महाराष्ट्र-हरियाणा विधानसभा चुनाव: कम वोटिंग के मायने और एग्जिट पोल की माया
नई दिल्ली: महाराष्ट्र और हरियाणा में विधानसभा चुनाव के दौरान मतदाताओं को लुभाने के लिये बांटे जाने वाली नकदी, शराब और अन्य वस्तुओं की जब्ती का स्तर तीन से पांच गुना तक बढ़ गया है।
निर्वाचन आयोग में महानिदेशक दिलीप शर्मा ने हरियाणा और महाराष्ट्र में सोमवार को मतदान संपन्न होने के बाद बताया कि हरियाणा में कुल 24.17 करोड़ रुपये कीमत की अवैध सामग्री जब्त की गयी है। इसी तरह महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में इस बार कुल 156.94 करोड़ रुपये की कीमत की नकदी, शराब और आभूषण आदि बरामद किये गये।
इस सबको ध्यान में रखते हुए आइए मंगलवार को मतगणना के आंकड़ों पर चर्चा करते हैं।
महाराष्ट्र में पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में लोग मतदान करने कम पहुंचे। सोमवार को महाराष्ट्र में 60.5 फीसदी लोगों ने वोट डाले जबकि पिछले विधानसभा चुनाव में यहां वोटिंग प्रतिशत 63.08 था। इसी तरह हरियाणा में 65.57 फीसदी वोट पड़े जबकि 2014 के विधानसभा चुनाव में यहां 76.13 फीसदी वोटिंग हुई थी।
इन दो आंकड़ों से साफ जाहिर होता है कि राजनीतिक दलों, निर्वाचन आयोग, सेलेब्रिटी लोगों के तमाम तरह के आह्वान और प्रत्याशियों द्वारा गैरकानूनी तरीके इस्तेमाल करने के बावजूद लोगों का उत्साह बहुत कम रहा। यही नहीं इन राज्यों में मतदाता लोकसभा चुनाव की तुलना में भी कम बाहर निकले। इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में हरियाणा में 70.34 प्रतिशत और महाराष्ट्र में 61.02 प्रतिशत मतदान हुआ।
कम वोटिंग का फायदा!
आम तौर पर ऐसा माना जाता है कि कम वोटिंग का फायदा सत्तारूढ़ दल को होता है। जानकार कहते हैं कि जनता को जब सरकार बदलनी होती है तो वह ज्यादा संख्या में मतदान करने जाती है। हालांकि हमेशा ऐसा नहीं होता रहा है लेकिन ज्यादातर वक्त ऐसा हुआ है।
जैसे हरियाणा में पिछले विधानसभा चुनाव में चार प्रतिशत ज़्यादा टर्नआउट रहा तो हरियाणा में सरकार बदल गई। यहां कांग्रेस को हराकर बीजेपी सत्ता पर काबिज हो गई थी। हरियाणा में 2009 के विधानसभा चुनाव में वोटिंग प्रतिशत 72.3 था और 2014 में करीब चार प्रतिशत बढ़ गया।
इससे पहले 2005 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में 71.9 फीसदी लोगों ने वोट किया था और सरकार बदल गई थी। कांग्रेस ने इंडियन नेशनल लोकदल को सत्ता से बाहर कर दिया था। इससे पहले के 2000 के विधानसभा चुनाव में 69 प्रतिशत मतदान हुआ है।
वैसे 2000 के बाद यह पहली बार है जब हरियाणा में इतना कम मतदान हुआ है। यानी सत्ताधारी बीजेपी को लेकर जनता के मन में उत्साह नहीं है तो दूसरी ओर कांग्रेस, इनेलो और जेजेपी समेत दूसरी विपक्षी दल भी जनता को लुभाने में फेल हो गए हैं।
इसी तरह महाराष्ट्र में 2014 में चार प्रतिशत वोट इजाफे से सत्ता में बदलाव हुआ था। 2009 में यहां 59.6 प्रतिशत मतदान हुआ था। हालांकि इसके पहले लगभग 10 साल तक वोट प्रतिशत में बदलाव के बावजूद सत्ता विपक्षी दलों के पास नहीं आई। मतलब हरियाणा जैसा साफ पैटर्न यहां नहीं दिखता है। लेकिन जानकारों का कहना है कि सत्ताधारी दल को इसका फायदा मिलता रहा है।
कैसा रहा मुकाबला?
