मध्यप्रदेशः बुन्देलखण्ड में मछली की तरह बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रही है आवाम!
मध्यप्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र में भयंकर गर्मी से आम जनजीवन तितर-बितर हो गया है। बुन्देलखण्ड में सामान्य तापमान 20 से 35 डिग्री के मध्य रहता है। जबकि गर्मी के मौसम में अधिकतम तापमान 47.5 डिग्री तक पहुँच जाता है। ऐसे में अबकी बार बुन्देलखण्ड क्षेत्र में तापमान 40 डिग्री से ऊपर पहुँच गया है।
जिससे पठारों और ऊंचाई पर बसे ग्रामीण अंचलों में झुलसाने वाली गर्मी ने लोगों का दम तोड़ दिया है।
आलम यह है कि लोग यदि घर से 10 मिनिट के लिए बाहर निकल जाते हैं, तो गर्मी से चलतीं आग जैसी लपटें चेहरे का रंग उड़ा देतीं हैं। फिर भी, पठारी क्षेत्रों में आवाम यह भीषण गर्मी तो जैसे-तैसे झेल लेती है। लेकिन इसके सामने सबसे बड़ा विकराल संकट पानी का खड़ा हैं। जिससे आवाम बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रही है।
और यह उसी भारत की बात की जा रही है। जिस भारत का एक वर्ग ऐसा भी है जिसके पास वाशिंग मशीन, फ्रिज और एसी जैसे तकनीकी युक्त साधन उपलब्ध हैं। जिनके सहारे वह सुखमयी जिंदगी जी रहा है।
लेकिन देश के बुन्देलखण्ड जैसे पठारी क्षेत्र का जो गरीब वर्ग है।वह वाशिंग मशीन, फ्रिज और एसी जैसे साधनों की कल्पना भी नहीं कर सकता। क्योंकि यहाँ की अवाम तो अभी भी बूंद-बूंद पानी के लिए मछली के भांति तरस रही है।
जब हमने बुन्देलखंड क्षेत्र में पानी की स्थिति जानने के लिए सागर जिले के विभिन्न गांवों का दौरा किया। तब हमारे सम्मुख धरातलीय हक़ीक़त और लागों की प्रतिक्रियाओं ने बढ़ती जल समस्या को अपने दुख-दर्द के साथ पेश किया।
पिपरई गांव के आम जन
पहले हम सागर से 30 किमीं दूर आपस में सटे गांव पिपरई और खांड पहुंचे। जिनकी आबादी क़रीब 3000 है। इन गांव वालों से जब हमने पानी की स्थिति के बारे में पूछा? तब इन्होंने बाताया कि 2 माह से हम लोग विकट जल संकट से जूझ रहे है। क्योंकि गांव में नल तो हैं, पर उनमेें जल नहीं है। वहीं कुएं भी सूख चुके हैं।
खांड गांव के कुछ ग्रामवासी
खांड गांव के निर्भय कहते हैं कि हम लोग 4 किमीं दूर खुदे तालाब से गांव तक मोटर के सहारे पानी लाते है। जिसके लिए 20 फीट लंबे 600 से ज्यादा पाईप के गिन्डे जोड़कर बिछाने पड़ते है। लेकिन तालाब सालाना अप्रैल महीना के अंतिम दिनों तक सूख जाता है। ऐसे में तालाब का पानी अभी से कम और दूषित होने लगा है। जिसे पीने के लिए हम लोग विवश है।
जब हमने सवाल किया कि दूषित पानी पीने से क्या आप लोग बीमार नहीं होते और जब तालाब का पानी सूख जाता है, तब पानी भरने कहां जाते है?
