लखनऊ: थर्ड जेंडर के लिए प्रदेश का पहला ‘पुलिस सहायता केंद्र’
किसी की पहचान का पैमाना क्या होना चाहिए? समाज में उसे उसका हक और सम्मान मिले, उसे उसकी मर्जी के कपड़े पहनने का हक हो, उसे अपनी मर्जी से अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार हो, उससे उसका नाम पूछने के बाद व्यवहार में बदलाव न हो, जब किसी परेशानी में हो तो बिना सोचे वो ऐसी जगह पहुंच सके जहां वो अपनी शिकायत दर्ज करा सके।
लेकिन इस पैमाने से हटकर आज भी थर्ड जेंडर यानी LGBTQIA समाज को बेहद संकीर्ण नज़रों से देखा जाता है, समाज में उन्हें उनका वो अधिकार नहीं मिलता जिसका वो अधिकार रखते हैं, यहां तक फिल्में... जो समाज के लिए आईना होती हैं, यहां भी इन्हें अलग-अलग नामों से चिढ़ाकर माखौल बनाया जा जाता है। इनके लिए अलग से कोई व्यवस्था नहीं है। इन्हीं सब तमाम कारणों के कारण ये डरकर जीने के लिए मजबूर हैं।
हालांकि इस समाज के लिए उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक अच्छी और बेहद ज़रूरी पहल हुई है। दरअसल लखनऊ में थर्ड जेंडर के लिए अलग से पुलिस सहायता केंद्र की शुरुआत की गई है, जिसमें हर वक्त एक सब इंस्पेक्टर और चार सिपाही तैनात रहेंगे। फिलहाल इस हेल्प डेस्क के लिए महिला दरोगा संगम लाल को प्रभारी नियुक्त किया गया है।
इस सहायता केंद्र को लखनऊ की कैसरबाग कोतवाली में शुरू किया गया है। यहां पर 24 घंटे ट्रांसजेंडर्स की शिकायतें सुनी जाएंगी।
आपको बता दें कि बीते गुरुवार यानी 23 जून को ADCP पश्चिम सोमेन वर्मा ने तमाम ट्रांसजेंडर्स की मौजूदगी में इसका उद्घाटन किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि आने वाले वक्त में प्रदेश के सभी ज़िलों में इस तरह के सहायता केंद्र खोले जाएंगे, ताकि प्रदेश के 20 लाख ट्रांसजेंडर्स कभी भी बेखौफ होकर अपनी शिकायत दर्ज करा सकें।
24 घंटे मिलेगी सहायता, इन नंबर पर करें शिकायत
इंस्पेक्टर अजय नारायण सिंह ने बताया कि यह हेल्प डेस्क 24 घंटे खुलेगी। किसी भी प्रकार की समस्या के निस्तारण के लिए मोबाइल नंबर 9454403857 और 7839861094 पर पीड़ित शिकायत दर्ज करा सकता है। इसके बाद नियमानुसार कार्रवाई होगी।
वहीं मौके पर मौजूद ट्रांसजेंडर सिंकदर से बातचीत हुई तो वे भावुक हो गए। उन्होंने कहा कि इससे पहले हमारे साथ समाज में होने वाले भेदभाव और अपराध को अनसुना कर दिया जाता था, लेकिन उम्मीद है कि अब हमारी शिकायतों को गंभीरता से सुना जाएगा। जिसके बाद हमें किसी परेशानी के वक्त कानूनी सहायता भी मिल सकेगी।
इसके बाद हमने ट्रांसजेंडर प्रियंका से बात की तो उनका कहना था कि यह हमारे लिए खुशी का पल है। पहले पुलिस हमारी शिकायत को गंभीरता से नहीं लेती थी, लेकिन अब न सिर्फ एक जगह पर सुनी जाएगी बल्कि उसका निस्तारण भी किया जाएगा।
सहायता केंद्र के उद्घाटन के वक्त मौजूद ADCP चिरंजीव नाथ सिन्हा ने बताया कि थर्ड जेंडर समाज समुदाय खुलकर अपनी बात रख सके, इसलिए ये हेल्प डेस्क बनाई गई है। इस डेस्क पर किसी भी तरह की शिकायत मिलते ही तुरंत कार्रवाई की जाएगी।