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला भाजपा की अगुवाई वाले महागठबंधन अथवा ‘महायुति’ एवं कांग्रेस राकांपा गठबंधन ‘महाअघाड़ी’ (मोर्चा) के बीच था। हालांकि कुछ अन्य छोटे दल भी मैदान में थे। जैसे राज ठाकरे की अगुवाई वाली महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने 101 प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे और चुनाव में 1,400 निर्दलीय उम्मीदवार भी ताल ठोक रहे थे।
जहां बीजेपी ने तीन तलाक, सर्जिकल स्ट्राइक और अनुच्छेद 370 जैसे राष्ट्रीय मुद्दों पर चुनाव लड़ा तो दूसरी ओर कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष टुकड़ों में बंटा रहा। कांग्रेस और एनसीपी जैसी पार्टियां पारिवारिक कलह और आंतरिक टूट का सामना करती नजर आईं।
स्थानीय मुद्दे इस चुनाव में गंभीरता से विपक्ष द्वारा नहीं उठाए गए। सिर्फ शरद पवार को छोड़कर विपक्ष का कोई भी नेता बीजेपी को गंभीर चुनौती देता नजर नहीं आया। स्थानीय मुद्दों की कमी का प्रभाव वोटिंग पर नजर आया। शायद जनता इसी कारण मतदान करने कम बाहर निकली। फिलहाल 2014 के विधानसभा चुनावों में, भाजपा ने 122 सीटें, शिवसेना ने 63, कांग्रेस ने 42 और राकांपा ने 41 सीटें जीतीं थी।
वहीं, हरियाणा में कांग्रेस, बीजेपी, जेजेपी, इनेलो समेत दूसरे राजनीतिक दलों से 105 महिलाओं सहित 1,169 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे थे। खट्टर के नेतृत्व में भाजपा ने 75 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है, जबकि कांग्रेस राज्य में वापसी करने की उम्मीद कर रही है। वर्तमान में राज्य विधानसभा में भाजपा के 48 सदस्य हैं।
यहां भी महाराष्ट्र की तरह बीजेपी ने स्थानीय मुद्दों पर राष्ट्रीय मुद्दों को तरजीह दी। अनुच्छेद 370 और तीन तलाक जैसे मुद्दों बीजेपी कार्यकर्ताओं द्वारा खूब चर्चा में लाए गए। वहीं, प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस आखिरी समय तक नेतृत्व के संकट से जूझता रहा।
चुनाव से लगभग महीने भर पहले कुमारी शैलजा और भूपेंद्र सिंह हुड्डा को पार्टी की कमान सौंपी गई। उसके बाद भी पार्टी का आंतरिक कलह दूर नहीं हो पाई। इसी तरह इनेलो भी पारिवारिक कलह की चपेट में रहा। चौटाला परिवार के युवा नेता दुष्यंत चौटाला ने जेजेपी नाम से अलग पार्टी बनाकर अपना चुनावी सफर तय किया। विपक्ष के इस बिखराव का फायदा बीजेपी को मिलता दिखा। चुनाव मैदान में वह बेहतर तैयारी और प्रबंधन के साथ दिखे। वहीं विपक्ष दिशाहीन नजर आया।
एग्जिट पोल
फिलहाल इन दोनों राज्यों में असल नतीजे तो 24 अक्टूबर को आएंगे लेकिन उससे पहले विभिन्न चैनलों के एग्जिट पोल में दोनों राज्यों में बीजेपी की वापसी की भविष्यवाणी की गई है।
लोकसभा चुनाव के बाद पहली परीक्षा कहे जा रहे इन चुनावों में एनडीए गठबंधन अच्छे नंबरों से पास होता दिख रहा है। वहीं, कांग्रेस के लिए को दोनों राज्यों में नुकसान का अनुमान जताया गया है। सभी एग्जिट पोल में महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन की सरकार का अनुमान जताया गया है जबकि हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर की सरकार 2014 के मुकाबले ज्यादा बड़े बहुमत से सरकार बनाते दिख रहे हैं।
फिलहाल एग्जिट पोल आने वाले चुनावी नतीजों का एक अनुमान होता है और बताता है कि मतदाताओं का रुझान किस पार्टी या गठबंधन की ओर जा सकता है। न्यूज़ चैनल तमाम सर्वे एजेसियों के साथ मिलकर ये कराते हैं।
हालांकि ये बहुत बार गलत साबित भी हुए हैं लेकिन फिर भी चुनाव के बाद एक रस्म के तौर पर इनकी परंपरा जारी है।
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