पंजाबः लखीमपुर घटना की बरसी पर किसानों का प्रदर्शन, केंद्र सरकार का पुतला फूंका
केंद्र सरकार के विवादित तीन कृषि क़ानूनों को लेकर हुए आंदोलन के दौरान किसानों पर हुए मुक़दमा वापस लेने और उन्हें जेल से रिहा करने, बिजली वितरण अधिनियम वापस लेने, केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा को कैबिनेट से निकालने और पराली का विकल्प तलाशने समेत अन्य मुद्दों को लेकर देश भर में किसानों ने आज धरना प्रदर्शन किया। इसी कड़ी में पंजाब के भी किसानों ने विभिन्न जगहों पर इन मांगों को लेकर प्रदर्शन किया। धरना प्रदर्शन के दौरान कई जगहों पर केंद्र सरकार के पुतले भी दहन किए गए।
किसानों की मांगों को लेकर ऑल इंडिया किसान सभा की पंजाब इकाई के महासचिव बलजीत सिंह ग्रेवाल ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि हमारी एमएसपी, किसानों के केस वापस लेने समेत बहुत सी मांगों को सरकार ने पहले मान ली थी लेकिन अब उस पर वो कुछ कर नहीं रही है। इसको लेकर अगस्त पंजाब में अगस्त महीने की 24 तारीख़ से लगातार धरने-प्रदर्शन किए जा रहे हैं। आज लखीमपुर घटना की बरसी है और हम सरकार से मांग कर रहे हैं कि किसानों से जो वादा किया गया था उन सबको पूरा किया जाए।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने कहा था कि किसानों से केस वापस लेने के लिए राज्य को कह दिया जाएगा लेकिन जब भी सरकार के प्रतिनिधि से बात की जाती है तो वे कहते हैं कि प्रक्रिया चल रही है लेकिन अब तक किसी किसानों से केस नहीं हटाए गए हैं। ये लोग सिर्फ बहानेबाजी कर रहे हैं। इन्होंने इस संबंध में जो वादा किया था कम से कम उन्हें तो पूरा करे।
बलजीत सिंह कहते हैं कि, सरकार ने एमसपी पर कमेटी गठित करने की बात की थी और कहा था उसमें एसकेएम के लोग होंगे। कमेटी बन गई लेकिन उसमें उन लोगों को शामिल किया गया जो मोदी सरकार के विवादित तीनों कृषि क़ानूनों के समर्थक थें। एसकेएम उस कमेटी को रद्द कर दिया। हमारी मांग है कि सरकार वादे के मुताबिक़ एक कमेटी गठित करे जिसमें एसकेएम के किसान नेता शामिल हों।
बिजली वितरण अधिनियम वापस लेने की मांग पर उन्होंने कहा कि, केंद्र सरकार ने इस मामले को लेकर कहा था इसे हम राज्य पर छोड़ देंगे और इसमें केंद्र सरकार का कोई दख़ल नहीं होगा। राज्य सस्ता दे या महंगा दे उससे हमारा कोई लेना देना नहीं होगा।
सिंह ने कहा कि हमारी मांगों में लखीमपुर खिरी वाला भी मामला है जिसको लेकर राज्य के करीब 73 से ज़्यादा जगहों पर हमलोग प्रदर्शन कर रहे हैं। हमने अपनी मांग पत्रों को ज़िला का संबंधित अधिकारियों को दे दिया है। केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी को मंत्रिमंडल से निकाला जाए
ज्ञात हो कि देश में पराली को लेकर बड़ी समस्या पैदा हो गई। ख़ास कर राजधानी दिल्ली के आस पास के राज्यों जैसे हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए। उनके पास इसे जलाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं। उन्हें मजबूर हो कर इसे जलाना पड़ता है क्योंकि अन्य दूसरे तरीक़ों जैसे खेत की जुताई कर उसमें पानी पटाने की विधि इतनी महंगी और समय बर्बाद करने वाली है कि किसान उसे नहीं कर पाते हैं। इस मुद्दे पर किसान नेता बलजीत सिंह ने कहा कि राज्य सरकार ने किसानों को केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार की मदद से पैसा देने का वादा किया था लेकिन इस पर भी कोई अमल नहीं हुआ। इसके उलट सरकार कह रही है कि जो किसान पराली पर आग लगाएगा उसकी ज़मीन को रेड लाइन सिस्टम में डाल दिया जाएगा जिससे किसान को आने वाले समय में लोन वगैरह की सुविधा नहीं मिल पाएगी।
उन्होंने कहा कि पराली को लेकर सरकार की तरफ से उचित गाइडलइन न होने की वजह से किसानों के सामने इस मौसम में बड़ी समस्या पैदा हो जाती है क्योंकि अभी धान की कटाई का मौसम है और सरकार ने जिस तरह पराली को निपटाने की व्यवस्था बताई है उससे अगले फसल की बुआई में देरी हो जाती है जिससे उपज पर असर पड़ता है। इन सबसे किसानों को नुक़सान उठाना पड़ रहा है। दूसरी तरफ सरकार उन फैक्ट्रियों पर रोक नहीं लगा रही है जिससे चौबीसो घंटे धुंआ निकलता रहता है। किसानों के पास मजबूरी है। उनके पास फसल की बुआई के लिए समय की कमी होती है। उनके पास पैसे की कमी है। पराली को निपटाने के लिए उचित प्रबंध नहीं है। सरकार कॉरपोरेट का तो क़र्ज़ माफ कर रही है लेकिन किसानों से क़र्ज़ वसूलने पर आमादा है। किसानों पर तो क़र्ज़ इसलिए बढ़ गया कि उनको उनके उपज का सही दाम नहीं मिला। बावजूद इसके सरकार किसानों के लिए कुछ कर नहीं रही है।
सिंह ने कहा कि इन्हीं मांगों के बीच में हमारी एक और मांग है जो हाल ही में पशुओं में विशेष कर गाय में लंपी स्किन बीमारी के चलते राज्य में क़रीब 45 प्रतिशत गायों की मौत हो गई है। वहीं बड़ी संख्या में गाय इस बीमारी से प्रभावित है जिससे ये पशु दूध नहीं दे पा रही है। इसकी वजह से राज्य में दूध के उत्पादन पर काफी असर पड़ा है। एक तरफ तो बड़ी संख्या में गायों की मौत हो गई वहीं दूसरी तरफ दूध के उत्पादन में से किसान परेशान हैं। इसलिए हमारी मांग है कि जिन किसानों के पशुओं की मौत हुई है उन्हें प्रति पशु एक लाख रूपये का मुआवज़ा दिया जाए है और जो पशु बीमार हैं उनके इलाज का सारा ख़र्च सरकार उठाए। बीमारी की वजह से राज्य के किसान और बुरी तरह टूट गए हैं। इसलिए किसानों को मुआवज़ा देने के साथ-साथ उनको बिना ब्याज के लोन की व्यवस्था की जाए ताकि उनके नुक़सान की भरपाई हो सके।
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