पीड़ित की प्राइवेसी का रखा जाएगा ख्याल
ट्रांसजेंडर हेल्प डेस्क पर थर्ड जेंडर को अपनी बात रखने का मौका मिलेगा। जहां पर वह अपनी बात बिना हिचक रख सकेंगे। साथ ही उनकी प्राइवेसी का भी ख्याल रखा जाएगा। अगर पीड़ित चाहेगा, तो फोन पर भी शिकायत कर सकेगा। इसके बाद पुलिस टीम उससे मिलकर समस्या हल करेगी।
दरअसल, अभी तक ट्रांसजेंडर लोग थाने में सार्वजनिक रूप से अपनी बात रखने में हिचकते थे। इसी के चलते सरकार ने प्रदेश के सभी थानों में महिला डेस्क की तरह इसकी डेस्क बनाने के आदेश दिए हैं। हालांकि ये भी सच है कि पुलिस के रवैये को लेकर हमेशा शिकायत रही है। महिला पुलिस, महिला थाने, महिला डेस्क लगभग हर जगह है लेकिन महिलाओं को लेकर पुलिस के रवैये में कोई ख़ास बदलाव नहीं आया है। आज भी हिंसा और शोषण की एफआईआर कराना आसान काम नहीं। उम्मीद की जानी चाहिए कि ट्रांसजेंडर्स डेस्क ट्रांस समुदाय के लिए मददगार साबित होगी।
आपको बता दें कि लखनऊ में बना ट्रांसजेंडर्स के लिए ये हेल्पडेस्क प्रदेश का पहला और देश का दूसरा शिकायत केंद्र है, क्योंकि इससे पहले तेलंगाना में भी ट्रांसजेंडर्स के लिए शिकायत केंद्र बनाया जा चुका है।
तेंलगाना के गचिबोव्ली पुलिस स्टेशन पर साइबराबाद पुलिस ने भारत का पहला 'ट्रांसजेंडर कम्युनिटी डेस्क' लॉन्च किया था। यह डेस्क देश में अपनी तरह की पहली लिंग-समावेशी सामुदायिक पुलिसिंग पहल थी। डेस्क का औपचारिक उद्घाटन साइबराबाद पुलिस प्रमुख वीसी सज्जनार ने एक समारोह में किया था, जिसमें 200 से ज्यादा ट्रांसजेंडर लोगों ने भाग लिया था।
आपको बता दें कि इससे पहले 2014 में, सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर समुदाय को पुरुष और महिला के साथ तीसरे लिंग के रूप में मान्यता दी और फैसला सुनाया कि उन्हें भारतीय संविधान में निहित मौलिक अधिकारों पर समान अधिकार प्राप्त है।
125 करोड़ की आबादी वाले इतने विशाल देश में ट्रांसजेंडर्स के लिए सिर्फ दो पुलिस सहायता केंद्र हैं, इस बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि भले कानूनी तौर पर धारा 377 को ख़त्म कर दिया गया हो, लेकिन सामाजिक तौर पर इसे अब भी अपनाया नहीं गया है। यही कारण है कि सामाजिक रूप से मान्यता मिल जाने के बाद भी इस समाज को कहीं नौकरी नहीं मिल पाती और ये लोग ट्रैफिक लाइट पर भीख मांगने के लिए मजबूर होते हैं।
कहने का मतलब ये हैं जब सुप्रीम कोर्ट ने इस समाज को बाकियों की तरह मान्यता दे दी है, तो सरकार की इनके लिए जागरुकता फैलाने में क्या परेशानी है, या फिर इनके लिए नौकरियां निकालने में कहां दिक्कतें आ रही हैं। क्योंकि अगर हमारे देश की सरकारें थोड़ी सी पहल करें और लोग इस बात को समझ झाएं कि ये भी हमारी तरह कुदरत की ही एक नियामत हैं, तो शायद अलग से शिकायत केंद्रों या नौकरियां निकालने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। इसके बावजूद जो लोग इस समाज के लिए शर्म महसूस करते हों उन्हें इस समाज के लिए जून के महीने का महत्व जान लेना बेहद ज़रूरी हो जाता है।
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