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क्या पाकिस्तान बच पाएगा?

पाकिस्तान में लंबे समय से राजनीतिक संकट के साथ-साथ एक गंभीर आर्थिक संकट भी बना हुआ है।
shahbaz sharif imran khan

“Can Pakistan Survive?” (क्या पाकिस्तान बच पाएगा?) यह पाकिस्तान में जन्मे और लंदन में रह रहे वामपंथी बुद्धिजीवी तारिक़ अली की एक किताब (1983) का शीर्षक था। बेशक, तारिक़ अली ने इस सवाल को एक अलग राजनीतिक परिप्रेक्ष्य और ऐतिहासिक संदर्भ में उठाया था। पर आज दक्षिण एशियाई परिदृश्य के राजनीतिक पर्यवेक्षकों के बीच यही सवाल व्यापक रूप से चर्चा में है।

पाकिस्तानी राज्य एक शक्तिशाली परमाणु-सशस्त्र राज्य है, जिसके पास रीढ़ के रूप में पूरी इस्लामी दुनिया में शायद सबसे शक्तिशाली सेना है। पाकिस्तान संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन दोनों का एक समय-परीक्षणित रणनीतिक सहयोगी रहा है। फिर भी, वर्तमान समय में पाकिस्तानी राज्य अस्तित्व के संकट का सामना कर रहा है। वहां, जारी उथल-पुथल के पीछे राजनीतिक और आर्थिक संकटों का एक अनूठा संयोजन है।

एक अजीब किस्म का राजनीतिक संकट

पाकिस्तान का राजनीतिक संकट कोई सामान्य संकट नहीं है। पूर्व प्रधानमंत्री हत्या के प्रयास में  ज़ख़्मी हो जाते हैं, लेकिन बच जाने के बाद वह केवल वर्तमान प्रधानमंत्री पर हत्या की साजिश का आरोप लगाते हैं। गृह मंत्रालय का कहना है कि इमरान खान की जान को खतरा है; पाकिस्तान की शीर्ष अदालत में एक सिटिंग जज ने भी ऐसा ही कहा है- यह सब उन्हें लॉन्ग मार्च निकालने से रोकने की बेताब कोशिश ही लगती है। सत्ता प्रतिष्ठान को डर है कि उनकी रैली बड़े पैमाने पर एक विद्रोह को प्रज्वलित करने वाले फ्लैशप्वाइंट (flashpoint) के रूप में कार्य कर सकती है। लोकप्रिय मनोदशा वास्तव में अत्यधिक विस्फोटक है।

हाइपरइन्फ्लेशन के क़रीब

ऐसा इसलिए है क्योंकि पाकिस्तान में लंबे समय से राजनीतिक संकट के साथ-साथ एक गंभीर आर्थिक संकट भी बना हुआ है। बुनियादी वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि अति-मुद्रास्फीति (hyperinflation) है। ऋणग्रस्त पाकिस्तानी राज्य संप्रभु ऋण संकट (sovereign debt crisis) और भुगतान डिफ़ॉल्ट के करीब है। आईएमएफ जैसी अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं कर्ज दे- देकर थकी हुई हैं।

अंतरराष्ट्रीय बॉन्ड बाजार बेकार के पाकिस्तानी बॉन्ड पर पैसा उधार देने से इनकार कर रहे हैं। वैश्विक बैंक भी न कह रहे हैं। वित्तीय बाजार पाकिस्तान को  दरकिनार कर रहे हैं। उनकी नजर में पाकिस्तान पहले से ही एक असफल देश है। ऐसा इसलिए है क्योंकि फाइनेंसरों को अच्छी तरह पता है कि पहले से ही पाकिस्तान पर अगले साल तक अंतरराष्ट्रीय लेनदारों का करीब 35 अरब डॉलर बकाया है।

पाकिस्तान ने आईएमएफ की ओर रुख किया लेकिन आईएमएफ अपनी समस्त कड़ी शर्तों के साथ केवल 1.2  अरब डॉलर ही दे सका। इसके साथ ही, पाकिस्तान के हाथ में केवल लगभग 7 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा है, जो मौजूदा आवश्यक आयातों को पूरा करने के लिए बमुश्किल पर्याप्त होगी।

