यूपी में भी लंपी वायरस की दस्तक, सरकार ने मवेशियों पर लगाया 'लॉकडाउन'
उत्तर प्रदेश में विश्वव्यापी महामारी कोरोना ने जिस तरह इंसानों पर कहर बरपाया था, ठीक उसी तरह लंपी वायरस भी पशुओं की जान ले रहा है। यूपी में यह बीमारी अब तक करीब तीन सौ पशुओं की जिंदगी निगल चुकी है और 27 हजार से अधिश पशु लंपी वायरस की जद में हैं। योगी सरकार का दावा है कि लंपी से पीड़ित 64 फीसदी गोवंश पूरी तरह चंगा हो गए हैं। ये आंकड़े सरकारी हैं और कहा जा रहा है कि वास्तविक नुकसान इससे कहीं ज़्यादा हो सकता है। राज्य में लंपी से मरने वाले पशुओं में सबसे ज़्यादा मौत गायों की हुई और इन मवेशियों पर ही लंपी का 90 फीसदी तक प्रभाव देखने को मिल रहा है।
खतरे को भांपते हुए योगी सरकार ने मवेशियों पर ‘लाकडाउन’ लगा दिया है। पूर्वांचल के बलिया स्थित दादरी में पशुओं का लगने वाले देश का सबसे बड़ा दादरी मेला मवेशियों के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया है। इसी तरह 29 अक्टूबर 2022 से गढमुक्तेश्वर में कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर गंगा के किनारे लगने वाले ऐतिहासिक पशु मेले को भी रद कर दिया गया है। दर्शनार्थियों से अपील की जा रही है कि वो कार्तिक पूर्णिमा मेले में स्नान करने के लिए लोग भैंसा बुग्गी भी लेकर न आएं। हालांकि सरकार के इस फैसले का इलाकाई किसान कड़ा विरोध कर रहे हैं।
समूचे पूर्वांचल में लंपी वायरस दस्तक दे चुका है। बनारस का पशुपालन महकमा भले ही इस वायरस से सिर्फ एक गाय की मौत को तस्दीक कर रहा है, जबकि यहां मरने वाले मवेशियों की तादाद बहुत ज्यादा है। यह गाय सेवापुरी के सिखड़ी गांव के केशनाथ यादव की थी। कोईराजपुर में भी एक गोवंश की मौत हुई तो भर्थरा गांव में लंपी वायरस की जद में आने से एक मवेशी के मरने की खबर है। आराजी लाइन प्रखंड के रामपुर गांव में भी एक गाय की जान जा चुकी है। सेवापुरी में जिस गाय को लंपी हुई सबसे पहले उसके आगे के पैरों पर फोड़े हुए और फिर गर्दन और बाकी शरीर पर फैल गए। गाय का चलना फिरना बंद हो गया और मुंह से तरल पदार्थ बहने लगा। गाय ने खाना बंद कर दिया और दूध भी देना बंद कर दिया। पोस्टमॉर्टम से पता चला कि यह बीमारी ज़्यादा बढ़ने पर पशु की आंतों, फेफड़ों तक में फैल जाती है।
बनारस के पशुपालन विभाग के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, लंपी से बीमार पशुओं की तादाद सिर्फ 167 है। वाराणसी से चोलापुर में करीब 50 और पिंडरा में 125 से अधिक पशुओं में लंपी के लक्षण मिले हैं। कुछ आवारा पशुओं में भी लंपी के लक्षण देखे जा रहे हैं, मगर इनकी कोई आधिकारिक गिनती नहीं है। मवेशियों के बीमार होने से प्रशासन अधिकारियों में हड़कंप मच गया है। गांव के लोग और पशुपालक चिंतित और परेशान हो उठे हैं।
स्थिति काफी चिंताजनक
