मध्य प्रदेश : एलपीजी की क़ीमतें बढ़ने के बाद से सिर्फ़ 30% उज्ज्वल कार्ड एक्टिव
भोपाल : मिट्टी के चूल्हे के पास बैठी 50 वर्षीय रूपरानी, जोकि आदिवासी तबके से आती हैं अपनी आंखों से पानी पूछते हुए लगातार खांस रही थी। रोजाना, उनके दिन का एक बड़ा हिस्सा चार सदस्यों के परिवार के लिए तीन समय का भोजन पकाने के लिए पास के जंगल से जलाऊ लकड़ी इकट्ठा करने में व्यतीत होता है।
इस तकलीफ़ से छुटकारा पाने के लिए, 12 अक्टूबर 2016 को, रूपरानी ने बहुप्रचारित प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) को अपनाया था, जिसका उद्देश्य गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) महिलाओं को मुफ्त गैस सिलेंडर और सब्सिडी वाले एलपीजी (कुकिंग गैस) प्रदान करना था। उन्हें लकड़ी या कोयले जैसे हानिकारक खाना पकाने के ईंधन से दूर ले जाने के लिए ऐसा किया गया था। लेकिन, रूपरानी का कहना है कि रसोई गैस की कीमतों में लगातार उछाल के कारण, वह साल में केवल एक बार ही, वह भी मानसून के दौरान सिलेंडर को भरवा पाती हैं, क्योंकि इस दौरान खाना पकाने के लिए गीली लकड़ी का इस्तेमाल करना एक कठिन काम होता है।
रिकॉर्ड के अनुसार, रूपरानी ने अपना आखिरी सब्सिडी वाला एलपीजी सिलेंडर 4 जुलाई, 2021 को 857 रुपये में भरवाया था, तब, जब मानसून ने दमोह जिले में दस्तक दी थी। मध्य प्रदेश के दमोह जिले के गेसाबाद गांव में बारिश कम होने के बाद, परिवार दैनिक खाना पकाने के लिए दोबारा जलाऊ लकड़ी के इस्तेमाल करने लगा था।
रूपरानी का कहना है कि आठ महीने पहले जब उन्होंने अपना सिलेंडर भरवाया तो दमोह में गैस की कीमत पहले से ही 857 रुपये प्रति सिलेंडर चल रही थी।
वे कहती हैं, ''चार महीने की बचत के बाद ही 857 रुपये का सिलेंडर खरीदना संभव था। अब उसी सिलेंडर के लिए और अधिक भुगतान करना हमारे बस की बात नहीं है। मैंने मानसून में सिलेंडर को रिफिल किया क्योंकि उस समय हमें लकड़ी का जुगाड़ करने में संघर्ष करना पड़ता है।''
यह गाँव दमोह जिला मुख्यालय से 60 किमी की दूरी पर स्थित है, गेसाबाद गाँव में 4,000 से अधिक लोग रहते हैं, जिसमें सभी समुदायों को मिलाकर करीब 3,000 मतदाता हैं। इनमें से लगभग 70 प्रतिशत निवासी वंचित समाज से हैं।
रूपरानी के घर से कुछ ही दूरी पर, पीएमयूवाई की एक अन्य लाभार्थी राज प्यारी (65) का घर है, उनका कहना है कि उसने 8 अक्टूबर, 2021 को विक्रेता को 900 रुपये से अधिक का भुगतान करके अपना आखिरी एलपीजी सिलेंडर रिफिल किया था।
सिर्फ दमोह ही नहीं, खरगोन जिले के भगवानपुर गांव में जोकि 556 किलोमीटर दूर है, आदिवासी खेतिहर मजदूर रुक्मा बाई का कहना है कि कनेक्शन मिलने के बाद उन्होंने कभी गैस नहीं भरवाई है। उसका पड़ोसी मोहन (40) कनेक्शन मिलने के बाद इसे केवल दो बार ही भरवा सका है।
दयनीय रिफ़िलिंग दर
रूपरानी और राज प्यारी मध्य प्रदेश के 52.43 लाख उज्ज्वला लाभार्थियों में से हैं, जिन्होंने 2020-21 में राज्य के कुल 71.42 लाख उज्ज्वला कनेक्शन से चार एलपीजी सिलेंडर से भी कम को भरवाया है, उक्त आंकड़े केंद्र सरकार ने संसद में दिए थे।
आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के सांसद राममोहन नायडू के एक सवाल के जवाब में केंद्र सरकार ने बताया कि मध्य प्रदेश में 13,000 से अधिक पीएमयूवाई लाभार्थियों को कनेक्शन मिलने के बाद कभी भी सिलेंडर नहीं भरवाया है।
वास्तव में, मप्र में सिलेंडर रिफिल 2021-22 में औसतन 2.92 रिफिल तक गिर गया था, जबकि इसी अवधि के दौरान राष्ट्रीय औसत 3.66 थी। इसी अवधि के दौरान, उत्तर प्रदेश में औसतन 4.13 रिफिल थे, राजस्थान में 4.10, बिहार में 3.92, महाराष्ट्र में 4.19 जबकि गुजरात में 4.47 रीफ़ील दर थी।