इसके जवाब में निर्भय कहते है कि दूषित पानी पीने से पेचिस और टाइफाइड जैसी बीमारियों से गांव के लोग अक्सर परेशान रहते हैं। पर क्या करें प्यास यह नहीं देखती कि पानी साफ है या दूषित।
आगे वहीं मौजूद दयाराम कहते हैं कि हमें अप्रैल के बाद, जब तालाब सूख जाता है, तब मई और जून माह में पानी भरने के लिए गांव से साइकिल के सहारे 5 किमीं से ज्यादा दूर जाना पड़ता है। इसी संबंध में नया खेड़ा गांव की रजनी कहती है कि हम लोगों को सिर पर पानी के बर्तन रखकर 2 किमीं दूर खेतों से पानी लाना पड़ता। क्योंकि खेतों तक साइकिल जैसे साधन पहुंच नहीं पाते है।
जब हमने दयाराम से पूछा कि पानी भरने में आपको रोजाना कितना वक्त लगता है? तब दयाराम बोलते है कि हमें दिन में पानी भरने के लिए 5-6 घंटे का वक्त देना पड़ता है। क्योंकि हमें घर से लेकर मवेशियों तक के लिए पानी चाहिए होता है। जिसके लिए क़रीब 15-20 पीका पानी लगता है। और 1 पीके में केवल 15 लीटर ही पानी आ पाता है।
फिर आगे हमने सवाल किया कि जल समस्या को आप लोगों ने क्या सरपंच और विधायक के समक्ष रखा?
तब खांड गांव के एक बुजुर्ग झलकन और कुछ महिलाएं गंभीर स्वर में कहतीं है कि हमने सरपंच के सामने जल समस्या को रखा था। जिसके लिए उन्होनें गांव में 3 बोर करवाए है। लेकिन उनमें पानी नहीं निकला। आगे इन्होनें कहा कि विधायक और केबिनेट मंत्री गोपाल भार्गव के पास हम लोग केवल पानी की एकमात्र समस्या के लिए 10 बार गए है। जिसके समाधान के लिए मंत्री जी हां तो कर देते है। मगर होता कुछ नहीं।
फिर इसके उपरांत हमने आगे पिपरई गांव के ग्रामवासियों से जाना कि उनके गांव में पानी की कितनी सुविधा है? तब गोमतीं बताती है कि गांव में पानी की हाहाकार मची है। केवल एक नल है। जिसे चलाने में इतना बल लगता है कि छाती फूल जाती है और सिर चकराने लगता है। इस नल से एक बार में 4-5 पीका पानी निकलता है। फिर करीब 1 घंटा रुकना पड़ता है। तब फिर 4-5 पीका पानी निकलता है।
आगे मीना कहती है कि गांव के इस एक नल पर भीषण भीड़ होती है। जिससे नल पूरा दिन और पूरी रात चलता है। तब भी लोग पानी के लिए किल्ल-किल्ल करते है। इसके बाद मीना बोलती है कि गांव में घाटी के नीचे एक कुआं भी है। जो 50 फीट गहरा है। जिसका पानी नमक के जैसा खारा है। पर 1 माह पहले ही यह कुआं रीत गया है।
गांव में जब हम आगे की ओर बढ़े तब हमें बंसल और उनकी पत्नी धन्नों कुआं खोदते हुए दिखाई दिए। जैसे ही हम उनके पास पहुंचे। और पूछा कि गांव में 50 फीट तक गहरे कुआं में पानी नहीं है ऐसे में आपके कुआं खोदने से पानी निकलने की कितनी गुंजाइश है? तब बंसल कहते है कि हम तो भगवान भरोसे कुआं खोद रहे है। पानी निकले या न निकलेेे। कम से कम बरसात में तो कुआं में पानी भरेगा।
पिपरई गांव में कुंआ खोदते बंसल और धन्नो
आगें हमने सवाल किया कि कुआं खोदने के लिए क्या सरकार से आपने सहायता मांगी? तब धन्नों कहती है कि हमने विधायक से कुआं खोदने के लिए मदद मांगी थी, पर मिली नहीं। ऐसे में हम 4 दिनों में 2 दिन कुंआ खोदते है। और बाकी 2 दिन 150 रुपये दैनिक मजदूरी से काम करते हैं। जिसमें घर का खर्च चलता है।