बनारस में लंपी वायरस ने तभी दस्तक दे दी थी, जब गंगा के साथ वरुणा, असी और गोमती नदियां उफान पर थीं। इसी दौरान कई मवेशियों की मौत हो गई, जिनका ब्योरा सरकारी दस्तावेजों पर नहीं चढ़ सका। बाढ़ के दौरान जिन मवेशियों का इलाज राहत शिविरों में किया गया, उनकी सुधि पशुपालन विभाग के अफसरों ने आज तक नहीं ली। लंपी के चलते हजारों गायों ने दूध देना ही बंद कर दिया है, जिससे पशुपालकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। बनारस वरुणा नदी के तट पर बसे ढेलवरिया के पशुपालक अशोक यादव के कई मवेशी लंपी की जद में है। वह कहते हैं, " हमारे कई मवेशी तो ठीक हो गए, लेकिन मौजूदा समय में एक पशु गंभीर रूप से बीमार है। नियंत्रण कक्ष में शिकायत दर्ज कराने के बावजूद इस पशुपालक की सुध लेने वाला कोई नहीं है।"
अशोक यादव
बनारस के आजमगढ़ रोड पर स्थित साईगांव रंजीत कुमार गौड़ कहते हैं, " मेरी दो गायें बीमार हैं। उसके शरीर पर चकत्ते उभर आए हैं। पैर भी सूज गया है। पांवों में फोड़ा निकल आया है। फिलहाल निजी खर्च के इलाज कर रहे हैं। पशुपालन विभाग के डाक्टरों ने हमें कोई मदद नहीं दी। हमारे गांव से सटे मिश्रा बस्ती में भी कई गायें लंपी से बीमार हैं।"
सिर्फ बनारस ही नहीं, चंदौली जिले के चकिया, शहाबगंज, सकलडीहा, मुगलसराय, नौगढ़ प्रखंड में लंपी वायरस ने पशुपालकों की कमर तोड़कर रख दी है। चंदौली के बरहनी प्रखंड के मानिकपुर सानी गांव के पशुपालक शिवम कुमार कहते हैं, " तीन महीने पहले हमारे गायों के शरीर गांठनुमा चकत्ते उभर आए। गायों को बुखार आया और उन्होंने खाना-पीना छोड़ दिया। ये गायें ही हमारी आजीविका का साधन थीं। उन्हें बचाने के लिए भाग-दौड़ करते रहे। सरकार पशु डाक्टरों ने हमारी कोई मदद नहीं की। लाचार होकर हमें हजारों रुपये खर्च कर अपने मवेशियों को बचाना पड़ा। तीन महीने बाद गायों में सुधार आया है। इसी गांव में पशुपालक रामविलास मौर्य की बछिया भी लंबी की चपेट में आ गई। निजी डाक्टरों से इलाज कराने पर इन्हें हजारों रुपये खर्च करने पड़े। नौबतपुर, सिद्धनाथ सोगाई, नेवादा, लक्ष्मणपुर, कांटा, विसुनपुरा, प्रीतमपुर, तियरा, भटरौल, उतरौत से लगायत शहाबगंज तक सैकड़ों पशुपालकों को लंपी वायरस ने लाखों की चपत लगाई है। कुछ मवेशी मर तो बहुतों के इलाज पर पशुपालकों को लाखों रुपये खर्चने पड़े।"
कोरोना के संकटकाल में योगी सरकार पर मौत और संक्रमण दर के आंकड़ों को कमतर दिखाने के आरोप लगे थे। कुछ इस तरह का सवाल लंपी वायरस से पशुओं की मौत के सरकारी आंकड़ों पर भी सवाल उठ रहे हैं। यूपी में इस बीमारी को लेकर सरकार और प्रशासन ने रोकथाम के लिए प्रयास शुरू कर दिए हैं, लेकिन इससे पहले ही सैकड़ों पशुओं की मौत की ख़बरें सामने आ चुकी हैं। पत्रकार पवन कुमार सिंह कहते हैं, " बनारस में गंगा करीब दो महीने तक जल प्रलय मचाती रही, जिसमें लाखों किसानों की फसलें तो बर्बाद हो गईं। बाढ़ प्रभावित इलाकों के लाखों किसान अपने परिवार से सात राशन-पानी और सुरक्षित ठौर तलाशने में जुटे थे, तभी लंपी वायरस ने दस्तक दी और उनकी कमाई खत्म हो गई। बीमारी और संक्रामक रोगों से परेशान पशुपालकों को इतना वक्त भी नहीं मिला कि वो अपने मवेशियों का इलाजा करा सकें अथवा मौत के बाद उनका पोस्टमार्टम।"