पाकिस्तान इस प्रकार एक बड़े भुगतान डिफ़ॉल्ट के कगार पर खड़ा है। इसके उसी तरफ जाने की उम्मीद है जैसे 1990 के दशक में कुछ लैटिन अमेरिकी अर्थव्यवस्थाएं गई थीं। कोई आश्चर्य नहीं कि पाकिस्तान वैश्विक वित्तीय बाजारों में अछूत बन गया है।

पाकिस्तानी रुपये का बार-बार अवमूल्यन भी हुआ। 2022 में, पाकिस्तानी रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले लगभग 25% गिर गया। इसका मतलब यह है कि भले ही निर्यात मात्रा के लिहाज से एक-चौथाई बढ़ गया हो, देश ने विदेशी मुद्रा का पहले जितना ही मूल्य अर्जित किया, जो शायद ही बेहिसाब बढ़ते आयात बिल को पूरा करने हेतु पर्याप्त हो।

पाकिस्तान मुश्किल से कुछ ही उपयोगी सामान पैदा करता है। यहाँ तक कि दैनिक उपभोग के लिए भी जनता श्रीलंका जैसे देशों से आयात पर निर्भर है। आयात फलफूल तो रहा था पर महंगा हो रहा था, जिससे घरेलू महंगाई बढ़ रही थी। इससे भुगतान संतुलन का घाटा भी काफी बढ़ गया। अन्ततः हाथ में विदेशी मुद्रा भंडार छह सप्ताह से अधिक नहीं चलेगा। वर्तमान पाकिस्तान में 1991 के उसी संकट के लक्षण हैं जिसका भारत ने सामना किया था।

1960 के दशक के उत्तरार्ध में भारत के PL-480 (सार्वजनिक ऋण 480) संकट के साथ भी इसकी समानताएं हैं, जब राष्ट्र  शिप-टू-माउथ के अस्तित्व में रहा, एक तीव्र खाद्य संकट से पीड़ित रहा और अमेरिका से खाद्यान्न के PL-480 शिपमेंट पर निर्भर था। अब, इसी तरह के खाद्य संकट से घिरे पाकिस्तान ने इस सप्ताह युद्धग्रस्त रूस से 300,000 टन गेहूं का आयात किया, जिसे पश्चिमी प्रतिबंधों के मद्देनजर छूट पर दिया जा रहा था।

लेकिन जो चीज पाकिस्तान को आर्थिक पतन के कगार पर धकेल रही है, वह है आसमान छूती महंगाई। पाकिस्तान सरकार की एक एजेंसी, पाकिस्तान ब्यूरो ऑफ स्टैटिस्टिक्स के आंकड़ों के अनुसार, 17 नवंबर 2022 तक, पाकिस्तान में प्याज की कीमत ठीक एक साल पहले की कीमतों की अपेक्षा 319% अधिक थी। नवंबर 2021 की तुलना में डीजल 65% और पेट्रोल 54% महंगा हुआ है। विभिन्न दालों की दरें 50-57% अधिक के बीच थीं। लोग चाय के लिए 60% और नमक के लिए 55% अधिक भुगतान कर रहे थे। सरसों का तेल 44 फीसदी महंगा हुआ। आम लोगों के लिए सामान्य जीवन जीना असंभव हो गया है। यह परिदृश्य पाकिस्तान में श्रीलंका की पुनरावृत्ति थी। जनता के विरोध प्रदर्शनों का ऐसा ही उभार दरवाजे पर दस्तक दे रहा है।

