संसदीय समिति ने वर्ष 2023-24 में मनरेगा के बजट अनुमान में कटौती पर चिंता व्यक्त की
संसद की एक समिति ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) को बेरोजगार वर्ग के लिए संकट काल में आशा की किरण बताते हुए इस बात पर चिंता व्यक्त की है कि वर्ष 2022-23 के संशोधित अनुमान की तुलना में वर्ष 2023-24 में मनरेगा के बजट अनुमान में 29,400 करोड़ रूपये की कटौती की गई है।
लोकसभा में बुधवार को पेश, द्रमुक सांसद कनिमोई करूणानिधि की अध्यक्षता वाली ग्रामीण विकास और पंचायती राज संबंधी स्थायी समिति की रिपोर्ट में यह बात कही गई है।
समिति यह जानकर चिंतित है कि वर्ष 2022-23 के संशोधित अनुमान की तुलना में वर्ष 2023-24 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के लिए बजट अनुमान में 29,400 करोड़ रूपये की कटौती की गई है।
मनरेगा अधिनियम में, काम करने के इच्छुक ग्रामीण जनसंख्या के वंचित वर्ग को काम करने का अधिकार दिया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि मनरेगा की भूमिका और महत्ता कोरोना काल में स्पष्ट दिखायी दी जब यह जरूरतमंद लोगों के लिए संकट काल में आशा की किरण बनी। इस योजना की महत्ता वर्ष 2020-21 और 2021-22 में संशोधित अनुमान स्तर पर क्रमश: 61,500 करोड़ रूपये से 1,11,500 करोड़ रूपये और 73,000 करोड़ रूपये से 99,117 करोड़ रूपये की भारी वृद्धि से स्पष्ट होती है।
चालू वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान भी मनरेगा के लिए राशि को 73,000 करोड़ रूपये के बजट अनुमान से बढ़ाकर संशोधित अनुमान के स्तर पर 89,400 करोड़ रूपये कर दिया गया है।
रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2023-24 के लिए आरंभिक स्तर पर ही ग्रामीण विकास विभाग द्वारा मनरेगा के लिए 98,000 करोड़ रूपये की प्रस्तावित मांग की तुलना में 60,000 करोड़ रूपये का आवंटन किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है ‘‘समिति मनरेगा के तहत आवंटन में कमी के औचित्य को समझ नहीं पायी है।’’
इसमें कहा गया है कि चूंकि योजना के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए पर्याप्त बजटीय आवंटन आवश्यक है, इसलिए समिति का दृढ़ मत है कि धनराशि में कटौती के मामले पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए।
समिति ने कहा कि यह एक स्थापित प्रक्रिया है कि मनरेगा एक मांग आधारित योजना है और संशोधित अनुमान स्तर पर धनराशि में वृद्धि की जा सकती है, फिर भी मंत्रालय को यह स्पष्ट करना चाहिए कि ग्रामीण विकास विभाग ने किस प्रकार मनरेगा के प्रस्ताव के चरण में 98,000 करोड़ रूपये की मांग की गणना की।
समिति यह पुरजोर सिफारिश करती है कि ग्रामीण विकास विभाग जमीनी स्तर पर मनरेगा के अंतर्गत काम की मौजूदा भारी मांग का अधिक सटीकता से अनुमान लगाए और अपने पत्राचार एवं प्रशासनिक कौशल द्वारा वित्त मंत्रालय से मनरेगा के लिए आवंटन में वृद्धि की मांग करे।
रिपोर्ट के अनुसार, समिति ने यह भी सिफारिश की कि ग्रामीण विकास विभाग को मनरेगा के तहत मजदूरी की दरों को उपयुक्त मूल्य निर्धारित सूचकांक से जोड़कर बढ़ाना चाहिए और पूरे देश के लिए मनरेगा के तहत एक समान मजदूरी दर अधिसूचित करने की व्यवहार्यता का पता लगाना चाहिए।
बता दें कि दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब के डिप्टी स्पीकर्स हॉल में 14 मार्च को संसद सदस्यों के लिए आयोजित एक ब्रीफिंग में, नागरिक समाज के सदस्यों ने उनसे करोड़ों मज़दूरों और श्रमिकों के मुद्दों को उठाने का आग्रह किया, जिन्हें ‘‘दिसंबर 2021 से भुगतान नहीं किया गया है’’।
कई नागरिक समूहों और श्रमिक संगठनों ने केंद्र की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार पर आरोप लगाया है कि वह महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) को धीरे-धीरे खत्म करने की राह पर है। उन्होंने विपक्षी दलों से इस योजना के लिए बजटीय आवंटन में वृद्धि की उनकी मांगों का समर्थन करने की अपील की है।
इस कार्यक्रम में शामिल होने वाले विपक्षी दलों के सांसदों में संजय सिंह (आम आदमी पार्टी), दिग्विजय सिंह, उत्तम कुमार रेड्डी और कुमार केतकर (कांग्रेस), एस. सेंथिलकुमार (द्रविड़ मुनेत्र कषगम), जवाहर सरकार (तृणमूल कांग्रेस) शामिल थे।
नागरिक समाज के सदस्यों ने इन सांसदों के साथ सरकार को बजटीय आवंटन बढ़ाने और भुगतान के तरीके में हालिया संशोधनों को बदलने के लिए मजबूर करने के उपायों पर विचार-विमर्श किया। सदस्यों ने दावा किया कि उक्त संशोधन श्रमिकों के हितों के लिए ‘‘विनाशकारी’’ साबित हुआ है।
(न्यूज़ एजेंसी भाषा इनपुट के साथ)
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