आंचलिक परिवेश से जुड़े पवन कहते हैं, " लंपी बीमारी के चलते दुधारू पशुओं के दूध की बिक्री तक प्रभावित हो गई है। बीमार पशुओं के दूध को उपयोग में नहीं लिया जा रहा है। ऐसे में पशुपालकों को पशुओं की मौत का डर और परिवार पालने की भी चिंता सता रही है। गायों में भी जो क्रॉस ब्रीड नस्ल की गाय हैं, उन्में इस बीमारी का सबसे ज़्यादा प्रभाव देखने को मिल रहा है। देसी गायों में इस बीमारी का कम प्रभाव देखने को मिल रहा है।"
दूध की बिक्री भी प्रभावित
बनारस के बड़ागांव इलाके में स्थित अपनी गोशाला का दूध लाकर बनारस के कैंट स्टेशन पर बेचने वाले नागेश्वर सिंह पेशे से पत्रकार भी हैं। वह कहते हैं, " लंपी की बीमारी के चलते हमें बहुत घाटा उठाना पड़ा। तमाम ग्राहकों ने काफी दिनों तक दूध ही नहीं खरीदा। खासतौर पर वो ग्राहक जो कई सालों से उनके यहां से ही दूध मंगाया करते थे। अभी स्थिति में बहुत ज्यादा सुधार नहीं है। हमारी डेयरी पर राजातालाब, कछवां, हरहुआ, सेवापुरी के पशुपालक दूध लाते रहे हैं। लंपी वायरस के चलते वह भी परेशान हैं। पशुपालकों में लंपी वायरस का खौफ अब तक बरकरार है।"
बनारस में स्थिति गंभीर
मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ आरके सिंह दावा करते हैं कि वाराणसी में अभी तक 30 हजार के आसपास पशुओं को वैक्सीन लगाई जा चुकी है। वह बताते हैं, " लंपी वायरस से बचाव के लिए वाराणसी जिले को वैक्सीन की 50 हजार डोज मिली है। वैक्सीनेशन का काम तेजी से चल रहा है। वाराणसी में 24 सितंबर से वैक्सीनेशन शुरू हुआ है। चोलापुर पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ। विजय त्रिपाठी ने कहा कि यहां पर 45 पशुओं जिले के 58 ग्राम सभाओं का सर्वे कराया गया है और अन्य 31 गांवों में सर्वे चल रहा है। कुल 25000 पशुओं को वैक्सीन लगाने का लक्ष्य था, लेकिन वैक्सिनेशन ज्यादा किया गया। पिंडरा में लंपी से बचाव के लिए बड़ी संख्या में वैक्सीन की डोज लगाई जा चुकी है।"
काशी विद्यापीठ के पशु चिकित्साधिकारी डॉ. लवलेश सिंह कहते हैं, " प्रखंड के 66 गांवों में 10 से 15 फीसदी पशुओं को लंपी का इंफेक्शन हुआ है। इस बीमारी का असर वरुणा नदी के किनारे वाले इलाके छितौनी, भर्थरा, फुलवरिया, सुसुवाही आदि में ज्यादा है। पिछले एक हफ्ते से स्थिति थोड़ी नियंत्रण में है। कुछ पशुओं के पैरों में घाव हो गया है, जिन्हें ठीक होने पर ज्यादा समय लग सकता है।"
मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ आरके सिंह के मुताबिक, " बनारस जिले में करीब 572 पशु ही बीमार थे। पूर्वांचल में सबसे अच्छा वैक्सिनेशन बनारस जिले है। यहां 2 लाख 45 हजार पशुओं को टीके लगाए जा चुके हैं। वरुणा नदी में आई बाढ़ के बाद फैली गंदगी में लंपी वायरस फैलाने वाले मच्छरों को फैलने का अवसर मिला। यही वजह है कि बड़ागांव और हरहुआ इलाके में ज्यादा पशु इसकी चपेट में आए। इस बीमारी के फैलने से पशुपालक डर गए थे, लेकिन टीकाकरण के बाद स्थिति नियंत्रण में हैं। लंपी वायरस से बचाव के लिए तेजी से हो रहे टीकाकरण से 64 फीसदी गोवंश स्वस्थ हो चुके हैं। इनकी मृत्युदर सिर्फ एक फीसदी है। लंपी स्किन डिजीज अन्य क्षेत्रों में न फैले इसके लिए रिंग एवं बेल्ट के फार्मूले को अपनाकर सुरक्षा घेरा तैयार कर सघन टीकाकरण किया जा रहा है।"
पशुपालकों को सलाह देते हुए डा.आरके सिंह कहते हैं, "लंपी रोग से ग्रसित पशु को अन्य पशुओं से अलग रखें। गोशाला में मच्छर, मक्खियों को नियंत्रित करने के लिए कीटनाश दवाओं का छिड़काव अथवा धुआं करें। 25 लीटर पानी में फिटकरी व नीम की पत्ते का पेस्ट मिला कर रोग ग्रस्त पशु को नहलाएं। रोगी पशु को पौष्टिक चारा खिलाएं। रोग से मृत पशु को खुले में न फेंके। इससे रोग का संक्रमण फैलने का खतरा रहता है। भैंसों में लंपी के बेहद कम मामले सामने आए हैं। हमने जहां भी देखा वहां सबसे ज़्यादा गायों के मामले सामने आ रहे हैं। लंपी का अभी कोई इलाज नहीं है। लेकिन, हम बीमार पशुओं को गोट पॉक्स के टीके लगा रहे हैं। इससे पशुओं की बीमारी में सुधार भी देखा जा रहा है।"
अराजीलाइन के पशु चिकित्साधिकारी डॉ. संतोष राव कहते हैं, "बीमारी खतरनाक है, लेकिन समय से पहले ही इसे नियंत्रित कर लिया गया है। दस किमी के दायरे में रिंग वैक्सीनेशन किया जा रहा है। उनके इलाके में लंपी के पांच पशु बीमार मिले हैं, जिनका इलाज चल रहा है। बीएचयू इलाके में भी दर्जनों गायों के बीमार होने की खबर है। पशुपालकों को अलर्ट किया जा रहा है कि जिनके मवेशियों को लंपी की बीमारी है वो दूसरों के घरों में न जाएं। दूध का इस्तेमाल उबाल कर पिएं। कंदवा की पशुधान प्रसार अधिकारी सुषमा गौतम कहती है लंपी पीड़ित पशुओं के इलाज के लिए बड़े पैमाने पर टीकाकरण किया जा रहा है।"
बनारस में लंपी वायरस से प्रभावित सर्वाधिक मरीज हरहुआ में चिह्नित किए गए। डॉ आशीष कुमार वर्मा ने बताया कि 92 बीमार पशुओं का इलाज चल रहा है। रोकथाम के लिए युद्ध स्तर पर टीकाकरण कराया जा रहा है। हरहुआ के 50 गांवों में 27,200 पशुओं का टीकाकरण किया गया है। इस बीमारी से पशु के शरीर पर गांठें बन जाती हैं और जब मक्खी-मच्छर जब इस पर बैठते हैं, तो यही इस बीमारी को अन्य स्वस्थ पशुओं में ट्रांसफ़र कर देते हैं।