बाढ़ के बाद का संकट

जून और अगस्त 2022 में पाकिस्तान में रिकॉर्ड भारी बारिश हुई। मानवीय मामलों के समन्वय के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNOCHA) के आंकड़ों के अनुसार, बाढ़ में लगभग 1600 लोग मारे गए। लगभग 79 लाख लोग आंतरिक तौर पर विस्थापित हुए। बाढ़ के पानी में फंसे, 20 लाख से अधिक घर क्षतिग्रस्त हो गए। 12,800 लोग घायल हुए- ज्यादातर घर ढहने से। बाढ़ ने 11 लाख पशुधन को नष्ट कर दिया। देश में 94 लाख एकड़ फसली क्षेत्र जलमग्न हो गया और फसलें नष्ट हो गईं। पाकिस्तान के 81 जिलों में, कुल 78,000 वर्ग किमी (30,000 वर्ग मील) खेत बाढ़ में बह गए। पाकिस्तानी किसान बर्बाद हो गया। पाकिस्तान सरकार के आंकड़ों के अनुसार देश में 80% से अधिक फसल नष्ट हो गई थी।

वास्तव में, ग्लोबल वार्मिंग पर आईपीसीसी की अगस्त 2021 की रिपोर्ट में बताया गया है कि हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने के कारण पाकिस्तान को बड़े पैमाने पर बाढ़ के खतरे का सामना करना पड़ा। और हम जानते हैं कि 2022 जुलाई-अगस्त की बाढ़ एक बार की घटना नहीं होगी।

कोई आश्चर्य नहीं, सबसे अधिक उत्पादक और अत्यधिक सिंचित पंजाब और उपजाऊ सिंध के बावजूद, पाकिस्तान, दुनिया में गेहूं का आठवां सबसे बड़ा उत्पादक, जो अन्यथा अन्य देशों को खिला सकता था, एक तीव्र भोजन के अभाव और खाद्य संकट की चपेट में आ गया। बाढ़ ने सभी सड़कों और पुलों को नष्ट कर दिया। यहां तक कि भीतरी इलाकों में पैदा होने वाले थोड़े खाद्यान्नों को भी नहीं ले जाया जा सकता था। जुलाई में बाढ़ से पहले ही खाद्य मुद्रास्फीति 25% पर थी। बाढ़ के बाद, खाद्य कीमतों में तीव्र वृद्धि आ गई है। और इस खाद्य महंगाई ने लोगों की हालत और खराब कर दी है।

जबकि विनाशकारी बाढ़ ने कोविड-19 आपदा का अनुसरण किया, बाढ़ के बाद एक हीटवेव आया। पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। बाढ़ में जो भी गेहूं की फसल बची, वह झुलस गई।

लेकिन बहुप्रतीक्षित अंतर्राष्ट्रीय सहायता कम हो गई। यूनिसेफ ने अनुमान लगाया कि फंडिंग गैप 75% है और एफएओ ने इसे 94% बताया है। नकदी की तंगी से जूझ रहे पाकिस्तानी राज्य को अपना बचाव करना पड़ा। इसने बस अपने लोगों को भगवान भरोसे छोड़ दिया और इसलिए क्रमशः आने वाली सरकारों ने अपनी वैधता खो दी।

संवैधानिक संकट और इसकी निरंतरता

अप्रैल 2022 से पाकिस्तान में लंबे समय तक चले राजनीतिक संकट ने आर्थिक संकट को बढ़ाने में कम महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभाई। 3 अप्रैल 2022 को, पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने इमरान खान, जो उस समय प्रधानमंत्री थे कि सलाह पर नेशनल असेंबली को भंग कर दिया; वे जल्दी चुनाव चाहते थे क्योंकि वह संयुक्त विपक्ष द्वारा लाए गए विश्वास मत को हारने वाले थे। विश्वासमत हारने के बाद राष्ट्रपति ने शहबाज शरीफ को प्रधानमंत्री के रूप में मनोनीत किया। जब से वह सत्ता से बाहर हुए हैं, इमरान खान नए चुनाव के लिए अभियान चला रहे हैं और शहबाज शरीफ सरकार राजनीतिक घेरेबंदी में है।

