मध्यप्रदेश भाजपा के पास बरक़रार, शिवराज मंत्रिमंडल के 12 मंत्री हारे
मध्य प्रदेश में रविवार को भाजपा ने विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत दर्ज करते हुए अपनी चमक बिखेरी, लेकिन गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा सहित शिवराज सिंह चौहान मंत्रिमंडल के 12 मंत्री जीत से दूर रहे।
निर्वाचन आयोग के अनुसार, प्रदेश की 230 विधानसभा सीट में से भाजपा के उम्मीदवार 163 सीट जीत चुके हैं। वहीं, कांग्रेस ने 66 सीट पर जीत दर्ज की है। भारत आदिवासी पार्टी के खाते में एक सीट गई है।
भाजपा मध्य प्रदेश में सत्ता बरकरार रखने के साथ ही अपने विधायकों की संख्या बढ़ाने में सफल रही। वहीं, शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल के 12 मंत्री पराजित हो गए हैं।
राज्य के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा को कांग्रेस प्रत्याशी राजेंद्र भारती से 7,742 वोटों से हार का सामना करना पड़ा है।
जिन अन्य प्रमुख मंत्रियों को हार का सामना करना पड़ा उनमें अटेर से अरविंद भदोरिया, हरदा से कमल पटेल और बालाघाट से गौरीशंकर बिसेन शामिल हैं।
इनके अलावा हारने वाले मंत्रियों में बड़वानी से प्रेम सिंह पटेल, बमोरी से महेंद्र सिंह सिसोदिया, बदनावर से राजवर्धन सिंह दत्तीगांव, ग्वालियर ग्रामीण से भारत सिंह कुशवाह, अमरपाटन से रामखेलावन पटेल, पोहरी से सुरेश धाकड़ और परसवाड़ा से रामकिशोर कावरे शामिल हैं।
एक अन्य मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के भतीजे राहुल सिंह लोधी को खरगापुर से हार का सामना करना पड़ा।
भाजपा उम्मीदवार इमरती देवी, जो कि सिंधिया की वफादार उम्मीदवार भी हैं, डबरा से कांग्रेस के सुरेश राजे से 2,267 वोटों से हार गईं।
सतना से भाजपा के मौजूदा सांसद गणेश सिंह कांग्रेस के डब्बू सिद्धार्थ सुखलाल कुशवाहा से 4,041 वोटों से हार गये।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल, भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, कांग्रेस के कमलनाथ और पूर्व मंत्री रामनिवास रावत उन प्रमुख चेहरों में से हैं जो राज्य चुनाव में विजयी हुए हैं।
एक चुनाव अधिकारी ने बताया कि चौहान ने टीवी अभिनेता से कांग्रेस नेता बने विक्रम मस्तल शर्मा को हराकर 1,04,974 वोटों के अंतर से अपनी बुधनी सीट बरकरार रखी।
चौहान छठी बार बुधनी सीट से जीते। उन्होंने अपना पहला चुनाव 1990 में बुधनी से जीता था और अगले वर्ष विदिशा निर्वाचन क्षेत्र से पहली बार संसद सदस्य के रूप में चुने गए थे।
भाजपा शासित राज्य में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले और मामा और पांव-पांव वाले भैया के नाम से मशहूर चौहान को इस बार पार्टी के मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में पेश नहीं किया गया। हालांकि, माना जा रहा है कि उन्होंने मौजूदा सत्ता विरोधी लहर को मात देने के लिए 'लाडली बहना' जैसी ‘गेम-चेंजर योजनाएं’ शुरू करके स्थिति को सत्तारूढ़ दल के पक्ष में मोड़ दिया।
मुख्यमंत्री पद के संभावित दावेदार केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने मुरैना जिले की दिमनी विधानसभा सीट से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के बलवीर सिंह दंडोतिया को 24,461 वोटों से हराकर जीत हासिल की।
शीर्ष पद के लिए एक अन्य प्रमुख विजेता और दावेदार केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल हैं, जिन्होंने कांग्रेस के लाखन सिंह पटेल को हराकर नरसिंहपुर विधानसभा सीट से 31,310 वोटों के अंतर से जीत हासिल की।
मुख्यमंत्री पद के एक अन्य संभावित उम्मीदवार, भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को इंदौर-1 सीट से मैदान में उतारा गया, जो उनके लिए कठिन मानी जा रही थी।
लेकिन इंदौर जिले की विभिन्न सीटों से चुनाव जीतने के अपने ट्रैक रिकॉर्ड को कायम रखते हुए, विजयवर्गीय ने कांग्रेस के उम्मीदवार और मौजूदा विधायक संजय शुक्ला को हराकर इंदौर -1 सीट 57,939 वोटों से हासिल की।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ ने अपने गृह क्षेत्र छिंदवाड़ा से भाजपा के विवेक बंटी साहू को 36,594 वोटों से हराकर जीत हासिल की, लेकिन पार्टी की हार और उसके खराब प्रदर्शन ने उनकी जीत की सारी चमक फीकी कर दी।
बता दें कि चौहान 29 नवंबर 2005 को पहली बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। उनके नेतृत्व में वर्ष 2008 एवं वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को भारी बहुमत से जीत मिली थी। भाजपा ने उन्हें नवंबर 2018 के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी का मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया था, लेकिन इस चुनाव में वह अपनी पार्टी को बहुमत नहीं दिला सके और सत्ता उनके हाथ से खिसक कर कांग्रेस नेता कमलनाथ के हाथ में चली गई।
हालात बदले और ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में आने तथा कांग्रेस के 22 विधायकों के बागी होने के कारण कमलनाथ की सरकार अल्पमत में आ गई, जिसके कारण कमलनाथ ने शक्ति परीक्षण से ठीक पहले 20 मार्च को मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। कांग्रेस के इन 22 बागी विधायकों का इस्तीफा मंजूर होने के बाद ये सभी भाजपा में शामिल हो गये थे।
इसके बाद कांग्रेस के पास मात्र 92 विधायक रह गये और भाजपा 107 विधायकों के साथ बहुमत में आ गई। भाजपा विधायक दल ने चौहान को अपने दल का नेता चुना और वह 23 मार्च 2020 को चौथी बार मुख्यमंत्री बने।
चौहान ने देश की राजनीति की बजाय मध्य प्रदेश की राजनीति में अपने को केंद्रित रखा। वह इस बार छठी बार सीहोर जिले की बुधनी विधानसभा सीट से जीते हैं। इसके अलावा, वह विदिशा लोकसभा सीट से वर्ष 1991 से वर्ष 2006 तक पांच बार लगातार सांसद भी रहे।
(न्यूज़ एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)
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