चंदौली के सैयदराजा क्षेत्र के पशु चिकित्साधिकारी डॉ अनिल मौर्य कहते हैं, "लंपी से बीमार किसी पशु से मक्खी और मच्छर इस बीमारी को अन्य पशुओं में ट्रांसफ़र कर रहे हैं और अधिक बारिश होने से मच्छर-मक्खियां भी बढ़ गए हैं। अब तक अधिकतर पशु गोशालाओं में लंपी से बीमार मिल रहे हैं। गोशालाओं में ही पशुओं की अधिक मौत भी हो रही हैं। लंपी से बीमार पशु को आइसोलेट नहीं करने के कारण भी अन्य पशुओं में तेज़ी से बीमारी फैल रही है।"
यूपी भर में लंपी की दस्तक
यूपी अगस्त महीने के दूसरे हफ्ते से शुरू हुए स्किन डिजीज का संक्रमण पश्चिम की 21 जनपद अलीगढ़, अमरोहा, बागपत, बिजनौर, बदायूं, बुलंदशहर, एटा, गौतमबुद्ध नगर, गाजियाबाद, हापुड़, हाथरस, मथुरा, मेरठ, मुरादाबाद, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, संभल, शाहजहांपुर, शामली, फिरोजाबाद और बरेली में लगातार फैल रहा है। इन जनपदों के 1414 गांव में 15,000 से ज्यादा मवेशी लंपी वायरस की गिरफ्त में हैं।
लंपी वायरस के सबसे ज्यादा मामले वेस्ट यूपी के जिलों में सामने आए हैं। इसमें जिन जिलों में ये मामले सबसे ज्यादा मिले उनमें अलीगढ़, मुजफ्फरनगर और सहारनपुर शामिल हैं। वहीं मथुरा, बुलंदशहर, बागपत, हापुड़, मेरठ, शामली और बिजनौर में यह वायरस तेजी से फैल रहा है। इसे देखते हुए हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने इम्यून बेल्ट योजना तैयार की है जिस पर तेजी से काम किया जा रहा है। पशु पैठ, मेले और पशुओं के आवागमन पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है और सरकार का दावा है कि लगातार टीकाकरण से इस काबू पा लिया जाएगा।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, सहारनपुर में लंपी वायरस के चलते अब तक 31 पशुओं की मौत हो गई है। सहारनपुर में अब तक कुल 4530 गौवंश संक्रमित हैं, जिनमें से अब तक 2880 गोवंश उपचार के बाद ठीक हुए हैं। दूसरी तरफ बिजनौर में भी लंपी बीमारी से चार पशुओं की मौत हो गई है और 407 बीमार हैं। वहीं 5900 पशुओं का टीकाकरण किया गया है। अलीगढ़ लंपी का प्रकोप करबी डेढ़ सौ गांवों तक पहुंच गया है। इस जिले में 50 से अधिक पशुओं की मौत की खबर है। विभाग का दावा है कि 900 से ज्यादा पशुओं को उपचार के बाद ठीक कर लिया गया है, जबकि बड़ी संख्या में का टीकाकरण कराया गया है।
बुलंदशहर चार सौ से अधिक पशुओं में लंपी के लक्षण पाए गए हैं और कई पशुओं की मौत हो चुकी है। आगरा के शमसाबाद कस्बे व आसपास के गांवों में लंपी वायरस का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। पालतू के अलावा छुट्टा मवेशी भी इसकी चपेट में आकर मर रहे हैं। आलम यह है कि 10 दिनों में ही 50 गायें मर चुकी हैं। इसे देखते हुए समाज सेवी संगठन टीम लीफ ने शमशाबाद में आइसोलेशन सेंटर बनाया है, जिसमें छुट्टा मवेशियों का उपचार किया जा रहा है। टीम लीफ के सदस्य पवन कुशवाहा के मुताबिक पिछले 10 दिनों में लंपी के कारण 50 गोवंश मर चुके हैं। मथुरा में लंपी के एक हजार मामले सामने आए हैं।
