कर्नाटक: 'जबरन' भूमि अधिग्रहण के ख़िलाफ़ देवनहल्ली के किसानों का प्रदर्शन
बेंगलुरु: कर्नाटक सरकार द्वारा जबरन भूमि अधिग्रहण के ख़िलाफ़ किसान बेंगलुरु के फ़्रीडम पार्क में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।
फ़्रीडम पार्क में इस प्रदर्शन को 165 से ज़्यादा दिन हो गए हैं। इस दौरान किसानों ने कर्नाटक सरकार के ख़िलाफ़ नारे लगाए। उन्होंने रैथा विरोधी सरकार, धिक्कारा धिक्कारा (किसान विरोधी सरकार मुर्दाबाद) जैसे नारे लगाए।
बेंगलुरु ग्रामीण ज़िले के देवनहल्ली तालुक के किसान 13 गांवों की 1,777 एकड़ कृषि भूमि के अधिग्रहण को लेकर कर्नाटक सरकार आर-पार की लड़ाई कर रहे हैं।
राज्य सरकार कर्नाटक भूमि सुधार (द्वितीय संशोधन) अधिनियम, 2020 के तहत देवनाहल्ली में भूमि अधिग्रहण कर रही है। इससे क्षेत्र के लगभग 700 किसान प्रभावित होंगे।
कर्नाटक औद्योगिक क्षेत्र विकास बोर्ड (केआईएडीबी) द्वारा भूमि अधिग्रहण के लिए जिन 13 गांवों की पहचान की गई है उनमें चन्नरायपटना, नल्लाप्पनहल्ली, मुद्दनहल्ली, चीमाचनाहल्ली, हरालुरु, पोलानहल्ली, पल्या, नल्लूरु, मट्टाबरलू, मल्लेपुरा, हयाडाला, गोकारे बचचेनहल्ली और थेलोहल्ली हैं।
ज़मीन ज़िंदगी है
चन्नरायपटना होबली गांव के नारायणप्पा राजू (60) प्रदर्शन कर रहे एक किसान हैं।
विरोध प्रदर्शन में शामिल किसान नारायणप्पा। तस्वीर: सौरव कुमार
नारायणप्पा तीन एकड़ ज़मीन का मालिक हैं जिसे राज्य सरकार की औद्योगिक इकाई, कर्नाटक औद्योगिक क्षेत्र विकास बोर्ड (केआईएडीबी) द्वारा अधिग्रहित करने के लिए अधिसूचित किया गया है।
उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया, "कृषि से पीढ़ियों से हमारी आजीविका चल रही है और ज़मीन हमारी ज़िंदगी है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली राज्य सरकार हज़ारों किसानों से ज़िंदगी के उस स्रोत को छीनने पर आमादा है।"
उन्होंने कहा, "जब तक सरकार यह फैसला वापस नहीं लेती, तब तक हम जबरन भूमि अधिग्रहण के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं।"
पांच एकड़ ज़मीन के मालिक 40 वर्षीय रमेश चिमाचनहल्ली भी भूमि अधिग्रहण के घोर विरोधी रहे हैं।
रमेश के अनुसार, यह विरोध इसलिए है क्योंकि सरकार ने किसानों की सहमति के बिना कृषि भूमि का अधिग्रहण करने की योजना बनाई है, जो किसानों के लिए विनाश की दस्तक होगी।
रमेश ने यह भी दावा किया कि कर्नाटक औद्योगिक क्षेत्र विकास बोर्ड (केआईएडीबी) ने एयरोस्पेस उद्योग और रक्षा क्षेत्र से संबंधित औद्योगिक इकाइयों को लेकर योजना बनाई है और वह भी उपजाऊ कृषि भूमि का अधिग्रहण करके।
इस विरोध प्रदर्शन में शामिल एक अन्य किसान महेश गौड़ा (55) ने केंद्र और राज्य दोनों की भाजपा सरकारों की आलोचना की और उन्हें "किसान विरोधी" बताया।
उन्होंने कहा, “मोदी सरकार हाल के दिनों में किसान विरोधी क़ानून लाई और ठीक इसी तरह बीएस बोम्मई के नेतृत्व वाली राज्य सरकार कर्नाटक में किसानों के साथ व्यवहार कर रही है। देवनहल्ली में जबरन भूमि अधिग्रहण को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
गौड़ा ने कहा, "सरकार और केआईएडीबी ने अधिसूचना का प्रारंभिक चरण शुरू किया और हमें जनवरी 2022 में सूचना भेजी।"
4 अप्रैल, 2022 को बेंगलुरु ग्रामीण ज़िले के देवनहल्ली तालुक के चन्नरायपटना होबली गांव में ये विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ।
कर्नाटक विधानसभा के चल रहे सत्र के कारण किसानों ने इस विरोध प्रदर्शन को बेंगलुरु में करने और सरकार को निर्णय वापस लेने का संदेश देने का फ़ैसला किया।
