने की हरचंद कवायद की गयी कि झारखंड प्रदेश का समुचित विकास नहीं होने और यहाँ के आदिवासियों की तबाही का मूल कारण “घुसपैठी मुसलमान” हैं। जो पहले चरण के चुनाव प्रचार अभियान का समापन होते-होते सीधे “हिन्दू-मुसलमान” राजीनीति की तर्ज़ पर “आदिवासी-मुसलमान” में बदल दिया गया।

इसे लेकर खुद प्रधानमंत्री तक ने कह डाला कि “एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे”। वहीं, योगी जी (उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री) ने इसे और भी उन्मादी बनाते हुए कहा कि “बटेंगे तो कटेंगे”।  

चुनाव प्रचार अभियानों में भाजपा के आला नेताओं के “बिगड़े बोल” हमेशा की भांति पुरे उन्मादी अंदाज़ में बदस्तूर जारी रहे। जिसे लेकर “आज्ञाकारी पालक” की भांति पूरे चुनाव आयोग से लेकर उनका सारा अमला अपने आंख–कान बंद किए रहा। अलबत्ता, चुनाव प्रचार अभियान के दौरान INDIA गठबंधन के नेता राहुल गांधी से लेकर झामुमो की स्टार प्रचारक कल्पना मुर्मू के हेलिकॉप्टरों को “कतिपय कारणों” से कई बार रोककर उसे टेक-ऑफ नहीं करने दिया गया।   

पहले चरण के मतदान को लेकर कयासों के बाज़ार में भांति भांति की बातें कहीं जा रही हैं। राज्य की आदिवासी रिजर्व विधानसभा सीटों में हुई बम्पर वोटिंग को लेकर बड़ी चर्चा यही है कि पिछले कई चुनावों के मतदान प्रतिशत ने भी साफ दिखलाया है कि आज भी झारखंड प्रदेश के अधिकांश आदिवासी समुदायों में भाजपा को लेकर कोई सकारत्मक रुख नहीं है। इसलिए इस बार भी आदिवासी सुरक्षित सीटों पर हुई बम्पर वोटिंग से उसे कोई ख़ास फायदा नहीं होने वाला है। हाँ, INDIA गठबंधन और झारखंड मुक्ति मोर्चा को लेकर व्यापक आदिवासी-मूलवासी मतदाताओं में समर्थन भाव लगातार क़ायम है। 

राज्य विधानसभा चुनाव का दूसरा और अंतिम चुनावी चरण 20 नवम्बर को संपन्न होना है। जाहिर है कि मौजूदा समय के चुनाव प्रचार अभियानों की भांति इस चरण में भी राजनीतिक सरगर्मी और नेताओं के “बिगड़े बोल” का तीखापन अपने अंदाज़ में छाया ही रहेगा। 

“लव-जिहाद, लैंड-जिहाद” से लेकर झारखंड में “घुसपैठी को संरक्षण–आरक्षण” देने का आरोप लगाकर भाजपा के सभी स्टार प्रचारक एक स्वर और शब्दावली में लोगों से वोट मांग रहें हैं।

वहीं, INDIA गठबंधन के चुनावी प्रचार अभियानों में राहुल गांधी समेत सभी प्रचारक-नेताओं द्वारा भाजपा-NDA गठबंधन पर “धर्म-जाति” के नाम पर झारखंड के लोगों को आपस में लड़ाने का आरोप लगाया जा रहा है।

झामुमो के स्टार प्रचारक हेमंत सोरेन व कल्पना मुर्मू अपनी चुनावी सभाओं में भाजपा पर आरोप लगा रहे हैं कि ‘मैं और मेरी INDIA गठबंधन की सरकार प्रदेश की जनता के विकास के लिए कोई काम नहीं कर सकें इसलिए जेल में डाल दिया गया’। साथ ही ज़ोरदार शब्दों में केंद्र की सरकार द्वारा झारखंड प्रदेश की रायल्टी के 1 लाख 36 हज़ार करोड़ रुपया बकाया राशि नहीं चुकाए जाने का भी सवाल उठाया जा रहा है। 

वामपंथी दल भी अपने चुनाव प्रचार अभियानों से भाजपा की ‘नफ़रत–विभाजन की राजनीति और कॉर्पोरेटपरस्त नीतियों’ के खिलाफ एकजुट होकर हराने के लिए वोट गोलबंदी कर रहें हैं। 

वहीं INDIA गठबंधन कोटे से भाकपा माले को दी गयी तीन सीटों के चुनाव प्रचार अभियानों में हेमंत सोरेन व कल्पना मुर्मू के अलावा राजद नेता तेजस्वी यादव भी चुनावी सभाओं को संबोधित कर रहे हैं। 

भाकपा माले के राष्ट्रीय महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य समेत भाकपा माले के सांसद राजाराम सिंह और सुदामा प्रसाद बगोदर-धनवार, निरसा और सिंदरी सीटों पर भाकपा माले प्रत्याशियों के पक्ष में लगातार चुनावी सभाएं कर रहे हैं। साथ ही माले के कई विधायक लगातार गांवों में सघन जन संपर्क अभियान व रात्रि चौपाल कार्यक्रमों के जरिये मतदाताओं की गोलबंदी में जुटे हुए हैं। 

बहरहाल, दूसरे और अंतिम चरण के चुनाव के तहत 20 नवम्बर को मतदान होने के बाद वोटों की मतगणना से फाइनल जनादेश तो सामने आयेगा ही। लेकिन राज्य की 81 विधान सीटों में से 43 सीटों पर पहले चरण के मतदान में हुई ‘बम्पर वोटिंग’ एक स्पष्ट संकेत है कि झारखंडी मतदाता क्या चाहते हैं। 

सनद रहे कि झारखंड के प्रतीक महानायक बिरसा मुंडा के जन्म दिवस 15 नवम्बर ही झारखंड राज्य गठन दिवस भी था। इस 15 नवम्बर को झारखंड ने अपने गठन के 24 वर्ष पूरे कर लिए हैं।

‘अबुवा दिसुम अबुवा राइज’ की आकांक्षा इस राज्य के गठन की मूल संकल्पना रही है। जिसके तहत यहाँ के जल-जंगल-ज़मीन और प्राकृतिक संसाधनों पर यहाँ के आदिवासी-मूलवासियों के अधिकार के साथ साथ अपनी ‘भाषा-संस्कृति’ की विशिष्ट पहचान का सवाल केन्द्रीय प्रश्नों में रहा है। 

झारखंड राज्य गठन के लिए सात दशकों से भी समय तक हुए आन्दोलन के केन्द्रीय मुद्दों में राज्य के आदिवासी-मूलवासियों के लिए ‘स्थानीयता नीति’ आधारित पहचान और रोज़गार का सवाल एक अत्यंत संवेदनशील मुद्दा रहा है। जिसे लेकर झारखंडी मतदाताओं का बहुसंख्यक हिस्सा हर चुनाव में भाजपा के खिलाफ वोट देता रहा है। जो ये मानते हैं कि बाहर से आकर झारखंड प्रदेश में बसकर यहाँ की ज़मीनों और संसाधनों पर काबिज़ होने वाली आबादी ही भाजपा का कोर वोट बैंक है। जिनके लिए ही राज्य के शासन में आईं भाजपा गठबंधन सरकारों की नीतियां मूल झारखंडियों के हितों के खिलाफ रही हैं। असली “घुसपैठी” तो यही हैं।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार, नाट्यकर्मी और राजनीतिक कार्यकर्ता हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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