पशुपालन विभाग की ओर से जारी आंकड़ों में लंपी से बीमार पशुओं और मौत के आंकड़े बताए जा रहे हैं। लेकिन, भैंस या गाय की सही संख्या नहीं बताई जा रही है। हालांकि, विभाग के ही एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि, सबसे ज़्यादा गायों में ही यह बीमारी हुई है और मरने वाले पशुओं में सर्वाधिक संख्या गायों की है। राज्य पशुपालन निदेशालय के निदेशक डॉ इंद्रमणि कहते हैं, "जिन जिलों में ज्यादा कैसे आए वहां चिकित्सा अधिकारी और नगर विकास ने मिलकर काम किया। 17 लाख वैक्सीन प्रभावित जिलों में भी दी जा चुकी है, जिसमें मुजफ्फरनगर, मेरठ, सहारनपुर, बिजनौर, मथुरा और अलीगढ़ ज्यादा प्रभावित जिले हैं। प्रशासन ने अलर्ट करते हुए सभी पशु मेलों पर रोक लगा दी है। प्रभावित जिलों का दौरा करके वहां मॉनिटरिंग की जा रही है। अगले 5 से 6 दिनों में इस पर काबू पा लिया जाएगा। वहीं इंसेक्टिसाइड के साथ-साथ पशुओं को चिन्हित कर अलग किया जा रहा है और हाइड्रोक्लोराइड सप्लाई के छिड़काव के जरिए वेक्टर को कम करने की कोशिश है। संक्रमण से बचाव के लिए पहले से सावधानियों को अपनाना जरूरी है।"
चिकित्सकों मुताबिक, वैक्सीनेशन के जरिए इस पर काबू पाया जा सकता है लेकिन जरूरी है कि ऐसे संक्रमण की पहचान होते ही जानवर को अलग कर दिया जाए और किसी भी तरीके से इस संक्रमण को फैलने से रोका जाए। इस बीमारी में जानवर के शरीर पर लाल चकत्ते पड़ते हैं और संक्रमण तेजी से फैलता है। पश्चिमी यूपी में दूसरे राज्यों से आए जानवरों से यह संक्रमण यूपी में फैला है, जिसे केवल टीकाकरण के जरिए काबू में किया जा सकता है।
गाय को टीका लगाते पशु चिकित्सक
दूसरी तरफ, राज्य के पशुधन विकास मंत्री धर्मपाल सिंह ने भी लंपी वायरस को लेकर अलर्ट होने की बात कही है। मीडिया से बातचीत में मंत्री ने कहा, "लंबी वायरस एक बड़ी समस्या है, जिसको लेकर के राज्य की सीमाएं हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश से बंद कर दी गई हैं। इसके साथ ही अलर्ट जारी है और किसी भी तरह के मेले के आयोजन पर रोक लगी है। लंपी पर नियंत्रण के लिए सरकार ने लक्ष्मण रेखा खींचने का फैसला लिया है।"
"लंपी वायरस की रोकथाम के लिए इम्यून बेल्ट बनाने की योजना बनाई है। यूपी सरकार की ओर से तैयार की गई इम्यून बेल्ट योजना मलेशियाई मॉडल पर तैयार की गई है। टास्क फोर्स बनाकर संक्रमित जानवरों की ट्रैकिंग और उपचार का कार्य किया जा रहा है। बुंदेलखंड क्षेत्र में 155 किलोमीटर तक सुरक्षा घेरा तैयार किया गया है जो 10 किलोमीटर चौड़ा है। यूपी में बचाव के सभी जरूरी उपाय किए जा रहे हैं। इस बाबत कंट्रोल खोल दिया गया है जिनके नंबर 0522-2741992 व 7880776657 हैं। टोल फ्री नंबर 1800-180-5154 के जरिये भी पशुपालकों को मदद दी जा रही है।"