केंद्र सरकार द्वारा संसद में साझा किए गए रिफिलिंग डेटा के अनुसार, मध्य प्रदेश सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों में से एक है। 2020-21 और 2021-22 की तुलना में, पहली रिफिल की संख्या बढ़कर 0.1 प्रतिशत (प्रति 1,000 परिवार) हो गई थी, जबकि 59,000 से अधिक परिवारों ने दूसरी बार सिलेन्डर नहीं भरवाया था, और 12.99 लाख परिवारों ने ही तीसरी बार सिलेन्डर भरवाया था।
मार्च 2020 में, देशव्यापी कोविड-19 लॉकडाउन के बाद, एलपीजी की खपत तब भी कम रही, जब केंद्र सरकार ने उज्ज्वला लाभार्थियों को "अप्रैल और जून 2020 के बीच तीन मुफ्त रिफिल" की पेशकश की थी। आठ करोड़ उज्ज्वला लाभार्थियों के मामले में यह कुल 24 करोड़ रिफिल को ही जोड़ पाया था। जून तक, हालांकि, लाभार्थियों ने केवल 12 करोड़ रिफिल का लाभ उठाया था, जिससे सरकार को खपत की समय सीमा को और छुट को तीन महीने आगे बढ़ाना पड़ा था। क्योंकि सितंबर के अंत तक, केवल 14 करोड़ (60 प्रतिशत) रिफिल का इस्तेमाल किया गया था, जिससे सरकार को समय सीमा 31 मार्च, 2021 तक बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ा था।
विभिन्न रिपोर्टों और अध्ययनों से पता चलता है कि उज्ज्वला लाभार्थी सिलेंडरों को फिर से भरने की उच्च लागत के कारण अशुद्ध या खराब खाना पकाने के ईंधन की तरफ लौट रहे हैं। उदाहरण के लिए, 2018 में, रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर कंपसेनेट इकोनॉमिक्स के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश में योजना के 85 प्रतिशत लाभार्थी अभी भी खाना पकाने के लिए पारंपरिक लकड़ी जलाने वाले चूल्हों का इस्तेमाल कर रहे थे।
ऐसा तब हुआ था जब एक रसोई गैस सिलेंडर की कीमत 500 रुपये के करीब थी, लेकिन अब यह लगभग दोगुनी हो गई है।
रूपरानी के दमोह जिले में, सबसे बड़ी स्थानीय रसोई गैस एजेंसियों में से एक के प्रबंधक ने दावा किया कि 22,000 पीएमयूवाई लाभार्थियों में से 70 प्रतिशत से अधिक निष्क्रिय हैं, जबकि बाकी एक वर्ष में तीन सिलेंडर से कम रिफिल करवाते हैं।
एक रसोई गैस एजेंसी के प्रबंधक ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए बताया कि, "पीएमयूवाई के शहरी लाभार्थियों तीन रिफिल तक करवाते हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां लगभग 70 प्रतिशत कनेक्शन हैं, उनके लिए योजना शुरू होने से पहले विफल हो गई है।"
उन्होंने बताया कि रिफिलिंग दर में गिरावट का एक अन्य कारण ग्रामीण क्षेत्रों में जलाऊ लकड़ी की सस्ती या मुफ्त उपलब्धता है।
पीएमयूवाई उपयोगकर्ताओं में गिरावट का कारण बताते हुए, प्रबंधक ने कहा: "एलपीजी सिलेंडरों की डोरस्टेप डिलीवरी अनिवार्य हो जाने के बाद, हम एक ट्रक में प्रतिदिन 56 एलपीजी सिलेंडर ग्रामीण क्षेत्रों में भेजते हैं, जिससे प्रति गांव सप्ताह में एक गांव में तीन चक्कर लगते हैं। अंत में चार से पाँच सिलेन्डर लेने वाले मुश्किल से मिलते हैं।"
उन्होंने कहा कि पीएमयूवाई के लाभार्थियों से गैस एजेंसियों को नुकसान होता है, क्योंकि उपयोगकर्ता अक्सर कीमत सुनकर और ऑर्डर करने के बाद सिलेंडर लेने से इनकार कर देते हैं। नतीजतन, एजेंसियों को श्रम लागत का भुगतान करना पड़ता है।
2020 में, फेडरेशन ऑफ एलपीजी डिस्ट्रीब्यूटर्स इन इंडिया ने दावा किया था कि योजना की शुरुआत के बाद 22प्रतिशत ने अपने सिलेंडर को रिफिल नहीं कवाया था, और 5-7 प्रतिशत को पहली रिफिल के लिए घोषित सब्सिडी की राशि नहीं मिली थी।
