नवउदारवाद चिली में पैदा हुआ था, चिली में ही नवउदारवाद का अंत होगा!
डैनियल हादुइ रिकोलेटा के मेयर हैं; रिकोलेटा एक कम्यून है, जो कि चिली के विस्तारित शहर सैंटियागो का हिस्सा है। उनका ऑफ़िस नगरपालिका भवन की छठी मंजिल पर है, जिसके निचले तल्लों पर आपको एक फ़ार्मेसी, एक चश्माघर और नगर पालिका द्वारा संचालित एक किताब की दुकान मिलेगी; ये दुकानें कम दाम पर सामान बेचती हैं। उनके ऑफ़िस की दीवारों पर फ़िलिस्तीनी लोगों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के प्रतीक टंगे हैं। इनमें झंडे और फ़िलिस्तीनी कार्टूनिस्ट नाजी अल-अली द्वारा बनाया गया हंडाला शामिल हैं। 1987 में, नाजी अल-अली की हत्या कर दी गई थी। हादुइ ने गर्व से मुझसे कहा, 'मैं फ़िलिस्तीनी हूँ । मेरा जन्म 28 जून 1967 को हुआ था, इज़रायलियों द्वारा यरुशलम पर क़ब्ज़ा किए जाने के कुछ ही दिनों बाद'। फिलिस्तीनियों का संघर्ष, जिसने हादुइ के राजनीतिक जीवन को बहुत प्रभावित किया है, वे उसके बारे में कहते हैं, 'चिली के लोगों के संघर्ष से बहुत अलग नहीं है। दोनों एक ही चीज़ के लिए लड़ रहे हैं: न्याय के लिए।’
नाजी अल-अली, हंडाला, बिना तारीख़।
पिछले साल, हादुइ ने कहा कि वे नवंबर 2021 में होने वाले चिली के राष्ट्रपति चुनावों में विपक्ष के उम्मीदवार होंगे। अभी तक के अनुमानों के अनुसार वो कड़ी टक्कर देने वाले हैं, और जीत भी सकते हैं। राष्ट्रपति सेबेस्टियन पिन्येरा की दक्षिणपंथी सरकार के ख़िलाफ़ लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। इन प्रदर्शनों -और नया संविधान बनाने के हक़ में उठ रही आवाज़ों- से लगता है कि 1970 में पॉप्युलर यूनिटी फ़्रंट के सल्वाडोर एल्लेंडे के राष्ट्रपति पद पर जीतने के बाद अब पहली बार वामपंथ फिर से राष्ट्रपति पद पर जीत सकता है।
उनसे मिलने के कुछ ही मिनटों में मुझे समझ में आ गया कि हादुइ को इतना समर्थन कैसे मिल रहा है: वो मिलनसार और सभ्य हैं व अपने काम की स्पष्ट समझ रखते हैं और जनता तथा उसकी ज़रूरतों के प्रति गहरी प्रतिबद्धता वाले इंसान हैं। चुनाव में उतरने के साथ हादुइ को क्या ख़तरे मोल लेने पड़ेंगे, हादुइ उनसे डर नहीं रहे। अभी से ही, बिना किसी सबूत के, साइमन वीसेन्थाल सेंटर ने दुनिया के दस सबसे ख़तरनाक सामीवाद-विरोधियों में हादुइ का नाम जोड़ दिया है।
हादुइ 1993 से चिली की कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य हैं। हादुइ का मिशन है नवउदारवाद के साथ चिली के लंबे प्रयोग की दिशा को उलटना। यह अक्सर कहा जाता है कि नवउदारवाद -जनता के लिए मितव्ययिता, और अरबपतियों के लिए धन- की नीतियाँ सबसे पहले चिली में लागू की गईं थीं। इसीलिए 'नवउदारवाद चिली में पैदा हुआ था; चिली में ही नवउदारवाद का अंत होगा' का नारा लोकप्रिय है।
रेनाटो गुट्टूसो (इटली), मुहल्ला मीटिंग, 1975।
एक वास्तुकार के रूप में प्रशिक्षित, हादुइ को दीर्घकालिक योजना की पूरी समझ है। 2001 में, उन्होंने मुझे बताया, रिकोलेटा के कम्युनिस्टों ने 2012 तक महापौर कार्यालय जीतने के लिए एक रणनीतिक योजना बनाई। उस समय, दक्षिणपंथी समूह की कम्यून पर पकड़ थी; वे पचास प्रतिशत से अधिक वोट जीतते थे। कम्युनिस्टों की योजना अप्राकृतिक लग रही थी। 2004 और 2008 में हुए महापौर पद के चुनावों में हादुइ असफल रहे, लेकिन मज़दूर वर्ग, बहिष्कृत क्षेत्रों के मज़दूरों और छोटे व्यापारियों के बीच अपनी मज़बूत पकड़ बनाकर वे आख़िरकार 2012 में चुनाव जीत गए। अब, दक्षिणपंथी दल को कम वोट मिलते हैं, जबकि वामपंथी दल रिकोलेटा में आधे से अधिक वोटों से जीतता है।