कब फैलता है यह रोग
वाराणसी के मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डा.आरके सिंह ने ‘न्यूजक्लिक’ से बातचीत में बताया, "लंपी वायरस कैप्रिपॉक्स फैमिली का वायरस है। गोट पॉक्स और शिप पॉक्स की तरह ही कैटल (पशु) में यह लंपी स्किन डिज़ीज़ के नाम से बीमारी फैला रहा है। लंपी स्किन डिजीज बीमारी का प्रकोप गर्म एवं नमी वाले मौसम में अधिक होता है। मौजूदा समय में जिस तरह से गर्मी व उमस बढ़ रही है उससे रोग फैलने का खतरा भी बढ़ा है। हालांकि ठंड के मौसम में स्वतः इसका प्रभाव कम हो जाता है।"
"लंपी की जद में आने पर पशु की त्वचा पर ढेलेदार गांठ बन जाती है। यह पूरे शरीर में दो से पांच सेंटीमीटर व्यास के नोड्यूल (गांठ) के रूप में पनपता है। खास कर सिर, गर्दन, लिंब्स और जननांगों के आसपास के हिस्से में इन गांठों का फैलाव होता है। संक्रमित होने के बाद कुछ ही घंटों के बाद पर पूरे शरीर में गांठ बन जाती है। इसके साथ ही मवेशी की नाक एवं आंख से पानी निकलने लगता है। मवेशी बुखार की जद में आ जाते हैं। मवेशी अगर गर्भ से है तो गर्भपात भी हो सकता है। ज्यादा संक्रमण से ग्रसित हो तो निमोनिया होने के कारण पैरों में सूजन भी आ सकती है|"
वाराणसी के जाने-माने पशु चिकित्साधिकारी डॉ आशीष कुमार वर्मा ने ‘न्यूजक्लिक’ से कहा, "लंपी वायरस मच्छरों के अलावा काटने वाली मक्खियों और जूं के सीधे संपर्क में आने से पशुओं में फैलता है। दूषित दाने, पानी से भी यह फैल सकता है। संक्रमित पशु में कई बार दो से पांच सप्ताह तक लक्षण नहीं दिखते और फिर अचानक यह रोग नजर आ जाता है। खास बात यह है कि यह रोग पशुओं से मनुष्यों में नहीं फैलता है। यह रोग पहली बार 1929 में जाम्बिया में हुआ और अफ्रीकी देशों में फैला।"
"पशु के शरीर का तापमान 106 डिग्री फारेनहाइट, भूख में कमी, चेहरे, गर्दन, थूथन, पलकों समेत पूरे शरीर में गोल उभरी हुई गांठें, फेफड़ों में संक्रमण के कारण निमोनिया, पैरों में सूजन, लंगड़ापन, नर पशु में काम करने की क्षमता में कमी आ जाती है। इस रोग के फैलने की आशंका बीस फीसदी और और मृत्यु दर पांच फीसदी तक हो सकती है। बछड़े को मां से संक्रमण हो सकता है। देसी नस्ल केपशुओं की तुलना में क्रास ब्रीड में इसका असर ज्यादा होता है क्योंकि उनकी त्वचा पतली होती है। प्रभावित सांडों के सीमन से भी यह वायरस दूसरे पशु में जा सकता है।"
नियंत्रण के उपाय
डा.वर्मा यह भी कहते हैं, "लंपी स्किन डिजीज का अभी कोई भी पुख्ता इलाज नहीं है। टीकाकरण ही रोकथाम का सबसे प्रभावी साधन है। स्टेरॉयड एंटीइन्फ्लेमेटरी और एंटीबायोटिक दवाओं के प्रयोग से रोग पर नियंत्रण किया जा सकता है। संक्रमित पशु को एक जगह बांधकर रखें। उन्हें स्वस्थ्य पशुओं के संपर्क में न आने दें। स्वस्थ पशुओं का टीकाकरण कराएं तथा बीमार पशुओं को बुखार एवं दर्द की दवा तथा लक्षण के अनुसार उपचार करें। पशु मंडी या बाहर से नए पशुओं को खरीद कर पुराने पशुओं के साथ ना रखें, उन्हें कम से कम 15 दिन तक अलग क्वॉरेंटाइन में रखे।"