दमोह में एक अन्य एलपीजी वितरक, जिन्होने नाम नहीं बताया, ने कहा कि इतनी कम एलपीजी खपत का एक कारण यह था कि कुछ लाभार्थियों ने लॉकडाउन के दौरान मुफ्त सिलेंडर के लिए मिले धन से अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए इस्तेमाल किया था।
“पीएमयूवाई के लाभार्थी बीपीएल कार्डधारक हैं। उनमें से अधिकांश ने लॉकडाउन के दौरान अपनी आजीविका खो दी थी। इसलिए, उन्होंने अपनी दैनिक जरूरतों के लिए पैसे का इस्तेमाल किया था। गांवों में ईंधन के रूप में इस्तेमाल के लिए लकड़ी और गोबर आसानी से उपलब्ध हैं।"
क़ीमतों में बढ़ोतरी से बिक्री हुई कम
पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अनुसार, 1 दिसंबर 2016 को, जिस वर्ष पीएमयूवाई शुरू किया गया था, उस वर्ष 14.2 किलोग्राम एलपीजी सिलेंडर की कीमत 584 रुपये थी, जो मार्च 2022 में बढ़कर 949.5 रुपये हो गई, जोकि कुल मिलाकर 62 प्रतिशत की वृद्धि है। इसने हजारों गरीब परिवारों को बहुप्रचारित उज्ज्वला योजना से बाहर होने पर मजबूर कर दिया था।
आठ करोड़ पीएमयूवाई कार्डधारक होने के बावजूद जब 14.2 किलोग्राम एलपीजी सिलेंडर की रिफिलिंग दर तेल कंपनियों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी, तो मंत्रालय बिक्री बढ़ाने के लिए दिसंबर 2020 में 5 किलोग्राम सिलेंडर की पेशकश लेकर आया। लेकिन, यह भी बिक्री में वृद्धि करने में विफल रहा, क्योंकि लॉन्च के एक साल बाद मध्य प्रदेश में कुल 71 लाख पीएमयूवाई कार्डधारकों में से केवल 7.75 लाख ने सिलेंडर रिफिल किए थे।
भोपाल में 5 अप्रैल, 2022 को 351.50 रुपये की लागत से 5 किलो का एलपीजी सिलेंडर रिफिल किया जा रहा था। 14.2 किलो के सिलेंडर की कीमत के साथ-साथ दर में उतार-चढ़ाव हो रहता है।
तेल कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए कहा कि एलपीजी की आसमान छूती कीमत पीएमयूवाई योजना में बड़ी बाधा है।
उदाहरण के लिए, सितंबर 2021 में, जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने एलपीजी की दरों को दो बार बढ़ाकर 834 रुपये से 884 रुपये प्रति सिलेंडर कर दिया, तो मध्य प्रदेश में हिंदुस्तान पेट्रोलियम के कुल 17.70 लाख पीएमयूवाई उपयोगकर्ताओं में से केवल 29.80 प्रतिशत (5.2 लाख) उपयोगकर्ताओं ने गैस रिफिल की थी, कंपनी ने उक्त बात न्यूज़क्लिक द्वारा दायर एक आरटीआई के जवाब में बताई थी।
न्यूज़क्लिक द्वारा दायर एक अन्य आरटीआई (सूचना का अधिकार) में, भारत पेट्रोलियम ने कहा कि मध्य प्रदेश में अगस्त से अक्टूबर 2021 के बीच, जब केंद्र सरकार ने सिलेंडर 40 रुपये की बढ़ोतरी की थी तो कुल 19,32,837 पीएमयूवाई उपयोगकर्ताओं में से केवल 26.73 प्रतिशत (हर महीने 5.16 लाख) ने गैस फिर से भरवाई थी।
एक वैश्विक महामारी के बीच बढ़ती एलपीजी दरें जिसने देश भर में आजीविका और आय को पटरी से उतार दिया है, इन बढ़ती कीमतों से देशवासी तनाव में हैं। लेकिन, गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लाखों लोगों के लिए - जैसे कि रूपरानी का खेतिहर मजदूरों का परिवार – को हाल ही में एलपीजी की कीमतों में हुई बढ़ोतरी ने स्वच्छ खाना पकाने के ईंधन की पहुंच को एक सपना बना दिया है।
अखिल भारतीय एलपीजी डीलर्स फेडरेशन के मध्य प्रदेश अध्यक्ष आरके गुप्ता ने बताया कि इस महत्वाकांक्षी योजना को वंचित तबकों को लाभान्वित करने के लिए शुरू किया गया था और बहुत प्रयासों के बाद और करीब छह साल बाद, यह मध्य प्रदेश के 79 लाख से अधिक परिवारों तक पहुंच गई है जिसने चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार को लाभ पहुंचाया था। उन्होंने कहा, "लेकिन कीमतों में बढ़ोतरी योजना पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है, जिससे पीएमयूवाई लाभार्थियों के लिए सिलेंडर भरवाना कठिन हो गया है खासकर वंचित तबकों के लिए यह हक़ीक़त है।"