1973 के तख़्तापलट के बाद 1990 तक जनरल ऑगस्टो पिनोशे का शासन रहा। इस दौरान चिली की आर्थिक नीति में शिकागो बॉएज़, चिली के अर्थशास्त्रियों का एक समूह जिनकी नवउदारवादी नीतियाँ विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हितों के प्रति प्रतिबद्ध थीं, की नीतियाँ हावी रहीं। नवउदारवाद के अहम काम हैं सामाजिक और आर्थिक जीवन का निजीकरण करना, अमीरों और कॉर्परेशनों पर लगाए जाने वाले करों को कम करना और सामाजिक कल्याण योजनाओं और सार्वजनिक क्षेत्र को बर्बाद करना।
हादुइ के नेतृत्व में कम्युनिस्टों द्वारा रिकोलेटा पर जीत हासिल करने के बाद से यह कम्यून नवउदारवाद की नीतियों की दिशा उलटने की प्रयोगशाला बन गया है। ये प्रयोग समाजवाद नहीं ले आएँगे, जो कि मेयर की क़ानूनी और राजनीतिक सीमाओं में मुमकिन भी नहीं है; बल्कि, इन प्रयोगों का उद्देश्य है सार्वजनिक क्षेत्र का पुनर्निर्माण। स्थानीय सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन ला चिम्बा के अध्यक्ष के रूप में 2003 से ही हादुइ सरकारी संसाधनों को सार्वजनिक शिक्षा और स्थानीय निकायों में लगाने का एजेंडा उठा रहे हैं। अब बतौर महापौर, हादुइ ने मुनाफ़े के उद्देश्य से मुक्त एक नगरपालिका फ़ार्मेसी, एक चश्मों की दुकान, एक किताब की दुकान और एक रिकॉर्ड स्टोर, एक ओपन यूनिवर्सिटी और एक रियल एस्टेट परियोजना शुरू की है। 'मैंने जीवन भर इस योजना का सपना देखा है’।
वरवर स्टेपानोवा (यूएसएसआर), पुराना समझो, लेकिन नया गढ़ो, 1919।
हादुइ जानते हैं कि रिकोलेटा परियोजना में कोई नयी बात नहीं है। पहले, ग़रीब लोग नगरपालिका कार्यालय में आते थे, वहाँ उनके नाम से कैश ट्रांस्फ़र होता था, उदाहरण के लिए, जिससे वे निजी कम्पनियों की महँगी दवाएँ ख़रीदते थे। हादुइ कहते हैं, अब सार्वजनिक धन से निजी क्षेत्र को सब्सिडी देने के बजाए, नगरपालिका ख़ुद एक फ़ार्मेसी चलाती है, जो कि उचित दामों पर दवाएँ बेचती हैं। ऐसा करने से नगरपालिका कम क़ीमत पर दवाएँ बना रही है, जिससे उनके पास धन की बड़ी बचत होती है।
यदि यह तर्कसंगत नीति न केवल ग़रीबों की देखभाल करती है बल्कि नगरपालिका के कोष की बचत भी करती है, तो मैंने उनसे पूछा कि, अन्य नगर पालिकाएँ रिकोलेटा मॉडल क्यों नहीं अपनातीं? हादुइ कहते हैं, ‘क्योंकि उनकी जनता की भलाई में कोई दिलचस्पी नहीं है'। हादुइ ने कहा, 'पूँजीवाद ग़रीब बनाता है’, और फिर ग़रीब अपनी सापेक्ष शक्तिहीनता के कारण सरकार से आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं की माँग करते हैं। 'ग़रीब लोग अमीरों से ज़्यादा ईमानदार होते हैं। यदि ग़रीब उचित मूल्य पर सामान और सेवाएँ ख़रीद पाते हैं, तो वे पैसे नहीं माँगते हैं’।
चार्ल्स व्हाइट (यूएसए), जनरल मोज़ेज़ (हैरिएट टबमैन), 1965।
1910 में, अपनी महत्वपूर्ण 'शिकागो कविताओं' को प्रकाशित करने के छह साल पहले, कार्ल सैंडबर्ग ने अमेरिका की सोशलिस्ट पार्टी के लिए "फ़ॉर यू एंड योर जॉ" नाम से एक छोटा पैमफ़्लेट लिखा था। ये पैमफ़्लेट बिल नाम के एक व्यक्ति को संबोधित करते हुए एक ख़त के रूप में लिखा गया था। बिल के एक दोस्त की नौकरी कैसे चली गई के बारे में एक लम्बे पैरे से इस ख़त की शुरुआत होती है। सैंडबर्ग लिखते हैं, यह कहना आसान है कि यह उस बेरोज़गार व्यक्ति का ही दोष है कि अब उसके पास नौकरी नहीं रही: वह आलसी है, वह अक्षम है, उसकी असफलताएँ उसी की हैं। सैंडबर्ग लिखते हैं, लेकिन ये 'असफलताएँ’ उस व्यक्ति की नहीं बल्कि उस वर्ग का परिणाम हैं जिसमें वह व्यक्ति पैदा हुआ था।