दरअसल, पाकिस्तान में सेना ही वास्तव में सरकार चला रही है। लेकिन सेना इस बात से पूरी तरह अनभिज्ञ है कि अर्थव्यवस्था को कैसे चलाना है। यह अफगानिस्तान में तालिबान आतंक का प्रबंधन करने के लिए प्रति वर्ष $ 5-10 अरब की अमेरिकी आतंकवाद-रोधी सहायता (anti-terrorist aid) पर पली एक सेना है। अफगानिस्तान और बलूचिस्तान में उग्रवादी समूहों का प्रबंधन क्योंकि पाकिस्तानी सेना का मुख्य व्यवसाय था और उन्होंने कोविड-19 से प्रभावित अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने पर बहुत कम ध्यान दिया। सेना को एक लोकप्रिय निर्वाचित सरकार के उभरने का भी डर था जो उसकी भूमिका पर अंकुश लगा सकती है।

इमरान ख़ान पर जान-लेवा हमला

इसी पृष्ठभूमि में इमरान खान पर हमला हुआ था। हमले की आशंका जताते हुए, अक्टूबर 2022 में ही, इमरान खान ने सार्वजनिक रूप से कहा कि उन्हें मारने की साजिश चल रही थी और यह कहा कि अगर उन्हें कुछ हुआ तो साजिशकर्ताओं के नामों का खुलासा करते हुए उनका एक रिकॉर्ड किया गया वीडियो जारी किया जाएगा। इसके बावजूद 3 नवंबर 2022 को एक बंदूकधारी ने उन्हें गोलियां मारीं और फायरिंग में उनका एक समर्थक मारा गया और रैली में उनके आसपास के करीब 15 लोगों को गोलियां लगीं। इमरान खान चमत्कारिक रूप से पैर में गोली लगने के बाद बाल-बाल बच गए।

हमले के एक दिन बाद, इमरान खान ने शाहबाज़ शरीफ़ को हमले के लिए जिम्मेदार ठहराया, जिन्होंने अप्रैल में अविश्वास मत के ज़रिये उन्हें प्रधानमंत्री पद से अपदस्त कर दिया था। उन्होंने गृह मंत्री राणा सनाउल्लाह और सेना के एक वरिष्ठ जनरल का नाम सह-षड्यंत्रकारियों के रूप में लिया। सरकार ने अपनी ओर से धार्मिक चरमपंथी समूहों पर दोष मढ़ दिया। अब एक बार फिर सरकार ने एक खुफिया रिपोर्ट का हवाला दिया है कि दो धार्मिक चरमपंथी समूह इमरान खान को मारने की योजना बना रहे हैं। पाकिस्तान में राजनीतिक संकट इतना गंभीर है कि संसदीय राजनीति भी जीवन और मृत्यु का प्रश्न बना हुआ है। कोई भी लोकप्रिय सरकार टिक नहीं पा रही है।

इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) ने तत्काल चुनाव की मांग को लेकर लाहौर से राजधानी इस्लामाबाद तक अपना 'लांग मार्च' फिर से शुरू कर दिया है। जान को खतरा होने के बावजूद इमरान खान रावलपिंडी के पास मार्च में व्यक्तिगत रूप से शामिल होंगे। कुछ पर्यवेक्षक भविष्यवाणी कर रहे हैं कि पाकिस्तान फिर से सैन्य शासन के अधीन हो जाएगा। पाकिस्तान में राजनीतिक स्थिति इतनी अस्थिर है कि लांग मार्च के समापन के करीब आते-आते कुछ भी हो सकता है। भारत में, कुछ सत्तारूढ़ दल के नेता और यहां तक कि सेना के जनरल अब पाक अधिकृत कश्मीर को मुक्त करने के बारे में बहादुरी-भरी बातें कर रहे हैं। पाकिस्तान के शासकों के लिए आंतरिक संकट से लोगों का ध्यान हटाने के लिए भारत के खिलाफ किसी प्रकार के सैन्यवादी अंधराष्ट्रवाद की ओर बढ़ने का इससे बेहतर अवसर और कुछ नहीं हो सकता। यदि भारत बुद्धिमानी से काम ले, तो वह पाकिस्तान यानी पराई आग में हाथ सेंकने के प्रलोभन से बचेगा। पाकिस्तान में स्थिरता भारत के हित में है क्योंकि भारत न तो उग्रवाद के विस्तार और न ही शरणार्थियों की बाढ़ का सामना कर सकता है।

(लेखक श्रम और आर्थिक मामलों के जानकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।) 

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