फिर हम पिपरई गांव से निकलते हुए, उदयपुरा गांव की तरफ पहुंचे। तब वहां देखा कि कुछ महिलाएं एक कुएं पर पानी भर रही थी। इस कुएं में इतनी गहराई पर पानी है कि उस तक पहुंचने के लिए लगभग 30 हाथ लंबी रस्सी लगती है। जब हमने कुएं के निकट महिलाओं से यह सवाल पूछा कि क्या इतने गहरे कुएं से पानी खींचने में आपको शरीरिक पीड़ा नहीं होती? तब संतोषी हां में जवाब देते हुए कहती है कि यहां कुएं पर अधिकतर महिलाएं ही पानी भरती है। ऐसे में हमें कुएं से पानी खींचने में सबसे ज्यादा हाथ और कमर दर्द की परेशानी आती है। यह परेशानी गर्मियां आते-आते और बढ़ जाती है। क्योंकि गर्मियों में कुएं का पानी ज्यादा गहराई पर पहुंच जाता है।
उदयपुरा गांव में कुएं से पानी भरते कुछ ग्रामवासी
आगे हमें बम्हौरी बीका गांव के मोहन मिलते है। जिनसे पानी का हाल पूछे जाने पर पता चलता है कि बम्हौरी गांव में 1 बड़ी पानी की टंकी तकरीबन 7 साल पहले बनी थी। जिसमें पानी की व्यवस्था अभी तक नहीं की गयी। वहीं नल-जल योजना के तहत पाइप लाइन भी बिछायी गयी है। लेकिन इसमें भी पानी की सप्लाई अभी तक चालू नहीं की गयी है। ऐसे में गांव वासी 500 रुपए महीना मोल पानी खरीदते है। आगे मोहन कहते है कि सरकार और प्रशासन से कई दफ़ा पानी के इन साधनों को चालू करने के लिए आग्रह किया गया हैं। लेकिन उन्हें होश नहीं है।
विचार करने योग्य है कि मध्यप्रदेश के सागर जिले में भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर मुम्बई के तहत पानी की गुणवत्ता पर एक टीम द्वारा सर्वे किया गया। जिससे ज्ञात हुआ कि सागर के 250 गांव में 80 से ज्यादा गांव का पानी पीएच अधिक होने से सामान्य से ज्यादा खारा और कठोर है। जिसे पीने से लोगों में पथरी, हाई बल्डप्रेशर और सुगर की समस्याएं आम होती जा रही है।
वहीं सागर में पानी के स्तर को लेकर जानकारों का यह कहना है कि बुन्देलखंड क्षेत्र के बहुतायत पठारी गांवो में पानी 600 फीट तक की गहराई पर है। ऐसे में यहां न कुआं सफल है और न नल।
जबकि अप्रैल माह की इस भयाभय गर्मी में सागर जिले में पानी का अहम स्रोत माने जाने वाली बीना, बेतवा, बेबस, सुनार, धसान और कोपरा जैसी अन्य नदियां भी खाली हो चुुकी है।
ऐसे में बुन्देलखंड क्षेत्र में पानी की समस्या हल करने के लिए सरकार क्या कर रही है? जब इस बात पर हम ध्यान देते है। तब जल जीवन मिशन की वेबसाइट पर दिए गए आंकड़ो से पता चलता है कि 25 नवंबर 2021 तक देशभर के कुल 19,22,41,339 ग्रामीण घरों में से 8,55,08,916 यानी क़रीब 44,88 प्रतिशत घरों में पाइपलाइन का कनेक्शन पहुंच गया है। लेकिन बहुत से ग्रामीण घरों में पानी नहीं पहुंचा। वहीं बुन्देलखंड में 19 माह बाद भी यह योजना धरातलीय हक़ीक़त में अभी तक तब्दील नहीं हो पायी। जिससे जल संकट इतना विकराल हो गया है कि जनता के माथे पर यही सवाल विराजमान है कि जल संकट से आखिर कैसे निपटा जाए? जिसके जवाब में सरकार की उदासीनता ही नज़र आती है। जल संकट का समाधान नहीं।
(सतीश भारतीय एक स्वतंत्र पत्रकार है)
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