किसानों के चल रहे विरोध प्रदर्शन पर प्रतिक्रिया देते हुए केआईएडीबी के एक अधिकारी सी.एन. चंद्रकुमार ने न्यूज़क्लिक को बताया कि "आधिकारिक काग़ज़ी कार्रवाई के कारण अभी तक भूमि अधिग्रहण शुरू नहीं हुआ है, लेकिन इस साल की शुरुआत में एक अधिसूचना के माध्यम से किसानों को प्रारंभिक निर्णय की जानकारी दी गई थी।"
सहमति और मुआवज़े को लेकर कोई बात नहीं
जारी आंदोलन के बीच किसान विरोधी निर्णय को लागू करने में सरकार की जल्दबाज़ी उस समय उजागर हो गई जब केआईएडीबी ने ग्रामीण स्थानीय निकाय यानी ग्राम सभा से न तो सहमति के लिए और न ही मुआवज़े को लेकर मशविरा किया।
किसानों ने कहा कि केआईएडीबी ने बड़ी आसानी से उन चार ग्राम सभाओं को दरकिनार कर दिया जिनमें 13 गांवों शामिल थे। इन्हें भूमि अधिग्रहण के लिए अधिसूचित किया गया था।
ये चार ग्राम सभाएं चेन्नाहल्ली, चन्नरायपटना, नल्लूरु और येलिलुरु हैं।
चन्नरायपटना ग्राम सभा के एक सदस्य श्रीनिवास के ने कहा कि किसानों से बात किए बिना केआईएडीबी ने अधिग्रहण को लेकर निर्णय दे दिया।
उन्होंने कहा कि इसके अलावा, किसानों को मुआवज़े के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई और न ही नौकरियों के बारे में और न ही पैसे के बारे में कुछ सूचना दी गई।
रमेश ने न्यूज़क्लिक को बताया कि "आज तक, हमें सरकार द्वारा दिए जाने वाले मुआवज़े को लेकर सही जानकारी नहीं है। 2018 में अधिग्रहण के पहले चरण के दौरान किसानों को प्रति एकड़ 1.1 करोड़ रुपये क्षतिपूर्ति राशि के रूप में देने का वादा किया गया था लेकिन उन्हें पूरा मुआवज़ा नहीं मिला। इस बार वह भी ऑफ़र नहीं किया गया।''
किसानों को समर्थन
किसानों को राजनीतिक गलियारों से समर्थन मिला है। अखिल भारतीय छात्र संघ (एआईएसए) ने चल रहे आंदोलन को लेकर अपनी एकजुटता दिखाई है। एआईएसए के एक सदस्य शरथ ने न्यूज़क्लिक को बताया कि "भूमि अधिग्रहण के पीछे की मंशा ख़तरनाक रही है और केआईएडीबी किसान अधिकारों का लगातार हनन करती रही है।"
उन्होंने आगे कहा, “चूंकि देवनहल्ली समृद्धशाली बेंगलुरु शहर के क़रीब है, ऐसे में यह सरकार और रियल एस्टेट माफिया दोनों के लिए एक रणनीतिक बिंदु है। इसलिए, भूमि अधिग्रहण का उद्देश्य शक्तिशाली लॉबी के निहित स्वार्थों को लाभ पहुंचाना है और इस तरह यह किसान विरोधी है।"
कर्नाटक परांठा रायथा संघ (केपीआरएस) के उपाध्यक्ष जीसी बया रेड्डी ने प्रदर्शन कर रहे किसानों को अपना समर्थन दिया।
रेड्डी के अनुसार, देवनहल्ली के किसानों के प्रति राज्य सरकार की मंशा 2018 में हरालुरु में भूमि अधिग्रहण के पहले चरण के बाद से संदिग्ध थी। उन्होंने कहा, "हम अंत तक किसानों के हितों के लिए लड़ते रहेंगे।"
जनता दल (सेक्युलर) के देवनहल्ली विधायक निसारगा नारायणस्वामी एलएन ने भी किसानों को अपना समर्थन दिया है। उन्होंने भूमि अधिग्रहण के फ़ैसले पर अफ़सोस जताया।
उन्होंने कहा, “किसानों की सहमति के बिना भूमि अधिग्रहण रियल स्टेट क्षेत्र को आंख बंद करके लाभ पहुंचाने के लिए किया जा रहा है। यह बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के तहत शुरू हुआ। इस सरकार ने कर्नाटक भूमि सुधार अधिनियम, 1961 में संशोधन किया था।”
जनता दल (एस) विधायक जुलाई 2020 में येदियुरप्पा सरकार के उस फ़ैसले का जिक्र कर रहे थे, जिसमें कृषि भूमि की ख़रीद पर प्रतिबंधों में ढील दी गई थी। भाजपा सरकार द्वारा किए गए संशोधनों ने ग़ैर-कृषकों को राज्य में कृषि भूमि ख़रीदने की खुली छूट दे दी।
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।
इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।
Karnataka: Devanahalli Farmers Protest Against ‘Forcible’ Land Acquisition
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