टेंट सिटी पर एनजीटी सख़्त: अधिकारियों को फटकार, 30 नवंबर तक निर्माण पर रोक
उत्तर प्रदेश के बनारस में गंगा पार टेंट सिटी बसाकर बीजेपी सरकार सवालों के घेरे में आ गई है। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा है कि गंगा की तलहटी में टेंट सिटी कतई नहीं बसाई जा सकती है। वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) को इस मामले में अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर टेंट सिटी बसाने की अनुमति देने के लिए एनजीटी से फटकार मिली। टेंट सिटी के संचालकों ने इस परियोजना को लागू करने से पहले गंगा संरक्षण मिशन-नमामि गंगे से अनुमति लेने की ज़रूरत तक नहीं समझी। एनजीटी, आगामी 30 नवंबर 2023 को इस मामले में फिर सुनवाई करेगी। इस बीच बनारस की गंगा में दोबारा टेंट सिटी बसाने का कोई काम शुरू नहीं किया जा सकेगा।
बनारस के एक गंगा प्रेमी तुषार गोस्वामी ने मार्च 2023 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) में एक याचिका दायर करते हुए कहा था कि "गंगा नदी की तलहटी में किसी भी दशा में टेंट सिटी नहीं बसाई जा सकती है। टेंट सिटी को उस जगह बसा दिया गया जहां पहले कछुआ सेंक्चुअरी हुआ करती थी। तंबुओं के शहर को बसाते समय गंगा और पर्यावरण संरक्षण कानून के मानकों का तनिक भी ध्यान नहीं रखा गया। टेंट सिटी को भोग-विलास के लिए गंगा नदी के किनारे बसाया गया है। इसकी गंदगी सीधे तौर पर गंगा में जाती है जिससे जलीय जीव मर रहे हैं। जल जीव खत्म हो जाएंगे तो गंगा में स्नान लायक पानी नहीं बचेगा।"
ज़िम्मेदार अफसरों को लगी फटकार
याची के अधिवक्ता सौरभ तिवारी 30 अक्टूबर, 2023 को एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) की प्रधान पीठ के समक्ष पेश हुए। इस मामले की सुनवाई खुद एनजीटी चेयरपर्सन न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव, न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य ए. सेंथिल वेल की तीन सदस्यीय पीठ कर रहे हैं। सुनवाई के दौरान राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण की पीठ ने वाराणसी विकास प्राधिकरण और उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण इकाई के आला अफसरों को आड़े हाथ लिया और कड़ी फटकार भी लगाई। एनजीटी ने वाराणसी विकास प्राधिकरण के अधिवक्ता के.एम. नटराजन से पूछा कि गंगा किनारे टेंट सिटी बसाने का अधिकार उसे किस नियम के तहत मिला? इस सवाल पर वीडीए के अधिवक्ता निरुत्तर हो गए। एनजीटी ने कहा कि यह कैसे हो सकता है कि टेंट सिटी प्राइवेट कंपनियां बनाएं और अनुमति के लिए आवेदन राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) के बजाय वाराणसी विकास प्राधिकरण को अर्जी दें। अधिकार क्षेत्र में नहीं होने के बावजूद आखिर वीडीए ने नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट कैसे जारी कर दिया? एनजीटी में सुनवाई के दौरान टेंट सिटी के संचालकों से नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (NMCG) का ‘नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट’ मांगा गया तो वो बगलें झांकने लगे। उनसे, टेंट सिटी की वजह से जलीय जीवों को होने वाले नुकसान से बचाने की भी तरकीब पूछी गई। बाद में एनजीटी कोर्ट ने आगामी 30 नवंबर, 2023 तक टेंट सिटी के निर्माण पर रोक लगा दी।
सुनवाई के दौरान एनजीटी के न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने कहा, "बनारस में गंगा का जलस्तर कुछ कम हुआ तो वहां टेंट सिटी बसा दी गई। वीडीए ने इस मामले में विलेन की भूमिका निभाई और अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर टेंट सिटी बसाने की अनुमति दी। पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए वीडीए पर जुर्माना लगाया जाना चाहिए।" इस पर वीडीए के अधिवक्ता के.एम. नटराजन ने सफाई देते हुए कहा कि इस मामले में उनकी कोई गलती नहीं है। तब न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने मौखिक टिप्पणी करते हुए पूछा, "उत्तर प्रदेश शहरी योजना एवं विकास अधिनियम, 1973 की किस धारा के तहत वाराणसी विकास प्राधिकरण को यह अधिकार मिल गया कि वह गंगा के तल एवं आसपास टेंट सिटी बना दे? यह वीडीए के क्षेत्राधिकार में है ही नहीं। गंगा की तलहटी में टेंट सिटी अथवा फिर कोई स्थायी या अस्थायी निर्माण कराने का अधिकार किसी को नहीं है। इसके लिए किसी को अनुमति नहीं दी जा सकती है।"