सैंडबर्ग बिलकुल सादे अंदाज़ में लिखते हैं, 'तुम जो स्वयं करते हो वो वैयक्तिक होता है', जिससे हादुइ भी परिचित होंगे। 'जो तुम दूसरों के साथ या उसके लिए करते हो वो सामाजिक होता है। अंतर समझो, बिल? ख़ैर, इसे अपनी टोपी से चिपका लो और अपनी याददाश्त से बाँध लो। पर इसे खोना नहीं। अगर मैं तुम्हें सामाजिक और वैयक्तिक के बीच के इस अंतर को याद रखने लायक़ बना सकूँ, तो मैं तुम्हें एक समाजवादी में बदल दूँगा'। नवउदारवादी नीति समाज को शिष्टता से अनुभव करना मुश्किल बना देती है। अगर लोग आसानी से नौकरी ना पा सकें, अगर नौकरियाँ तनाव पैदा करें, अगर नौकरी पर पहुँचने में अधिक-से-अधिक समय लगने लगे, अगर चिकित्सा-देखभाल प्राप्त करना महँगा होता जाए, अगर व्यय और कर बढ़ते जाएँ जबकि पेंशन-भत्ते गिरने लगें, और अगर ज़िंदगी जीना दिन-ब-दिन मुश्किल होता जाए तो समाज में निराशा छा जाएगी और लोगों की मनोदशा आमतौर पर दुःख, ग़ुस्से और कलह से ही परिभाषित होगी।
ओटो ग्रिबेल (जर्मनी), द इंटरनेशनेल, 1929/30।
शिष्टता सिर्फ़ दृष्टिकोण का विषय नहीं है। शिष्टता संसाधनों का विषय भी है। यदि विश्व के प्रचुर संसाधनों का इस्तेमाल हम एक दूसरे के लिए अच्छी आजीविका सुनिश्चित करने, चिकित्सा व देखभाल सुनिश्चित करने और लोगों की समस्याओं को सामूहिक रूप से हल करने में लगाएँ तो सबके पास दोस्तों के साथ और अपने समुदायों में समय बिताने व नये लोगों को जानने की फ़ुर्सत होगी; ज़ाहिर है लोग तनावग्रस्त और क्रोधित भी कम होंगे।
इसी तरह ‘आशा’ या ‘उम्मीद’ व्यक्तिगत भावनाएँ नहीं हैं; ये भावनाएँ समुदाय-निर्माण और अपने समाजिक मूल्यों के लिए मिलजुलकर काम करने वाले लोगों में ही फलती हैं। यही रिकोलेटा परियोजना में देखने को मिलता है, और केरल में लेफ़्ट डेमोक्रैटिक फ़्रंट की सरकार से लेकर क्यूबा की क्रांतिकारी परियोजना जैसी दुनिया भर की अन्य समाजवादी परियोजनाओं में भी दिखाई पड़ती है।
ज़रा सोचिए कि अवैध टैक्स स्वर्गों में छिपे हुए संसाधन, जिन्हें हथियारों या ऋण कटौती जैसी बेतुकी चीज़ों पर ख़र्च किया जाता है, एक सभ्य समाज बनाने के लिए किस-किस काम में लगाए जा सकते हैं: उनसे किंडरगार्टन से लेकर विश्वविद्यालयों तक सभी शिक्षा संस्थानों को वित्त-पोषित किया जा सकता है, उन्हें सार्वजनिक परिवहन बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है जिससे जीवाश्म-ईंधन कारों की संख्या भी कम होगी, उनसे सार्वजनिक आवास, सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल के लिए सार्वजनिक अस्पताल, कला और सामुदायिक केंद्र आदि खोले जा सकते हैं, और तो और, चार घंटे काम के लिए पूरे दिन का वेतन तक दिया जा सकता है जिससे लोगों के पास समाज के पुनर्निर्माण में सहयोग करने के लिए समय भी मिलेगा।
जब कर्ट वोन्नेगुट से पूछा गया कि क्या ड्रेसडेन पर द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सहयोगी राष्ट्रों द्वारा बमबारी की जानी चाहिए थी, तो उन्होंने जवाब दिया कि बमबारी तो ख़ैर हुई ही थी; मुद्दा यह है कि बमबारी के बाद किसी ने क्या किया। नवउदारवादी नीतियाँ जिस प्रकार से अरबपतियों को सामाजिक कार्यों में उनकी ज़िम्मेदारी से हाथ पीछे खींचने में सक्षम कर रही हैं, वह समाज पर किसी बमबारी से कम नहीं है; इसीलिए सवाल यह है कि हम इस नरसंहार के बीच क्या करते हैं।
डैनियल हादुइ -या टीएम थॉमस इसाक (केरल के वित्त मंत्री) और एलिज़ाबेथ गोमेज़ अलकोर्टा (अर्जेंटीना में महिला, लिंग और विविधता मंत्री)- जैसे लोगों से बात करने के बाद यह समझ आता है कि सामाजिक पतन को कैसे रोका और पलटा जा सकता है। वे केवल भविष्य की कल्पना नहीं करते; वे उसका निर्माण करना शुरू कर चुके हैं।
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