"प्रभावित पशु को अलग करें और मक्खी, मच्छर, जूं आदि को मारें। पशु मेलों और बाजारों में पशुओं को लेकर न जाएं। बीमारी ग्रस्त पशु की मृत्यु पर शव को खुला न छोड़ें। उसके जमीन में दबा दें और पूरे क्षेत्र में कीटाणुनाशक दवाओं से सफाई करें। बकरी पॉक्स वैक्सीन (लाइव एटेन्यूसड वायरस वैक्सीन) का उपयोग किया जा सकता है लेकिन केवल स्वस्थ पशु में यह ज्यादा कारगर है। ऐसे पशु के उपचार की सुईं का दोबारा प्रयोग न करें। प्रभावित पशु के पांच किमी में रिंग वैक्सीनेशन कराया जाए। साथ ही पशु की इम्युनिटी बढ़ाने की दवाएं मल्टी विटामिन आदि दिएं जाएं। इससे प्रभावित पशु का दूध पीने से कोई नुकसान नहीं है। हालांकि दूध को पीने से पहले उबाल लेना चाहिए।"
बीमार पशुओं के दूध का क्या करें?
पशुओं पर कहर बनकर टूट रहे लंपी वायरस को लेकर सिर्फ पशुपालक ही नहीं, दूध का इस्तेमाल करने वाले लोग भी परेशान हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, "लंपी एक वायरल डिजीज है, जो संक्रमित पशुओं से अन्य पशुओं में बेहद तेजी से फैलती है। यह वायरस खून चूसने वाले कीड़ों, मच्छर की कुछ प्रजातियों और पशुओं के कीड़ों के काटने से फैलता है। आमजन में यह सवाल उठाया जा रहा है कि अगर यह मच्छर की कुछ प्रजातियों और कीड़ों से फैलता है तो क्या इसकी चपेट में इंसान भी आ सकते हैं? क्या इंसानों के लिए भी लंपी वायरस संक्रामक और खतरनाक है? इस सवाल पर बनारस के महमूरगंज इलाके जाने-माने चिकित्सक डा.कुमार भास्कर विस्तार से जवाब देते हैं।
डा.भास्कर के मुताबिक, "लंपी वायरस की वजह से जानवरों की स्किन पर जगह-जगह निशान बन जाते हैं और सही समय पर इलाज न मिलने पर पशु मर जाते हैं। यह बीमारी गाय, भैंस, भेड़ और बकरी में तेजी से फैल सकती है। अभी तक लंपी वायरस से इंसानों को संक्रमण होने का कोई मामला सामने नहीं आया है। यह वायरस पशुओं के लिए घातक होता है, लेकिन इंसानों को इसका खतरा न के बराबर होता है। हालांकि लोगों को संक्रमित पशुओं से थोड़ी दूरी बरतनी चाहिए।"
डॉ भास्कर कहते हैं, "लंपी वायरस से संक्रमित होने वाले पशुओं को दूसरे पशुओं से अलग कर दें और इनकी देखभाल करने के बाद अपने हाथों को अच्छी तरह साबुन से धोएं। आप अपने हाथों को सैनिटाइज भी कर सकते हैं। कोशिश करें कि आप अपने हाथों को पशुओं की स्किन पर न लगाएं। वेटरनरी डॉक्टर की सलाह पर सभी पशुओं का वैक्सीनेशन करा सकते हैं। इससे यह बीमारी फैलने का खतरा कम हो जाएगा और पशुओं के साथ उनके आसपास रहने वाले लोग भी पूरी तरह सुरक्षित रहेंगे। समय रहते पशुओं की देखभाल की जाए तो इस बीमारी से बचाव किया जा सकता है।
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