कोर्ट ने कहा की क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी ने अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वहन सही ढंग से नहीं किया है। मामले में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की भूमिका सवालों के घेरे में है। क्षेत्रीय अधिकारी के ख़िलाफ़ भी कार्रवाई की जाए।
"नियम विरुद्ध बसाई टेंट सिटी"
एनजीटी कोर्ट में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से उपस्थित उत्तर प्रदेश पर्यावरण विभाग के अपर मुख्य सचिव मनोज सिंह ने माना कि बनारस में गंगा पार टेंट सिटी को नियम विरुद्ध ढंग से बसाया गया था। उन्होंने कहा, "पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने पर टेंट सिटी बसाने वाली कंपनियों पर प्रतिदिन के हिसाब से 12,500 रूपये (बारह हज़ार पांच सौ) का जुर्माना लगाया गया है। जुर्माना भरने के लिए उन्हें नोटिस जारी कर दिया गया है।" इस पर न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल नें कहा, "गंगा की तलहटी में टेंट सिटी बसाई गई थी। यह एक बड़ा क्षेत्र है। जुर्माना और पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति राशि और बढ़ाई जानी चाहिए। टेंट सिटी बसाने में वाराणसी विकास प्राधिकरण का रोल ठीक नहीं था। उस पर भी जुर्माना लागाया जाना चाहिए।" मनोज सिंह ने एनजीटी कोर्ट में कहा कि वे इस मामले में विचार करेंगे।
एनजीटी ने राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) को गंगा के बाढ़ क्षेत्र एवं नदी तल का सीमांकन करके स्पष्ट रिपोर्ट जमा करने का निर्देश दिया। सुनवाई के दौरान जब उत्तर प्रदेश सरकार और टेंट सिटी बनाने वाली कंपनियों की ओर से कहा गया कि कछुआ अभयारण्य डिनोटिफाइड कर दिया गया है। इस पर न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने नाराज़गी जताई और तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा, "आपके द्वारा कछुआ अभयारण्य को डिनोटिफाइड करने से कछुआ वहां से चले गए या आप लेकर चले गए? जलचर कैसे चले जाएंगे?" एनजीटी ने राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) को निर्देश दिया है की गंगा नदी बाढ़ क्षेत्र एवं नदी तल का सीमांकन करके स्पष्ट रिपोर्ट जमा करें।
एनजीटी कोर्ट ने वाराणसी के क्षेत्रीय प्रदूषण अधिकारी को कड़ी फटकार लगाई है। साथ ही अपर मुख्य सचिव से उनके ऊपर कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। बनारस में टेंट सिटी बसाने के लिए वाराणसी विकास प्राधिकरण के तत्कालीन उपाध्यक्ष अभिषेक गोयल ने नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट जारी किया था। इस मामले की एनजीटी में सुनवाई से कुछ रोज पहले ही शासन ने गोयल का बनारस से तबादला कर दिया था।
विशेषज्ञों ने पकड़ी थी गड़बड़ी
एनजीटी कोर्ट के निर्देश पर टेंट सिटी मामले की जांच के लिए सात सदस्यीय कमेटी गठित की गई थी, जिसमें बनारस के जिलाधिकारी एस. राजलिंगम और सिटी मजिस्ट्रेट गुलाबचंद के अलावा सिंचाई विभाग के मुख्य अभियंता दिनेश कुमार पोडवाल, भारत सरकार के वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की तरफ से अपर निदेशक डॉ. एके गुप्ता, राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन से सीनियर वेस्ट मैनेजमेंट स्पेशलिस्ट रजत कुमार गुप्ता, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वैज्ञानिक डॉ. एसी शुक्ला और मुख्य वन्य जीव संरक्षक को शामिल किया गया था। शुरू में कमेटी के सदस्य जांच-पड़ताल करने में हीला-हवाली करते रहे। एनजीटी के सख्त होने पर उन्होंने बनारस में गंगा रेत पर बने टेंट सिटी का ग्राउंड ज़ीरो लेवल पर निरीक्षण किया।