उन्होंने कहा, “मूल्य वृद्धि पीएमयूवाई के लाभार्थियों के लिए आग में घी का काम कर रही है, क्योंकि उनकी आजीविका पहले से ही कोविड के कारण लगे दो लॉकडाउन से खतरे में है।”
कचरा डीलर को बेचे गए सिलेंडर
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले साल 18 सितंबर को मध्य प्रदेश के जबलपुर में पांच लाख एलपीजी कनेक्शन बांटकर उज्जवला 2.0 की शुरुआत करने के लगभग एक महीने बाद, भिंड जिले से वीडियो सामने आए जहां दर्जनों लाभार्थियों ने अपने खाली एलपीजी सिलेंडर कचरा डीलरों को महज 20 रुपये किलो में बेच दिया था। भिंड में 1.33 लाख से अधिक उज्ज्वला लाभार्थी हैं।
वीडियो वायरल होने के बाद भाजपा पर कटाक्ष करते हुए, पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता कमलनाथ ने ट्वीट किया: "भिंड में एक स्क्रैपयार्ड में सिलेंडर के दृश्य बहुप्रचारित पीएमयूवाई योजना की हक़ीक़त को बयान कर रहे हैं। यह उस राज्य की स्थिति है जहां गृह मंत्री (अमित शाह) ने जबलपुर में एक भव्य कार्यक्रम में उज्जवला के दूसरे चरण की शुरुआत की थी।
उन्होंने कहा, "अनियंत्रित मुद्रास्फीति लाभार्थियों को जलाऊ लकड़ी का सहारा लेने के लिए मजबूर कर रही है।"
एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के अनुसार, कई लाभार्थियों ने कहा कि उन्होंने अत्यधिक कीमतों के कारण सिलेंडरों को फिर से भरना बंद कर दिया है। "हम दिहाड़ी मजदूर हैं। मेरे चार बच्चे हैं। जिन दिनों मुझे काम नहीं मिलता है, हमारे पास पैसे की कमी होती है। एक मजदूर ने कहा कि, हम एलपीजी सिलेंडर कैसे रिफिल करवा सकते हैं? हमने 600 रुपये का आंकड़ा पार करने के बाद उन्हें फिर से भरना बंद कर दिया है।"
भिंड जिले में रिफिल्ड सिलेंडर की आपूर्ति करने वाले एक गैस एजेंसी के कर्मचारी ने कहा: "योजना के लाभार्थी रिफिल सिलेंडर बुक करते हैं, लेकिन जब हम उन्हें देने जाते हैं, तो वे सिलेंडर नहीं लेते हैं क्योंकि वे बढ़ी रक़म का भुगतान करने में असमर्थ होते हैं।"
पेट्रोलियम मंत्रालय के रिकॉर्ड के अनुसार, रूपरानी, राज प्यारी, रुक्मा बाई और मोहन उन आठ करोड़ भारतीयों में शामिल हैं, जिन्हें 2016 में उज्ज्वला योजना की शुरुआत के बाद से लाभ मिला है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, इस योजना को शुरू में 8,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, इसके बाद 2018-19 में अतिरिक्त 3,200 करोड़ रुपये, 2019-20 में 3,724 करोड़ रुपये और 2020-21 में 1,118 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे।
अपने आठ करोड़ के लक्ष्य को सफलतापूर्वक पूरा करके, केंद्र ने दावा किया है कि पीएमयूवाई ने भारतीय आबादी के 95 प्रतिशत तक को एलपीजी कनेक्शन लेने में मदद की है। 100 प्रतिशत तक पहुंचने के लिए, मंत्रालय ने उज्ज्वला 2.0 लॉन्च किया है और मध्य प्रदेश में सात लाख से अधिक नए लाभार्थियों को जोड़कर एक करोड़ से अधिक कनेक्शन वितरित किए हैं, जिससे मार्च 2022 तक मध्य प्रदेश में कुल पीएमयूवाई कार्डधारक 79.38 लाख हो गए हैं।
लेकिन रूपरानी, राज प्यारी, रुक्मा बाई और मोहन की कहानियों से पता चलता है कि ये आंकड़े जमीनी हक़ीक़त को नहीं दर्शाते हैं।
(डाटा : पीयूष शर्मा)
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