कमेटी के सदस्यों ने 03 मई, 2023 को गंगा नदी और पर्यावरण को होने वाले नुकसान का आकलन किया। इस दौरान जांच टीम ने गंगा के किनारे रेत पर बनी टेंट सिटी से कार्बन फुटप्रिंट, प्रदूषण, गंगा जल जीवों और गंगा इको सिस्टम पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों का बेहद गहराई से आकलन किया। एनजीटी की जांच टीम ने टेंट सिटी के सामने गंगा के किनारे जमी काई की तस्वीरें उतारी और गंगा जल के कई सैंपल भी जुटाए। इस दौरान टेंट सिटी का संचालन करने वाली अहमदाबाद की कंपनी 'प्रवेग' और कटेसर रामनगर की 'निरान' के अफसरों से पूछताछ की गई थी। जांच कमेटी के सामने पेश हुए टेंट सिटी के संचालकों से 20 बिंदुओं पर जवाब मांगा गया। टेंट सिटी के संचालकों ने जांच टीम को बताया था कि वाराणसी में गंगा की रेत पर बनी लग्जरियस टेंट सिटी डेढ़ महीने बाद हटा ली जाएगी, क्योंकि, गंगा का जलस्तर बढ़ जाएगा। बारिश खत्म होते ही दोबारा से टेंट सिटी बसा दी जाएगी। यह करार पांच साल तक के लिए है। एनजीटी की ओर से नियुक्त विशेषज्ञों की कमेटी ने मौके का मुआयना करने के बाद अपनी रिपोर्ट कोर्ट में पेश की थी, जिसके आधार पर इस मामले में सुनवाई हो रही है।
बनारस में पर्यावरण संरक्षण के लिए मुहिम चला रहे अधिवक्ता सौरभ तिवारी के मुताबिक, "वाराणसी में गंगा किनारे दो निजी कंपनियों निरान और प्रवेग ने टेंट सिटी को स्थापित किया और हर कॉटेज से 10 हज़ार से लेकर 30 हज़ार रुपये तक वसूले गए। कायदे-कानून को ताक पर रखकर टेंट सिटी के आयोजकों ने रोज़ाना शादियां कराई। टेंट सिटी की समूची गंदगी सीधे गंगा में जा रही है। इससे पवित्र नदी गंगा की अस्मिता ख़तरे में है। टेंट सिटी जैसी परियोजनाएं भूजल पुनर्भरण, नदी की जैव विविधता और वन्यजीव संरक्षण जैसे महत्वपूर्ण पारिस्थितिक कार्यों को ख़राब करती हैं। गंगा और यमुना जैसी नदियों की प्राचीनता और पवित्रता को सबसे पहले उनकी रक्षा और सुरक्षा करके ही संरक्षित किया जा सकता है, न कि उनके अस्तित्व के साथ छेड़छाड़ करके।"
न्यूज़क्लिक से बातचीत में सौरभ कहते हैं, "टेंट सिटी से गंगा में प्रदूषण बढ़ा है। घाटों की स्थिति ख़राब हो रही है। वन विभाग ने साल 1987 में बनारस में रामनगर से लेकर राजघाट तक कछुआ अभयारण्य बनाया था। तब से यहां मांसाहारी कछुओं को छोड़ा जा रहा था। गंगा में बढ़ती इंसानी गतिविधियों और बड़े पैमाने पर क्रूजों की आवाजाही बढ़ने के बाद कछुआ अभयारण्य को दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया गया। तंबुओं का शहर बसाने में नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा से अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं समझी गई।"
गौरतलब है कि वाराणसी में टेंट सिटी परियोजना का उद्घाटन जनवरी 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था। गंगा पार रेत पर बनी टेंट सिटी में पांच सितारा होटलों जैसी सुविधाएं देने का दावा किया जा रहा था। गंगा नदी के किनारे अस्सी घाट के सामने 100 हेक्टेयर में टेंट सिटी बसाई गई थी। शासन से अनुबंध के मुताबिक टेंट सिटी लगातार पांच साल तक बसाई जानी थी। एनजीटी के कड़े रुख के चलते टेंट सिटी के संचालकों के साथ ही नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट जारी करने वाले वीडीए के अफसरों के अलावा क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। माना जा रहा है कि एनजीटी बनारस में टेंट सिटी के संचालन पर हमेशा के लिए ब्रेक लगा सकता है।
(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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